जब भारतवासी के हृदयों का सोया दावानल जागेगा,
जिस दिल में है असुर छिपा,असुर निकल कर भागेगा।
यदि तुम कायर कमजोर रहे तो दुनिया तुम्हें डरायेगी,
छोटी सी बंदरिया गुण्डों की हमको ऑंख दिखाएगी।
जब भारतवासी के हृदयों का सोया दावानल जागेगा,
जिस दिल में है असुर छिपा,असुर निकल कर भागेगा।
यदि तुम कायर कमजोर रहे तो दुनिया तुम्हें डरायेगी,
छोटी सी बंदरिया गुण्डों की हमको ऑंख दिखाएगी।
राष्ट्रीय चेतना बुला रही है हमें निखरना है,
भारत वर्षोन्नति हेतु, कमर अब कसना है,
जो कुछ उल्टा- पुल्टा था, उसे बदलना है,
भारतीय चेतना का स्वर आरोही करना है।
मानव स्वयम को जगत का सर्वोत्कृष्ट प्राणी मानता है। विभिन्न सन्त,महन्त,धर्म गुरु इस खिताब को मानव के पक्ष में रख कर श्रेष्ठ तन के रूप में व्याख्यायित करते हैं लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य के जघन्यतम अपराध यही मानव तो कर रहा है ऐसी स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण सवाल चिन्तन को झकझोरते हैं प्रस्तुत प्रारम्भिक चार पंक्तियों में जो सवाल मानसिक द्वन्द ने खड़े किये शेष पंक्तियों में भारतीय परिवेश में समाधान देने का प्रयास है,रखता हूँ आपके पावसआँगन में:-
मानव उत्थान के क्रम में ज्ञान का प्रस्फुटन विविध स्वरूपों में हुआ ,ज्ञान ने अध्यात्म से युक्त होकर तीव्र प्रवाह धारण कर विश्व को आप्लावित किया। चरमोत्कर्ष के इस काल को आदि गुरु शंकराचार्य का वरद हस्त मिला और ज्ञान की निर्झरिणी वेदान्त दर्शन के रूप में बह निकली,वेदान्त दर्शन के सिद्धान्तों को गेय रूप में देने का अदना सा प्रयास ही है इस प्रस्तुति के माध्यम से :–
जीवन एक अनोखी यात्रा है मानव यायावर है ,मानव हृदय कभी उत्थान हेतु तरंगित होता है तो कभी अवसाद युक्त हो हार के कगार पर जा बैठता है प्रस्तुत पंक्तियाँ मानव को उत्साह और जीवटता से युक्त रखने को प्रेरित करती हैं और जीवन में विविध रंगों को भरने हेतु जागरण का भाव जगाती हैं जो लोग थक हार कर निराशा के गर्त में गिरने को उद्यत हैं उनमें जाग्रति संचरण कर बताती हैं कि – ‘कुछ और अभी बाकी है ‘
भारत के शौर्य कलश चमक रहे हैं हमने विषम परिस्थितियों में विजय के कालजयी सोपान लिखे हैं। वर्तमान में देश के बाहर के दुश्मनों के अलावा देश के अन्दर के गद्दारों को भी धूल चटानी है। मैं सभी देश प्रेमियों का आह्वान करता हूँ और कहना चाहता हूँ:-
किसी भी देश का उत्थान और पतन उस देश की सोच पर निर्भर करता है लेकिन कुछ भटके और विकृत मानसिकता वाले लोग देश और देश के संसाधनों को अपूरणीय क्षति पहुँचाना चाहते हैं ऐसी स्थिति में सजग मस्तिष्क और देश से सच्चे प्रेम की नितान्त आवश्यकता है हमें राष्ट्रवाद का सच्चा प्रहरी बनाना ही होगा.
हिंदुस्तान परिक्षेत्र के जनमानस की अवधारणा पुनर्जन्म व प्रारब्ध से जुड़ी रही है जो विभिन्न विषादयुक्त क्षणों में मानसिक आलम्बन का कार्य करती है और उसे कुछ भी आश्चर्ययुक्त नहीं लगता बल्कि प्रारब्धवश घटित घटना लगती है व तब शब्द इस प्रकार गीत में ढलते हैं।
लेखन का परिक्षेत्र पुराना लगता है ,
लेकिन वह जाना- पहिचाना लगता है.
इतने सारे दिन गुजरे तब भान हुआ,
अब दर्शन का उनवान पुराना लगता है.
इनका, उनका ,अपना ,सबका ,
हाँ, युगों- युगों का नाता है.
यह तेरा है ,वह मेरा है ,
ओछे नारे सा लगता है।
जब से मेरा मनवा भारत आया है,
वसुधा से नाता है पुराना लगता है।
हम तो केवल क्षेत्र बदलते रहते हैं ,
आत्मा के परिवेश बदलते रहते हैं।
हम सब जब रोने चिल्लाने लगते हैं ,
ईश्वर पर आरोप लगाने लगते हैं।
कभी कभी जो अनपेक्षित सा घटता है,
प्रारब्धों का खेल पुराना लगता है।
– डॉ0 शिव भोले नाथ श्रीवास्तव