भविष्य जब अतीत के पृष्ठ खोलेगा,हमारी मूर्खता के कृत्य पढ़कर रो लेगा।
हमारी अन्तर्कलह जब हिंडोलेगा,दौड़ में पिछड़ने के राज सब समझ लेगा।
जब वह लड़ने का मर्म समझेगा,छुआछूत,जातिवाद के कपट को जी लेगा।
प्रान्त काअलगाव वाद पढ़ लेगा,अर्ध-विकसित होने का रहस्य समझ लेगा।
युवा विगत सोन-चिरैया ढूंढेगा,उस शोध में प्राचीन,वेद व दर्शन समझेगा।
भारतीय ज्ञान-सार तत्त्व चुनेगा, तब भारत का ज्ञान-शौर्य कलश चमकेगा।
भारत सुदूर अतीत स्वर लेगा, चाणक्य, चन्द्र गुप्त के यथार्थ को परखेगा।
चेतनपंख संवार उठ बैठेगा,अरण्य रोदन की काल्पनिकता समझेगा।
नव-चिन्तन,नव-स्वर शोधेगा,अन्तः मन सारे पुरातन-व्यथा रहस्य खोलेगा।
पापछोड़,स्वर्णिम पृष्ठ खोलेगा,जाग्रत नव भारत नव चेतना के स्वर बोलेगा।
कालिमा युक्त भाव खो देगा,नवसम्बल,नवपौरुष लेकर नवभारत दौड़ेगा।
नूतनगति, नूतनऊर्जा ले लेगा,भूल कलुषता जयजय जन-गण-मन बोलेगा।
नवऊर्जा ज्ञानशिखर चमकेंगे,विलुप्त प्राच्य- ज्ञान अक्षर,गोचर हो दमकेंगे।
नालन्दा व तक्षशिला ठुमकेंगे,ज्ञान गौरव मण्डित भारत ज्ञान घट छलकेंगे।
युगयुगीन पसरे अँधेरे भागेंगे,सर्वहारा मुहल्ले, श्रम-जीवी गीत गुन गुनायेंगे।
दीपोत्सव से तम विदा करेंगे,सकल विश्व मस्तक पर, शुभ तिलक लगाएंगे।
तम की विदा, हम मुस्कायेंगे,दीपोत्सव पर होने वाले शुभ नव तराने गाएंगे।
भेद-भाव छोड़,हम इतरायेंगे,सत्य की दिवाली होगी, दीपक झिलमिलाएँगे।
शुभ दीपपर्व आशा दिलाएगा,भारत का बच्चा बच्चा जन-गण-मन गायेगा।
विकल-विश्व आशा से देखेगा,शुभ-दिवाली,शुभ-दीपोत्सव सारा जग बोलेगा।