मैं अज्ञ हूँ, तुम विज्ञ हो,
अल्पज्ञ मैं, सर्वज्ञ तुम।
मैं अंश हूँ, तुम पूर्ण हो,
मैं बूँद हूँ सागर हो तुम ।1।
मैं अनाथ हूँ तुम नाथ हो
मैं दीन, दीना नाथ तुम।
मैं कृति, तुम उद्गार हो,
मैं आत्म हूँ परमात्म तुम ।2।
मैं क्षेत्र, तुम क्षेत्रज्ञ हो,
मैं गीत हूँ गायक हो तुम,
मैं पथिक तुम प्रकाश हो,
मैं शिल्प हूँ शिल्पी हो तुम ।3।
मैं गात हूँ, तुम चेतना,
मैं दीप हूँ ज्वाला हो तुम।
मैं रुण्ड हूँ तुम मुण्ड हो,
मैं अर्थी हूँ सारथी हो तुम।4।
मैं अज्ञ हूँ तुम विज्ञ हो,
अल्पज्ञ मैं, सर्वज्ञ तुम।।…….