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विविध

जीवन क्या है ?/What is life?

May 31, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जीवन क्या है ?

यह बोलने में जितना सरल है विचार करने और प्रत्युत्तर खोजने में उतना ही जटिल। बहुत सारे प्रश्न इसके जवाब में उठते हैं मस्तिष्क उनके उत्तर सुझाता है कालान्तर में वे पुनः प्रश्न बन जाते हैं और अन्ततः हम उसी स्थल पर पहुँच जाते हैं जहां से चले थे अर्थात मूल प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है कि जीवन क्या है ?

जीवन के बारे में चिन्तन करने वाले चिन्तक यह महसूस करते हैं कि इसका कर्म के साथ घनिष्ट सम्बन्ध है और कर्म की अवधारणा पर चिन्तन करते भारतीय चिन्तक, प्रारब्ध के बारे में चिन्तन को विवश होते हैं।आखिर ये कैसा चक्र है हम कोई कार्य क्यों करते हैं ? हमारे किसी कार्य का निमित्त बनने का कारण क्या हमारा प्रारब्ध है या दैवयोग या उस समय विशेष की मनोदशा ये सारे प्रश्न मन को उद्वेलित करते हैं और भारतीय दार्शनिक इन प्रश्नों के उत्तर देते भी हैं जो यथार्थ के काफी करीब लगते हैं  पर उसे सामान्य जन के स्तर पर लाकर समझा पाना दुष्कर है। उद्धव जैसी मनोदशा हो जाती है। सामान्य मानव के मस्तिष्क को उद्वेलित करने वाला प्रश्न फिर ठहाका लगाने लगता है कि आखिर जीवन क्या है ?

एक अनुत्तरित प्रश्न – अनुत्तरित प्रश्नों की श्रृंखला विविध मनीषियों की अनगिनत वीरान रात्रियों की हमसफर रही है बहुत से विचारकों ने जाड़े ,गर्मी और बरसात की अनेक रात्रियो में जागरण कर इन प्रश्नों के जवाब तलाशने के प्रयास किये हैं परिणाम स्वरुप ढेर सारे विश्लेषणात्मक लेख पढ़ने को मिलते हैं इन सब की यात्रा हमें मंजिल की और बढ़ाती है पर मंजिल पर पहुँचा नहीं पाती। इन प्रश्नों की लड़ी का मुख्य प्रश्न हमें फिर चिढ़ाता है – जीवन क्या है ?

ज्ञान की विविध शाखाएं और मूल प्रश्न – सम्पूर्ण मानवों को विज्ञान, वाणिज्य और कला के खाँचों में रखने का प्रयास किया गया और सभी ने विविध विषय वस्तुओं के अध्ययन के साथ, इस मूल प्रश्न के समाधान का प्रयास किया। कुछ विचारकों ने उत्तर न दे पाने के कारण प्रश्न को ही ‘बकवास’ कहना प्रारम्भ किया लेकिन प्रश्न से भाग जाना प्रश्न का हल नहीं हो सकता। यह पलायन वादिता शीघ्र समझ में आ गयी।

जीवन वह कालावधि है जिसमें श्वासों का निरन्तर आवागमन बना रहता है और हम एक ही शरीर धारण करे रहते हैं। – इस आलोक में तलाशने पर लगता है कि क्या जीवन का कोई मन्तव्य और गन्तव्य नहीं है क्या हम अनायास ही जीते हैं और मानव भी पशुवत जीवन के रंगमंच पर मात्र एक कठपुतली है क्या अरबों खरबों जीवों को नचाने वाली ताक़त इसे केवल इस लिए कर रही है कि लीला सम्पन्न की जा सके। क्या इसका आदि अन्त कुछ समझ में आता है क्या इन प्रश्नों के कोई शिरे नहीं हैं।

ज्ञान के महासागर में ज्ञान के मोती तलाश रहे मनीषियों के बीच इस प्रश्न के रूप में बाधा रुपी पर्वत दीर्घकाल तक अविचलित खड़ा रहने वाला है। बहुत सारे गोल गोल उत्तरों में यह साधारण सा लगने वाला प्रश्न मुस्कुराता सा दीख पड़ता है। हमारी कई पीढ़ियां सरल उत्तर तलाशने के क्रम में कालकवलित हो चुकी हैं। दिन रात के चिन्तन का क्रम, जंगल और तंग कोठरियों का सूक्ष्म विवेचन, विविध प्रयोग शालाओं और विविध कार्य शालाओं में सर पर मँडराता यह प्रश्न वह समाधान कब प्रस्तुत कर पायेगा जो सामान्य समझ की परिधि में लाया जा सके।

रँगमञ्च और यह प्रश्न – ‘जीवन क्या है ?’ -इस प्रश्न के उत्तर की तलाश ऋषियों, मनीषियों, देशी विदेशी विज्ञजनों, विविध विश्लेषकों और संस्थाओं ने अपने अपने ढंग से की है साथ ही हमारी फ़िल्में, हमारा रङ्गमञ्च भी इस प्रश्न का माकूल जवाब खोजना चाहता है जीवन को इस क्रम में जिंदगी भी कहा गया। फ़िल्मी गीतों और ग़ज़लकारों ने इस सम्बन्ध में क्या कहा थोड़ा सा दृष्टिपात करते हैं इस ओर –

            “व्हाट इज लाइफ” जॉर्ज हैरिसन की ट्रिपल एल्बम ‘आल थिंग्स मस्ट पास’ का वह गाना है जो इस अंग्रेजी रॉक संगीतकार ने 1970 में दिया। इसने संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़र लैण्ड में तहलका मचा दिया और दूसरे एकल के रूप में 1971 के टॉप टेन में शीर्षस्थ स्थान पर रहा। यूनाइटेड किंगडम में यह ‘माय स्वीट लॉर्ड’ के बी साइड के रूप में दिखाई दिया जो 1971 का सबसे अधिक बिकने वाला एकल था।

            गीतों में जीवन दर्शन को दर्शाने से पहले गहन शोध की गई। ‘जीवन क्या है ?’ तलाशते और इसके आसपास विचरण करते कुछ गीतों के बोल इस प्रकार हैं –

01 – जिन्दगी एक सफर है सुहाना

02 – जिन्दगी हर कदम एक नई जंग है

03 – कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना

04 – मुसाफिर हूँ यारो, न घर है न ठिकाना 

05 – आने वाला कल जाने वाला है

06 – जिन्दगी के सफर में बिछड़ जाते हैं जो मुकाम

07 – जैसी करनी वैसी भरनी

08 – आदमी मुसाफिर है आता और जाता है

09 – मंजिलें अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह

10 – गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है।

इसके अलावा भी इस सम्बन्ध में बहुत कुछ जानने का अविरल क्रम रहा है असल में इस प्रश्न के साथ दर्शन इतना गुत्थमगुत्था है कि जनमानस समझ नहीं पाता कि जीवन क्या है ? किसी ने कितना सुन्दर कहा –

रात अंधेरी, भोर सुहानी, यही ज़माना है

हर चादर में दुःख का ताना, सुख का बाना है

आती साँस को पाना, जाती सांस को खोना है

जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है

दो आँखों में एक से हँसना,एक से रोना है

जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है।

अपनी स्मृति के आधार पर किसी विशिष्ट अज्ञात विद्वान् की मुझे प्रिय पंक्तियाँ इस सम्बन्ध में आपके समक्ष परोसने का प्रयास करता हूँ  –

जीवन क्या है कोई न जाने, जो जाने पछताए

माटी फूलों में छिपकर महके और मुस्काये

माटी ही तलवार का लोहा बनकर खून बहाये

एक ही माटी मुझमें तुझमें रूप बदलती जाए

जीवन क्या है कोई न जाने, जो जाने पछताए .

जीवन क्या है ? वास्तव में एक दुष्कर प्रश्नों में से एक है संसार में अनेक जिज्ञासु यह जानना चाहते हैं पर यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है आप क्या सोचते हैं इसके बारे में, ज़िन्दगी की यह तलाश यदि कोई संभावित उत्तर दे तो अवश्य मेरे से साझा कीजियेगा बहुत से विज्ञ जनों तक पहुंचेगा। तब इसे इन पँक्तियों के प्रश्नों की तरह अनुत्तरित माना जाएगा।

ताल मिले नदी के जल में

नदी मिले सागर में

सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना

सूरज को धरती तरसे, धरती को चन्द्रमा

पानी में सीप जैसी प्यासी हर आत्मा,

ओ मितवा रे

बूँद छिपी किस बादल में, कोई जाने ना 

आशा ही नहीं विश्वास है कि इस प्रश्न का सम्भावित उत्तर आपके द्वारा मुझसे साझा किया जाएगा।

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विविध

मधु मक्खी / Honey bee

May 19, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मधुमक्खी

हमारे जीवन के लिए बहुत से कारक जिम्मेदार हैं जो जीवन में मधुरस घोल जाते है विविध क्रियाएं, जैव विविधता, जीवन चक्र, समुद्र, पृथ्वी, आकाश सभी अपनी भूमिका का स्वतः स्फूर्त ढंग से निर्वहन करते हैं हमारे भोज्य पदार्थ, फल, मसाले, निर्मल जल, निर्मल वायु सभी की अपनी अपनी भूमिका है लेकिन बहुत कुछ इस उत्पादन में परागण की भूमिका है जो विविध जीवों द्वारा निर्वाहित की जाती है और पुष्पन पल्लवन के क्रम को निरन्तरता मिलती रहती है मोम और शहद देने के साथ इस परागण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करती है – मधुमक्खी

विश्व मधुमक्खी दिवस (World Bee Day) –

परागण में मधु मक्खी की भूमिका और इसके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए इनकी रक्षा व तत्सम्बन्धी जागरूकता आवश्यक है। 2017 स्लोवेनिया के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने इसे प्रारम्भ किया और पहला विश्व मधुमक्खी दिवस (World Bee Day) 20 मई  2018 को मनाया गया। दुनियाँ भर में इसकी 20,000 से भी अधिक प्रजातियाँ हैं और यह समग्र धरातल पर वितरित हैं इनमें से 4000 प्रजातियाँ तो मूल रूप से अमेरिका की हैं। आज इस दिवस की उपादेयता मानव के लिए इसलिए भी अधिक है क्यों कि मधु मक्खी फसल परागण के एक तिहाई के लिए जिम्मेदार है। इतनी सारी प्रजातियों में सबसे उल्लेखनीय शहद की मक्खी है।

मधुमक्खी का छत्ता / Bee hive –

आपने विविध दरारों में, पेड़ों पर, दीवारों, छतों व बड़ी बड़ी पानी की टंकियों से लटके इनके छत्तों के दर्शन किये होंगे। इनको एक साथ स्थानान्तरित होते हुए भी देखा होगा। मधुमक्खी के छत्ते में मुख्यतः तीन तरह की मक्खियाँ रहती हैं  रानी मधु मक्खी, श्रमिक मधु मक्खियाँ और नर मधु मक्खियाँ। रानी मधु मक्खी पूरे छत्ते में एक ही होती है इसी से कालोनी बनती है और यही अण्डे देती है। श्रमिक मधुमक्खियाँ शहद बनाना, लार्वा पालना, छत्ता बनाने का कार्य करती हैं इनमें प्रजनन क्षमता नहीं होती हैं। नर मधुमक्खियाँ रानी मक्खी के साथ वंश वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं। नर मधु मक्खी को बड़ी बड़ी आँखों से और रानी मक्खी को लम्बे उदर की वजह से पहचाना जा सकता है। मधु मक्खी की पॉंच आँखे होती हैं जिनमें से दो बड़ी आँखे सिर के दोनों और होती हैं जिन्हें मिश्रित आँखें और शेष तीन सरल आँखें ओसेली आँखें कहलाती हैं। मिश्रित आँखें दृश्य को व्यापकता प्रदान करती हैं। इनकी आँखों में लगभग 6000 लेंस होते हैं।

मधुमक्खियों की महत्ता / Importance of bees –

इनकी महत्ता इन पर आधारित उत्पादन के माध्यम से देखी जा सकती है और यह उत्पादन मुख्यतः तीन कार्यों पर निर्भर है।

01 – परागण क्रिया

02 – मोम निर्माण प्रक्रिया

03 – शहद निर्माण – शहद का भारतीय परिप्रेक्ष्य में इतना अधिक महत्त्व स्वीकारा गया कि इसे प्रकृति का अमृत या स्वर्ण अमृत नाम से भी पुकारा गया।

अब तक की सारी विवेचना से यह स्पष्ट है कि मनुष्य व मधु मक्खी परस्पर एक दूसरे के महत्त्वपूर्ण साथी है इनके कीटनाशकों से बचाव की आवश्यकता के साथ मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इनका संरक्षण परोक्ष रूप में हमारी प्रगति में सहायक होगा। आप सभी को मधुमक्खी दिवस की शुभ कामनाएं। यह मधु मक्खी संरक्षण प्रत्येक स्तर पर पाठ्य क्रम का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।

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शिक्षा

Qualities of an Inclusive Teacher

May 17, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

समावेशी शिक्षक के गुण

असल में कोई  भी शिक्षक उन्हीं गुणों को प्रतिबिम्बित कर सकता है जो उसमें स्वयम् हों। इसी तरह एक समावेशी शिक्षक वही हो सकता है जो समावेशन के गुणों को धारण करे। आखिर होता क्या है समावेशन ? इसे समझने हेतु हम यहाँ सहारा ले रहे हैं सोसाइटी ऑफ़ ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट (SHRM )द्वारा प्रदत्त परिभाषा का –

“ऐसे कार्य वातावरण की उपलब्धि हैं जिसमें सभी व्यक्तियों के साथ उचित और सम्मान जनक व्यवहार किया जाता है, उन्हें अवसरों और संसाधनों तक समान पहुँच होती है और वे संगठन की सफलता में पूरी तरह से योगदान दे सकते हैं।”

आंग्ल अनुवाद

“The achievement of a work environment in which all individuals are treated fairly and with respect, have equal access to opportunities and resources, and can fully contribute to the success of the organization.”

अर्थात इन कार्यों को सम्पादित कराने वाला समावेशी शिक्षक की श्रेणी में आएगा। समावेशी शिक्षक से सामाजिक और व्यावहारिक अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं अतः समावेशी अध्यापक निम्न गुण धारण करने वाला ही होगा।–

01 – श्रेष्ठ समायोजक / Best adjuster

02 – सत्य समर्थक व पक्षपात रहित / Truthful and unbiased

03 – सकारात्मक चिन्तक /Positive thinker

04 – अनुशासन प्रिय / Discipline-loving

05 – संवेदन शील व सहानुभूति युक्त / Sensitive and sympathetic

06 – सदा सक्रिय / Always active

07 – आशावादी / Optimistic

08 – सञ्चार कौशल युक्त / Having communication skills

09 – स्वमूल्याँकन के प्रति सचेत/ Conscious of self-evaluation

10 – सम्यक शैक्षिक योग्यता / Appropriate educational qualification

11 – उत्साह और उत्सुकता युक्त / Enthusiastic and curious

12 – पूर्वाग्रह मुक्त / Unprejudiced

13 – सृजनात्मक / Creative

14 – आजीवन सीखने वाला / Lifelong learner 

15 – धैर्ययुक्त व सहयोगी / Patient and cooperative

16 – अच्छा श्रोता / Good listener

            वास्तव में आज का समाज और कार्य प्रदाता को समावेशी शिक्षक से बहुत सी आशाएं हैं और वे चाहते भी हैं की नित्य बदलती परिस्थितियों से समावेशी अध्यापक साम्य बनाये लेकिन उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी से समाज, कार्य प्रदाता और शासन व्यवस्था सभी भागते नज़र आते हैं जबकि दोनों का संयुक्त प्रयास यथोचित परिणाम देने में समर्थ होगा।

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शिक्षा

Examination Reform

May 14, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

परीक्षा सुधार

भारत में जब हम किसी समस्या के निदान की बात करते हैं तो हमारा ध्यान शिक्षा की ओर आकर्षित होता है और जब हम शिक्षा समस्या की और दृष्टि पात करते हैं तो हमारा सम्पूर्ण ध्यान, शिक्षा व्यवस्था में परीक्षा सुधार की ओर जाता है और विविध शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा व्यवस्था में कतिपय सुधार अपेक्षित हैं जो समय की मांग है। वर्तमान समय में प्रगति के साथ तालमेल की आवश्यकता पूर्ति हेतु विविध आयोगों ने भी परीक्षा सुधार को आवश्यक माना और अपनी संस्तुतियां दीं।

विविध आयोगों के सुझाव / Recommendations of various commissions –

यद्यपि परीक्षा सुधार पर अलग अलग शिक्षाविदों की राय भिन्न है और क्षेत्रीयता का प्रभाव भी दृष्टिगत होता है लेकिन हम यहाँ केवल आज़ादी के बाद के कुछ आयोगों और 2020 की शिक्षा नीति के परिदृश्य में इसका अध्ययन करेंगे।

राधाकृष्णन कमीशन के सुझाव / Recommendations of Radhakrishnan Commission –

 राधाकृष्णन कमीशन ने परीक्षा प्रणाली में सुधार हेतु निम्न सुझावों की ओर ध्यानाकर्षित किया – 1 – रटने की योग्यता की परीक्षा समाप्त हो।/The test of rote learning ability should be abolished.

                           – रटने की जगह विश्लेषण,संश्लेषण,व ज्ञान को महत्ता  2 – आवश्यकतानुसार पृथक मूल्यांकन विधियों का प्रयोग/Use of different evaluation methods as per the need           – वाद विवाद, कार्य कलाप,परियोजना कार्य आदि

3 – मूल्याङ्कन प्रक्रिया वार्षिक न होकर वर्ष पर्यन्त हो /The evaluation process should be year-round instead of annual

4 – परीक्षा के महत्त्व में कमी/Reduction in the importance of exams

5 – परीक्षा पैटर्न में परिवर्तन / Change in exam pattern

6 – तनाव में कमी के प्रयास / Efforts to reduce stress

मुदालियर कमीशन के सुझाव / Recommendations of Mudaliar Commission –

मुदालियर कमीशन ने परीक्षा प्रणाली में सुधार हेतु निम्न सुझावों की संस्तुति की –

1 – वाह्य परीक्षा की संख्याओं में कमी / Reduction in the number of external exams

2 – वस्तुनिष्ठता का सम्यक प्रयोग / Proper use of objectivity

3 – व्यक्तिपरकता के प्रभाव में कमी / Reduction in the influence of subjectivity

4 – रटने की शक्ति को हतोत्साहित करना / Discouraging rote learning

5 – तर्क सांगत समझ को बढ़ावा / Promoting rational understanding

6 – पाठ्यचर्या विविधता / Curriculum diversity

7 – व्यावसायिक शिक्षा / Vocational education

8 – शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार / Improvement in teacher training

कोठरी आयोग के परीक्षा सुधार सम्बन्धी सुझाव / Kothari Commission’s suggestions regarding examination reform –

कोठरी आयोग ने परीक्षा सुधार हेतु निम्न सुझावों को अधिमान प्रदान किया –

01 – सतत और व्यापक मूल्यांकन /Continuous and Comprehensive Evaluation

02 – कौशल का व्यापक आकलन /Comprehensive Assessment of Skills

03 – परीक्षा बोर्डों का गठन/Formation of Examination Boards

04 – पेशेवर प्रबन्धन /Professional Management

05 – वेतनमानों का मानकीकरण/Standardization of Pay Scales 

06 – शैक्षिक व्यय में वृद्धि /Increase in educational expenditure

07 – शैक्षिक मानकों को कानूनी संरक्षण /Legal protection of educational standards

08 – शिक्षा नीति का निर्माण/Formulation of education policy

1986 की शिक्षा नीति –

NEP 1986 ने परीक्षा प्रणाली को बहुमुखी व लचीला बनाने हेतु जो सुधार बताए उन्हें इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –

01 – रटने की जगह समग्र विकास / Holistic development instead of rote learning

02 – सीखने हेतु प्रेरण / Motivation to learn

03 – तनाव मुक्त परीक्षा / Stress free exam

04 – बेहतर मूल्याङ्कन / Better evaluation                               

05 – बहुमुखी व लचीली शिक्षण प्रणाली / Versatile and flexible learning system

06 – गुणवत्ता युक्त शिक्षण सामग्री / Quality learning materials

07 – त्रिभाषा फार्मूला का आधार / The basis of the three-language formula

नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 –

नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने परीक्षा सुधार हेतु निम्न कदम उठाने पर जोर दिया। –

01 – समग्र विकास और योग्यता आधारित शिक्षण को बढ़ावा / Promote holistic development and competency based learning

02 – रटने की जगह समझने पर जोर / Emphasis on understanding instead of rote learning

03 – ‘परख’ नामक राष्ट्रीय मूल्याङ्कन प्रणाली का प्रस्ताव / Proposal for a national evaluation system called ‘Parakh’

04 – छात्र केन्द्रित शिक्षण व्यवस्था / Student centered learning system

05 – परीक्षा प्रणाली को व्यापकता प्रदान करना / To broaden the examination system

06 – विश्वसनीयता में वृद्धि / Increase reliability

परीक्षा प्रणाली में सुधार की समस्या उत्पत्ति के कारण / Reasons behind the problem of reform in the examination system –

01 – रूढ़िवादिता / Stereotypes

02 – परम्परागत सोच / Traditional thinking

03 – निम्न आय / Low income

04 – परिवर्तन से डर / Fear of change

05 – अभिभावकों की अशिक्षा / Illiteracy of parents

06 – जाति व्यवस्था / Caste system

07 – महिला शिक्षा का अभाव / Lack of women education

08 – कौशल कार्यक्रमों की न्यूनता / Lack of skill programmes

09 – अविकसित सञ्चार साधन / Under developed means of communication

10 – संस्कृति के प्रति अज्ञानता / Ignorance of culture

परीक्षा प्रणाली में सुधार हेतु उपाय / Measures to improve the examination system-

01 – आन्तरिक मूल्याङ्कन व मौखिक परीक्षा को महत्त्व / Importance of internal assessment and oral      examination

02 – नई अधिगम तकनीकों का प्रयोग / Use of new learning techniques

03 – मूल्याङ्कन की समय सापेक्ष विधियों का चलन / Use of time-related methods of evaluation

04 – सतत मूल्याङ्कन पर जोर / Emphasis on continuous evaluation

05 – नवीनतम शिक्षा तकनीकी व परीक्षा में समन्वय / Coordination of latest education technology and examination

06 – लचीलापन / Flexibility

07 – वैश्विक मानदण्डों का अध्ययन / Study of global standards 

08 – व्यक्तित्व विकास व परीक्षा में समन्वय / Coordination between personality development and examination

09 – विविध शैक्षिक योजनाओं की आर्थिक उपादेयता में वृद्धि / Increase in economic utility of various educational schemes 

10 – विकसित समन्वयवादी दृष्टिकोण / Developed coordination approach

11 – समुचित शिक्षक प्रशिक्षण / Proper teacher training

12 – विश्लेषणवादी चिन्तन का विकास / Development of analytical thinking

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Uncategorized•समाज और संस्कृति

दिशा बोधक चिन्तन।

May 5, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मेरे सम्मानित साथियो

विविध विचारशील मनुष्य के मानस में कभी कभी अद्भुत वेशकीमती विचार सृजित होते हैं जिसे कालान्तर में वह भूल जाता है। विचार गुम हो जाता है और कभी कभी चिन्तन पूर्णतः निठल्ला भी हो सकता है।

यहाँ विचारणीय तथ्य यह है कि सृजित विचार के संचयन हेतु मनुष्य का टाइम फ्री जोन  में होना परम आवश्यक है उदाहरण के लिए मैं 58 वर्ष की आयु में चिन्तन हेतु मुक्त होना चाहता था, स्थितियाँ भी सृजित हुईं लेकिन जीविकोपार्जन व आर्थिक आवश्यकता की पूर्ती हेतु मुझे आज भी कार्य करना पड़ता है। जो स्वतंत्र चिंतन में बाधक है और मुझे समाज की समस्याओं पर चिन्तन से विरत करता है। सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है सबकी प्रगति एक साझा जिम्मेदारी है। हम नाकारा होकर स्वयम् को विरत नहीं कर सकते

            आप महसूस कर रहे होंगे और वह सही है कि आज का शीर्षक है – दिशा बोधक चिन्तन।

मेरे वैश्विक समकालीन साथियो,

 आज हम जिस दुनियाँ में जी रहे हैं और अपने अध्ययन, अधिगम के आधार पर चिन्तन के लायक हो सके हैं। वहाँ हमारे द्वारा जीविकोपार्जन हेतु किए कार्य, हमारा बहुमूल्य चिन्तन का समय छीन लेते हैं। निःसन्देह कार्य करना अच्छी बात है लेकिन समय का ऐसा नियोजन भी परम आवश्यक है कि हम अपने रूचि के क्षेत्र में कार्य हेतु समय निकाल सकें यथा – चिन्तन आधारित सृजन।

आप सभी ने यह महसूस किया होगा कि कभी विचारों का अँधड़ चलता है। बहुत से विचार मानस में मचलते हैं और कभी विचार शून्यता की सी स्थिति हो जाती है। कोई विचार शब्दों की लड़ी बन कागज़ पर नहीं उतर पाता। अक्सर मेरे साहित्यकार साथी, गजलकार, कवि और सार्थक बहस में प्रतिभागी मेरे मित्र यह कहते हैं कि आज पता नहीं क्या हुआ कोई विचार आया ही नहीं और कभी कहते हैं कि आज सृजन पर माँ शारदे की कृपा हो गयी

उक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि कोई भी समय विशेष हो सकता है और उस समय पर अन्य जीविकोपार्जन हेतु कार्य की मजबूरी दुनियाँ को कुछ सार्थकता से वंचित कर देती है।आज U.K, U.S.A, सम्पूर्ण यूरोप, सम्पूर्ण एशिया के समकालीन साथी विचारकों के विचारों से हम वंचित हैं कभी भाषा अवरोध बनती है, कभी समय। समय हो तो कई भाषाएँ सीखकर लाभ उठाया जा सकता है।

प्रश्न उठता है कि समय तो सबके पास समान है कोई इतने ही समय में विशिष्ट बन जाता है और कोई जड़ की स्थिति में रहता है। एक दिन में 86400 सैकण्ड होते हैं और इस समय का सार्थक नियोजन व उस पर अमल हमें सार्थक दिशा बोध दे सकता है। उम्र की और अच्छे स्वास्थय की एक सीमा है और सार्थक दिशाबोधक सृजन हेतु, वैश्विक समाज के सार्थक दिग्दर्शन हैं अच्छा स्वास्थय और अच्छी सोच दोनों आवश्यक है।

इस स्थिति के सम्यक विवेचन से स्पष्ट है कि गुरुओं का दायित्व और गुरुत्तर हो जाता है कि वे अपने विद्यार्थियों को उनके युवा काल में ही यह समझाएं कि वे   कठोर परिश्रम और उपार्जन करें। इस आधार पर अपने लिए टाइम फ्री जोन बना सकें। चिन्तन की शक्ति पैसे से नहीं खरीदी जा सकती लेकिन धन चिन्तन में परोक्ष रूप से सहयोग तो करता है। अतिरिक्त धनभोगी को विलास की ओर ले जाकर अभिशप्त करता है। लेकिन एक चिन्तक को स्वस्थ चिन्तन की ओर ले जाकर विश्व के लिए उपयोगी बनाता है।

विचारों से जुड़ने हेतु आत्मीय धन्यवाद।

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काव्य

बिलकुल मतलब नही होता है।

May 4, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जब मन, मन से मिल जाता है,

और धन आगम बन जाता है।

तब इस जाति उस जाति का,

बिलकुल मतलब नही होता है।1।

जब घायल होकर कोई तन

लहू के लिए तड़पता है

वह शोणित है किस जाति का

बिलकुल मतलब नही होता है।2।

जब वृद्ध मरे कोई फाके से, 

फिर कोई तेरहवीं करता है। 

तब होने वाली उस दावत का 

बिलकुल मतलब नही होता है।3।

जब घर पर तेरी माता भूखी है,

और तू भण्डारा करता है।

तब जय माता दी कहने का

बिलकुल मतलब नही होता है ।4।

जब घर पर मातम होता है,

घर का बालक नहीं पढ़ता है।  

तब फिर इस तीर्थ यात्रा का, 

बिलकुल मतलब नही होता है ।5।

इस जीवन के संघर्षों से ,

बच कर जब कोई निकलता है।  

तब केवल कर्मकाण्डों का, 

बिलकुल मतलब नही होता है ।6।

घर घोर अभाव में चलता है,

तू दान पूण्य सब करता है।

तब फिर इस आयोजन का

बिलकुल मतलब नही होता है ।7।

तूने खूब कमाया खाया है,

बच्चों को शिक्षा दी ही नहीं ।  

तब फिर बन्धु इस जीवन का, 

बिलकुल मतलब नही होता है ।8।

जब ट्रेन गई स्टेशन से ,

और बाद में वहाँ पहुँचते हो।  

तब क्षमा याचना करने का, 

बिलकुल मतलब नही होता है ।9।

फसल सूख गई बिन जल के, 

तिनका तिनका बन बिखर गई।

तब फिर घनघोर से वर्षण का

बिलकुल मतलब नही होता है ।10।

क्षुधा- पूर्ति करने को यदि ,

सब डिब्बा बन्द ही खाते हो ।  

मानस पर घोर नियन्त्रण का, 

बिलकुल मतलब नही होता है ।11।

व्यायाम कभी गर किया नहीं,

रोगों का घर तन बना लिया।  

तब बाद के प्राणायामों का, 

बिलकुल मतलब नही होता है ।12।

गर जीवन में कुछ करना है,

और काम समय पर किया नहीं।  

तब फिर यूँ किए परिश्रम का, 

बिलकुल मतलब नही होता है ।13।

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