पितृ प्रेम का सारा परिचय एक दिवस से जुड़ आया।

उसी दिवस के कुछ लम्हों  में, पिता उन्हें याद आया ।

वही पिता जिसने सर्वस्व जीवन का हरपल बिखराया।

वक़्त ने निज चाल बदल ली बदला बदला क्षण आया ।।

पितृ और मातृशक्ति ने मिलजुल करके नीड़ बनाया।

उसी नीड़ की छाया में तन मन टुकड़ों को सरसाया।

इक दूजे का हाथ थाम दृढ़ता व प्रेम का पाठ पढ़ाया।

नईनवेली शिक्षा ने दोनों हित अलग से दिवस बनाया।।

ऐसा लगता रात्रि बिन दिन का अस्तित्व उभर आया।

धूप का शुभअस्तित्व बना तभी तो प्रिय लगती छाया।

बच्चों ने अपने हृदयों  में, जिनको न कभी अलग पाया।

उन्हें अलगथलग करने का कुचक्र नया चलता पाया ।।

ये सब खेल बाज़ारों का है बहुत देर में समझ आया।

कार्ड,उपहार,कृत्रिम साधन हैं हमने तोअमूल्य पाया।

एक दिवस में ना सिमटेगा भारतीय मन ने समझाया।

मातृ पितृ ऋण चुक जाए जीवन इस हित छोटा पाया।। 

जीवन में जो पढ़े आज तक उससे यही समझ आया।

कृतज्ञता भाव महिमा अपार, हमसे कुछ ना हो पाया।

ईश्वर ने मातृ पितृ रूप में दे दी ‘ नाथ ‘ अद्भुत छाया।

यह जीवन है उन्हें निछावर जिसने ये अस्तित्व दिलाया।।

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