किसी भी देश का उत्थान और पतन उस देश के चिन्तन से प्रत्यक्षतः प्रभावित होता है लेकिन चिन्तन की दिशा राष्ट्रवादी करने के लिए कुछ सिद्धान्तों ,मर्यादाओं ,परम्पराओं ,स्तिथियों को ख़ास प्रकार का रहने की आवश्यकता परिलक्षित होती है प्रस्तुत हैं सन्दर्भित भावनाएँ :-
खाना नहीं दे सकते, तो मुखवास रहने दो,
भूखे बच्चों में प्राप्ति का उल्लास रहने दो,
न छीनो शोखियाँ तनपर लिबास रहने दो,
जीवन नहीं है जहर ये अहसास रहने दो,
ज्ञान मन्दिरों में दिव्य सा प्रकाश रहने दो,
संस्कृति व ज्ञान का दिव्याकाश रहने दो,
महाविद्यालय में गरिमा का वास रहने दो,
गुरुओं में है गुरुता परम विश्वास रहने दो,
विस्फोट न करो निर्मल आकाश रहने दो,
मूढ़ों में किसी विज्ञ की तलाश रहने दो,
अंधेरे में ही सही सत्य का आवास रहने दो,
तूफान में ताण्डव वाला अहसास रहने दो,
न छीनो बचपना, सुखद अहसास रहने दो,
न डालो बोझ यूँ, लड़कपन ख़ास रहने दो,
जवानी में न हों बूढ़े, यह इंतजाम रहने दो,
हटाके बोझ मनवा का दयाआवास रहने दो,
मिलावट ना करो यूँ, कुछ तो पाक रहने दो,
नयी पीढ़ी पनपने दो,कुछ तो ख़ास रहने दो,
नदी गन्दी,मृदा गन्दी,हवा तो साफ़ रहने दो,
शहर, हो चुके धूमिल वन में सुवास रहने दो,
मिट जाए सभ्यता मेरी ऐसा विकास, रहने दो,
विचरण में सुगमता हो ऐसा, निकास रहने दो,
राजनीति हो लेकिन जुबाँ में मिठास रहने दो,
उत्थित होगा राष्ट्र एक दिन ये विश्वास रहने दो,
कण्टक-पथ मत बनाओ, कुछ पलाश रहने दो,
बदमाशों व बदमाशी को अब निराश रहने दो,
फिलसफ़ी में भाइयों कुछ तो फिलास रहने दो,
मूँछें न सही मूँछों का सफल अहसास रहने दो,