ये जिन्दगी गुरूजी क्या से क्या हो गई।
देश के नौजवानों से क्या ख़ता हो गई।
जागे, मेहनत की पर किस्मत सो गई।
राजनीति, बदमाशी की रखैल हो गई।

फालतू बातों में, मुद्दे की बात खो गई।
लोगों में कींच फैंकने की होड़ हो गई।
विवाद में राष्ट्रवाद कीअस्मिता खो गई।
अवसाद से हौसलों की विदाई हो गई।

अच्छे सच्चे सिद्धान्तों को जेल हो गई।
देशविरोधी नारों की विष बेल हो गई।
अच्छे कल की खोज में आज खो गई।
योजना आयोग, नीति आयोग हो गई।

आरोपों, मिथ्यारोपों की बरसात हो गई।
नौकरशाहों की योजना पर घात हो गई।
सम्मान खोकर खादी तो बदनाम होगई।
भारत भाग्यविधाता भी गुमनाम हो गई।

विपरीत ध्रुवों मेंअब गठजोड़ हो गयी।
दुष्टा धैर्य खोकर, आदमखोर हो गई।
मज़बूत नेतृत्व शक्ति से भोर हो गई।
आशा-किरण चमकी, अंजोर हो गई।

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