विश्व आत्महत्या दिवस मानव चिन्तन को झकझोरता है। वर्तमान में होने वाली आत्महत्याएँ मानव मन की त्रासदी का दुःखद सोपान हैं। आज विषम स्थितियों के कारण हम यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए। आइये, आपको दोनों से रूबरू कराता हूँ –
ये देखो अब कैसा चलन हो रहा है, सुधा का गरल से मिलन हो रहा है, ये मानस में क्यों विष वमन हो रहा है, जलाने को जीवन यतन हो रहा है।
जिन्दादिली का पतन हो रहा है, जीवन का तन से गमन हो रहा है, जाना तो होता है एक दिन सभी को, बिना मृत्यु के पर गमन हो रहा है।
इस दुनिया को देखो ये क्या हो रहा है, अकारण मरण का जतन हो रहा है, माँ रो रही है, पिता रो रहा है, अकाल मृत्यु का अवतरण हो रहा है।
क्या ये सामाजिक पतन हो रहा है, मूल्यों में अजब अवनमन हो रहा है, निराशा घुटन अवतरण हो रहा है, जीवन का देखो हरण हो रहा है।
क्यों कालिमा को नमन हो रहा है, मृत्यु का जबरन वरण हो रहा है, जीवन का कैसा दमन हो रहा है, स्वहत्या का क्यूँ आचरण हो रहा है।
आपने अभी वह देखा जो हो रहा है , अब देखिये कि होना क्या चाहिए –
जिन्दादिली का दिल में स्थान होना चाहिए, ना जिन्दगी को इतना परेशान होना चाहिए, ना सोच का मोहल्ला वीरान होना चाहिए, दिलों में जिन्दगी का अरमान होना चाहिए।
समस्याओं से जूझने का जज्बात होना चाहिए, तल्खियों का भी इस्तकबाल होना चाहिए, समस्या कैसी भी हो, दो-चार होना चाहिए, जूझकर समस्या का समाधान होना चाहिए।
बेशकीमती है जीवन, इसे ना खोना चाहिए, हर मुश्किल के हल का विश्वास होना चाहिए, परेशां होकर जीवन में ना यूँ रोना चाहिए, विषम स्थिति में जीने का हौसला होना चाहिए।
इन्सान को इन्सान की फितरत न खोना चाहिए, समस्याओं की आँधी का खैरमकदम होना चाहिए, अंधड़ का पूरी हिम्मत से दमन होना चाहिए, जूझकर जिंदगी का वरण होना चाहिए।
मानवीय-स्वभाव में ना क्रन्दन होना चाहिए, संघर्षशील विचारों का तो वन्दन होना चाहिए, सकारात्मकता पर मानस में मन्थन होना चाहिए, आत्महत्या के खिलाफ गहन चिन्तन होना चाहिए।