सब जान बूझ कर अन्दाज़ बदल लेते हैं लोग,
शराफत छोड़कर भगवान बदल लेते हैं लोग,
जब लगता है निज लाभ में कुछ ख़लल पड़ा,
स्वहित में धर्म और ईमान बदल लेते हैं लोग।
बदले निजाम संग खुद को बदल लेते हैं लोग,
लूट का मौका देख सभी को लूट लेते हैं लोग,
कत्ल की रात भी दिखता है उनका गुंचेगहन,
जाने कैसे पीड़ा देख खिल खिला लेते हैं लोग।
जातिभक्ति ले ईवीएम बटन दबा देते हैं लोग,
मूल मुस्कान खो ख़्वाब में मुस्का लेते हैं लोग,
बिन सिर पैर की बातों को, दे देकर तरजीह
उजले दामन पर स्याह दाग लगा लेते हैं लोग।
वक़्त की तब्दीलियों से क्यूँ खफा होते हैं लोग,
आज शकोशुबहा की दीवार बना लेते हैं लोग,
टी०वी०,सोशल मीडिया से जानके फूहड़ बातें,
पुर सुकूँ जिन्दगानी में आग लगा लेते हैं लोग।
दरकती दीवार को देख दूरी बना लेते हैं लोग,
मदद छोड़, बातें सिर्फ़ बातें बना लेते हैं लोग,
मदद करने वाली, महफ़िलें अब नहीं सजतीं,
तड़पता देख बस वीडिओ बना लेते हैं लोग।