क्या कहूँ और क्या लिखूँ, संस्कार हैं पिता श्री,
मेरे घर की दुनियाँ के प्राणआधार हैं पिता श्री,
जिस घर में हरदम मुश्किलें झाँका करतीं थीं,
उन समस्त परेशानियों पर, प्रहार हैं पिता श्री।
बाबा कहते मुस्कुराकर, कर्णधार हैं पिता श्री,
हम सब की ख्वाहिशों में कर्जदार हैं पिता श्री,
दादी जब बीमार हो करवटें बदला करती थीं,
दवादारु छोड़दो सब मात्र उपचार हैं पिता श्री।
काम घर,बाहर के जीहाँ कामगार हैं पिता श्री,
झगड़े टंटे हम सबके बस राजदार हैं पिता श्री,
तात श्री के जाने पर जब बहनें रोया करती थीं,
जानते हैं और मानते हैं कि घरद्वार हैं पिता श्री।
समस्याएं कैसी भी हों, पर दरकार हैं पिता श्री,
गलती हम किसी की हो, जिम्मेदार हैं पिता श्री,
मेरेआँगन त्यौहारों में रसधार जो बहाकरती थी,
उस बहती अविरल धार के सूत्रधार हैं पिता श्री।
हम सभी भाई बहनों हित, मजेदार हैं पिता श्री,
गहन वेदना और तपन में, जलधार हैं पिता श्री,
मेरे मन की नौका तो मँझधार में रहा करती थी,
माँझी बन सङ्कट हरण में, मददगार हैं पिता श्री।
माँ कहे आदर सम्मान के, हकदार हैं पिता श्री,
दरकते पुराने घरद्वार के जीर्णोद्धार हैं पिता श्री,
मर्यादा प्रतिमूर्ति माँ शुभचिन्ह धारके कहती थीं,
मेरेमन बगिया उपवन के शुभश्रृंगार हैं पिता श्री।