वक़्त अपनी ताक़त का अहसास करा देता है,
चाँद और सूरज को भी वो ग्रहण लगा देता है,
इंसान वह है जो हरहालात से टक्कर लेता है,
विषमता को अपने होने का बोध करा देता है।

ब्रह्मा कुछ रचकर, मानव के हाथ नहीं देता है,
मानव जो कुछ लेता,कर्म प्रति-फल में लेता है,
सब कुछ पाने हेतु जगत में एक रस्ता होता है,
धीर पुरुष करके प्रयास बस मार्ग बना लेता है।

का पुरुष रो रोकर, अपना काल, गँवा देता है,
अपने साथ जुड़े स्वजनों की नाव डुबो देता है,
आत्मबली इतने क्षण में, तस्वीर बदल देता है,
काल पे कब्जा कर सुखद संसार बना लेता है।

ईर्ष्या-द्वेष को पाल जी का जंजाल बना लेता है,
ऐसा मानव ग़म का अपना संसार बना लेता है,
दुःख-सुख को जो धैर्य से छांवधूप मान लेता है,
जीवन आवर्तन हैं ये सहज,समत्व भाव लेता है।

यूँ तो राग भैरवी सुबह का सुबोध करा देता है,
पर यही कार्यक्रम समापन का सन्देश देता है,
अतः विज्ञपुरुष मुहूर्त का भ्रमजाल नहीं लेता है,
कर्मवीर,दृढ़निष्ठा से हर मुहूर्त शुभ कर लेता है।

Share: