सृष्टि का आधार सृजन और प्रलय है,जड़ जंगम,सागर,ग्रह उपग्रह ,समस्त भावनाओं,विनाश लीलाओं गर्वीले भाषण,युद्धोन्माद के आदि और अन्त का निरीक्षण हमें बताता है कि अन्ततः सब मिट्टी है।
सृष्टि का आधार सृजन और प्रलय है,जड़ जंगम,सागर,ग्रह उपग्रह ,समस्त भावनाओं,विनाश लीलाओं गर्वीले भाषण,युद्धोन्माद के आदि और अन्त का निरीक्षण हमें बताता है कि अन्ततः सब मिट्टी है।
परमात्म ने अनगढ़ पात्र में प्रेम रस उलीचा है,
पथ है यह कण्टकाकीर्ण या सुन्दर गलीचा है ?
प्रेमान्जलि है मातापिता की या सम्बन्ध रीता है?
जगत मध्य अवतीर्ण होना माया का पलीता है।
सम्बन्धों की परिणय बेल माया जनित थाती है,
बुद्धि को हमारी, मिथ्या संसार में उलझाती है,
जीवन है मृगतृष्णा अथवा वासनायुक्त पाती है?
जीवन सुख दुःख है पीड़ा है या मुक्ति बाती है ?
जीवन सुन्दर तनमन संगम या वैरागी साथी है?
गुच्छा है अभिलाषा का या फिर मुक्तिदात्री है ?
भौतिक आशा सञ्चय है या विरक्त सहयात्री है?
ये दलदल है जगती का या दिव्यात्म प्रजाती है?
कालचक्र परिभ्रमण हेतु जीवन नौका जाती है,
रहस्य है ये अनसुलझा कौन दिया को बाती है?
मिट्टी से बनती है काया मिट्टी में मिल जाती है,
काल की अवधारणा विचित्र जाल बिछवाती है।
जीवन धरण की मार्मिकताअबूझ हुई जाती है,
समाधान के विविधमार्ग दार्शनिकता बनाती है।
मृत्यु को तलाशना क्या जीवन की गहनरात्रि है?
या फिर जीवन में तलाशना ईष्ट अभी बाकी है?
जीवन विगत से आगत सम्बन्ध की परिपाटी है,
आशय की तलाश, प्रकृति पुरुष तक जाती है।
क्यों सरल जीवन यथार्थता समझ नहीं आती है?
जीवन सहज यात्रा है,परमात्मा से मिलवाती है।
कायरता पूर्ण किया धमाका, युद्ध नहीं होता,
इससे शौर्य,पराक्रम का इम्तिहान नहीं होता।
घाव लगाकर छिपजाने से सम्मान नहीं होता,
गद्दारों तुम्हें गद्दारी का,क्यों भान नहीं होता।।
भू पर किसी धर्म में, ऐसा तो ईमान नहीं होता।
बुजदिलीपूर्ण किए कार्य का सम्मान नहीं होता।
कथनीकरनी में भेद रखो, गुण गान नहीं होता।
तुम होगए पक्के नमकहराम ये ज्ञान नहीं होता।
बारबार पिटजाने पर भी कोई इल्म नहीं होता,
लाहौर तक पीटा था, तुमको याद नहीं रहता।
ज्यादा पिटने से पाक,होश ठिकाने नहीं रहता,
झूठी बातें करता है और सच याद नहीं रहता।।
नामर्दों का देश हो क्या आतंकी शह पर जीते हो,
गर खुद की ताक़त है तो युद्ध क्यों नहीं करते हो।
छद्मयुद्ध के नाटक को ही श्रृंगार बनाए फिरते हो,
असली माँ का दूध पिया तो जंग से क्यों डरते हो।।
इमरान सुनो हमदर्दी में सच्ची बात बताते हैं,
चीनियों की चाल से, बचने की राह सुझाते हैं।
दोज़ख की जिन्दगी औ भीख से भी बचाते हैं,
झगड़ा छोड़ो बोलो, भारत में विलय कराते हैं।।
ये जिन्दगी गुरूजी क्या से क्या हो गई।
देश के नौजवानों से क्या ख़ता हो गई।
जागे, मेहनत की पर किस्मत सो गई।
राजनीति, बदमाशी की रखैल हो गई।
फालतू बातों में, मुद्दे की बात खो गई।
लोगों में कींच फैंकने की होड़ हो गई।
विवाद में राष्ट्रवाद कीअस्मिता खो गई।
अवसाद से हौसलों की विदाई हो गई।
अच्छे सच्चे सिद्धान्तों को जेल हो गई।
देशविरोधी नारों की विष बेल हो गई।
अच्छे कल की खोज में आज खो गई।
योजना आयोग, नीति आयोग हो गई।
आरोपों, मिथ्यारोपों की बरसात हो गई।
नौकरशाहों की योजना पर घात हो गई।
सम्मान खोकर खादी तो बदनाम होगई।
भारत भाग्यविधाता भी गुमनाम हो गई।
विपरीत ध्रुवों मेंअब गठजोड़ हो गयी।
दुष्टा धैर्य खोकर, आदमखोर हो गई।
मज़बूत नेतृत्व शक्ति से भोर हो गई।
आशा-किरण चमकी, अंजोर हो गई।
वक़्त अपनी ताक़त का अहसास करा देता है,
चाँद और सूरज को भी वो ग्रहण लगा देता है,
इंसान वह है जो हरहालात से टक्कर लेता है,
विषमता को अपने होने का बोध करा देता है।
ब्रह्मा कुछ रचकर, मानव के हाथ नहीं देता है,
मानव जो कुछ लेता,कर्म प्रति-फल में लेता है,
सब कुछ पाने हेतु जगत में एक रस्ता होता है,
धीर पुरुष करके प्रयास बस मार्ग बना लेता है।
का पुरुष रो रोकर, अपना काल, गँवा देता है,
अपने साथ जुड़े स्वजनों की नाव डुबो देता है,
आत्मबली इतने क्षण में, तस्वीर बदल देता है,
काल पे कब्जा कर सुखद संसार बना लेता है।
ईर्ष्या-द्वेष को पाल जी का जंजाल बना लेता है,
ऐसा मानव ग़म का अपना संसार बना लेता है,
दुःख-सुख को जो धैर्य से छांवधूप मान लेता है,
जीवन आवर्तन हैं ये सहज,समत्व भाव लेता है।
यूँ तो राग भैरवी सुबह का सुबोध करा देता है,
पर यही कार्यक्रम समापन का सन्देश देता है,
अतः विज्ञपुरुष मुहूर्त का भ्रमजाल नहीं लेता है,
कर्मवीर,दृढ़निष्ठा से हर मुहूर्त शुभ कर लेता है।