लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

मेरी साँसों की सरगम में, अनहद नाद ये कैसा है,

क्या अब मैं कर रहा प्रयाण यहाँ अवसाद कैसा है,

मैं कौन हूँ, कहाँ से हूँ, कहाँ अब  मुझको जाना है,

है काल चक्र का परिवर्तन, मगर ये काल कैसा है।

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

सम्बन्धों का ताना बाना ये नूतन भ्रम जाल कैसा है

जन्मने और मरने का यह अजब क्रमजाल कैसा है,

आवागमन का चक्कर क्या क्यों यह आना जाना है,

कैसी लीला किसकी लीला सारा ये चक्कर कैसा है।

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

यह तेरा, मेरा उसका है सारा यह चक्कर कैसा है,

जन्ममरण क्यूँ कर होते ये सब घनचक्कर कैसा है,

कभी दीखता शुभ, शुभ कभी अशुभों का आना है,

ये धरती और जगत है क्या ये मौसम कैसा कैसा है।

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

सृजन है क्यों? प्रलय है क्या? ये विश्वमेला कैसा है,

कौन इसको चलाता क्यों कौन कहता सब पैसा है,

हम सब यूँ ही झगड़ते हैं, यह खेल सारा बेगाना है,

यह ऐसा है, वह वैसा है, हम ना जाने सब कैसा है।

लोग पूछते हमसे अब, कहो कैसे हो मन कैसा है।

उत्तर बनते पुनः प्रश्न सत्य समय सापेक्ष है जैसा है।।

जो है, जैसा है, वैसा है बस यह प्रश्न रहेगा कैसा है,

बुद्धि में बल नहीं जो सुलझाए कि कब क्यों ऐसा है,

झड़ी प्रश्नों की लगी मन में व्यथित मन अकुलाना है,

प्रश्न भी मेरे उत्तर भी मेरे हम क्या बतलायें कैसा है।

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