जीवन क्या है ?
यह बोलने में जितना सरल है विचार करने और प्रत्युत्तर खोजने में उतना ही जटिल। बहुत सारे प्रश्न इसके जवाब में उठते हैं मस्तिष्क उनके उत्तर सुझाता है कालान्तर में वे पुनः प्रश्न बन जाते हैं और अन्ततः हम उसी स्थल पर पहुँच जाते हैं जहां से चले थे अर्थात मूल प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है कि जीवन क्या है ?
जीवन के बारे में चिन्तन करने वाले चिन्तक यह महसूस करते हैं कि इसका कर्म के साथ घनिष्ट सम्बन्ध है और कर्म की अवधारणा पर चिन्तन करते भारतीय चिन्तक, प्रारब्ध के बारे में चिन्तन को विवश होते हैं।आखिर ये कैसा चक्र है हम कोई कार्य क्यों करते हैं ? हमारे किसी कार्य का निमित्त बनने का कारण क्या हमारा प्रारब्ध है या दैवयोग या उस समय विशेष की मनोदशा ये सारे प्रश्न मन को उद्वेलित करते हैं और भारतीय दार्शनिक इन प्रश्नों के उत्तर देते भी हैं जो यथार्थ के काफी करीब लगते हैं पर उसे सामान्य जन के स्तर पर लाकर समझा पाना दुष्कर है। उद्धव जैसी मनोदशा हो जाती है। सामान्य मानव के मस्तिष्क को उद्वेलित करने वाला प्रश्न फिर ठहाका लगाने लगता है कि आखिर जीवन क्या है ?
एक अनुत्तरित प्रश्न – अनुत्तरित प्रश्नों की श्रृंखला विविध मनीषियों की अनगिनत वीरान रात्रियों की हमसफर रही है बहुत से विचारकों ने जाड़े ,गर्मी और बरसात की अनेक रात्रियो में जागरण कर इन प्रश्नों के जवाब तलाशने के प्रयास किये हैं परिणाम स्वरुप ढेर सारे विश्लेषणात्मक लेख पढ़ने को मिलते हैं इन सब की यात्रा हमें मंजिल की और बढ़ाती है पर मंजिल पर पहुँचा नहीं पाती। इन प्रश्नों की लड़ी का मुख्य प्रश्न हमें फिर चिढ़ाता है – जीवन क्या है ?
ज्ञान की विविध शाखाएं और मूल प्रश्न – सम्पूर्ण मानवों को विज्ञान, वाणिज्य और कला के खाँचों में रखने का प्रयास किया गया और सभी ने विविध विषय वस्तुओं के अध्ययन के साथ, इस मूल प्रश्न के समाधान का प्रयास किया। कुछ विचारकों ने उत्तर न दे पाने के कारण प्रश्न को ही ‘बकवास’ कहना प्रारम्भ किया लेकिन प्रश्न से भाग जाना प्रश्न का हल नहीं हो सकता। यह पलायन वादिता शीघ्र समझ में आ गयी।
जीवन वह कालावधि है जिसमें श्वासों का निरन्तर आवागमन बना रहता है और हम एक ही शरीर धारण करे रहते हैं। – इस आलोक में तलाशने पर लगता है कि क्या जीवन का कोई मन्तव्य और गन्तव्य नहीं है क्या हम अनायास ही जीते हैं और मानव भी पशुवत जीवन के रंगमंच पर मात्र एक कठपुतली है क्या अरबों खरबों जीवों को नचाने वाली ताक़त इसे केवल इस लिए कर रही है कि लीला सम्पन्न की जा सके। क्या इसका आदि अन्त कुछ समझ में आता है क्या इन प्रश्नों के कोई शिरे नहीं हैं।
ज्ञान के महासागर में ज्ञान के मोती तलाश रहे मनीषियों के बीच इस प्रश्न के रूप में बाधा रुपी पर्वत दीर्घकाल तक अविचलित खड़ा रहने वाला है। बहुत सारे गोल गोल उत्तरों में यह साधारण सा लगने वाला प्रश्न मुस्कुराता सा दीख पड़ता है। हमारी कई पीढ़ियां सरल उत्तर तलाशने के क्रम में कालकवलित हो चुकी हैं। दिन रात के चिन्तन का क्रम, जंगल और तंग कोठरियों का सूक्ष्म विवेचन, विविध प्रयोग शालाओं और विविध कार्य शालाओं में सर पर मँडराता यह प्रश्न वह समाधान कब प्रस्तुत कर पायेगा जो सामान्य समझ की परिधि में लाया जा सके।
रँगमञ्च और यह प्रश्न – ‘जीवन क्या है ?’ -इस प्रश्न के उत्तर की तलाश ऋषियों, मनीषियों, देशी विदेशी विज्ञजनों, विविध विश्लेषकों और संस्थाओं ने अपने अपने ढंग से की है साथ ही हमारी फ़िल्में, हमारा रङ्गमञ्च भी इस प्रश्न का माकूल जवाब खोजना चाहता है जीवन को इस क्रम में जिंदगी भी कहा गया। फ़िल्मी गीतों और ग़ज़लकारों ने इस सम्बन्ध में क्या कहा थोड़ा सा दृष्टिपात करते हैं इस ओर –
“व्हाट इज लाइफ” जॉर्ज हैरिसन की ट्रिपल एल्बम ‘आल थिंग्स मस्ट पास’ का वह गाना है जो इस अंग्रेजी रॉक संगीतकार ने 1970 में दिया। इसने संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़र लैण्ड में तहलका मचा दिया और दूसरे एकल के रूप में 1971 के टॉप टेन में शीर्षस्थ स्थान पर रहा। यूनाइटेड किंगडम में यह ‘माय स्वीट लॉर्ड’ के बी साइड के रूप में दिखाई दिया जो 1971 का सबसे अधिक बिकने वाला एकल था।
गीतों में जीवन दर्शन को दर्शाने से पहले गहन शोध की गई। ‘जीवन क्या है ?’ तलाशते और इसके आसपास विचरण करते कुछ गीतों के बोल इस प्रकार हैं –
01 – जिन्दगी एक सफर है सुहाना
02 – जिन्दगी हर कदम एक नई जंग है
03 – कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना
04 – मुसाफिर हूँ यारो, न घर है न ठिकाना
05 – आने वाला कल जाने वाला है
06 – जिन्दगी के सफर में बिछड़ जाते हैं जो मुकाम
07 – जैसी करनी वैसी भरनी
08 – आदमी मुसाफिर है आता और जाता है
09 – मंजिलें अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह
10 – गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है।
इसके अलावा भी इस सम्बन्ध में बहुत कुछ जानने का अविरल क्रम रहा है असल में इस प्रश्न के साथ दर्शन इतना गुत्थमगुत्था है कि जनमानस समझ नहीं पाता कि जीवन क्या है ? किसी ने कितना सुन्दर कहा –
रात अंधेरी, भोर सुहानी, यही ज़माना है
हर चादर में दुःख का ताना, सुख का बाना है
आती साँस को पाना, जाती सांस को खोना है
जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है
दो आँखों में एक से हँसना,एक से रोना है
जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है।
अपनी स्मृति के आधार पर किसी विशिष्ट अज्ञात विद्वान् की मुझे प्रिय पंक्तियाँ इस सम्बन्ध में आपके समक्ष परोसने का प्रयास करता हूँ –
जीवन क्या है कोई न जाने, जो जाने पछताए
माटी फूलों में छिपकर महके और मुस्काये
माटी ही तलवार का लोहा बनकर खून बहाये
एक ही माटी मुझमें तुझमें रूप बदलती जाए
जीवन क्या है कोई न जाने, जो जाने पछताए .
जीवन क्या है ? वास्तव में एक दुष्कर प्रश्नों में से एक है संसार में अनेक जिज्ञासु यह जानना चाहते हैं पर यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है आप क्या सोचते हैं इसके बारे में, ज़िन्दगी की यह तलाश यदि कोई संभावित उत्तर दे तो अवश्य मेरे से साझा कीजियेगा बहुत से विज्ञ जनों तक पहुंचेगा। तब इसे इन पँक्तियों के प्रश्नों की तरह अनुत्तरित माना जाएगा।
ताल मिले नदी के जल में
नदी मिले सागर में
सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना
सूरज को धरती तरसे, धरती को चन्द्रमा
पानी में सीप जैसी प्यासी हर आत्मा,
ओ मितवा रे
बूँद छिपी किस बादल में, कोई जाने ना
आशा ही नहीं विश्वास है कि इस प्रश्न का सम्भावित उत्तर आपके द्वारा मुझसे साझा किया जाएगा।