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शोध

NORMAL PROBABILITY CURVE(NPC)/सामान्य सम्भावना वक्र

May 25, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सामान्य सम्भावना वक्र आज की ऐसी आवश्यकता है कि विविध विज्ञानों में इसका प्रयोग किया जाता है मनोविज्ञान और शिक्षा भी इससे अछूता नहीं है। यदि किसी चर से सम्बन्धित प्राप्ताङ्क वितरण किसी ग्राफ पेपर के माध्यम से दिखाने का प्रयास करेंगे तो घण्टे जैसी आकृति दिखाई पड़ती है खासकर तब जब वितरण का परिक्षेत्र बड़ा होता है यही आकृति सामान्य सम्भावना वक्र कहलाती है।

सामान्य सम्भावना वक्र से आशय (Meaning of normal  probability curve) –

सामान्य सम्भावना वक्र एक गणितीय वक्र है जो आवृत्ति के वितरण को सामान्य रूप से निरूपित करता है। जब हम किसी परीक्षण से प्राप्त अंकों के आधार पर आवृत्ति वितरण बनाते हैं और इसे ग्राफ पेपर पर प्रदर्शित करते हैं तो जो वक्र बनता है उसे अवलोकित वक्र कहते हैं जब यही किसी बड़े यादृच्छिक समूह के आंकड़ों पर अवलम्बित होता है तो वक्र की आकृति घण्टे के आकार की (Bell Shaped) होती है समूह का आकर बड़ा होने पर यह घण्टाकृति ही सामान्य सम्भावना वक्र (NPC)  या Normal Probability Curve के नाम से जानी जाती है। इस सम्बन्ध में डॉ ० डी ० एन ० श्रीवास्तव ने लिखा –

“सामान्य सम्भावना वक्र एक गणितीय आदर्श वक्र ही नहीं है बल्कि यह एक सैद्धान्तिक वक्र भी है जिसकी पूर्ण प्राप्ति बहुत कठिन है लेकिन इसके बाद भी व्यावहारिक समस्याओं से सम्बन्धित चरों के अध्ययन में इस वक्र का बहुत अधिक उपयोग है।”

सामान्य सम्भावना वक्र की विशेषताएं (Characteristics of Normal Probability Curve) –

यथार्थ तथ्य यह है की सामान्य सम्भाव्यता वक्र का व्यावहारिक उपयोग है और इसे सांख्यिकीय परिक्षेत्र से जुड़े अध्ययन कर्त्ता को जानना ही चाहिए इसकी कतिपय प्रमुख विशेषताओं को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं।–

01 – आकृति (Shape) –

सामान्य प्रायिकता वक्र का आकार घण्टाकार (Bell Shaped),पूर्ण सममिति (Symmetrical),एकल बहुलांकी (Uni modal) तथा सामान्य वक्रता वाला (Mesokurtic) होता है।  इसके मध्य में सर्वाधिक प्राप्तांकों की संख्या होती है।

02 – सामान्य सम्भावना वक्र का समीकरण (Equation of Normal Probability Curve) –

सामान्य प्रायिकता वक्र NPC की गणितीय समीकरण (Mathematical Equation) को इस प्रकार दिया जाता है इससे NPC का X अक्ष से विस्तार और Y अक्ष की ऊँचाई का निर्धारण किया जाता है –

x = मध्यमान से विचलन, x =X –M

Y= X अक्ष के ऊपर वक्र की ऊँचाई

N = कुल आवृत्ति

σ = प्राप्ताँकों का मानक विचलन

e = स्थिरांक, जिसका मान 2.71828 होता है।

π = स्थिरांक,जिसका मान 3.1416 होता है।

03 – केन्द्रीय मानों की समानता (Equality of Central Tendency Measures) –

सामान्य सम्भावना वक्र में केन्द्रीय प्रवृत्ति के तीनों मानों में समानता रहती है। कहने का आशय  यह है कि मध्यमान (M), मध्यांक (Mdn) और बहुलांक (Mo) तीनों का मान एक ही होता है अर्थात ये तीनों ही NPC के मध्य बिंदु पर स्थित होते हैं। यानी

                                                                       M = Mdn  =  Mo

04 – विषमता गुणाङ्क ( Cofficient of Skewness ) –

सामान्य सम्भावना वक्र में पूर्ण सीमितता पाई जाती है अतः सामान्य सम्भावना वक्र का विषमता गुणाङ्क शून्य माना जाता है अर्थात

                                                                       Sk     =0

05 – वक्रता या कुकुदता गुणाङ्क (Cofficient of Kurtosis )–

सामान्य सम्भावना वक्र (NPC)न तो बहुत अधिक नुकीला होता है और न चपटा बल्कि  यह औसत ऊँचाई वाला वक्र होता है सामान्य सम्भावना वक्र के वक्रता गुणाङ्क का मान 0.263 होता है अर्थात

                                                                       Ku = 0.263

06 – अनन्त स्पर्शी (Agymptotic) –

सामान्य सम्भावना वक्र के दाहिने और बांए चोर को यदि X – अक्ष पर निरीक्षित किया जाए तो दिखाई पड़ेगा कि इसका विस्तार ऋण अनन्त (-∞) से धन अनन्त (+∞) तक फैला होता है। इसी कारण सामान्य सम्भावना वक्र के दाएं और बांए सिरे कभी X – अक्ष को स्पर्श नहीं करते। अपनी इसी विशेषता के कारण इस वक्र को अनन्त स्पर्शी कहा जाता है जैसा कि पूर्व के चित्रों से स्पष्ट है।

07 – क्षेत्रफल सम्बन्ध (Area under NPC) –

सामान्य प्रायिकता वक्र (NPC) एवम् आधार रेखा के मध्य का क्षेत्रफल सामान्य प्रायिकता वक्र का क्षेत्रफल कहलाता है। प्राप्तांकों का के ±1σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या का 2 /3 क्षेत्रफल यानि  68.26 %भाग आ जाता है। 

सामान्य सम्भावना वक्र के ±2σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या या प्राप्तांकों का 95.44 % क्षेत्र आ जाता है।

सामान्य सम्भावना वक्र के ±3 σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या या प्राप्तांकों का 99.72 % क्षेत्रफल आ जाता है।

चूँकि ±3 σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या के 99.72 % प्राप्तांक आ जाते हैं अतः व्यावहारिक समस्याओं के समाधान हेतु यह मान लिया जाता है कि सामान्य प्रायिकता वक्र के  ±3 σ के बीच लगभग समग्र परिक्षेत्र या प्राप्तांक आ जाते हैं।

08 – मानक प्राप्तांकों में परिवर्तन (Conversion in Standard Scores) –

सामान्य सम्भावना वक्र के प्राप्तांकों को मानक प्राप्तांकों (Standard Scores) में परिवर्तित किया जा सकता है। मानक प्राप्तांकों को मानक दूरी (σ distance   द्वारा व्यक्त करते हैं )यह Z प्राप्तांक कहलाता है।

       Z=(X-M   )/σ   =  x/σ

                                                                  = 

09 – चतुर्थांशों में सामान अन्तर(similar difference in quartiles) –

सामान्य सम्भावना वक्र के पहले और तीसरे चतुर्थांश का मध्यांक से सामान अंतर होता है। यह अन्तर चतुर्थांश विचलन (Q) के बराबर होता है। इस समान अन्तर को सम्भाव्य त्रुटि Probable Error या P.E कहते हैं।

10 – Q व S.D  में सम्बन्ध (Relationship between Q and SD) –

सामान्य सम्भावना वक्र में चतुर्थांश विचलन (Q) का मान प्रामाणिक विचलन (SD) के मान का लगभग 2/3 होता है।

सामान्य सम्भावना वक्र के उपयोग (Applications of NPC) –

शिक्षा,समाज शास्त्र, मनोविज्ञान आदि के अधिकाँश चर सामान्य सम्भावना वक्र या सामान्य प्रायिकता वक्र के अनुरूप वितरित होते हैं। इसके अतिरिक्त मापन व मूल्याङ्कन के परिक्षेत्र में सामान्य प्रायिकता वक्र का अत्याधिक महत्त्व है। चिन्ता, बुद्धि, स्मृति आदि से सम्बंधित मापों ,प्राप्तांकों को सामान्य प्रायिकता वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है अर्थात यह सामाजिक विज्ञानों के प्राप्तांकों, वितरणों को व्यवस्थित क्रम देने में सहयोगी की भूमिका का निर्वहन करता है। इसके विविध उपयोग इस प्रकार हैं –

1 – किसी समूह में किसी दिए गए प्राप्ताङ्क से कम या अधिक अंक प्राप्त करने वालों की संख्या ज्ञात करना।

2 – किसी समूह में दिए गए दो प्राप्तांकों के बीच पाए जाने वाले शिक्षार्थियों की संख्या ज्ञात करना।

3 – परीक्षण के प्रश्नों के कठिनाई स्तर को ज्ञात करना।

4 – योग्यता का प्रसार ध्यान में रखते हुए सामान्य प्रायिकता वक्र के आधार पर विभिन्न उप समूहों में विभाजित करना।

5 – किसी समूह में किसी विशेष स्थिति वाले छात्रों हेतु प्राप्ताङ्क सीमायें ज्ञात करना।

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