करना धरना नहीं कुछ भी मुझको,
मैं बात ही बात किए जा रहा हूँ।
है ये दुनियाँ, दिखावे की दुनियाँ,
घोर संत्राश ही मैं जिए जा रहा हूँ ।
मैं कहाँ क्यों किधर जा रहा हूँ ।1 ।
खोयी सम्वेदना खोये सपने सभी,
ताप पर ताप ही मैं पिए जा रहा हूँ।
मीत संग गीत है भावनाओं की कमियाँ,
फिर भी आलाप दिए जा रहा हूँ ।
मैं कहाँ, क्यों, किधर जा रहा हूँ ।2।
मेरे अपने ही छलते हैं देखो सभी,
घात पर घात सहे जा रहा हूँ।
खोए साथी खोई मन की दुनियाँ,
गम के सागर से मैं गा रहा हूँ।
मैं कहाँ, क्यों, किधर जा रहा हूँ ।3।
खोई खुशियाँ खोए गीत अपने सभी,
गम की हालत मैं सुन पा रहा हूँ।
विश्वास करने पर भटका मैं गालियाँ,
बस घाव ही घाव मैं पा रहा हूँ
मैं कहाँ क्यों किधर जा रहा हूँ ।4।
आगे पीछे नहीं कोई मेरे कभी,
गरल सन्ताप पिए जा रहा हूँ।
जिनके हर काम में ही थीं कमियाँ,
उनसे निर्देश मैं पा रहा हूँ
मैं कहाँ क्यों किधर जा रहा हूँ ।5।
मरना तो एक दिन है सबको कभी,
फिर क्यों क्रन्दन किए जा रहा हूँ।
बदली नज़रें गिरीं फिर बिजलियाँ,
बस मैं खुद में खोया जा रहा हूँ
मैं कहाँ, क्यों,किधर जा रहा हूँ ।6।