अपनी सहिष्णुता अपनों को ही भारी पड़ जाती है,
मर्यादाओं के चक्कर में मति अपनी मारी जाती है,
सीधेसाधे मनवालों के जीवन का हरण हो जाता है,
मार काट सम्प्रदाय बढ़ाना धारणा धर्म हो जाती है।
ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।
जो अपने को हिन्दू कहते उनमें कुछ कुलघाती हैं,
केवल निज स्वार्थ पढ़ा जिसने,नहीं हमारे साथी हैं,
हम यूँही ऊँ शान्ति जपते मन्दिर ध्वंस हो जाता है,
इन घाती भाईयों की फटती फिर क्यों ना छाती है।
ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।
हर हर महादेव बोलें तो किसकी क्षति हो जाती है,
कश्मीरी पण्डित जनसंख्या मसली सताई जाती है,
ना प्रतिकार किया जिसने उनका क्षरण होजाता है,
कुछपन्थ मजहबों के प्रति मानवता उमड़ी जाती है।
ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।
बहेगी शोणित की धारा ये बात कही क्यों जाती है,
राजनीति क्षुद्रता शान्त होती तालाबन्दी हो जाती है,
जिन्ना जैसी आज़ादी का जब नारा लगाया जाता है,
ऐसे लोगों की मंशा पाक साफ़ नज़र क्यों आती है।
ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।
संसाधनों में सीएए विरोध को आग लगाई जाती है,
ये केवल सीएए विरोध नहीं बात समझ ना आती है,
फरेबियों को आगे रख बस स्वार्थ सधवाया जाता है,
तब यहाँ के रहने वालों की क्यों मति मारी जाती है।
ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।
गरिमामयी धर्म स्थलों में क्यों आग लगाई जाती है,
शान्त सहिष्णु जनता क्यों बार बार सताई जाती है,
सद् सिद्धान्त विरोध हित क्यों ढोंग रचाया जाता है,
यह देश द्रोही प्रजाति, आफत में नज़र न आती है।
ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।