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काव्य

परीक्षा रूपी उत्सव को………………

July 24, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

खिलखिलाकर, मुस्कुराकर, हँस दिखाना चाहिए,

सारा परि आवरण ही, खुशग़वार बनाना चाहिए,

परीक्षा बोझ नहीं है, व्यवहार से दिखाना चाहिए,

धैर्य युक्त, दृढ़ लगन से व्यवहार निभाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।1।

पाठ्यक्रम को समयबद्ध सहज निपटाना चाहिए,

आज का कार्य, कल ऊपर नहीं टिकाना चाहिए,

समय कम है, पढ़ना अधिक न घबराना चाहिए,   

यथा सम्भव अधिगम कर विश्वास जगाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।2।

विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों को पुनः दोहराना चाहिए,

रटना पर्याप्त नहीं अतः चिन्तन में लाना चाहिए,

गर सम्भव है तो अन्य को वह समझाना चाहिए,  

जो ज्ञाननिधि है पास, सब ही बाँट आना  चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।3।

स्वच्छ, निर्मल मन से परीक्षा कक्ष जाना चाहिए,

पावन आचरण, शुचिता से कर्म निभाना चाहिए,

कर्म को युग-धर्म बना व्यवहार में लाना चाहिए,

स्व आदर्श, स्थापन कर जग को दिखाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।4।

अस्तित्व रक्षा, ज्ञान इच्छा सामञ्जस्य बैठाना चाहिए,

अवसाद सी नकारात्मकता जड़ से मिटाना चाहिए,

महाराणा, लक्ष्मीबाई, शिवाजी मन में छाना चाहिए,

कण्टकाकीर्ण पथ से दिव्य ज्ञानमार्ग बनाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।5।

अभाव में प्रभाव का प्रत्यक्षीकरण कराना चाहिए,

पूर्ण मनोयोग व जीवट से तन-मन लगाना चाहिए,

स्मरण कर स्व ईष्ट का लक्ष्यहित लगजाना चाहिए,

आत्म विश्वास से परीक्षा में ‘नाथ’ पार पाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।6।

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Uncategorized•वाह जिन्दगी !

संस्थान सही हाथों में है। 

February 17, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गर संस्था खुद परिवार बने, संस्थान सही हाथों में है।

छल और प्रपञ्च से दूर रहे,  संस्थान सही हाथों में है।

यह सच है, दुनिया वाले, पथ में कण्टक बिछवायेंगे।

गर उन सबसे बच के निकले, संस्थान सही हाथों में है। ।1।

मानवीय मूल्य का ख्याल रखे, संस्थान सही हाथों में है।

यदि भूल के भी भटकाव न हो, संस्थान सही हाथों में है।

जब हम दायित्व निर्वहन कर, संस्था को उन्नत बनाएंगे। 

कर्म को उचित सम्मान मिले, संस्थान सही हाथों में है। ।2।

जब दिन प्रतिदिन परवान चढ़े, संस्थान सही हाथों में है।

जब वह समाज की दिशा गढ़े, संस्थान सही हाथों में है।

हमसब समाज संग मिलकर के यह करतब दिखलाएंगे।

जब सभी कर्त्तव्य निर्वहन करें, संस्थान सही हाथों में है। ।3।

सब भेद – भाव को भूल चलें, संस्थान सही हाथों में है।

ना जातिवाद को प्रश्रय मिले, संस्थान सही हाथों में है।

आवाहन और सौगन्ध यही हिलमिल समरसता लाएँगे।

पावन परिवार का साथ मिले, संस्थान सही हाथों में है। ।4।

चापलूसी को न जगह मिले, संस्थान सही हाथों में है।

मर्यादा रीति और नीति बढे ,संस्थान सही हाथों में है।   

संस्था की मान प्रतिष्ठा हित नित कदम उठाए जाएंगे।

संस्था को नवसम्मान मिले , संस्थान सही हाथों में है। ।5।

हो वादों का अम्बार नहीं, संस्थान सही हाथों में है।

निष्ठा को उसका मूल्य मिले,संस्थान सही हाथों में है।   

निष्ठा, लगन, उत्साह सहित पथ प्रशस्त कर जाएंगे।

स्वप्नों का नाथ किला न ढहे, संस्थान सही हाथों में है।।6।

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वाह जिन्दगी !

जीवन की समस्याओं का समाधान(Solution of life’s problems)

February 15, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

समस्या = आवश्यकता – साधन

जब हमारी आवश्यकताओं की अधिकता हो और साधन ओछे पड़ जाएँ तो जन्म होता है समस्या का।

ऐसा कोई नहीं, जिसे समस्याओं का सामना न करना पड़ा हो। हर एक की समस्या का स्तर उसकी आवश्यकता के अनुसार भिन्न भिन्न होता है लेकिन हम सबको समस्या से जूझना चाहिए और पलायनवादिता से बचना चाहिए।

यहाँ समस्या को धराशाई करने के आठ उपाय आपकी नज़र हैं –

1 – जिन्दादिली – जिन्दादिली का यह गुण समस्या के प्रभाव में आश्चर्यजनक कमी लाता है वास्तव में हमें हमारी समस्या हमारे डर के कारण बड़ी दिखती है उतनी बड़ी होती नहीं। लाखों लोग उससे विषम परिस्थिति में आनन्द से जी रहे हैं। कारण है उनकी जिन्दादिली, किसी ने ठीक ही कहा है –

 जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।

2 – मौन – मौन एक अद्भुत जादुई शब्द है और इसका प्रयोग हमें असीमित ऊर्जा से भर देता है। याद रखें हम स्वयम् ऊर्जा के अजस्र स्रोत हैं, जब हम शान्त चित्त होकर समस्या समाधान का प्रयास, चिन्तन मनन और आत्मिक शक्ति के आधार पर करते हैं तो समस्या छू मन्तर हो जाती है। मौन से हम सारी शक्ति अन्तः केन्द्रित कर लेते हैं और समस्या का निदान हो जाता है। 

3 – मानसिक शक्ति – मानस की शक्ति ही आत्म विश्वास का आधार हुआ करती है याद रखें समस्या है तो समाधान है। मानस की शक्ति ने पहाड़ में से रास्ते बनाये हैं, दुर्गम क्षेत्र विजित किए हैं आपकी मानसिक शक्ति आपके मानस का वह उत्थान कर सकती है की समस्या का पूर्ण विलोपन हो जाए। मानस की शक्ति स्वयम् पर ऐसा विश्वास जगाती है की हम मौत के मुँह से जिन्दगी छीन लेते हैं।

4 – आध्यात्मिक अवलम्बन – हमारे सबके अपने अपने ईष्ट हैं जो हमारी परम शक्ति के द्योतक हैं। इन पर दृढ़ विश्वास अद्भुत उल्लासमई जीवन शक्ति प्रदान करता है और असम्भव को सम्भव कर देता है, आवश्यकता है अपने ईष्ट पर दृढ़ विश्वास की। वे करुणा निधान हैं और अहैतुकी कृपा करने वाले हैं। सङ्कल्प लीजिए विकल्प मत छोड़िए। समस्या भाग जाएगी।

5 – लगन – लगन या धुन का पक्का व्यक्ति वह कर गुजरता है जिसे तमाम साधन सम्पन्न व्यक्ति भी नहीं कर पाते। आज के तमाम आविष्कार, चाहे आकाश में उड़ने की बात हो या समुद्र के अन्दर यात्रा की, लगन ने ही रास्ता बनाया है। ध्येय निर्धारित कर उसे पाने की लगन व्यक्ति के व्यक्तित्व में वह निखार लाती है जिसे कोई कृत्रिम साधन नहीं दे सकता। लगन की इस शक्ति के आगे समस्या दम तोड़ देती है।

6 – संयम – संयम या धैर्य वह महत्व पूर्ण गुण है जो हमें हारने नहीं देता और चीख चीख कर कहता है एक प्रयास और। विवेकानन्द जी ने धैर्य की ताक़त को महसूस करते हुए कहा – “उठो …… जागो ….. और तब तक मत रुको ; जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”

7 – निरन्तर संघर्ष शीलता – हमेशा संघर्ष को तैयार रहें। ईश्वर को धन्यवाद कहें और निरन्तर प्रयास को अपना स्वभाव बना लें। मन्थन की निरन्तरता दूध से घी और समन्दर से अमृत निकाल सकती है। छोटी छोटी समस्या तिनके के मानिन्द कब उड़ गईं पता तब चलेगा जब लोग कहेंगे कि जीवट हो तो उस निरन्तर संघर्ष शील व्यक्ति जैसा।

  8 – समस्या समाधान का विश्वास – समस्या के समाधान का हमें पूर्ण विश्वास होना चाहिए। याद रखें समस्या  समाधान का कोई न कोई रास्ता होता अवश्य है। सम्यक योजना बनाएं। ठीक ही कहा गया है कि –

रास्ता किस जगह नहीं होता

सिर्फ हमको पता नहीं होता।

छोड़ दें डरकर रास्ता ही हम

यह  कोई रास्ता नहीं होता ।

            अन्त में समस्त मानवता का आवाहन है कि पूर्ण क्षमता से समस्या का सामना करें आप अवश्यमेव विजित होंगे। शोणित के ज्वार को दिशा देतीं अनाम पंक्तियाँ –

आरम्भ जब जो कुछ किया, हमने उसे पूरा किया।

था जो असम्भव भी उसे सम्भव हुआ दिखला दिया।

कहना हमारा बस यही था,  विघ्न और विराम से।

कर के हटेंगे, हम कि अब, मर के हटेंगे काम से।

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