बचपन से भय रोपा जाता, वह ही वृक्ष बन जाता है,

जो डर उनपर थोपा जाता, वह डर घर कर जाता है,

परीक्षा का हौवा बन जाता, बालमन घबरा जाता है,

जो भी उन्हें बताया जाता वह सब डर में दबजाता है।

अभय से अपना नाता है, हाँ अभय से अपना नाता है ।1।

मातपिता का डर बन जाता भोला मन सहमा जाता है,

जो कुछ उन्हें बताया जाता वह सब डर में दब जाता है,

बचपन से जो भय रोपाजाता वह ही वृक्ष बन जाता है,

जो कुछ उन्हें बताने जाता, सब ही मन में रह जाता है।

अभय से अपना नाता है, हाँ अभय से अपना नाता है । 2।

अन्तर्मुखी व्यक्तित्व बन जाता सब मन में रह जाता है,

दुनियाँ से जो बाँटना चाहता अन्तर्मन में घुट जाता है,

बालक जब वयस्क बनता गुस्सा मन पर छा जाता है,

जिसने उसे डराया होता,  सब पर भारी पड़ जाता है।

अभय से अपना नाता है, हाँ अभय से अपना नाता है ।3।

प्रेम सौम्यसाधन बनता, ये  अभय बीज बन जाता है,

मार्ग सुमार्ग बनता जाता, अच्छा रास्ता बन जाता है,

जो भय ना करवा पाता वो प्रेम सहज करवा जाता है,

भय से रूखापन बढ़ता अपनापन प्रेम बढ़ा जाता है।

अभय से अपना नाता है, हाँ अभय से अपना नाता है । 4 ।

प्रेम प्रगति कारण बन जाता मार्ग विकास बन जाता है,

पथ का हर शूल खो जाता सरल मार्ग तब बन जाता है,

सारा पतन भाव दब जाता, समत्व भाव बढ़ता जाता है,

जो अब तक था दूर भागता वो सब घर वापस आता है।

अभय से अपना नाता है, हाँ  अभय से अपना नाता है । 5 ।

दम्भ सुगंध ना फैलापाता, प्रेम सुरभि फैला जाता है,

यह है हर रस का दाता उसका प्रश्रय बढ़ता जाता है,

आनन्द का दर्शन हो जाता परमानन्द सहज भाता है,

भय होता घमंड प्रदाता’नाथ’ अभय सिखला जाता है।

अभय से अपना नाता है, हाँ अभय से अपना नाता है । 6 ।

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