मृत्यु का अहसास कैसा लगता है ?

होना  जिन्दा लाश कैसा लगता है ?

मृत्यु- पूर्व आभास कैसा लगता है ?

श्वास न बने प्रश्वांस कैसा लगता है ?

मोह ना आया काम ऐसा लगता है,

अब नहीं कुछ याद ऐसा लगता है,

यादों का है जमाव  ऐसा लगता है,

आती  सबकी याद ऐसा लगता है।

प्राणों का अविश्वास कैसा लगता है ?

जीवन नहीं है खास ऐसा  लगता है,

पैसा नहीं  है  बाप  ऐसा  लगता है,

सब कुछ बकवास  ऐसा  लगता है।

हो ख़ास का दीदार ऐसा लगता  है,

लाचारी वाले भावों जैसा  लगता है,

अवरुद्ध हो आवाज़ ऐसा लगता है,

थम जाए अब श्वांस  ऐसा लगता है।

बहुत किया आराम  ऐसा लगता है,

ना होता है अहसास ऐसा लगता है,

बन जाओ  निष्काम ऐसा लगता है,

काल  मिले तत्क्षण कैसा  लगता है ?

ये मुकम्मिल मुकाम जैसा लगता है,

सम्बन्धों के कुहराम जैसा लगता है,

जीवन  रहा नाकाम  ऐसा लगता है,

जाति पर पूर्णविराम जैसा लगता है ।

बन्द जीवन दूकान  ऐसा लगता है,

बदलेगा बस शृंगार  ऐसा लगता है ,

मुक्ति के अहसास जैसा  लगता है,

या होता ऊर्जा ह्रास ऐसा लगता है।

सम्बन्ध हैं भ्रमजाल, ऐसा लगता है,

जीवन नहीं जञ्जाल ऐसा लगता  है,

पूर्ण हो गए अध्याय ऐसा लगता है,

सब ही हैं महाकाल ऐसा लगता है।

बदलेगा ये इतिहास ऐसा लगता है,

आने का है, विश्वास ऐसा लगता है,

नव जीवन आगाज़ जैसा लगता है,

खुलेगा नव-अध्याय ऐसा लगता है।

मरना नहीं आसान ऐसा लगता है,

ना हो कोई उदास, ऐसा लगता है,

जग न मिथ्याकाश,ऐसा लगता है,

हमारा ही है प्रवास ऐसा लगता है।

जग भाव-राग-ताल जैसा लगता है,

प्रारब्ध के परिणाम जैसा लगता है,

क्रम होता अविराम ऐसा लगता है,

मोक्ष  है परम-धाम ऐसा लगता है।

सबका है वही धाम ऐसा लगता है,

कृत्यों  के परिणाम जैसा लगता है,

शान्ति, परम धाम जैसा  लगता है,

हम जा रहे श्री धाम ऐसा लगताहै।

—-डॉ 0 शिव भोले नाथ श्रीवास्तव

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