बचपन का गंगा मुहाना याद आता है,
उसका वो छेड़ा तराना याद आता है,
छूटा जो मौसम सुहाना याद आता है,
वर्षा में खुद भीग जाना याद आता है।
तख्ती,खड़िया व दावात यादआती है,
होल्डर,पेन की रौशनाई यादआती है,
टाट,पट्टी,कुर्सीआँखों में घूम जाती है,
छुट्टी के वक़्त की दौड़ याद आती है।
बचपन में पढ़ी, कविता गुदगुदाती है,
गुरूजी की शंटी पुरानी यादआती है,
भूली -बिसरी डगरिया याद आती है,
आज भी नगरीनगरिया याद आती है।
मम्मी पापा कीअंगुलियाँ यादआती हैं,
दोस्तोंकी मनमोहिनी सूरत लुभाती हैं,
मदमस्त होलीदिवाली फिर बुलाती हैं,
गुरुपर्व और ईद के किस्से सुनाती हैं।
प्राइमरीशाला की घण्टी घनघनाती है,
प्रेयर,प्रतिज्ञा की सुरीली याद आती है,
पीटी,ड्रम, परेड जूनून इक जगाती है,
मिट्टी से स्याही सुखानी याद आती है।
बालपन स्मृति जेहन में कौंध जाती है,
यादों की बारात में बालसभा आती है,
नयी गणवेश कॉलेज याद दिलाती है,
किशोरवय की सरगोशी यादआती है।
विगत की याद इक पीर सी जगाती है,
गुजरे लोगोंकी स्मृति टीससीउठाती है,
क्रीड़ा जगत की,प्रतिस्पर्धा बुलाती है,
वादविवाद विजेता छवि कौंध जाती है।
सोचता हूँ बीताकल क्यों यादआता है,
आगत खाका क्यों ना खींचा जाता है,
आगत के पृष्ठों में खुशियाँ लिखते हैं,
आगे तो बीते दिन सपने से दिखते हैं।
संगत का बीता ज़माना याद आता है,
यादों को खोया फसाना याद आता है,
जीवनसन्ध्या में बचपना याद आता है,
सोच कर मनमयूर झूम झूम जाता है।