होलीगीत सुनकर ये मन कसमसाया,

ये है अजीब बस्ती न गाँव जैसा साया,

नहीं है वो मस्ती न महुआ नजरआया,

बनावटी रूप में धन्यवाद नज़र आया ।

आ गई है होली पूरा गाँव याद आया।।1।

हुड़दंगो की टोली ने मनमेरा लुभाया,

भीड़ है यहाँ पे न अपना नज़र आया,

लोग जा रहे हैं पर ना मेरे रंग लगाया,

रंग भी उदास हैं, न हास नज़र आया।

आ गई है होली पूरा गाँव याद आया  ।2।

देखकर पिचकारी बचपन याद आया,

वो आलू ठप्पे और गुब्बारों की  माया,

रंग गाढ़ा -गाढ़ा कैसे हमने था लगाया,

अबीर और गुलाल जी भर के उड़ाया।

आ गई है होली पूरा गाँव याद आया ।3।

नहीं बचसका चाहे जोभी पास आया,

नहीं था कहीं भी तब, कोरोना  साया,

मस्त थीं बहारें हमने खूब रंग लुटाया,

थकगए जब हमसब तब माँ ने बुलाया।

आ गई है होली पूरा गाँव याद आया ।4।

आज देखता हूँ जब मैं नल पर नहाया,

विगत के पृष्ठों का ट्यूबवैल यादआया,

ढली जब दोपहर तो जुहारी ने लुभाया,

दही बड़े गुझिया पापड़ भर पेट खाया।

आ गई है होली पूरा गाँव याद आया ।5।

हुड़दंग संग गाँव में मर्यादा का साया,

जो था जिसके मन में, वही गीत गया,

आपस में किसी ने कुछभी ना छुपाया,

छोटे बड़े सभी में पर प्रेम नज़र आया।

आ गई है होली पूरा गाँव याद आया ।6।      

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