चलो, अब अच्छाइओं को साथ लेते हैं,
काले घने अँधेरे, आपस में बाँट लेते हैं
आओ हम सब मिल नया गीत गाते हैं,
होश खोए सुषुप्त भाइयों को जगाते हैं।

संस्थाओं में मानस का सार बाँट देते हैं
वो मेरी बाजारी कीमत को बाँट लेते हैं,
आवश्यकतायें निरन्तर मुझे चिढ़ाती हैं,
व्यवस्थाएं तयशुदा पथ से, भटकाती हैं।

लेकिन सारी जगह एक जैसा मञ्जर है,
कहीं चाक़ू लगता है तो कहीं खंजर है,
अंश मेरी ऊर्जा का मुझे धैर्य बँधाता है,
श्रमरुपी ऊर्जा का संचय न हो पाता है।

मेरा आजअब मुझे आइना दिखाता है,
आगत जालिम मञ्जर,चेतना जगाता है,
चलो चलें,महत्वपूर्ण साधन हो जाते हैं,
छोड़ो सब कुछ स्वकर्म में खो जाते हैं।

ऐ मौत शिद्दत से तेरा इन्तजार करते हैं,
जिन्दादिली से हम दो दो हाथ करते हैं,
आखिर कब जज्बातों का रैला आएगा,
परेशां न हो,खुशियों का मेला आएगा।

ठहरो मत क्यों वक्त बरबाद करते हो,
खुद को मिटा दुनियाँ आबाद करते हो,
ज़िन्दगी का चलन है ये चलती जाती है,
रास्ते में कभी खुशियाँ या ग़म लाती है।

ये ज़िन्दगी का सफर,यूँ बढ़ा जाता है,
पथ में शीत,लूह का ठिकाना आता है,
ये जिन्दगी की मन्जिल पर ले जाती है,
जन्म का सफर अन्त में मौत लाता है।

जीवन यात्रा में आशा के झोंके आते हैं,
बस ये अनायास आ, हमें गुदगुदाते हैं,
ये सब जीवन को नीरसता से बचाते हैं,
ये कर्तव्यबोध व दायित्व कहे जाते हैं।

जब इस सफर में सम्पूर्ण रंग आता है,
संभल नहीं पाते सफर निपट जाता है,
अज्ञानी व चोर भ्रमवश खुश दीखते हैं,
जीवनसन्ध्या में डगमगा कर चीखते हैं।

मायावश हमें अद्भुत मञ्जर दीखते हैं,
भ्रम के भँवर में हम धीरे-धीरे रीतते हैं,
पुस्तकालय, पोथियाँ ज्ञानिक समन्दर हैं,
जितने हैं बाहर,उससे ज्यादा अन्दर हैं।

बाहर की यात्रा हमें,दरबदरकरती है,
अन्तस यात्रा अद्भुत सुकून भरती है,
बाहरवाली दौड़ में, हम खो जाएंगे,
आध्यात्मिक पथ, हमें घर पहुँचायेंगे।

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