मिट्टी वक़्त के साथ हमेशा से सफर करती है।
बदलती सदियों में विविध रूप में वो ढलती है।
हम हैं वो, वो है हम, यह कयास ही लग सकता है।
अनन्त की यात्रा का सच कैसे पता लग सकता है।
इस वक्त के उस वक्त के नायक बदलते रहते हैं।
या यूँ कहो कि इक नए सांचे में ढलते रहते हैं।
फिर क्यूँ भला हम इस तरह, यूँ ही लड़ते रहते हैं।
मिट्टी से चेतनयुक्त हो, मिट्टी में मिलते रहते हैं।
– डॉ शिव भोले नाथ श्रीवास्तव
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Mitti Waqt ke saath hamesha safar karti hai
Badalti sadiyon mein vividh roop mein wo dhalti hai
ham hain wo, wo hai hai ham, yah kayaas hi lag skta hai
Anant ki yatra ka sach kaise pta lag skta hai
Is wakt ke us waqt ke naayak badalte rahte hain
yaa yu kaho ki ek naye saanche mein dhalte rhte hain
fir kyun bhala ham is tarah, yu hi ladte rhte hain
mitti se chetnayukt ho, mitti mein milte rhte hain
– Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava
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