गौरी नन्दन मन से तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

सच कहूँ गौरी-सुत,  एहतिराम करता हूँ।।

दर्शन की तमन्ना है सो इन्तज़ार करता हूँ।

शुभम भाव से क्षमता भर कार्य करता हूँ।।

दोस्तों, दुश्मनों, विघ्नों मध्य मैं विचरता हूँ।

विघ्नविनाशक हैं साथ सो मैं दम्भ भरता हूँ।।

विद्या के मन्दिर में जा,जाकर मैं सँवरता हूँ।

विद्यावारिधि आशीष से ही  मैं निखरता हूँ।।

एकदन्त अपनेआप को कुर्बान करता हूँ।

ईशान पुत्र तेरा ध्यान, बारम्बार करता हूँ।।

कार्य पूर्व प्रथमेश्वर का अवलम्ब रखता हूँ।

दूर्जा कृपा से कार्य सिद्धि बिम्ब रखता हूँ।।

मङ्गलमूर्ति से मंगल का खजाना भरता हूँ।

रिक्त नहींहोता कितनाभी रिक्त करता हूँ।।

शिवपुत्र ,वक्रतुण्ड हरवर्ष प्रयास करता हूँ।

एकाक्षर,रुद्रप्रिय आओगे विश्वास करता हूँ।।   

Share: