चन्द गद्दार गद्दारों की भाषा बोल जाते हैं,
अच्छी सच्ची बातों का उल्टा बोध देते हैं।
घर में अपनी माँ से जानेक्या बोलते होंगे,
मञ्चों से माँ भारती को डायन बोल देते हैं।
पैलेटगन की मार से नानी मरने लगती है,
पत्थर फेंकते दुष्टों को भटका बोल देते हैं।
नग्न भारत माँ चित्र नक़्शे पर खोल देते हैं,
मादरे वतन भारत को कैसा मोल देते हैं।
देश में अपने देशद्रोह के नारे बोल देते हैं,
गले मिल चन्द नेता मामले में झोल देते हैं।
नारीअस्मिता को बेशर्म हल्कातौल देते हैं,
लड़कों से गल्ती होजाती,ऐसा बोलदेते हैं।
जाति,प्रान्त, मज़हब का जहर घोल देते हैं,
लामबन्द न हो आवाम रास्ता मोड़ देते हैं।
देशोन्नति के बजाए स्वप्रगति पे जोर देते हैं,
पहचानो, रेखांकित करो साथ छोड़ देते हैं।
येनकेन लाल नीली बत्ती को जुगाड़ लेते हैं,
भ्रमित दुष्ट युद्धअपराधी भाषा बोल देते हैं।
भले जो खुद नहीं हैं,भलाई का बोध देते हैं,
खानदानी चोर, देवता को चोर बोल देते हैं।
अब लोग सत्य को सत्य, कहने से डरते हैं,
कलम के हत्यारे स्वार्थपूर्ण दृष्टिकोण देते हैं।
अराजक तत्व अराजकता का जाल देते हैं,
असली चेहरे पर नक़ली खोल ओढ़ लेते हैं।
बहुत पढ़ा गांधी इस समय में छोड़ देते हैं,
सुभाष चन्द बोस के पृष्ठों को खोल देते हैं।
अहसान फ़रामोश, शत्रु भाषा बोल देते हैं,
गलती तो हमारी है जो जिन्दा छोड़ देते हैं।