शुचिता का उच्च मानदण्ड दाग कैसे दे सकता है।
भीड़
जुटाने खातिर नंगापन नाही ले सकता है।
दुर्गुण
बढ़ने से पहले सबजन यही विचार करो।
कोई
दुर्जन पापी मर्यादा में कब रह सकता है।
विज्ञ
जनों का मञ्च फूहड़
पन कैसे दे सकता है
।1।
अपशब्दों
का भद्रों से संगम कैसे हो सकता है।
पावस
नैय्या कीचड़
में कोई कैसे खे सकता है।
वाणीपुत्र
मर्यादाधर गाम्भीर्ययुक्त विचार करो।
प्रचण्ड
मात्रा में विकार कोई कैसे दे सकता है।
विज्ञजनों
का मञ्च फूहड़ पन कैसे दे सकता है ।2।
चिन्तन
शुद्ध प्रबुद्ध
रहे स्तर कैसे खो सकता है।
अतीत
का श्रेष्ठतम प्रतिमान कैसा हो सकता है।
ज्ञानशिल्पियों, निजकौशल से शौर्य प्रकाश करो।
वर्तमान
कालखण्ड का ओज,
नहीं खो सकता है।
विज्ञजनों
का मञ्च फूहड़ पन कैसे दे सकता है ।3।
भारत
यौवन भटक,
मदिरा में कैसे खो सकता है।
वाणीआचार्य, संघर्ष का जज्बा कैसे खो सकता है।
आराम
का वक़्त नहीं,
शैय्या तज तेज प्रचार करो।
गैरों
के भरोसे नहीं रहो, तभी काम हो सकता है।
विज्ञ
जनों का मञ्च फूहड़ पन कैसे दे सकता है ।4।
देवालय
हों और देव न हों, ये कैसे हो सकता है।
धर्मध्वज
धारनेवाला,
विदूषक कैसे हो सकता है।
आवाहन
माँ शारदे का,
दुर्गे सा शक्तिप्रसार करो।
सिंहावलोकन
वाला नर,
गीदड़ कैसे हो सकता है।
विज्ञ
जनों का मञ्च फूहड़ पन कैसे दे सकता है ।5।
भावी
मार्ग दर्शक,
प्रगति पथ कैसे खो सकता है।
आतंकवादिता
का जज्बा,
गुण्डों में हो सकता है।
प्रलयंकारी
हुँकार सहित,
भटकों का संहार करो।
देश
को दंश देने वाला, यहाँ कैसे रह सकता है।
विज्ञजनों
का मञ्च फूहड़ पन कैसे दे सकता है।6।
राष्ट्र
प्रेम की ताक़त, जन
जन कैसे ले सकता है।
जनगणमन
का उत्थान,
सोचो कैसे हो सकता है।
दुर्घटना
होने से पहले,
दुष्टों पर तीव्र प्रहार करो।
बलवाहक
अन्न प्रदाता,
दुर्बल कैसे हो सकता है।
विज्ञ
जनों का मञ्च फूहड़ पन कैसे दे सकता है।7।
कलम
की ताक़त से, मन
में साहस भर सकता है।
सोच
सकारात्मक हो, जन
गण मन जग सकता है।
धीर
वीर प्रतिमानों का, मिलजुलकर सम्मान करो।
वीरोचित
गुणधारक,
प्रतिगामी कैसे हो सकता है।
विज्ञ
जनों का मञ्च फूहड़ पन कैसे दे सकता है।8।