जगत यूँ ही चलता है चलता रहेगा

जगत का यह मेला बदलता रहेगा ।।

ये सूरज जले है, यह जलता रहेगा

धरा को उजाला यह मिलता रहेगा

ना हम ही रहेंगे न ये झमेला रहेगा

नयी पीढ़ी से हरदम मेला ये रहेगा

जगत यूँ ही चलता है चलता रहेगा ।

जगत का यह मेला बदलता रहेगा ।।

ना माता रहेगी ना पिता यह रहेगा

वंश का नाम फिरभी चलता रहेगा

ना यह घर रहेगा, ना तबेला रहेगा

जगत मेले में मानव अकेला रहेगा

जगत यूँ ही चलता है चलता रहेगा ।

जगत का यह मेला बदलता रहेगा ।।

ना भगिनी रहेगी न ही भ्राता रहेगा

समयचक्र हरदम पर चलता रहेगा

सम्बन्धों का कारवाँ दरकता रहेगा

नव रागों से मौसम  बदलता रहेगा

जगत यूँ ही चलता है चलता रहेगा ।

जगत का यह मेला बदलता रहेगा ।।

ना ये रिश्ते रहेंगे ना ये खेला रहेगा

भीड़ बढ़ चली तो फिर रैला रहेगा

लेकिन मानव मनवा अकेला रहेगा

सुखों का दुखों का यह मेला रहेगा ।

जगत यूँ ही चलता है चलता रहेगा ।

जगत का यह मेला बदलता रहेगा ।।

ये धुआँ जो उठा है ये उठता रहेगा

कोई तन जले, मन सुलगता रहेगा

कहीं मातम कहीं खुशी मेला रहेगा

सुख दुःख के क्रम का बसेरा रहेगा ।।

जगत यूँ ही चलता है चलता रहेगा ।

जगत का यह मेला बदलता रहेगा ।।

Share: