कपाल भाति प्राणायाम एक अत्याधिक ऊर्जा युक्त उच्च उदर प्राण आयाम है। कपाल का अर्थ संस्कृत में होता है ललाट या माथा और भाति का आशय है तेज। कपाल भाति को मुख मण्डल पर आभा, ओज या तेज लाने वाले प्राणायाम के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसे योग परिक्षेत्र में षट्कर्म (हठ योग) की एक क्रिया के रूप में मान्यता प्राप्त है। जब हम भाति को स्वच्छता के रूप में स्वीकार करते हैं तो कपाल भाति को मष्तिष्क को स्वच्छ करने या मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को दुरुस्त रखने वाले प्राणायाम के रूप में स्वीकार करते हैं।
कपाल भाति के लाभ /Benefits of Kapal Bhati –
कपाल भाति के लाभ /Benefits of Kapal Bhati –
यूँ तो कपाल भाति आन्तरिक शुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण साधन है लेकिन यह सम्पूर्ण जीवन और व्यक्तित्व को बदलने की क्षमता रखता है
इससे होने वाले लाभों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।
01 – आन्तरिक शोधन में सहायक / Helps in internal purification
02 – अवसाद में कमी / Reduction in depression
03 – शारीरिक भार नियन्त्रण / Body weight control
04 – ओज में वृद्धि / Increase in glow
05 – वजन में कमी / Weight loss
06 – पाचन सहायक / Digestive aid
07 – पेट की चर्बी पर नियन्त्रण / Control belly fat
08 – उच्च रक्त चाप नियन्त्रण / High blood pressure control
09 – मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण उपादान /Important Component for Mental Health
10 – कोलस्ट्रोल नियन्त्रण /Cholesterol control
11 – हार्मोन असन्तुलन में सुधार / Improves hormone imbalance
12 – नींद हेतु गुणवत्ता सुधार / Improve sleep quality
13 – आँख के नीचे के काले घेरे दूर करना / Removing dark circles under the eyes
14 – विषाक्त पदार्थों का निस्तारण /Disposal of toxic substances
15 – अस्थमा नियन्त्रण / Asthma control
16 – गैस व एसिडिटी दूर करने में सहायक/ Helpful in removing gas and acidityसावधानियाँ /Precautions –01 – यह प्राणायाम खाली पेट ही करना है। यदि कुछ खाया है तो उसके 4-5 घण्टे बाद इसे करें। 02 – उच्च रक्तचाप और गैस से पीड़ित होने पर धीमी गति से इस प्राणायाम को करना है। 03 – गर्भावस्था व मासिक चक्र के समय इससे बचें। 04 – पेट घटाने के चक्कर में इसे पूरे दिन बार बार न करें। 05 – कब्ज की स्थिति में इसे न करें जब तक कब्ज से निजात न पा लें। 06 – ज्वर, दस्त या गम्भीर रोग की स्थिति में इसे न करें। 07 – धूल, धूएं, गर्द-गुबार, आँधी आदि में इसे न करें। 08 – गर्म वातावरण में भी इसे न कर सामान्य तापमान पर करना अधिक उत्तम है। 09 – कोई परेशानी या दिक्कत होने पर योग्य योगाचार्य या चिकित्सक देख रेख में इसे करें। 10 – अस्थमा के रोगी धीमी व नियन्त्रित गति से इसे करें ।प्राणायाम हेतु विधि –01 – आरामदायक कुचालक आसान का प्रयोग करें। 02 – सिद्धासन, पद्मासन, आलती पालती मारकर बैठ जाएँ। 03 – सर व रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। 04 – शरीर को ढीला छोड़कर आँख बंद कर सकते हैं। 05 – इस प्राणायाम में केवल श्वांस को बारम्बार बाहर छोड़ना है 06 – पूर्ण विश्वास से प्राणायाम की पूर्णता पर शान्ति अनुभव कर ईष्ट शक्ति के प्रति कृतज्ञता भाव रखें। 07 – धीरे धीरे प्राणायाम की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि करते जाएँ। 08 – श्वांस छोड़ने के क्रम में बार बार तेज स्ट्रोक न लगाएं।
बसंत पंचमी ऊर्जा युक्त दिवस है ,भारतीय इसे पूर्ण उल्लास के साथ मनाते हैं इस बार यह 02/02/2025 दिन रविवार को 11. बजकर 53 मिनट से लग रही है जो 03/02/2025 दिन सोमवार को प्रातः 9 बजकर 36 मिनट तक रहेगी। बसन्त पञ्चमी पूर्वान्ह कालिक व्यापिनी तिथि को मनाई जाती है। काशी के विद्वान् उदयातिथि व पूर्वान्ह कालिक व्यापिनी तिथि के हिसाब से इसे 03/02/2025 दिन सोमवार शास्त्र सम्मत स्वीकार कर रहे हैं। वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य प्रो ० चन्द्र मौलि उपाध्याय ने बताया कि ऋषिकेश पञ्चाङ्ग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का विश्व पञ्चाङ्ग या अन्य पारम्परिक पञ्चाङ्ग सबने बसन्त पञ्चमी का पर्व 03/02/2025 दिन सोमवारको ही स्वीकार किया है।
सरस्वती पूजा का प्रारम्भ –
माँ शारदे का बसन्त पञ्चमी के पूजन से सम्बन्धित बहुत सी कहानियाँ वर्णित की जाती हैं। कहा जाता है कि माँ शारदे का कृपा पात्र होने पर जिह्वा पर सरस्वती विराजमान हो जाती है और व्यक्ति नाम, यश, मान, सम्मान , विशिष्ट कीर्ति का अधिकारी हो जाता है। सर्व प्रथम माँ शारदे के पूजन के सन्दर्भ में ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खण्ड में सोलह कला सम्पूर्ण भगवान श्री कृष्ण चन्द्र जी द्वारा पूजित होने का विवरण मिलता है। बसन्त पञ्चमीको इस पूजा के विधान के बारे में यह सर्व स्वीकृत है कि माँ को बसन्ती रंग अत्यन्त प्रिय हैं। इसीलिए योगेश्वर कृष्ण की वैजयन्ती माला, मुकुट, और पीताम्बरी इससे प्रभावित है। श्री कृष्ण भगवान द्वारा सरस्वती को यह वरदान प्रदत्त किया गया कि प्रत्येक माघ शुक्ल की पञ्चमी के दिन ब्रह्माण्ड में तुम्हारा पूजन होगा। विद्यारम्भ के समय प्रेम, श्रद्धा गौरव के साथ पूर्ण आस्था से तुम्हारी पूजा होगी। उन्होंने इस तिथि हेतु कहा। –
“मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलय तक प्रत्येक कल्प में मनुष्य, देवता, मुनिगण, योगी, नाग, गन्धर्व और राक्षस सभी बड़ी भक्ति के साथ सोलह उपचारों द्वारा तुम्हारी पूजा करेंगे।”
कहा जाता है कि तभी से माघ शुक्ल पञ्चमी के दिन बसन्त पञ्चमी मनाते हैं और सरस्वती पूजन किया जाता है।
धर्म आधारित मान्यता –
यह दिन हाथों में पुस्तक, वीणा, माला, के साथ श्वेत कमल पर विराजित होकर वीणा वादिनी के प्रागट्य का है बसन्त पञ्चमी के इस विशिष्ट दिन से ही बसन्त ऋतु की प्रभावोत्पादकता देखने को मिलती है शास्त्रों में इनके प्रसन्न होने पर देवी काली और माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता का भी विवरण मिलता है विधि विधान के साथ भी शारदे की उपासना बसन्त पञ्चमी को होती है और इसके 40 दिनों के बाद होली पर्व प्रारम्भ होता है।बसन्त को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यता यह भी है कि ये सङ्गीत, कला और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। इसी कारण इस शुभ दिन सरस्वती पूजा विशेष रूप से की जाती है।
संस्थानों में सरस्वती पूजा –
इस विशिष्ट दिन को घरों में प्रतिष्ठानों में, मंदिरों में, शिक्षा के मन्दिर अर्थात विद्यालयों में माँ सरस्वती का पूजा अनुष्ठान होता है। ज्ञान, कला और सङ्गीत की देवी की आराधना विधि विधान से इन संस्थाओं में करने के पीछे कृपा पात्र बनने की कामना भी है। बसन्त पञ्चमी का यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को मनाकर जीवन में ऐश्वर्य, ज्ञान, समृद्धि और सकारात्मकता से जुड़ने का संस्थान को विशेष अवसर मिलता है। भौतिकता की अन्धी दौड़ में यह दिन आध्यात्मिक चिन्तन को आधार प्रदान करता है।
सरस्वती पूजन की वैयक्तिक विधि –
यथा योग्य पूजन सामग्री एकत्रित करने के पश्चात इस भाँति पूजन करना है –
01 – उदया तिथि में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
02 – पीत वस्त्र धारण करें इसे शुभ माना गया है
03 – भगवान गणेश व माँ शारदे वीणा वादिनी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
04 – पद्मासन में बैठकर माँ का ध्यान करें। मानसिक रूप से मौन के साथ माँ का ध्यान किया जा सकता है तथा इन शब्दों से माँ के विशद रूप का ध्यान किया जा सकता है।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1
इसका आशय है कि जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।
05 – हल्दी, पीले मीठे चावल, पीले फूल,फल लड्डू आदि का भोग लगाएं।
06 – अन्त में गणेशजी व वीणा वादिनी की आरती कर प्रसाद वितरण करें।
पूजा, उपासना की उक्त विधि अधिक लोगों द्वारा इस तरीके को अपनाने के कारण बताई है वैसे आप अपने मानस के आधार पर किसी भी ढंग से माँ शारदे विद्या की देवी की उपासना कर सकते हैं।
माङ्गलिक कार्यों हेतु विशेष शुभ दिन –
समस्त माङ्गलिक कार्यों हेतु इसे विशेष दिन के रूप में मान्यता प्राप्त है यह दिन इतना शुभ मन जाता है कि गृह प्रवेश, मुण्डन, विवाह,नव प्रतिष्ठान प्रारम्भ व किसी भी नवीन कार्य के सम्पादन हेतु इस दिवस की प्रतीक्षा की जाती है।
ऐसा भी विदित है कि सूफी सन्तों ने इसकी शुभता को स्वीकार किया व चिश्ती सम्प्रदाय ने भी इसे मनाने का निर्णय किया। प्रसिद्द विचारक लोचन सिंह बख्शी के अनुसार –
“बसन्त पंचमी एक हिन्दू त्यौहार है जिसे १२वीं शताब्दी में कुछ भारतीय सूफियों द्वारा दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर स्थित मुस्लिम सूफी सन्त की कब्र पर मनाने के लिए अपनाया गया और तबसे यह चिश्ती सम्प्रदाय द्वारा मनाया जाता है।“
उक्त आलोक में कहा जा सकता है कि इस शुभ दिन को सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त है। यह प्रकृति की कायाकल्प के कारण भी शुभता का प्रभावी सन्देश देने में समर्थ है इस दिन पञ्चाङ्ग देखने,दिखाने की आवश्यकता नहीं होती पूर्ण समयावधि ही शुभ है।
दान सम्बन्धी धारणा –
इस दिन की दान सम्बन्धी धारणा भी बहुत व्यावहारिक है। लेखक, कवि, दार्शनिक, कहानीकार, साहित्यकार, शिक्षार्थी, शब्द शिल्पी और विविध सृजन से जुड़े लोगों का यह विशिष्ट दिन है। इसीलिये इनसे जुड़ी वस्तुओं यथा पुस्तक, कलम, पेन्सिल, स्याही,कागज़, चश्मा, आसन आदि का दान पात्रता देखकर सही व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जरूरतमन्दों नोटबुक, विद्यादान में सहयोग की व्यवस्था बनाई जा सकती है।
बसन्त पंचमी व भोजन –
पीले मीठे पदार्थ और सात्विक भोजन गृहण करने का विधान है सात्विक भोजन करते समय गरिष्ठ भोजन गृहण करने से भी बचना चाहिए तामसिक भोज्य पदार्थों का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए यहाँ तककि लहसुन,प्याज का भी प्रयोग इस दिन वर्जित है। केवल उन पदार्थों का सेवन करें जिससे अधिगम में व्यवधान न हो। केसर गुड़ पीले चावल का इस दिन विशेष महत्त्व है। वास्तव में बसन्ती रंग सुख, समृद्धि, और ऊर्जा का प्रतीक मन जाता है रंग का पुष्प अर्पित करने के पीछे भी यही मान्यता कार्य करती है। फसल पकने ,हलके जायकेदार भोजन और खुशी का प्रगटन लोग पतङ्ग उड़ाकर करते हैं।
बसन्त पंचमी व इसका महात्मय –
इसके महात्मय इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि विद्यारम्भ बिना सरस्वती पूजा के संपन्न नहीं होता। कहा जाता है कि जब व्यास जी ने बाल्मीकि जी से पुराण सूत्र के बारे में पूछा तो वे बताने में असमर्थ रहे इस स्थिति में व्यासजी ने जगदम्बा सरस्वती की स्तुति की और इनकी विशेष कृपा से बाल्मीकि जी को ज्ञान हुआ तत्पश्चात इन्होने सिद्धान्त को प्रतिपादित किया। माँ शारदे के वर से व्यासजी कवीश्वर बने व उन्होंने पुराणों की रचना की। माँ शारदे की उपासना से ही इन्द्र शब्द शास्त्र व उसका अर्थ समझने में समर्थ हो सके। ज्ञान से शब्द बोध होता है और अनुभव से उसका आशय स्पष्ट होता है। विद्या मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास हेतु है शारीरिक विकास हेतु भोजन व मानसिक उत्थान हेतु विद्या आवश्यक है। इस ज्ञान की प्राप्ति हेतु ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की उपासना श्रेयस्कर है और बसंत पंचमी इस हेतु श्रेष्ठ दिन।
यह ऐसे नारे हैं जो बिना नाम बताये भारतीय आज़ादी के विशिष्ट पुरोधा का नाम मनोमष्तिष्क में झंकृत कर देते हैं। आज जब आज़ादी की लड़ाई का वास्तविक चित्र एक खुले दिमाग का विचारक अपने जेहन में लाता है तो अनायास ही मानस पटल पर आ जाते हैं अमर सेनानी, आजाद हिन्द फ़ौज की पुरुष विंग के कमाण्डर सुभाष चन्द्र बोस।
आज पराक्रम दिवस के अवसर हेतु जिस क्रान्तिकारी बलिदानी भारत के अमूल्य रत्न सुभाष चन्द्र बोस की बात करने जा रहे हैं वह भारत के उड़ीसा प्रान्त के कटक परिक्षेत्र में 23 जनवरी,1897 को जन्मे और कहा जाता है कि हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त,1945,ताइवान के एक चिकित्सालय में आग से बहुत अधिक घायल होने के कारण शहीद हो गए। इनका सम्पूर्ण जीवन भारतीयों हेतु अदम्य साहस और पराक्रम की प्रेरणादाई मिसाल है। इनके सम्पूर्ण जीवन और कार्यवृत्त का चित्रण, विवेचन, प्रस्तुति दुष्कर है अपनी क्षमता भर बात इस अल्पावधि में आपके साथ करने का प्रयास कर रहा हूँ और आज भी उनकी तथाकथित मृत्यु के लगभग 80 वर्षोपरान्त उस वीर की बात करते हुए मैं रोमाञ्चित हूँ।
पिता जानकी नाथ और माता प्रभावती जी का यह सुपुत्र अपनी कर्मसाधना के बल पर भारतीय स्वर्णिम इतिहास के आकाश में महान स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में एक जाज्वल्यमान नक्षत्र बन गया। भारतीय कोटि कोटि हृदयों का यह लाडला बचपन से देशप्रेम, स्वाभिमान और अदम्य साहस की जीवंत मिसाल था। अंग्रेज शासन के विरुद्ध सहपाठियों का मनोबल बढ़ाने वाला यह बाँका वीर आज़ाद हिन्द फ़ौज जापानी सहयोग से गठित करने में सफल हुआ। बचपन से जवानी की यात्रा में कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाला इस युवक 1920 में प्रशासनिक सेवा परीक्षा में भी चतुर्थ स्थान पर स्थान बनाकर 1921 अंग्रेज विरोध और आजादी प्राप्ति के लक्ष्य के कारण त्यागपत्र दे दिया।
प्रथम बार गांधी को राष्ट्र पिता कहने वाला यह पुरोधा क्रांतिकारी भगत सिंह की फांसी के बाद गाँधी की विचारधारा से पूर्णतः असहमत हो गया। 1943 में 40,000 भारतीयों के साथ आजाद हिन्द फ़ौज का गठन करने वाला यह मसीहा कालान्तर में अण्डमान निकोबार द्वीप पर प्रथम बार स्वतन्त्र भारत का झण्डा फहराने में समर्थ हुआ। भावातिरेक में उनकी जिन्दगी की किताब का कहीं से कोई भी पृष्ठ जेहन में खुल रहा है। क्रमबद्धता बनाने का प्रयास करता हूँ।
इनके युवाकाल में भारत आन्दोलनजीवी हो चुका था महात्मा गाँधी नेतृत्वकारी शक्ति के रूप में स्थापित थे सुभाषजी भी इनका बहुत आदर करते थे 1921 के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हे 6 माह की सजा मिली। बाद में इनका नेहरू व गाँधी से मतैक्य हो गया। नेहरू रिपोर्ट के विरोध में उन्होंने इन्डिपेंडेंट लीग की स्थापना की। 2जुलाई 1940 को भारत रक्षा कानून के तहत इन्हें कलकत्ता में गिरफ्तार कर लिया गया।
यद्यपि दो बार सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन हुआ लेकिन आगे चलकर नेहरूजी, गांधीजी व कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के साथ मतभेद के कारण इन्होने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। इनकी देश के समर्थन की बहुत सारी गतिविधियाँ अंग्रेज सरकार की आँखों में खटक रही थी। फलस्वरूप इन्हें 12 बार जेल की यात्रा करनी पड़ी। विषम स्थिति ने इन्हें तपेदिक का शिकार बना दिया। ये वेश बदलने में बहुत कुशल थे। इन्हें कलकत्ता की प्रेसीडेन्सी जेल में रखा गया और घर में भी नज़रबन्द रखा गया। 17 नवम्बर 1940 को यह आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गए। 28 मार्च 1941 को बर्लिन पहुँच गए, जब ये वेश बदलकर छिपकर यहाँ से भाग गए जिस कार से धनबाद के गोमोह रेलवे स्टेशन की यात्रा इन्होने पूर्ण की वह अब भी है और वर्तमान प्रधानमन्त्री श्रद्धेय नरेन्द्र मोदीजी को इसके दर्शन का सौभाग्य मिला जिसका जिक्र 19 /01 /2025 को उन्होंने अपने मन की बात कार्यक्रम में भी किया।
आजाद हिन्द रेडियो का गठन , रंगून और सिंगापुर में इनके मुख्यालय का बनना, जर्मनी से भारतीय युद्ध बन्दियों का सुरक्षित निकलना,प्रवासी भारतीयों का समर्थन लेने के साथ सुभाष चन्द्र बोस ने सक्रिय रूप से बाहरी बड़ी शक्तियों से गठबन्धन की तलाश की और ब्रिटिश सेना के विरोध हेतु आजाद हिन्द फ़ौज नाम से भारतीय राष्ट्रीय सेना बनाई। रास बिहारी, कैप्टन मोहन सिंह,सुभाष चन्द्र बोस ने क्रान्तिकारी आज़ादी का भारतीय जनमानस में प्रत्यारोपण किया ,नेहरू ब्रिगेड , गाँधी ब्रिगेड, आज़ाद ब्रिगेड, सुभाष ब्रिगेड के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लक्ष्मी सहगल की रानी लक्ष्मी बाई ब्रिगेड भी कार्य कर रही थी।
अमेरिका द्वारा हीरोशिमा, नागासाकी पर एटम बम के हमले ने जापानी सहयोग को बाधित किया एक रास्ता बन्द होने पर दूसरे को तलाशने के क्रम में हमारे नेताजी के शहीद होने की खबर ने भारतीय जनमानस को झकझोर दिया, जो आग इनके द्वारा बोई गयी थी वह ज्वालामुखी बन चुकी थी जगह विरोध के स्वर गूँज रहे थे। विविध सेनाओं के भारतीय वीर बगावत पर उतर आये। अंग्रेजों का यहाँ रुकना अत्याधिक जटिल होता जा रहा था अन्ततः अंग्रेज भारत को आजाद करने के लिए विवश हुए। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली महोदय से पुछा गया कि गाँधीजी का भारत छोड़ो आन्दोलन सफलता पूर्वक कुचला जा चुका था तो भारत को आजादी क्यों दी गयी ,उनका जवाब था सुभाष चंद्र बोस के कारण ,गांधी नेहरू प्रयास को उन्होंने बहुत मामूली बताया।
भारत के प्रमुख प्रदेश, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज नामक स्थान पर महाकुम्भ आयोजन प्रारम्भ हो चुका है करोड़ों लोग पावन त्रिवेणी में स्नान कर चुके हैं सङ्गम में गङ्गा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है साथ ही समस्त भेदभावों को भूलकर सभी पावनता की इस बयार का आनन्द ले रहे हैं।भारतीय जनमानस कुम्भ के विविध आयामों और मनसा, वाचा, कर्मणा की त्रिवेणी में स्नान के महत्त्व को भी समझते हैं अर्ध कुम्भ, कुम्भ, महाकुम्भ भारत की चरैवेति – चरैवेति संस्कृति की अनवरत यात्रा के पड़ाव हैं हमारे जैसे विविध जीव प्रारब्ध के अनुसार इससे जुड़ पाते हैं।
यह महाकुम्भ मेला कई दृष्टिकोण से विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आध्यात्मिक आयोजन है इस बार तो अनूठा संयोग बन पड़ा है 144 साल के बाद जो पीढ़ियाँ इसका आनन्द उठाने में समर्थ हो पा रही हैं उन्हें इस बेहद खास अवसर का प्रत्यक्षीकरण करने का अवसर मिलेगा।
कुम्भअवधि –
दुनियाँ भर से आस्था की डुबकी लगाने लोग भारत आते हैं कुम्भ परम्परा में अर्ध कुम्भ, कुम्भ व महाकुम्भ का यह अवसर क्रमश 6 वर्ष, 12 वर्ष व 144 वर्ष बाद आता है। महाकुम्भ का अवसर कई पीढ़ियों को नसीब नहीं होता। अवधि के सम्बन्ध यह भी बताया जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक साल के बराबर है सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की सापेक्ष स्थिति के अनुसार 12 वर्ष में कुम्भ मेला का आयोजन होता है हरिद्वार और प्रयागराज में 6 वर्ष बाद अर्ध कुम्भ आयोजन होता है 12 कुम्भ पूर्ण होने पर अर्थात 144 वर्षोपरान्त महाकुम्भ के इस स्वरुप का आयोजन होता है।
समुद्रमन्थनऔरकुम्भस्थल –
भारतीय पौराणिक कथाओं में समुद्र मन्थन हेतु देवताओं और राक्षसों के प्रयास का वर्णन मिलता है इस समुद्र मन्थन से मिलने वाले 14 तत्वों में अन्तिम वस्तु अमृतयुक्त कलश अर्थात कुम्भ (घड़ा) प्राप्त हुआ। धन्वन्तरि की अमृत कुम्भ के साथ उपस्थिति पर असुरों से बचाने हेतु इन्द्र के पुत्र जयन्त उस घड़े को लेकर भागे सूर्य, सूर्य पुत्र शनि, बृहस्पति और चन्द्रमा रक्षार्थ उनके साथ गए।
इन्द्र पुत्र जयन्त जब इस कुम्भ को लेकर भागे तब भागते समय 12 दिनों में अमृत चार स्थानों पर छलक गया यह स्थल हैं हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन व नासिक।
इन स्थलों पर देवताओं के 12 दिन (मनुष्यों के 12 वर्ष) में कुम्भ या पूर्ण कुम्भ लगता है और 12 कुम्भ अर्थात 144 वर्ष पर महा कुम्भ का आयोजन होता है।
ज्योतिषीय गणना के आधार पर कुम्भ मेले का स्थान नियत किया जाता है 12 वर्ष के अन्तराल का कारण बताते हुए कहा जाता है कि बृहस्पति को सूर्य का चक्कर लगाने में 12 वर्ष का समय लगता है जब बृहस्पति कुम्भ राशि में स्थित होता है तथा सूरज मेष राशि में और चन्द्रमा धनु राशि में होता है तब कुम्भ का आयोजन हरिद्वार में होता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में सूर्य और चन्द्रमा कर्क राशि में होता है तो कुम्भ का आयोजन नासिक त्रयम्बकेश्वर में होता है।
प्रयागराज में कुम्भ का आयोजन तब होता है जब बृहस्पति वृषभ राशि में व सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में होता है।
विविधमुख्यस्नान –
भारत में प्राचीनकाल से पंचांग का उपयोग हो रहा है।पंचांग के पांच अंग हैं -वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण। इस आधार पर प्रथम शाही स्नान पौष पूर्णिमा पर 13 जनवरी 2025 को हुआ, दूसरा शाही स्नान मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025) को सम्पन्न हुआ तीसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या पर किया जाएगा
मौनी अमावस्या पर शाही स्नान का अत्याधिक आध्यात्मिक महत्व है।भारतीय हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार अमावस्या तिथि 28 जनवरी की शाम 7:35 बजे शुरू होगी और 29 जनवरी की शाम 6:05 बजे खत्म होगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब 29 जनवरी को स्नान किया जाएगा। इस दिन संगम पर 6 करोड़ लोगों की भीड़ उमड़ने का अनुमान है।
भारतीय मनीषियों ने 03 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी के दिन कुम्भ स्नान को भी विशिष्ट महत्ता प्रदान की है।
45 दिन चलने वाले इस सामाजिक आध्यात्मिक महापर्व का प्रत्येक दिन पावस है और किसी दिवस की पावनता काम नहीं है लेकिन फिर भी विद्वानों द्वारा निर्धारित उक्त दिवस विशेष हैं। जो लोग नहीं पहुँच पा रहे हैं वे निराश न हों महा कुम्भ और तीर्थराज प्रयाग का नमन करें और शुद्ध अन्तः चेतना से घर पर स्नान करें क्योंकि मन चंगा तो कठौती में गङ्गा।
सामाजिक व आर्थिक महत्ता –
पापों से मुक्ति और मोक्ष की महत्वाकाँक्षा बहुत लोगों को गंगा में डुबकी लगवाती है लेकिन यह महाकुम्भ हमें सड़ी गली मान्यताओं व जाति-पाँति के भावों को तिरोहित कर उच्च सामाजिक मान्यताओं को अङ्गीकार करने की प्रेरणा देती है और प्रत्येक जीव में दिव्यात्मा के दर्शन करवाती है।
समाज का एक वर्ग कल्पवास की धारणा के साथ आकर यहाँ रुकता हैं बहुत से लोग लम्बे भौतिक झंझावातों से मानसिक शान्ति की तलाश में यहाँ आते हैं कुछ लोग भौतिकता की अन्धी दौड़ से निजात पाने के लिए अध्यात्म की शरण में आते हैं विविध अखाड़ों के दर्शन लाभ के साथ दान आदि देकर सकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव से अपने आप को युक्त करने वालों की भी कमी नहीं है। बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी इसमें शामिल हैं स्टीव जॉब्स की पत्नी और बहुत से औद्योगिक प्रतिष्ठानों के स्वामियों के साथ करोड़ों लोगों ने महाकुम्भ में आस्था की डुबकी लगाई। विविध विद्वान्, विविध मन्त्री, धार्मिक आस्था युक्त बहुत सी देशी विदेशी महिलाओं ने महाकुम्भ स्नान किया विज्ञ जनों, विविध ऋषियों, मनीषियों, दिव्यात्माओं और श्रद्धायुक्त आध्यात्मिक जनों का अविरल प्रवाह महाकुम्भ की ओर लगातार बना हुआ है, जो भारतीय विश्व बन्धुत्व की भावना को और प्रगाढ़ करता है।
जब भी बहुत बड़ी भीड़ कहीं एकत्रित होती है तो अपने साथ कई वाणिज्यिक व्यापारिक महत्त्व के अवसर उपलब्ध कराती है।
इस बार इस महाकुम्भ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की आशा है जो रूस और अमेरिका की कुल आबादी से भी अधिक है इस महाकुम्भ के आयोजन हेतु राज्य सरकार ने 7000 करोड़ रुपए का आबण्टन किया है यह महाकुम्भ 26 फरवरी 2025 तक चलेगा और निश्चित रूप से इससे उत्तर प्रदेश सरकार की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी।
आर्थिक विशेषज्ञों ने 2025 के महाकुम्भ मेले से 2 लाख करोड़ के योगदान की उम्मीद जताई है यदि श्रद्धालुओं का औसत व्यय बढ़ेगा तो आय में और अधिक इजाफा होगा।
शीतल जल में डुबकी का प्रभाव –
शीतल जल में डुबकी लगाने से वजन में कमी व मेटाबोलिज्म में सुधार होता है इससे मूड में सकारात्मक बदलाव होता है और दर्द में कमी आती है लेकिन कुछ लोग मांसपेशियों में ऐंठन व हृदय सम्बन्धी कुछ समस्याओं की शिकायत करते हैं। भारतीय श्रद्धालु घर पर स्नान करके पतित पावनी गङ्गा में स्नान करते हैं आकलन में ऐसे लोगों पर दुष्प्रभाव कम देखा गया है।