इक छोटी सी ठठरी थीं,

यहाँ पर  बैठी रहती थीं,

लोगअभिवादन करते थे,

वो नेह संजोए रखती थीं।  

छोटा मुख भोलीभाली थीं,

मुस्कान सजाए रखतीं थीं,

लोग  सलवटें  निरखते थे,

अनुभवी पिटारी लगती थीं।

धीमे लघु पद चलती थीं,

धवल वसन में रहती थीं,

उनको दादीजी कहते थे,

बहुत ही प्यारी लगती थीं।

पोपले मुँह की हस्ती थीं,

अनुभव साझा करती थीं,

उनकी आँखें  लखते  थे,

चश्मे से झाँका करती थीं।

वो गीता पढ़ती रहती थीं,

कृष्ण,कृष्ण ही कहती थीं,

लोग पद वन्दन  करते थे,

वह  निहाल हो जाती थीं।

गुजर गईं, वो सच्ची  थीं,

चौकी पर बैठी रहती थीं,

अब तो तस्वीर देखते हैं,

दादी कितनी अच्छी थीं।     

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