मानव का मानवता से मिलन हो रहा है।
कालिमा का निजमन से गमन हो रहा है।
सद्भाव से सरल मन का सृजन हो रहा है।
भूमण्डल पर ‘क्षमापर्व’ वरण हो रहा है।
मानव का मानवता से मिलन हो रहा है।
कालिमा का निजमन से गमन हो रहा है।
सद्भाव से सरल मन का सृजन हो रहा है।
भूमण्डल पर ‘क्षमापर्व’ वरण हो रहा है।
काले बादल, ठण्डी हवा ,महाविद्यालय से वापसी का समय ,अनायास मेरी निगाह ऊपर उठी और लगा कि बादलों के रूप में एक समुद्र ऊपर से झाँक रहा है बादल फटने का दृश्य मेरे जेहन में कौंध उठा ,जब मैंने उन यादों को झटकना चाहा तो मेरी कड़कड़ाती ठण्ड में हुई ‘मैदान से वार्ता’ जीवन्त हो उठी। प्रस्तुत हैं स्मृति पटल से उस वार्ता के प्रमुख अंश