मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व को आधार प्रदान करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है मानसिक स्वास्थ्य। सुन्दर सलोना मुखड़ा, सुन्दर गहरी झील सी आँखे, सुडौल शरीर में यदि मानसिक विकृति आ जाए तो व्यक्ति अपनी पहचान खो बैठता है। मानसिक स्वास्थय का अभाव जिन्दगी के 10 से 15 वर्ष तो कम कर ही देता है। सम्पूर्ण परिवार को एक त्रासदी, अनचाही यन्त्रणा भोगने को विवेश होना पड़ता है। शारीरिक आयु बढ़ने पर मानसिक आयु उससे साम्य रखने में खुद को असमर्थ पाती है। इसी लिए मानसिक स्वास्थय की यत्न पूर्वक रक्षा की जानी चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने हेतु उपाय
(Tips to maintain good mental health) –
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मानव शरीर, चेतन जगत का अद्भुत उपागम है और इस अद्भुत उपागम का सशक्त आलम्ब है उत्तम मानसिक स्वास्थय। विधाता विलक्षण शक्तियों को हमें प्रदान कर उनके संरक्षण की विशेष जिम्मेदारी भी हमें प्रदान करता है इस जिम्मेदारी का निर्वहन करने हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु आपसे साझा कर रहा हूँ जो इस प्रकार हैं। –
- स्वयम् से प्रेम (Self-esteem ) –
यदि हम खुद से प्रेम नहीं कर सकते या खुद को सम्मान नहीं दे सकते तो अन्य के साथ भी हम केवल दिखावा कर सकते हैं उसमें प्रमाणिकता नहीं होगी। इसलिए सबसे पहले खुद की इज्जत करें और अपने प्रिय अच्छे कार्यों हेतु समय दें। प्रत्येक वह कार्य जो हमें सचमुच खुशी प्रदान करता है और दूसरों के दुःख का कारण नहीं बनता वह हमें पूर्ण मनोयोग से करना चाहिए। वह नृत्य, सङ्गीत, लेखन, बागवानी, प्रिय भोज्य पदार्थ बनाना आदि कुछ भी हो सकता है।
- आत्म संयम (Self-control) –
संसार की समस्त व्यवस्था का व्यवस्थापन हमारे वश में नहीं है हम अपने ऊपर ही नियन्त्रण कर लें यही बड़ी बात है दूसरों को दिशा भर देने का क्षमता भर प्रयास किया जा सकता है अपना कार्य पूर्ण करें दूसरे की प्रतिक्रिया भिन्न हो तो खिन्न न हों। सभी का मानसिक स्तर व क्षमता भिन्न होती है। संयम हमें व्यवस्थित रख मानसिक स्वास्थ्य को सम्बल देगा।
असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति: |
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायत: || 36||
अर्थात
जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन से उसका प्राप्त होना सहज है- यह मेरा मत है॥36॥
- सकारात्मकता का प्रशिक्षण (Training of positivity) –
अपने मष्तिस्क को सकारात्मकता प्रकीर्णन का अजस्र स्रोत बनाना है परिस्थितियों के वशीभूत नहीं हो जाना है उन्हें अपने अनुकूल बनाने की समग्र विशिष्ट रणनीति बनाकर अमल करने की आवश्यकता है इससे मष्तिस्क कुशल रहने हेतु सबल हो जाएगा और बहुत से मष्तिष्कों को दिशा देने में सफल रहेगा। मानसिक अस्वस्थता का तो सवाल ही नहीं उठ सकता।
- व्यायाम, प्राणायाम (Exercise, Pranayam ) –
मानसिक रूप से सबल बनाने का यह सबसे सशक्त माध्यम है, व्यायाम प्राणायाम, एरोबिक्स, स्ट्रैचिंग आदि इस तरह की क्रियाएं हैं जिससे फेफड़े और हृदय शक्तिशाली हो जाते हैं और अधिक क्षमता से ऑक्सीजन ग्रहण कर पाते हैं इससे शरीर की सब क्रियाएं व्यवस्थित हो जाती हैं और हम मानसिक रूप से सबल कब हो गए यह विषम स्थिति आने पर ही पता चलता है और लोग आपके नेतृत्त्व में कार्य करने को लालायित रहते हैं। व्यायाम, प्राणायाम में निरंतरता रहना परमावश्यक है। ये अपनी क्षमता के अनुसार सभी कर सकते हैं। Education Aacharya पर YOU TUBE पर TIP TO TOP Exercise part 1 & 2 में सभी के करने वाली सरलतम क्रियाएं दी हैं।
- सत्संगति (Satsang)–
भारत में एक कहावत प्रसिद्ध है की खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है जिससे आशय है की साथ का संगति का प्रभाव पड़ता ही है इसीलिये अलग अलग तरह के लोग अलग अलग ग्रुप में दीख पड़ते हैं। चूंकि यहां बात मानसिक स्वास्थय के सम्बन्ध में हो रही है इसलिए यह बताएं प्रासंगिक हो जाता है कि सबल मानसिक स्वास्थ्य या सकारात्मक व्यक्तित्वों का साथ सत्संगति कहलायेगा तथा मानसिक उत्थान व सशक्तिकरण में योग देगा। इसीलिए घर में उच्च मानसिक क्षमता वाले व्यक्तित्वों के ही चित्र लगाए जाएँ भले ही वे सशरीर हों या नहीं।
- विचार विनिमय व तार्किकता (Exchange of thoughts and reasoning)–
सत्य और तार्किकता का चोली दामन का साथ है इसे झुठलाया नहीं जा सकता। मानसिक उत्थान हेतु हमें अध्ययन, मनन, चिन्तन, अनुभव का आधार लेकर स्वस्थ विचार विनिमय में सक्रियता दिखानी चाहिए और सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। किसी भी विवाद में बातचीत बंद नहीं करनी चाहिए हम सब आपस में दुश्मन नहीं हैं जो विचार त्याज्य है वह तार्किकता की कसौटी पर हार जाएगा और सबल मानसिक स्वास्थय का पथ प्रशस्त होगा तथा मन पर कोइ बोझ नहीं रहेगा। और हम पुनः उद्घोष कर सकेंगे। –
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
अर्थात
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगल के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
- स्वयम् को समय और उपहार दें (Give yourself time and gifts, ) –
यदि हम मानसिक रूप से सशक्त महापुरुषों का अध्ययन करें तो पाएंगे की इन्हें गढ़ने में एकान्त और इनके खुद के विचारों को धार इन्होने स्वयम् के लिए समय निकाल कर दी है। वह समय कोई भी हो सकता है,स्थितप्रज्ञता की स्थिति तभी बनती है श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय में भगवन कहते हैं –
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। 69
अर्थात्
सभी प्राणियों के लिये जब रात होती है, तब सयंमी(मुनि) जागता रहता है और जब सभी प्राणियों के लिये जागने का समय होता है तब मुनि के लिये रात होती है।
मानसिक बल से युक्त होने हेतु हमें खुद को गढ़ना होगा तथा अपने लिए दंड व उपहार का निर्णयन करना होगा।
- समाज सेवा और चैन की नींद (Social service and sleep in peace) –
मानसिक स्वास्थ्य की उच्चता का एक मापन यह भी है की हम अपना ही नहीं समाज के उत्थान में योग दें सकें। रामचरित मानस में आया है –
”परहित सरिस धरम नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।”
यह परहित चिन्तन जहां हमें मानसिक रूप से सशक्त करता है वहीं इससे मिलने वाली संतुष्टि चैन की नींद लाने में मदद करती है इससे हम उत्तरोत्तर मानसिक स्वास्थय की स्थिति को प्राप्त करते हैं।
अन्ततः कहा जा सकता है कि खुद से हारना छोड़ दो आप इतने अधिक मानसिक स्वास्थ्य के मालिक बन जाओगे की दुनियाँ आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी।