भारत के प्रमुख प्रदेश, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज नामक स्थान पर महाकुम्भ आयोजन प्रारम्भ हो चुका है करोड़ों लोग पावन त्रिवेणी में स्नान कर चुके हैं सङ्गम में गङ्गा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है साथ ही समस्त भेदभावों को भूलकर सभी पावनता की इस बयार का आनन्द ले रहे हैं।भारतीय जनमानस कुम्भ के विविध आयामों और मनसा, वाचा, कर्मणा की त्रिवेणी में स्नान के महत्त्व को भी समझते हैं अर्ध कुम्भ, कुम्भ, महाकुम्भ भारत की चरैवेति – चरैवेति संस्कृति की अनवरत यात्रा के पड़ाव हैं हमारे जैसे विविध जीव प्रारब्ध के अनुसार इससे जुड़ पाते हैं।
यह महाकुम्भ मेला कई दृष्टिकोण से विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आध्यात्मिक आयोजन है इस बार तो अनूठा संयोग बन पड़ा है 144 साल के बाद जो पीढ़ियाँ इसका आनन्द उठाने में समर्थ हो पा रही हैं उन्हें इस बेहद खास अवसर का प्रत्यक्षीकरण करने का अवसर मिलेगा।
कुम्भ अवधि –
दुनियाँ भर से आस्था की डुबकी लगाने लोग भारत आते हैं कुम्भ परम्परा में अर्ध कुम्भ, कुम्भ व महाकुम्भ का यह अवसर क्रमश 6 वर्ष, 12 वर्ष व 144 वर्ष बाद आता है। महाकुम्भ का अवसर कई पीढ़ियों को नसीब नहीं होता। अवधि के सम्बन्ध यह भी बताया जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक साल के बराबर है सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की सापेक्ष स्थिति के अनुसार 12 वर्ष में कुम्भ मेला का आयोजन होता है हरिद्वार और प्रयागराज में 6 वर्ष बाद अर्ध कुम्भ आयोजन होता है 12 कुम्भ पूर्ण होने पर अर्थात 144 वर्षोपरान्त महाकुम्भ के इस स्वरुप का आयोजन होता है।
समुद्र मन्थन और कुम्भ स्थल –
भारतीय पौराणिक कथाओं में समुद्र मन्थन हेतु देवताओं और राक्षसों के प्रयास का वर्णन मिलता है इस समुद्र मन्थन से मिलने वाले 14 तत्वों में अन्तिम वस्तु अमृतयुक्त कलश अर्थात कुम्भ (घड़ा) प्राप्त हुआ। धन्वन्तरि की अमृत कुम्भ के साथ उपस्थिति पर असुरों से बचाने हेतु इन्द्र के पुत्र जयन्त उस घड़े को लेकर भागे सूर्य, सूर्य पुत्र शनि, बृहस्पति और चन्द्रमा रक्षार्थ उनके साथ गए।
इन्द्र पुत्र जयन्त जब इस कुम्भ को लेकर भागे तब भागते समय 12 दिनों में अमृत चार स्थानों पर छलक गया यह स्थल हैं हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन व नासिक।
इन स्थलों पर देवताओं के 12 दिन (मनुष्यों के 12 वर्ष) में कुम्भ या पूर्ण कुम्भ लगता है और 12 कुम्भ अर्थात 144 वर्ष पर महा कुम्भ का आयोजन होता है।
ज्योतिषीय गणना के आधार पर कुम्भ मेले का स्थान नियत किया जाता है 12 वर्ष के अन्तराल का कारण बताते हुए कहा जाता है कि बृहस्पति को सूर्य का चक्कर लगाने में 12 वर्ष का समय लगता है जब बृहस्पति कुम्भ राशि में स्थित होता है तथा सूरज मेष राशि में और चन्द्रमा धनु राशि में होता है तब कुम्भ का आयोजन हरिद्वार में होता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में सूर्य और चन्द्रमा कर्क राशि में होता है तो कुम्भ का आयोजन नासिक त्रयम्बकेश्वर में होता है।
प्रयागराज में कुम्भ का आयोजन तब होता है जब बृहस्पति वृषभ राशि में व सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में होता है।
विविध मुख्य स्नान –
भारत में प्राचीनकाल से पंचांग का उपयोग हो रहा है।पंचांग के पांच अंग हैं -वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण। इस आधार पर प्रथम शाही स्नान पौष पूर्णिमा पर 13 जनवरी 2025 को हुआ, दूसरा शाही स्नान मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025) को सम्पन्न हुआ तीसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या पर किया जाएगा
मौनी अमावस्या पर शाही स्नान का अत्याधिक आध्यात्मिक महत्व है।भारतीय हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार अमावस्या तिथि 28 जनवरी की शाम 7:35 बजे शुरू होगी और 29 जनवरी की शाम 6:05 बजे खत्म होगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब 29 जनवरी को स्नान किया जाएगा। इस दिन संगम पर 6 करोड़ लोगों की भीड़ उमड़ने का अनुमान है।
भारतीय मनीषियों ने 03 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी के दिन कुम्भ स्नान को भी विशिष्ट महत्ता प्रदान की है।
45 दिन चलने वाले इस सामाजिक आध्यात्मिक महापर्व का प्रत्येक दिन पावस है और किसी दिवस की पावनता काम नहीं है लेकिन फिर भी विद्वानों द्वारा निर्धारित उक्त दिवस विशेष हैं। जो लोग नहीं पहुँच पा रहे हैं वे निराश न हों महा कुम्भ और तीर्थराज प्रयाग का नमन करें और शुद्ध अन्तः चेतना से घर पर स्नान करें क्योंकि मन चंगा तो कठौती में गङ्गा।
सामाजिक व आर्थिक महत्ता –
पापों से मुक्ति और मोक्ष की महत्वाकाँक्षा बहुत लोगों को गंगा में डुबकी लगवाती है लेकिन यह महाकुम्भ हमें सड़ी गली मान्यताओं व जाति-पाँति के भावों को तिरोहित कर उच्च सामाजिक मान्यताओं को अङ्गीकार करने की प्रेरणा देती है और प्रत्येक जीव में दिव्यात्मा के दर्शन करवाती है।
समाज का एक वर्ग कल्पवास की धारणा के साथ आकर यहाँ रुकता हैं बहुत से लोग लम्बे भौतिक झंझावातों से मानसिक शान्ति की तलाश में यहाँ आते हैं कुछ लोग भौतिकता की अन्धी दौड़ से निजात पाने के लिए अध्यात्म की शरण में आते हैं विविध अखाड़ों के दर्शन लाभ के साथ दान आदि देकर सकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव से अपने आप को युक्त करने वालों की भी कमी नहीं है। बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी इसमें शामिल हैं स्टीव जॉब्स की पत्नी और बहुत से औद्योगिक प्रतिष्ठानों के स्वामियों के साथ करोड़ों लोगों ने महाकुम्भ में आस्था की डुबकी लगाई। विविध विद्वान्, विविध मन्त्री, धार्मिक आस्था युक्त बहुत सी देशी विदेशी महिलाओं ने महाकुम्भ स्नान किया विज्ञ जनों, विविध ऋषियों, मनीषियों, दिव्यात्माओं और श्रद्धायुक्त आध्यात्मिक जनों का अविरल प्रवाह महाकुम्भ की ओर लगातार बना हुआ है, जो भारतीय विश्व बन्धुत्व की भावना को और प्रगाढ़ करता है।
जब भी बहुत बड़ी भीड़ कहीं एकत्रित होती है तो अपने साथ कई वाणिज्यिक व्यापारिक महत्त्व के अवसर उपलब्ध कराती है।
इस बार इस महाकुम्भ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की आशा है जो रूस और अमेरिका की कुल आबादी से भी अधिक है इस महाकुम्भ के आयोजन हेतु राज्य सरकार ने 7000 करोड़ रुपए का आबण्टन किया है यह महाकुम्भ 26 फरवरी 2025 तक चलेगा और निश्चित रूप से इससे उत्तर प्रदेश सरकार की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी।
आर्थिक विशेषज्ञों ने 2025 के महाकुम्भ मेले से 2 लाख करोड़ के योगदान की उम्मीद जताई है यदि श्रद्धालुओं का औसत व्यय बढ़ेगा तो आय में और अधिक इजाफा होगा।
शीतल जल में डुबकी का प्रभाव –
शीतल जल में डुबकी लगाने से वजन में कमी व मेटाबोलिज्म में सुधार होता है इससे मूड में सकारात्मक बदलाव होता है और दर्द में कमी आती है लेकिन कुछ लोग मांसपेशियों में ऐंठन व हृदय सम्बन्धी कुछ समस्याओं की शिकायत करते हैं। भारतीय श्रद्धालु घर पर स्नान करके पतित पावनी गङ्गा में स्नान करते हैं आकलन में ऐसे लोगों पर दुष्प्रभाव कम देखा गया है।