जब भी मिलता है मौका, कुछ तुकबन्दी कर लेता हूँ,

ना मर्यादा से डिगजाऊँ सो तय हदबन्दी कर लेता हूँ,

भारत में कैसे रहना है ये सब मातृभूमि सिखलाती है,

इसलिए स्व शिक्षार्थियों को इकदायरे में रख लेता हूँ।

अदना सा इक कलमकार हूँ गुस्ताखियाँ  कर देता हूँ,

राष्ट्रवाद उन्नति खातिर सिर इस भूमि पर रख देता हूँ,

यहाँ की वायु अति पावन है  बस वन्दन सिखलाती है,

सो सभी बड़ों के चरणों का मैं अभिनन्दन कर लेता हूँ।

बच्चों को सिखलाने खातिर मैं सीख न कुछभी देता हूँ,

जो उनसे करवाना चाहूँ सब पहले खुद ही करलेता हूँ,

यहाँ कर्मों में सद्कर्म परखना माँ घुट्टी में पिलवाती है,

कर्म राष्ट्र हित कौन से हों, बस इतना तय कर लेता हूँ।

इकदम जाँत पाँत सङ्कीर्णता के  मनोभाव तज देता हूँ,

हम सबरे भारत वासी हैं यह जान समझ सुख लेता हूँ,

गंगाजमुनी तहज़ीब समझने को जब बुद्धि इठलाती है,

अर्थों को अच्छी तरह समझ मैं साथ साथ चल लेता हूँ।

यह देश प्रगति की राह बढ़े सो ओछा पन खो देता हूँ,

तेज थपेड़े सह सहकर नौका को सम रस  खे लेता हूँ,

भारत है देश युवा अपना, यह सब दुनियाँ बतलाती है,

यौवन के इस कालखण्ड संग कदमताल कर लेता हूँ।   

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