मानव उत्थान के क्रम में ज्ञान का प्रस्फुटन विविध स्वरूपों में हुआ ,ज्ञान ने अध्यात्म से युक्त होकर तीव्र प्रवाह धारण कर विश्व को आप्लावित किया। चरमोत्कर्ष के इस काल को आदि गुरु शंकराचार्य का वरद हस्त मिला और ज्ञान की निर्झरिणी वेदान्त दर्शन के रूप में बह निकली,वेदान्त दर्शन के सिद्धान्तों को गेय रूप में देने का अदना सा प्रयास ही है इस प्रस्तुति के माध्यम से :–