न्याय दर्शन के अनुसार प्रमाणों की दुनियाँ में एक महत्त्वपूर्ण
प्रमाण है ‘अनुमान’ . यह शब्द दो शब्दों का योग है अनु +मान =अनुमान ।
अनु शब्द से आशय पश्चात से है मान का अर्थ होता है ज्ञान। अर्थात अनुमान
का तात्पर्य पूर्व ज्ञान के पश्चात होने वाले ज्ञान से है।
उदाहरण के लिए यदि हम कहते हैं कि पर्वत पर धुआँ है इसलिए वहाँ आग है
क्योंकि हमें यह पहले से ही पता है कि धुएं और आग में व्याप्ति सम्बन्ध है। अर्थात
जहाँ पर धुआँ होता है उस जगह पर आग अवश्य होती है।
अतः अनुमान को सरलतम रूप में इस तरह पारिभाषित किया जा सकता है जब दो
वस्तुओं की व्याप्ति के पूर्व ज्ञान के आधार पर उनमें से किसी एक को देखकर दूसरी
का ज्ञान प्राप्त करते हैं। अनुमान प्रमाण कहलाता है।
अनुमान
के भेद (Types of
inference ) –
चूँकि अनुमान एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण है अर्थात विविध आधारों पर इसके
भेदों का अधिगमन आवश्यक है यहाँ प्रयोजन, व्याप्ति, और व्याप्ति स्थापना के आधार पर विविध भेदों को
सरलतम रूप में देने का प्रयास है।
प्रयोजन
भेद के आधार पर –
1
– स्वार्थानुमान
2 –
परार्थानुमान
1
– स्वार्थानुमान – जिस अनुमान को अपने लिए किया जाता है उसे
स्वार्थानुमान कहते हैं जैसे कोई व्यक्ति पर्वत पर धुआँ देखता है और व्याप्ति
सम्बन्ध के आधार पर यह निष्कर्ष निकालता है कि उक्त नियमानुसार पर्वत पर अग्नि है
और यह वह खुद के लिए निकालता है तो इसे स्वार्थानुमान कहेंगे।
2 –
परार्थानुमान – जो
अनुमान अन्य लोगों ज्ञान कराने हेतु पंचावयवों का प्रयोग कराते हुए किया जाता है
उसे परार्थानुमान कहते हैं। ये पॉंच अवयव इस प्रकार हैं –
i – प्रतिज्ञा
ii – हेतु
iii – दृष्टान्त
iv – उपनय
v – निगमन
i – प्रतिज्ञा – साध्य के पक्ष में होने का ज्ञान प्रतिज्ञा द्वारा कराया जाता है।
जैसे -पर्वत पर अग्नि है।
ii – हेतु – जिस साधन के द्वारा साध्य का अनुमान होता है
उसे हेतु कहते हैं। जैसे – क्यों कि पर्वत पर धुआँ है।
iii – दृष्टान्त – व्याप्ति की व्याख्या और प्रमाणिकता हेतु दिए
गए दृष्टान्त का वर्णन किया जाता है। यथा जहाँ -जहाँ धुआँ होता है वहाँ वहाँ अग्नि
होती है जैसे रसोई घर में।
iv – उपनय – जिस व्याप्ति का होना तृतीय अवयव के रूप में
दिया जाता है और उसे विशिष्ट हेतु का पक्ष होना दिखाया जाता है उपनय कहलाता है।
जैसे – अमुक पर्वत पर धुआँ है।
v – निगमन – जिससे साध्य के सिद्ध होने का प्रतिपादन करते
हैं निगमन कहलाता है। जैसे -अतः पर्वत पर अग्नि है ।
व्याप्ति
के भेद –
अनुमान के अनुसार व्याप्ति के तीन भेद इस प्रकार हैं –
पूर्ववत
– जब भविष्य के
कार्य का अनुमान वर्तमान के कारण से होता है अर्थात किसी कारण से कार्य के अनुमान
को पूर्ववत कहते हैं। जैसे बादलोँ की उमड़ घुमड़ को देखकर यह अनुमान लगाना कि आज
बारिश होगी।
शेषवत
– शेषवत कार्य से
कारण के अनुमान को कहते हैं व्याप्ति में साधन व साध्य के बीच कार्य कारण सम्बन्ध
होता है। इसमें इस समय यानी कि वर्तमान काल में जो कार्य सम्पन्न हो रहा होता है
उसके पिछले कार्य का अनुमान लगाया जाता है। जैसे अचानक नदी में पानी के बढ़ने और
उसके तीव्र वेग से यह अनुमान लगाना कि कहीं बारिश हुई होगी।
सामान्यतोदृष्ट
–
सामान्यतोदृष्टउस प्रमाण का नाम है जिसमें अप्रत्यक्ष के आधार पर भी सम्बन्ध का
अनुमान लगाया जाता है जैसे दो अलग अलग दूरस्थ स्थानों से चन्द्रमा को देखकर उसकी
गतिशीलता का अनुमान लगाना। यह अनुमान
कार्य कारण सम्बन्ध पर नहीं बल्कि इस आधार पर होता है साधन और साध्य एक दूसरे के
बराबर निकट पाए जाते हैं।
व्याप्ति
स्थापना प्रणाली –
अनुमान
के तीन भेद व्याप्ति स्थापना प्रणाली के आधार पर किये जाते हैं
केवलान्वयी
–
जब
साधन और साध्य में नियत साहचर्य पाया जाता है तो यह केवल अन्वयी कहलाता है। इस प्रकार की व्याप्ति केवल अन्वय द्वारा
स्थापित होती है इसमें व्यतिरेक का एकदम अभाव रहता है उदाहरणार्थ सभी ज्ञेय, अभिज्ञेय हैं।
केवल
अन्वय व्याप्ति के बल पर खड़ा किया हुआ हेतु केवलान्वयी कहलाता है। इसमें उपस्थित
शब्द ‘केवल’ उसकी
व्यतिरेक व्याप्ति की सम्भावना को दूर कर देता है।
केवल
व्यतिरेकी –
जब
हम जीवित शरीर को सिद्ध करने हेतु यह कहते हैं उसमें आत्मा है क्योंकि उसमें
प्राणदिमत्त्व (प्राण,इन्द्रियाँ,ह्रदय
आदि )हेतु उपस्थित है अर्थात जब साधन तथा साध्य की अन्वयमूलक व्याप्ति से नहीं
बल्कि साध्य के अभाव के साथ साधन के प्रभाव की व्याप्ति के ज्ञान से अनुमान होता
है तो इसे केवल व्यतिरेकी अनुमान कहते हैं।
अन्वय
व्यतिरेकी –
जब
साधन के उपस्थित रहने पर साध्य भी उपस्थित रहता है एवम् साध्य के अनुपस्थित होने
पर साधन भी अनुपस्थित हो जाता है अर्थात व्याप्ति का ज्ञान अन्वय एवम् व्यतिरेक की सम्मलित उपस्थिति पर ही
निर्भर करता है। अतः अन्वय व्यतिरेकी अनुमान उसको कहा जा सकता है जिसमें साधन और
साध्य का सम्बन्ध अन्वय और व्यतिरेक दोनों के साथ स्थापित होता है।उदाहरण के लिए
जहाँ आग नहीं वहाँ धुआँ नहीं।
उक्त
विवेचन से स्पष्ट है कि अनुमान प्रमाण एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण है जिसे इससे
सम्बद्ध कुछ शब्दों को जानकर आसानी से समझा जा सकता है।