खिलखिलाकर, मुस्कुराकर, हँस दिखाना चाहिए,
सारा परि आवरण ही, खुशग़वार बनाना चाहिए,
परीक्षा बोझ नहीं है, व्यवहार से दिखाना चाहिए,
धैर्य युक्त, दृढ़ लगन से व्यवहार निभाना चाहिए।
परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।1।
पाठ्यक्रम को समयबद्ध सहज निपटाना चाहिए,
आज का कार्य, कल ऊपर नहीं टिकाना चाहिए,
समय कम है, पढ़ना अधिक न घबराना चाहिए,
यथा सम्भव अधिगम कर विश्वास जगाना चाहिए।
परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।2।
विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों को पुनः दोहराना चाहिए,
रटना पर्याप्त नहीं अतः चिन्तन में लाना चाहिए,
गर सम्भव है तो अन्य को वह समझाना चाहिए,
जो ज्ञाननिधि है पास, सब ही बाँट आना चाहिए।
परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।3।
स्वच्छ, निर्मल मन से परीक्षा कक्ष जाना चाहिए,
पावन आचरण, शुचिता से कर्म निभाना चाहिए,
कर्म को युग-धर्म बना व्यवहार में लाना चाहिए,
स्व आदर्श, स्थापन कर जग को दिखाना चाहिए।
परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।4।
अस्तित्व रक्षा, ज्ञान इच्छा सामञ्जस्य बैठाना चाहिए,
अवसाद सी नकारात्मकता जड़ से मिटाना चाहिए,
महाराणा, लक्ष्मीबाई, शिवाजी मन में छाना चाहिए,
कण्टकाकीर्ण पथ से दिव्य ज्ञानमार्ग बनाना चाहिए।
परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।5।
अभाव में प्रभाव का प्रत्यक्षीकरण कराना चाहिए,
पूर्ण मनोयोग व जीवट से तन-मन लगाना चाहिए,
स्मरण कर स्व ईष्ट का लक्ष्यहित लगजाना चाहिए,
आत्म विश्वास से परीक्षा में ‘नाथ’ पार पाना चाहिए।
परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।6।