कैसे पढ़े लिखे हो भाई,

फटे हाल मैं घूम रहा हूँ,

एम बी ए वाले  खुश हो,

पोल तुम्हारी खोलरहा हूँ।

मैं हूँ एक किसान देश का,

खलिहानों से बोल रहा हूँ।

करते हो तुम कैसी व्यस्था

तन पर कपड़े नहीं बचे हैं,

आओ गाँव हमारे देखो,

किन हालों से गुजर रहा हूँ    

मैं हूँ एक किसान देश का,

खलिहानों से बोल रहा हूँ। 

खुद को हम भूखा रखते हैं,

पेट तुम्हारा हम भरते हैं

तुम अपने को शिक्षक कहते

समय तुला पर तौल रहा हूँ      

मैं हूँ एक किसान देश का,

खलिहानों से बोल रहा हूँ।

फिर भी इस हलधर को देखें,

सबकी खातिर उपजाता है,

लालकिला अक्सर कहता है

तेरे हित में सोच रहा हूँ           

मैं हूँ एक किसान देश का,

खलिहानों से बोल रहा हूँ ।

मौसम की मारों को सहते,

हम भी बेबस हो जाते हैं,

क्या हरहाथ को काम मिलेगा

तिलतिल जलकर सोच रहा हूँ               

मैं हूँ एक किसान देश का,

खलिहानों से बोल रहा हूँ।

कल कारखाने भारत वाले

अभियन्ता श्रम से चलवाते हैं,

मिल उत्पादन भी कहता है,

शुभ माल प्रदाता देख रहा हूँ।      

मैं हूँ एक किसान देश का

खलिहानों से बोल रहा हूँ।

 हम पशुसंग दिनभर श्रम कर

घी, दूध, दही भिजवाते हैं,

इनसे बनने वाली निधि से

निज दूरी बढ़ती देख रहा हूँ।         

मैं हूँ एक किसान देश का

खलिहानों से बोल रहा हूँ।

देश में रहने वाले सोचो,

न्यायपूर्ण श्रम हिस्सा दे दो,

मैं स्वधर्म से नहीं डिगूंगा,

सत्य वचन मैं बोल रहा हूँ।           

मैं हूँ एक किसान देश का

खलिहानों से बोल रहा हूँ।

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