दाने दाने पर लिखा  नाम मिटा देते हैं लोग,

इक दूजे के हिस्से के दाने चुरा लेते हैं लोग,

पर उपदेश कुशल बहुतेरे को सही मानकर,

परवरदिगार को भी चूना लगा देते  हैं लोग।1

जाने क्यों धर्म को भी धन्धा बना देते हैं लोग,

सिद्धान्त कुछ है कुछ और बता देते हैं लोग,

सही आशय को बस खुद की बपौती मानकर

आवाम के घरद्वार को सूना बना देते हैं लोग।2 

बस ये खता है कि शिक्षा नहीं पा पाए लोग,

सीधे लोगों को गलत राह दिखा देते हैं लोग,

खुद को भगवान की, अमर रचना मानकर,

बहुत से गरीबों की हस्ती मिटा देते हैं लोग।3

बहुत कम ही मंजिलों, का पता देते हैं लोग,

ज्यादातर गुमराह कर, सबको धता हैं लोग,

क्या सही है क्या नहीं इस सभी को जानकर,

जाने क्यों पथिकों को गलत पता देते हैं लोग।4

चिल्ला चिल्ला के झूठ सच दबा देते हैं लोग,

सच दबाने हेतु सारा, जोर लगा देते हैं लोग,

सत्य को भ्रमित करने की, निश्चित ठानकर,

जाने कैसे नए नए, बहाने बना देते हैं लोग।5

गलत होता देखके खुदको बचा लेते हैं लोग,

उनका नम्बर आएगा क्यों भुला देते हैं लोग,

ईश्वर के दरबार में होता है, न्याय जान कर,

उसे खुदसा मानके प्रसाद चढ़ा देते हैं लोग।6

  

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