मैं व्यथा हूँ ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

जब जब मैं मन में कोई अन्तर्द्वन्द उलझाता हूँ,

अपने जन्म  हेतु अनुकूलतम  अवसर पाता हूँ,

मन का चैन , तन का सुकून सब  खा  लेता हूँ,

जिसके मन में पलता हूँ उसी को डस लेता हूँ।।

 

मैं व्यथा हूँ ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

घोर अवसर-वादी हूँ, मस्तिष्क जकड़  लेता हूँ,

प्रगतिपथ पर बढ़नेवालों के पग पकड़ लेता हूँ,

सारे  प्रगतिशील  विचार सिरे से कुचल देता हूँ,

ज्ञान को अज्ञान के झंझावातों मेंजकड़ लेता हूँ।।

 

मैं व्यथा हूँ ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

व्यसन -वासना स्वार्थ से फलता- फूलता हूँ  मैं,

सरल अधकचरा औ  अन्धविश्वासी ढूंढता हूँ मैं,

उसी के रक्त से स्वयं को जी भर  सींचता हूँ मैं,

कल्पना,प्रगति,विकास उड़ानें  रद्द करता हूँ मैं।।

 

मैं व्यथा हूँ ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

जब किसी चेतन के सितारे गर्दिश  में लाता हूँ,

साजिशन उसका  हम-दर्द करीबी हो जाता हूँ,

उस  मस्तिष्क पर निज मकड़जाल फैलाता हूँ,

पुरानी  गलत यादों  को  कुरेद कर  जगाता हूँ।।

 

मैं व्यथा हूँ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

कभी- कभी मैं अपने अन्त को निश्चित पाता हूँ,

आत्मविश्वासी सहृदयी को जकड़ नहीं पाता हूँ,

सकारात्मक सोच  से  मैं, स्वयं बिखर जाता हूँ,

सद्ज्ञान  के आलोक में, मैं ठहर नहीं पाता हूँ।।

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