योग के सम्बन्ध में महर्षि पतञ्जलि से लेकर आजतक के मनीषियों का
क्रमिक योग दान रहा है निश्चित रूप से महर्षि पतञ्जलि के व्यवस्थित क्रम देने से
पूर्व यह विद्यमान रहा होगा और बहुत से अनुभवों से व लम्बी साधना से इसका प्रागट्य सम्भव हुआ होगा। यह मानव मात्र को ऋषि
मुनि परम्परा की अद्भुत भेंट है। श्रीमद्भगवद्गीता में ज्ञान योग ,भक्ति योग व कर्म योग के बारे में विस्तार से
समझाया गया है योग को स्पष्ट रूप से समझने हेतु इन तीन मार्गों ज्ञान योग ,भक्ति योग व कर्म योग को समझना होगा। मानव मात्र में
विविध वृत्तियों के दर्शन होते हैं अपनी वृत्ति प्रधानता के आधार पर हमें योग
मार्ग का चयन करना चाहिए। जो लोग ज्ञान की और झुकाव रखते हों उन्हें ज्ञान मार्ग
का अनुसरण करना चाहिए।जिन मानवों का झुकाव कर्म की और हो उन्हें कर्म योग के मार्ग
का अनुसरण करना चाहिए और भावना प्रधान लोगों को भक्ति मार्ग का अनुसरण करना
चाहिए।
अष्टाँग योग –
अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि
का संयोग है।
यम –
इससे आशय संयम से है हमें कायिक,वाचिक
व मानसिक संयम का परिचय देना होगा। यम को पाँच भागों में विभक्त किया गया है।
a – अहिंसा – विचार को इस कोटि का बनाना है कि हमारे चिन्तन
व व्यवहार से प्राणिमात्र के प्रति किसी प्रकार का हिंसात्मक आचरण न हो।
b – सत्य – व्यवहार व सिद्धान्त में समान होना अर्थात मन
व वचन द्वारा समान व्यवहार, अनुगमन या अनुसरण किया जाना।
c – अस्तेय – किसी दूसरे के द्रव्य के प्रति अनासक्त भाव।
d – अपरिग्रह – विषयों के विभिन्न दोषों से विमुख रहना यानी
विषयों के अर्जन, रक्षण से विमुक्त भाव रहना।
e – ब्रह्मचर्य – संयम का परिचय अर्थात गुप्तेन्द्रिय उपस्थ का
संयम में रहना।
नियम –
नियम प्रवृत्तिमूलक होते हैं
और शुभ या मंगल कार्यों केप्रति हमारी प्रवृत्ति के परिचायक होते हैं।ये ही शुभ
कार्यो हेतु हमें प्रवृत्त कराते हैं
इन्हें पाँच भागों में विभक्त किया गया है –
a – शौच –
शौच से आशय आंतरिक व वाह्य शुद्धि से है आन्तरिक से आशय मानस के मलों से निवृत्ति
व वाह्य से आशय बाहरी शुद्धि जिसके लिए पहले मिट्टी व जल का प्रयोग होता था और आज
साबुन व विविध उपादानों का प्रयोग किया जाता है।
b – सन्तोष – यह शान्ति प्राप्ति का सर्वथा सशक्त उपागम है। जो है जैसा है उसी
में सन्तुष्ट रहना। यह गुण ही सन्तोष है।
c – तप –
इससे आशय है सुख दुःख को समान समझने की शक्ति का जागरण जो शरीर को तपाने, दुःख सहने योग्य बनाने, और इस हेतु गर्मी ,सर्दी,बरसात
की त्रासदई स्थिति में रहने व कठिन व्रतों के अनुपालन के अभ्यास से है।
d – स्वाध्याय – नियम, विधि विधान को ध्यान में रखकर धर्म ग्रंथों की
स्वयम द्वारा की गई अनवरत साधना।
e – ईश्वर प्राणिधान – भक्तिपूर्वक ईष्ट के प्रति सम्पूर्ण समर्पण।
आसन –
हमें साधना हेतु शरीर को एक ऐसी स्थिति में रखना होता है जिसमें
दीर्घ अवधि तक सुख पूर्वक रहा जा सके.इसी स्थिति को आसन नाम से जाना जाता है। जगत
में विविध प्रकार की जीव जातियां हैं उतने ही प्रकार के आसन हैं सिद्धासन,गरुण आसन,भुजङ्गासन, शीर्षासन आदि विविध प्रकार के आसान हैं हाथ
प्रदीपिका में इसका सुन्दर वर्णन द्रष्टव्य है आजकल बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण
की तत्सम्बन्धी पुस्तक में इसे देखा जा सकता है।
प्राणायाम –
प्राण शक्ति अर्थात श्वांस प्रश्वांस के विविध आयामों को ही
प्राणायाम कहा जाता है। प्राणायाम वस्तुतः श्वांस प्रश्वांस का गति विच्छेद ही है।
इसमें मुख्यतः पूरक, कुम्भक व रेचक का आधार रहता है पूरक अर्थात
श्वांस को पूरा अन्दर की ओर खींचना, कुम्भक
से आशय इसके रोके जाने से एवं रेचक से आशय इसके छोड़े जाने से है। इनसे शारीरिक,मानसिक दृढ़ता व चित्त की एकाग्रता में अद्भुत
प्रगति देखी जाती है।
प्रत्याहार –
मानव में विविध इन्द्रियों का समागम रहता है जो विविध क्रियाओं का
आधार है जब इन्द्रियाँ वाह्य प्रपंचों से मुक्त होकर अर्थात वाह्य विषयों से हटकर
चित्त के समान निरुद्ध हो जाती हैं तो यह स्थिति प्रत्याहार है। जब वाह्य जगत में
मन विचरण की यात्रा अन्तर्मुखी अन्दर की
यात्रा सुनिश्चित करती है तब प्रत्याहार निष्पन्न होता है इस स्थिति में संसार में
रहते हुए सांसारिक वस्तुएं साधक को बाँध नहीं पातीं।
धारणा –
चित्त को किसी एक स्थान पर स्थिर कर देना धारणा कहलाता है जैसे हृदय
कमल में ,नाभि चक्र में या किसी भी बाहर की वस्तु
में स्थिर कर देना धारणा कहलायेगा।
ध्यान –
ध्यान की अवस्था में ध्येय का निरन्तर मनन किया जाता है और विषय का
ज्ञान स्पष्ट रूप से प्राप्त हो जाता है एवम् इस तरह से योगी के मन में ध्येय
वस्तु का यथार्थ स्वरुप प्रगट हो जाता है। अतः जब ध्येय वस्तु का ज्ञान एकाकार रूप
लेनेलगता है तो उसे ध्यान कहते हैं।
समाधि –
योग का अन्तिम लक्ष्य व्यक्ति को पूरी तरह से अन्तर्मुखी बनाना है
समाधि, चित्त की वह अवस्था है जिसमें प्रतीति केवल
ध्येय की ही होती है और चित्त का अपना स्वरुप शून्य सा हो जाता है।
गर्मी
के दिनों में लोग इस बात से परेशान रहते हैं की वे अपनी पूरी क्षमता से कार्य नहीं
कर पाते। यदि सम्पूर्ण दिन को गर्मी के लिहाज से तीन भागों में बाँटते हैं प्रातः, दोपहर, शाम
तो इसमें बीच वाला भाग अर्थात दोपहर सबसे तपिश भरी होती है। बहुत सारे शरीर इस मौसम
से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि उन्हें हमेशा गर्मी महसूस होती है जिससे उनके
कार्य में बाधा पड़ती है। यहाँ प्रस्तुत हैं –
गर्मी
में कूल कूल रहने के आठ उपाय
Eight
ways to stay cool in summer
01 – जल का सेवन (Water intake)
02 – तरल खाद्य पदार्थों का उचित सेवन (Suitable intake of liquid foods)
04 – फल, सब्जी और सुपाच्य भोजन (Fruits, vegetables and nutritious food)
05 – मसालेदार, अधिक तले भुने, अधिक नमक व कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन नहीं
(Do not consume spicy, excessive fried,
high salt and caffeinated substances)
06 –मौसम के अनुसार वस्त्र (Clothing according to the season)
07 – नींद और स्नान (Sleep and bath)
08 – पैर के तलवे की देखभाल (Foot care)
01 – जल का सेवन (Water intake)-
गर्मी
के दिनों में जल का सेवन सोच समझ कर किया जाना चाहिए पानी घूँट घूँट करके पिया
जाना चाहिए केवल शौच निवृत्ति से पूर्व आप लगातार पानीपी सकते हैं। यदि गुन गुना
जल नहीं ले सकते तो फ्रिज का बहुत ठण्डा पानी भी वर्जित है सादा जल या घड़े
के जल का सेवन किया जा सकता है इसे आप अपने थर्मस में भरकर कार्य स्थल पर भी ले जा
सकते हैं। सुबह सुबह, रात्रि को ताँबे के लोटे में रखे जल का सेवन
किया जा सकता है। यह पूरे दिन में प्यास के अनुसार या तीन से चार लीटर लिया जा
सकता है।गर्मी में बाहर निकलने से पहले पर्याप्त जल का सेवन करना चाहिए। पानी
उंकड़ू बैठ कर पीना मुफीद है खड़े होकर नहीं पीना चाहिए।
02 – तरल खाद्य पदार्थों का उचित सेवन (Suitable intake of liquid foods) –
खाद्य
सामग्री के मामले में भारत सचमुच बहुत भाग्य शाली है इसमें जहां विविधता पूर्ण
व्यञ्जन उपलब्ध हैं वहीं मौसमानुकूल खाद्य सामग्री की बह भरमार है गर्मी में अधिक
जल वाले तत्वों का विकल्प चुना जाना चाहिए जैसे नीबू पानी,नारियल पानी, छाछ, आम का पना, पानी
की सेंधा नमक वाली शिकन्जी,जौ के सत्तू का शरबत,विविध दोष रहित जूस, दही की लस्सी आदि इनमें आवश्यकतानुसार पुदीना,प्याज,धनिया
सौंफ आदि का प्रयोग किया जा सकता है। कृत्रिम शीतल पेय बोतल बन्द या डिब्बे बन्द
बासी तरल पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
घाट की राबड़ी जिसमें जौ का दलिया व छाछ होता है,
लिया जा सकता है।
प्राणायाम, योग और सूक्ष्म व्यायाम किया जाना चाहिए शीतली, शीतकारी प्राणायाम अधिक उपयोगी है educationaacharya.com पर Tip to Top Exercise दो भागों में पहले दी जा चुकी हैं जो उपयोगी रहेंगी। सुविधा की दृष्टि से इसका लिंक यू ट्यूब (Education Aacharya) के डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दे दूँगा।[ https://youtu.be/-Pw39aG5-IQ, https://youtu.be/bl2uqMUk_f8] याद रखें मानसिक शान्ति भी शारीरिक शान्ति में योग देती है।
04 – फल, सब्जी और सुपाच्य भोजन (Fruits, vegetables and nutritious
food) –
शारीरिक
गर्मी पर नियन्त्रण हेतु भोजन सुपाच्य ही किया जाना चाहिए और भूख से कुछ कम लिया
जाना चाहिए रात्रि के भोजन पर सर्वाधिक नियंत्रण की आवश्यकता है और यह सोने से कम से कम दो घण्टे
पहले किया जाना चाहिए। भोजन से पहले आप पानी पी सकते हैं लेकिन भोजन के उपरान्त कम
से कम आधा घण्टे जल न पीएं।
05 – मसालेदार, अधिक तले भुने,अधिक नमक व कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन नहीं
(Do not consume spicy, excessive fried,
high salt and caffeinated substances) –
इस प्रकार के पदार्थ शरीर में अनावश्यक
गर्मी का कारण बनाते हैं शरीर में पित्त ,एसिड
आदि की वृद्धि के साथ वात,
पित्त, कफ
में असंतुलन पैदा कर विकार का कारण बनते हैं।
06 –मौसम के अनुसार वस्त्र (Clothing according to the season) –
गर्मियों में हल्के, ढीले वाले सूती वस्त्रों का प्रयोग किया जाना
चाहिए।टाइट ,शरीर से चिपके वस्त्र नहीं पहनने से बचना
चाहिए। रंगों के चयन में सावधानी रखें हुए हलके रंग प्रयोग में लाएं जाएँ। वस्त्र
ऐसे हों जिससे शरीर को आराम मिले पूरी बाँह के वस्त्र पहनें।आवश्यकतानुसार अँगोछा
लिया जा सकता है।
07 – नींद और स्नान (Sleep
and bath) –
जहाँ
सुबह उठकर दैनिक क्रियाओं में स्नान को स्थान मिला हुआ है वहीं निद्रा पूर्व स्नान
अच्छी आरामदायक नीं दिलाता और शरीर की
गर्मी पर नियन्त्रण रखता है यदि उस समय स्नान कर सकते तो पैरों को अच्छी तरह धोना
अति आवश्यक है।
08 – पैर के तलवे की देखभाल (Foot
care) –
रात्रि
में सोने से पहले पैर धोने की बात ऊपर आ चुकी है यह क्रिया शीतल नैसर्गिक जल से हो
बर्फ के पानी या फ्रिज के पानी से नहीं। इसके पश्चात अच्छी तरह गोले के असली तेल
से तलवों की मसाज अवश्य करें और तलवे के प्रत्येक भाग को अंगुलियों के दवाब का
अहसास कराएं आनन्द आएगा। इतनी मसाज करें की तेल सूख जाए।
यद्यपि गर्मी के प्रकोप के निदान में
चिकित्सकीय परामर्श सर्वाधिक आवश्यक है लेकिन इलाज से पहले सावधानी के महत्त्व को
नकारा नहीं जा सकता।