विद्यालय आने भर से गुरुता का वरण नहीं होता

जब अन्तः तम नहीं मिटे, ज्ञानावतरण नहीं होता।

आज गुरु बनने को कुछ तो तुच्छ मार्ग अपनाते हैं।

टी 0 वी 0 पर चिल्लाने से कोई महान नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता।1।

वेदपाठी मात्र लिख देने से वेदों का ज्ञान नहीं होता।

जीवन खप जाता है फिर भी सच्चा ध्यान नहीं होता।

वाह्य आडम्बर के द्वारा  कुछ खुद को गुरू बताते हैं।

जब तक अन्तर्मन में नहीं घटे कोई गुरू नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।2। 

मात्र नेम प्लेट लगवाने से भी कोई गुरू नहीं होता।

हो गुरुता मानस में तन संस्कार विहीन नहीं होता।

लोग गुरू कहलाने को स्वयम को ही भटकाते हैं।

भटके लोगों का निर्देशन पा  बेड़ा पार नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।3। 

 कैसे होगा कोई गुरू जब संस्कृति संज्ञान नहीं होता।

संस्कृति उन्नयन छोड़ो, खुद का परिमाण नहीं होता।

ढोल नगाड़ा साथ में ले, कुछ लोग मण्डली लाते हैं।

संस्कृतिहीन जो खुद ही हैं उनसे उत्थान नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने  से कोई गुरू नहीं होता ।4। 

मूल्य किसे कहते जग में जब तक ये भान नहीं होता।

कौन मूल्य कब आवश्यक ये हमको ज्ञान नहीं होता।

क्यों कर झूठे आडम्बर हम घटिया जाल बिछाते हैं।

मूल्य विहीन मानवता का कभी कल्याण नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से से कोई गुरू नहीं होता ।5। 

केवल नौकरी हथिया लेना गुरुता लक्ष्य नहीं होता।

नौकर,नौकर ही होता उससे बड़ा कार्य नहीं होता।

वो निज वेतन के चक्कर में बस दिन पूरे कर जाता है।

जो ज्ञान जागरण कर न सके कोई गुरू नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।6। 

गुरु, गुरुता हित तिल तिल स्वअस्तित्व मिटा जाता।

जो कुछ सीखा है जीवन में वह भी सभी बता जाता।

गुरु द्वारा तो बस दे देने के प्रतिमान बनाये जाते हैं।

कालिमा व्यापक कितनी भी है मार्ग बताया जाता।

केवल गुरु पद पा लेने से से कोई गुरू नहीं होता ।7। 

गुरु मन तो आगत पर सर्वस्व न्यौछावर कर जाता।

उत्तम शिष्यों की खातिर वो जी जाता औ मरजाता।

उसकी क्षमता से निश्चित दिनमान ओज उग आते हैं।

इस दिनमान शृंखला द्वारा ही सद्मार्ग बनाया जाता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।8। 

गुरू परि-पाटी मिटने की नहीं दिखावा चल पाता।

शिष्य तपे इससे पहले  गुरु ज्ञानाग्नि में तप जाता।

गुरुता गुरु द्वारा जग को सद् मार्ग दिखाये जाते हैं ।

जो सद् पात्र होता जग में वह है उसपर चल पाता।

केवल गुरु पद पा लेने  से कोई गुरू नहीं होता ।9। 

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