क्या करूँ पिताश्री अत्याधिक याद आते हो।

पहले मैं सताता था, सो यादों में सताते हो।।

ब्रह्ममुहूर्त को दिला याद भोर में जगाते हो।

नहीं हो सशरीर पर मानस पर छा जाते हो।।

सच में आज भी आप दिशाबोध करवाते हो।

आप ही कालानुसार कदम ताल सिखाते हो।।

दायित्व निभाने का पावस अहसास जगाते हो।

कभी मेरे ख़यालों में पूजा करते दिख जाते हो।।

लगता है निकट हो शिवभजन गुनगुनाते हो।

नयना बन्द करने पर, जेहन में घूम जाते हो।।

दौड़ो खेलो कूदो कह कर अलख जगाते हो।

कभी मौन रह कर ही दण्ड बैठक लगाते हो।।

प्राणायाम भ्रमण कसरत की महत्ता बताते हो।

यादों में अनायास बस आप आकर समाते हो।।

मार्ग के सारी बाधा आशीर्वाद देकर हटाते हो।

शान्तिपूर्वक हमारे सब दुःख दर्द पिए जाते हो।।

‘सर्वे भद्राणि पश्यन्तु’ का वो मर्म घोल जाते हो।

राष्ट्र है सबसे बड़ा हम सब ही से बोल जाते हो।। 

सशक्त राष्ट्र को विश्वबन्धुत्व की सीढ़ी बताते हो।

‘इदं राष्ट्राय इदं न मम’ कहके झिंझोड़ जाते हो।।

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