जब समंक एकत्रीकरण में कोई अंक बार बार आता है या वह पुनः पुनः दीख पड़ रहा है इसे ही आवृत्ति नाम से जाना जाता है और जितनी बार वह अंक आता है उसे उसकी आवृत्ति कहा जाएगा। मान लीजिये शिक्षा शास्त्र की परीक्षा में 50 विद्यार्थियों को इस प्रकार प्राप्तांक प्राप्त हुए।
आवृत्ति वितरण को जब हम प्रदर्शित करते हैं तो ऊपरी और निचली वर्ग सीमा को तालिका के माध्यम से निरूपित करते हैं अर्थात यह प्रत्येक वर्ग की चौड़ाई ही होती है इस समूहीकृत आवृत्ति वितरण को समावेशी वर्ग अन्तराल के आधार पर क्रमबद्ध किया जा सकता है।
वर्गअन्तरालसूत्र :-
वर्ग अन्तराल = उच्चतम सीमा – निम्नतम सीमा
अर्थात वर्ग अन्तराल ज्ञात करने के लिए किसी वर्ग की उच्चतम सीमा से उसी वर्ग की निम्नतम सीमा को घटा देते हैं.
वर्गअन्तरालहेतुउदाहरण (Example for Class Interval) –
वर्ग अन्तराल को वास्तविक ऊपरी परास तथा निचली वास्तविक परास के मध्य जो जो वास्तविक अन्तर होता है उसे ही वर्ग अंतराल कहा जाता है इसे हम निम्न उदाहरण के माध्यम से अच्छी तरह समझ सकते हैं –
(यहाँ हम ऊपर प्रयुक्त समंकों का ही प्रयोग कर रहे हैं। )
वर्ग अन्तराल (Class Interval) or C I
आवृत्ति (Freequency) or f
40 – 50
14
50 – 60
6
60 – 70
3
70 – 80
23
80 – 90
4
इस उदाहरण के माध्यम से तथ्य पूर्णतः स्पष्ट हो गए होंगे।
ममानवतावाद का उद्भव एक विशेष प्रकार की मानव स्थिति की अनुभूति पर
निर्भर है तथा वह अनुभूति इस मानवीय संवेदना की है जिससे आधुनिक काल का मानव घिरा
है, विज्ञान एवम् टैक्नोलॉजी की प्रगति से युक्त मानसिकता, विज्ञान
की मानकीकरण की विकृति, विश्व युद्ध की विभीषिकाओं की स्पष्ट अनुभूति, मानव के संत्रास,
कुण्ठा,
निराशा,
चिंता,
अकेलापन
व नीरसता की स्पष्ट अनुभूति – इसकी पृष्ठभूमि में मानवतावादी दृष्टि सर्जित होती
है प्रोटागोरस (Protagoras) ने 480 से 490 ईसा पूर्व कहा-
“मानव सभी बातों का माप दण्ड है जो है वह वास्तविक है और जो नहीं है
वह वास्तविक नहीं है।”
“Man is the measure of all things; of what is, that it is,
of what is not, that it is not.”
मानवतावाद का आशय उस वाद से है जिसमें मनुष्य के अस्तित्व को स्वीकार
किया गया है इसमें मानव ही सबकुछ है वह किसी का प्रतीक मात्र नहीं है उसकी
वैयक्तिकता पहचानी जा सकती है।
डॉ 0 राधाकृष्णन ने ऑक्सफ़ोर्ड में अपने एक भाषण में कहा था –
“Man has become the philosopher of man. A new humanism
is on the horizon. But this time it embraces the whole of mankind.”
– Dr. Radha Krishanan
“मनुष्य मनुष्य का दार्शनिक हो गया है। एक नया मानवतावाद क्षितिज पर
उदीयमान है किन्तु इस बार वह सम्पूर्ण मानवता को अपने में समेटे हुए है।”
मानवतावाद सम्बन्धी विचारधारा अनेक पाश्चात्य व भारतीय दार्शनिकों के
चिन्तन का विषय रही है डॉ राधा कृष्णन, जाकिर हुसैन, जवाहर लाल नेहरू,
विवेकानन्द,
रबीन्द्र
नाथ टैगोर सभी इसका समर्थन करते दीखते हैं यह दर्शन मानवता को दर्शाता है।
मानवतावादी दर्शन वह दर्शन है जो मनुष्य को सर्वोपरि मानता है उनके
अनुसार मनुष्य ही इस संसार का केन्द्र बिंदु है वह अपने भाग्य का निर्माण खुद करता
है।
ब्रह्मवादियों तथा निरपेक्ष वादियों के अनुसार –
“ब्रह्म कोई अतिरिक्त या पारलौकिक सत्ता नहीं है यह मनुष्य के स्वरुप
का ही एक आयाम है।”
वर्तमान में मानव पहचान की जो बेचैनी है उसके बीज इतिहास के अकुलाहट
युक्त पृष्ठों के बीच छिपे हैं इतिहास भी समस्त सृजन में मानव की भूमिका को नज़र
अन्दाज करने के पक्ष में नहीं है मैस्लो(Maslow) महोदय कहते हैं
–
“Humanism is a word which is used by writers in many
different senses, One of these implies that man makes up the entire framework
of human thought, that there is no God, no super human reality to which he can
be related or can relate himself.”
“मानवतावाद एक ऐसा शब्द है जो विभिन्न लेखकों द्वारा विभिन्न अर्थों
में प्रयुक्त किया गया है इनमें से एक में यह अर्थ निहित है कि मनुष्य मानव विचार
की समस्त पृष्ठ भूमि है, ईश्वर नहीं है, कोई अति मानवीय
वास्तविकता नहीं है जिससे मनुष्य को जोड़ा जा सके।”
वैज्ञानिक
मानवतावाद (Scientific
Humanism )-
वैज्ञानिक मानवता वाद जीवन के प्रति मानव केन्द्रित दृष्टिकोण है,
वैज्ञानिक
मानवतावाद सृष्टि के प्रति उसके दृष्टिकोण एवम् जीवन के लक्षण तथा मान्यताओं,
सत्य
के स्वरुप आदि के सम्बन्ध में विशिष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है नेहरू जी ने
मानवतावाद एवम् वैज्ञानिक प्रवृत्ति के बीच के संश्लेषण को वैज्ञानिक मानवतावाद का
दर्जा दिया था।
वैज्ञानिक मानवतावादी सृष्टि को भ्रम न मानकर सत्य व विभिन्न
सम्भावनाओं से युक्त मानते हैं वैज्ञानिक मानवतावाद एक ऐसा दृष्टिकोण है जो केवल
वैज्ञानिक या केवल मानवीय नहीं है वैज्ञानिक मानवतावाद जीवन के प्रति मानव
केन्द्रित दृष्टिकोण है इस सम्बन्ध में साबिरा जैदी कहती हैं-
“It affirms in a resounding voice the dignity and
value of man and asserts unequivocaly that human happiness is the highest goal
of all social reforms.”
“यह मनुष्य की गरिमा व मूल्य की ध्वनि को पुनः
गुंजरित करता है और मानता है कि सभी समाज सुधारकों के लिए मनुष्य का सुख ही
सर्वोच्च भद्र या शिव है।”
वैज्ञानिक
मानवतावाद की शैक्षिक मान्यताएं (Educational premises of Scientific Humanism)-
1 – शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
2 – सर्जनात्मकता
3 – उत्तर दायित्व निर्वहन व स्वतन्त्रता के उचित प्रयोग हेतु शिक्षा
महत्त्वपूर्ण
4 – व्यावहारिकता व व्यवसाय प्रयोजन आवश्यक
मीमांसा
आधारित संक्षिप्त विवेचन-
किसी भी दर्शन को अधिगमित करने हेतु मीमांसाओं की महती भूमिका है
मानवतावाद के वास्तविक अर्थ को समझने हेतु उसकी तत्त्व मीमांसा (Metaphysics),
ज्ञान
व तर्क मीमांसा (Epistemology and Logic),एवं आचार व मूल्य मीमांसा (Ethics and
Axiology) संक्षेप में
प्रस्तुत हैं –
तत्त्व
मीमांसा – ये प्रकृति को मूल तत्त्व मानते हैं और किसी अलौकिक सत्ता पर
विश्वास नहीं करते। भौतिक जगत को सत्य मानते हुए मनुष्य को प्रकृति की श्रेष्ठतम
रचना स्वीकार करते हैं।
ज्ञान
व तर्क मीमांसा – इनके अनुसार सच्चे ज्ञान श्रेणी में पदार्थजन्य जगत व उसकी समस्त
क्रियाएं आती हैं विवेक आधारित ज्ञान व
तर्क की कसौटी पर खरा सत्य ही ज्ञान की श्रेणी में आएगा।
आचार व मूल्य मीमांसा –
मानवतावादियों की बड़ी संख्या प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, सुन्दरता,सामाजिक
समानता, न्याय आदि को आचरण में उतारने व मूल्य के रूप में स्वीकारने की बात करते हैं इनके अनुसार
सम्पूर्ण मानवता की भलाई सबसे बड़ा मूल्य है।
मानवतावाद
की प्रमुख विशेषताएं (Chief Characteristics Of Humanism)-
1 – यह संसार सत्य है भ्रम नहीं। यह निरन्तर विकास की असीम सम्भावनाओं से
युक्त है।
2 – मानव सेवा हेतु मानवता वाद का अभ्युदय हुआ है।
3 – मानव शक्तिशाली है व अपनी समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है।
4 – मानव एक सृजनात्मक जीव है।
5 – मानव असीम प्रगति उन्मुख सम्भावनाओं से युक्त है और अपने भाग्य का
निर्माता है।
6 – मानवतावाद का मानव शिवम् व सुन्दरम की धारणा से युक्त है।
7 – मानवतावाद मानव को सबसे गुणयुक्त स्वीकार करता है।
8 – यह संस्कृति का पुनः जागरण करना चाहता है तथा यह मानवीय संस्कृति के
पुनरुद्धार हेतु विश्व रंगमञ्च पर अवतरित हुआ है।
9 – यह वाद विकासोन्मुखता पर विश्वास करता है और मानव को इस हेतु
विवेकयुक्त प्राणी स्वीकार करता है।
10 – मानवतावाद मानवीय प्रकृति को लचीला, परिवर्तनशील व
सहयोगी मानता है।
मानवतावादी
शिक्षा का उद्देश्य (Aims of Humanistic Education)-
1 – आत्म विश्वास जाग्रत करना
2 – समस्त अन्तर्निहित शक्तियों का विकास
3 – मानवता का अधिकतम कल्याण
4 – मानव को सुखी बनाना
5 – समालोचनात्मक रचनात्मकता का विकास
“The cultivation of constructive criticism and a
critical constructiveness should be one of the foremost aims of education,
according to scientific humanism.” –
Sabira K Zaidi : Education and Humanism
(Indian Institute of Advanced Studies, Shimla 1971 p.110)
6 – सशक्त चेतना का विकास
7 – समाज
का विशिष्ट अंग बनाने हेतु आत्मबोध जाग्रत करना
8 – मानसिक
स्वास्थ्य
9 – मानवीय
मूल्य व सद् विवेक जागरण
10 – आत्म
अनुशासन की भावना का विकास
“Education to be complete must be human, it must
include not only the training of intellect but the refinement of the heart and
discipline of the spirit.” – Dr. Radha Krishanan
“शिक्षा पूर्ण होने के लिए मानवीय होना चाहिए,
इसमें न केवल बुद्धि का प्रशिक्षण शामिल करना चाहिए वरन ह्रदय का
परिष्करण तथा आत्मा का अनुशासन भी।”
मानवतावाद
व पाठ्यक्रम (Humanism and Curriculum)-
मानवतावादी पाठ्यक्रम में हृदय, आत्मिक विकास और
मानवता पर विशेष ध्यान देना चाहते हैं इस सम्बन्ध में डॉ 0 राधा कृष्णन के
शब्द भी यही इशारा करते हैं। – “No education can be regarded as
complete if it neglects the heart and the spirit.”
“कोई भी शिक्षा पूर्ण नहीं समझी जा सकती यदि वह हृदय तथा आत्मा की
उपेक्षा करती है।”
मानवतावादी भाषा के विकास के साथ मानवोपयोगी विषयों से मानव को जोड़ना
चाहते हैं इसीलिये मानवतावादी उद्देश्यानुरूप निम्न विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल
करना चाहते हैं –
शिक्षा के उद्देश्य
—————————-
विषय
मानसिक विकास
—————————- कला,
तर्क
शास्त्र, विज्ञान, गणित
शारीरिक विकास
—————————- व्यायाम, योग, शिल्प, क्रियात्मक शिक्षा
आध्यात्मिक विकास —————————- दर्शन, मूल्य शिक्षा, नीतिशास्त्र,
धर्म
शास्त्र
सामाजिक विकास
————————– इतिहास, साहित्य,
संस्कृति,
समाज
विज्ञान, दार्शनिक व शिक्षा शास्त्रियों की जीवनी
उक्त के अतिरिक्त मानवतावादी हर उस विषयवस्तु का समर्थन करते हैं जो
मानवतावादी विचार के प्रसार में आवश्यक हो।
शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) –
ये जीवन से सम्बन्धित व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर
सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करते हुए अधिगम कराना चाहते हैं इसीलिये तर्क विधि, प्रश्नोत्तर
विधि, समस्या
समाधान विधि, वाद
विवाद विधि पर विशेष जोर देते हैं ये उच्च मानवीय संवेदना को समेटे हुए इन्द्रिय
अनुभूत ज्ञान को भी विवेक और तर्क की कसौटी पर परखने के बाद आत्मसाती करण की
प्रेरणा देते हैं।
मानवतावाद
व शिक्षक (Humanism
and Teacher)-
मानवतावादी चाहते हैं की शिक्षण कार्य उन लोगों को मिले जो मानवीय
दृष्टिकोण पर बल देने वाले हों जैसा कि ब्रुबेकर (Brubacher) महोदय
कहते हैं –
“Humanism emphasises human nature and the human point
of view.”
“मानवतावाद मानव स्वभाव एवम् मानवीय दृष्टिकोण पर बल देता है।”
मानवतावादी शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अध्यापक
क्रान्तिकारी मानवतावादी हो एवम् निम्न गुणों से युक्त हो –
1 – शिक्षक, शिक्षण जैसे महान दायित्व बोध में सक्षम हो।
2 – अपने क्षेत्र का विद्वान् हो।
3 – मानसिक, आध्यात्मिक, शारीरिक, आन्तरिक आदि
विविध शक्तियों के सम्यक विकास हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वहन के योग्य
हो।
4 – मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समझ कर विकास का पथ प्रशस्त करने वाला
हो।
5 – सकारात्मक विकास व प्रेरणा देने में सक्षम हो।
मानवतावाद
व शिक्षार्थी (Humanism and Student)-
ये शिक्षार्थियों की स्वतन्त्रता व व्यक्तित्व का आदर करते हैं तथा शिक्षक व शिक्षार्थी के बीच शासक व शासित
जैसे सम्बन्धों के घोर विरोधी हैं। मानवतावादी प्रेम व सहयोग आधारित सम्बन्धों की
उम्मीद रखकर अध्यापकों से मानवतावादी दृष्टिकोण की अपेक्षा करते हैं और चाहते हैं
कि वे अपने बालकों को भय द्वन्द व तनाव से दूर रखें। इससे विद्यार्थियों में
मानवीय गुणों का विकास किया जा सकेगा।
शिक्षा
के अन्य विविध पक्ष –
1 – जन शिक्षा
2 – स्त्री शिक्षा
3 – व्यावसायिक शिक्षा
4 – धार्मिक शिक्षा
5 – यथार्थ शिक्षा
मूल्यांकन
(Evaluation)-
मानवतावाद
शिक्षा द्वारा मानव को मानवता का पाठ पढ़ाकर श्रेष्ठ नागरिक बनाना चाहता है यह
सम्पूर्ण मानवता को एक मानकर मनुष्य को विश्व का मूलभूत बिन्दु व केन्द्र मानता है यह धर्म,
जाति, राज्य, समाज किसी का भी विरोधी नहीं है यह मात्र मानव
मानव को अलग करने वाली संकीर्णताओं का विरोध करता है यह विध्वंसक आयुधों को उचित
नहीं समझता जिसने मानव मात्र के समक्ष अस्तित्व का खतरा पैदा कर दिया है।
ये
तर्क को ज्ञान का आधार मानते हैं इनके पाठ्यक्रम,शिक्षक, शिक्षार्थी,शिक्षण विधि विद्यालय आदि के विचारों का मूल
मन्तव्य मूल्य आधारित मानवीय गन्तव्य निर्धारित करना है। व्यक्तिगत भिन्नता,
जन शिक्षा, सामान शिक्षा,मूल्य आधारित शिक्षा,तर्क शक्ति उन्नयन,सृजनात्मकता उन्नयन सम्बन्धी विचार स्वागत
योग्य हैं लेकिन धर्म की जगह धार्मिक संकीर्णताओं से दूर रहने की प्रेरणा दी जानी
चाहिए।
Encyclopidia Britannica में मानवतावाद को सही पारिभाषित किया गया –
“Humanism is the attitude of mind which attaches
primary importance to mean and to his faculties, affairs, temporal aspirations
and well being,
“मानवता वाद मनुष्य के मस्तिष्क की वह अभिवृत्ति है जो मनुष्य को और
उसके विभिन्न पक्षों, कार्यों, इच्छाओ और
उसके हित को सर्वाधिक महत्त्व देती है।”
इन्होने
स्वार्थी और संकीर्ण मानसिकता को दिशा देने का भरपूर प्रयास किया लेकिन सार्थक
परिणाम आज भी दूर की कौड़ी जान पड़ते हैं मानवीय विकास के विभिन्न आयामों को समेटने
के बावजूद इनकी शिक्षा दर्शन को देन अप्रभावी
है इसे सच्चे धार्मिक दर्शन के आधारिक अवलम्ब की आवश्यकता है।
दीर्घ कालिक युवा ऊर्जा बनाये रखने के उपाय | Way to keep yourself young for long time
हमें जीवन पर्यन्त क्रियाशील रहने के लिए और शैथिल्य या बुढ़ापे में भी युवाओं जैसी ऊर्जा बनाये रखने हेतु मष्तिस्क की जाग्रत स्थिति बनाये रखने के लिए निम्न बिंदुओं पर कार्य करना होगा।
महत्त्वपूर्ण
तथ्य ( Important Facts )-
(0 1) – मष्तिस्क के वातायन में सकारात्मक विचारों के
नवीनतम झोंके आने दें।
(0 2) – मष्तिस्क को आदेश दें कि हमेशा सक्रिय रहना
सम्भव है।
(0 3) – हल्का व्यायाम हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना
चाहिए।
(0 4) – प्रतिदिन प्राणायाम अवश्य किया जाना चाहिए।
(0 5) – टहलना एवम् खुश रहना चमत्कारिक प्रभाव
देगा।
(0 6) – सुपाच्य भोजन, फल आदि ग्रहण करके पेट ठीक रखा जाना चाहिए।
(0 7) – जल की पर्याप्त मात्रा का सेवन करें।
(0 8) – स्वच्छ वस्त्र ,शुचिता एवं एवम् उत्तम वातावरण में रहें।
(09) – आध्यात्मिक चिन्तन को दिनचर्या का अनिवार्य अंग
बनाएं।
(10) – कम बोलें, खुश
रहें, खुश रहने दें के सिद्धान्त पर कार्य करें।
(11) – अपने से कम उम्र के लोगों से मिलें उनके अच्छे
विचारों का स्वागत करें।
(12) – पुरानी अनावश्यक वस्तुओं के मोह से बचें।
(13) – अनावश्यक वस्तु एवम् विचार संग्रह न करें।
(14) – यथोचित व यथा समय पर्याप्त नींद लें।
उक्त तथ्यों से जुड़कर आप अवश्य कह उठेंगे,
वाह जिन्दगी।