शनैः  शनैः कर सारी उम्र निकल जाती है,

बचपन यात्रा शुरू हो शिखर तक जाती है,

यात्रा है चेतना की, पर चैतन्य न बनाती है,

होश आता जब, जीवन साँझ घिर आती है ।1।

शनैः  शनैः कर सारी उम्र ………..

बाललीला सुनो पूर्णतः प्रेम में पग जाती है,

हँसी ठिठोली खेल में, यूँ ही गुजर जाती है,

भौतिक तान में शेष कसर निकल जाती है,

ये भौतिक ज्ञान बन, हमसे चिपक जाती है ।2।

शनैः  शनैः कर सारी उम्र ………..

किशोरअवस्था यौवन देहरी बताई जाती है,

फिर न कुछ सूझे कल्पना सिरचढ़ जाती है,

सपनों की उड़ान,यथार्थ से फिसल जाती है,

जीवन के यथार्थ से, अक्सर दूर ले जाती है ।3।

शनैः  शनैः कर सारी उम्र ………..

बन्धन शुरुआत गठ – बन्धन से हो जाती है,

समस्या शुरू होती सुध बुध ना आ पाती है,

होकर शुरू नवचक्र इस जग में भरमाती है,

समय सोचने का न मिलता जग करामाती है । 4।

शनैः  शनैः कर सारी उम्र ………..

जरा, जरा करते हुए ज़रावस्था आ जाती है,

साथ में बहुरङ्गी, विविध रोग लिए आती है,

भाँति भाँति के शारीरिक कष्ट ये दिलाती है,

दैहिक, दैविक, भौतिक ताप ये बढ़वाती है ।5।

शनैः  शनैः कर सारी उम्र ………..

मृत्यु क्षण निकट आता तब समझ आती है,

आध्यात्मिक ज्ञान व योग बहुमूल्य थाती है,

जीवन भौतिकता से, यथार्थ पर ले जाती है,

कार्मिक लेखे के सिवा कुछ न साथ जाती है ।6।

शनैः  शनैः कर सारी उम्र निकल जाती है

 उम्र निकल जाती है , उम्र निकल जाती है ।

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