राष्ट्रीय एकता वह विचारधारा है जो देश के सभी नागरिकों को सामन्जस्य
पूर्ण तथा सहयोग पूर्ण जीवन यापन हेतु प्रेरित करती है, यही वह भाव है
जो सारी विभिन्नताओं का परित्याग कर राष्ट्रीय हिट में परित्याग हेतु विवश करता है
राष्ट्र के लोगों में भ्रातृत्व, एकीकरण, देश-भक्ति,देश
प्रेम का उद्भव ही राष्ट्रीय एकता का परिचायक है। 1961 में राष्ट्रीय
एकता को ‘राष्ट्रीय एकता सम्मलेन’ में इस प्रकार पारिभाषित किया गया –
“National
Integration is a psychological and educational process involving the
development of a feeling of unity, solidarity, and cohesion in the heart of
people, a sense of common citizenship and a feeling of loyality to the
nation.”- Report of ‘National Integration conference 1961’
” राष्ट्रीय
एकता एक मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा लोगों के दिलों में एकता, संगठन एवं सन्निकटता के भावना,सामान नागरिकता की अनुभूति तथा राष्ट्र के प्रति भक्ति की भावना का
विकास किया जाता है।”
राष्ट्रीय एकता के अर्थ को समझाते हुए डॉ 0 जे 0 एस
0 बेदी कहते हैं –
”National Integration means bringing about economic,
social, cultural and linguistic differences among the people of various states
in the country within tolerable range
and imparting to the people a feeling of the oneness of India.”
”राष्ट्रीय एकता का अर्थ है -देश के विभिन्न राज्यों के व्यक्तियों की
आर्थिक, सामजिक, सांस्कृतिक एवं भाषा विषयक विभिन्नताओं को वांछनीय सीमा के अन्तर्गत
रखना और उसमें भारत की एकता का समावेश करना।”
Need
of National Integration
राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता –
देश की समृद्धि एवं विकास हेतु संकीर्ण मनोवृत्तियों व स्वार्थपरता
का परित्याग कर राष्ट्रीय एकता का समावेशन परमावश्यक है इसीलिये के0 एल 0
श्रीमाली महोदय ने कहा-
“The
process of national integration must continue and be strengthened, if we are to
preserve and enrich our hard one freedom.” – K.L. Shrimali
“यदि
हम मुश्किल से प्राप्त अपनी स्वतन्त्रता की सुरक्षा एवं समृद्धि चाहते हैं, तो हमें
राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया को जारी रखना और शक्तिशाली बनाना पड़ेगा।”
राष्ट्रीय एकता राष्ट्र के अस्तित्व के लिए परमावश्यक है राष्ट्रीय
एकता की समस्या प्रत्येक राष्ट्रवादी को व्यथित करती है इसीलिये डॉ 0 राधाकृष्णन
जी ने कहा –
“National Intrregation is a problem with which our
survival as a civilized nation as a bound up.”- Dr. Radha Krishanan
”राष्ट्रीय एकता एक ऐसी समस्या है, जिससे सभ्य
राष्ट्र के रूप में हमारे अस्तित्व का घनिष्ठ सम्बन्ध है।”
Factors Against National Integration-
राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व –
राष्ट्र को समुन्नत बनाने और विकास की ओर अग्रसर करने हेतु राष्ट्रीय
एकता की परम आवश्यकता है किन्तु भारत में राष्ट्र्रीय एकता के मार्ग में कई बाधाएं
हैं जिन्हे हम इस प्रकार क्रम दे सकते हैं –
Casteism (जातिवाद
) – लोगों का संकीर्ण दृष्टिकोण तथा राजनीतिक दलों का जातीयता भड़काने वाला भाव
लोगों को भ्रमित कर देता है इससे राष्ट्रीयता की भावना को ठेस लगती है,इस
सम्बन्ध में G.S.Ghuriye (जी0 एस0 घुरिये) का विचार है –
“The feeling of casteism creates the feeling of hatred
for other casts and prepares unhealthy atmosphere for the development of
national consciousness.”
“यह जाति प्रेम की भावना है जो अन्य जातियों में कटुता उत्पन्न करती
है तथा राष्ट्रीय चेतना के विकास के लिए अनुपयुक्त वातावरण तैयार करती है।”
Noncivilized
thinking-
असभ्य सोच –
कुछ लोगों की सोच संकीर्णता में इतनी जकड़ी है की वे सभ्य समाज और देश
के भविष्य का चिन्तन न कर केवल खुद का क्षणिक लाभ देखते हैं और भविष्य के सार्थक
क्रिया कलापों की बाधा बन जाते हैं जैसा कि जवाहर लाल नेहरू ने स्पष्ट कहा –
“National Integration and cohesion is a matter of vital
importance today. It is the basic of all other activities which we try to
further.”
“राष्ट्रीय एकता एवं सामंजस्य आज एक महत्वपूर्ण विषय है। यह उन सभी
क्रिया कलापों का आधार है जिन्हे हम भविष्य में करना चाहते हैं।”
Provincialism (प्रान्तीयता) –
भारत के प्रान्तों में स्वस्थ विकासात्मक प्रतिस्पर्धा का अभाव देखने
को मिलता है यह प्रान्तीयता की भावना हिन्सात्मक आन्दोलन व आतंक वाद में परिणित हो
जाती है और राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ जाती है।
Communalism
(साम्प्रदायिकता)-
इस देश की एकता के समक्ष साम्प्रदायिकता बहुत विकराल समस्या के रूप
में उभरी है जो सम्प्रदाय हमारी भारतीय सनातन सभ्यता की उदारता से पनपे वही
अलगाववादी दुष्प्रभाव से युक्त हो विषवमन कर रहे हैं आए दिन साम्प्रदायिक
दंगे की सूचना सम्प्रेषित होती रहती है यह
खूनी होली निर्दोषों की बलि लेती रहती है। राष्ट्रीय एकता के समक्ष यह बहुत बड़ा
खतरा है।
Political
Parties (राजनीतिक दल)-
भारतीय परिदृश्य में निहित स्वार्थ वाले, संकीर्ण
मानसिकता से युक्त राजनीतिक दल अस्तित्व में आ गए हैं जो उत्तेजना,भावनात्मक
उन्माद फैलाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं लेश मात्र भी राष्ट्रवादी भावना से युक्त
नहीं हैं। जाति, सम्प्रदाय, धर्म, भाषा के आधार पर
राष्ट्र को विघटित करने वाले राजनीतिक दलों ने एकता को विघटित करने का कार्य किया है। गैर राष्ट्रवादी दलों से देश की
एकता को बड़ा खतरा है।
Communication
System (संचार व्यवस्था )-
संचार के बहुत से साधन अस्तित्व में आये हैं लेकिन गलत तथ्य
सम्प्रेषण पर रोक की कोइ प्रभावी व्यवस्था नहीं है इसीलिये इन साधनों से अनर्गल
तथ्य दुष्प्रचार कर राष्ट्रीय एकता के समक्ष बाधा उपस्थिति की जा रही है।
Lack
of Effective Leadership (प्रभावशाली नेतृत्व का अभाव) –
परिवार वाद,
भाई भतीजा वाद,
धन ,आपराधिक
मनोवृत्ति आदि नेतृत्व शक्ति पर हावी होकर उन्हें पथ भ्रमित कर देता है,चारित्रिक दृढ़ता
के अभाव में प्रभावशीलता खो जाती है और
देश राजनीतिक अपवंचना का शिकार हो जाता है, घोटाले बाज हावी हो जाते हैं।
कुशल नेतृत्व के अभाव में राष्ट्रवादी चेतना जाग्रत नहीं हो पाती और
राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ जाती है।
Social,
Economic Status (सामाजिक, आर्थिक
स्तर)-
सामाजिक हीन दृष्टिकोण और वास्तविक आर्थिक कमजोरी का दुष्प्रभाव वही
समझ पाता है जिसने इसे भोगा है अस्तित्व रक्षा में लगे मानव से उच्च मूल्य
निष्पादन की आशा कैसे की जा सकती है मूलभूत सुविधाओं से वंचित व समाज की अपवंचना
का शिकार राष्ट्रीय एकता जैसे बिन्दु पर सोच भी नहीं पाता। शोषक धन लिप्सा में और
शोषित अस्तित्व रक्षा को प्रधान मान एकता को तिलाञ्जलि दे देते हैं।
Language
Controversy (भाषा विवाद) –
प्रत्येक विकसित राष्ट्र का राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र गीत, राष्ट्र गान, राष्ट्र भाषा
निर्विवादित है, सनातन
संस्कृति के उदारवादी दृष्टिकोण के चलते ही हिन्दी आज भी राष्ट्र भाषा के रूप में
गरिमामयी स्थान नहीं पा सकी।जबकि सुशीला नायर ने 21 नवम्बर 1967 को लोक सभा डिबेट
में कहा –
“Hindi should be accepted as the common medium of
instruction in all the universities of India.”
“भारत के सभी विश्व विद्यालयों में शिक्षण के सामान्य माध्यम के
रूप में हिन्दी स्वीकृत की जानी चाहिए।”
भाषा के नाम पर पंजाब,असम, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु में
अपमान जनक घटनाएं घटीं। यह विवाद एकता के समक्ष बाधा उपस्थित करता है।
उक्त के अतिरिक्त सांस्कृतिक विविधता, संवैधानिक भूल,
रोजगार नीति व शिक्षा की विफलता भी राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्वों
में शुमार हैं।
Suggestions
to remove the obstacles of National Integration (राष्ट्रीय
एकता की बाधाओं को दूर करने के उपाय) –
सन 1961 में शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार ने डॉ सम्पूर्णा नन्द की अध्यक्षता
में समिति ने राष्ट्रीय एकता हेतु निम्न सुझाव दिए –
(1 )- सभी स्तरों के पाठ्यक्रम में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के अनुरूप
परिवर्तन व सुधार किया जाए।
(2 )- पाठ्य सहगामी क्रिया जैसे राष्ट्रीय महत्त्व की घटनाओं, पर्वों,
खेलकूद
,शैक्षिक भ्रमण, एन ० सी ० सी ०, स्काउट व गाइड,
नाटक,युवा
समारोह आदि का प्रचुर मात्रा में आयोजन किया जाए।
(3)- विश्व
व राष्ट्र की सामजिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का बोध कराया जाए। देशभक्तों व महान
व्यक्तित्वों की कहानियाँ व जीवन वृत्त पढ़ाया जाना चाहिए।
(4)- पाठ्य क्रम में सुधार कर भावात्मक व राष्ट्रीय एकता में वृद्धि की जा
सकती है ,
(5)- राष्ट्र गान, राष्ट्रध्वज, तथा राष्ट्रीय
दिवसों के प्रति सम्मान दिखाया जाना चाहिए।
(6)- प्रतिदिन राष्ट्रीय एकता की प्रतिज्ञा के साथ शुरू होना चाहिए।
Suggestion
of Kothaari Commission (कोठारी आयोग के सुझाव)-
राष्ट्रीय एकता सम्मलेन के पश्चात जो आयोग अस्तित्व में आया वह
कोठारी आयोग था जो शिक्षा को राष्ट्रीय एकता हेतु परमावश्यक मानते हैं उन्होंने
राष्ट्रीय एकता हेतु सुझाव इस प्रकार दिए। –
(1 )- सामान
विद्यालय व समान अवसर प्रणाली सिद्धान्त प्रयुक्त करना।
(2
) -सामान्य
राष्ट्रीय विकास व सामजिक राष्ट्रीय एकीकरण को शिक्षा के सभी स्टारों पर अभिन्न
अंग बनाना।
(3 )- राष्ट्रीय
एकता का सम्यक विकास।
(4 )- सभी
आधुनिक भाषाओं का विकास करते हुए हिन्दी का तीव्र गति से विकास जिससे इसे केंद्र
की सरकारी भाषा का दर्जा मिल सके।
Contribution
of Education (शिक्षा का योगदान) –
संसार की किसी भी समस्या का समाधान करने की महती शक्ति शिक्षा धारण
करती है राष्ट्रीय एकता हेतु भी शिक्षा का आश्रय लिया जा सकता है भारतीय
परिप्रेक्ष्य में निम्न बिंदुओं पर ध्यान देकर राष्ट्रीय एकता की भावना पुष्ट की
जा सकती है –
दर्शन और शिक्षा (Philosophyand Education) – जीवन
के पवित्र आवश्यकताओं की ओर निर्दिष्ट करने वाला प्रमुख कारक दर्शन है यह
सिद्धान्त है तो शिक्षा इसका व्याहारिक पक्ष। दोनों में बहुत घनिष्ट सम्बन्ध है।
जेण्टाइल महोदय ने कहा –
“The belief that men may continue to educate without
concerning themselves with philosophy means a failure to understand the precise
nature of education. The process of education cannot go on right lines without
the help of philosophy.”
“जो व्यक्ति इस बात में विश्वास रखते हैं की दर्शन से सम्बन्ध बनाये
बगैर कोई प्रक्रिया आम रीति से चल सकती है, शिक्षा के
विशुद्ध स्वरुप को समझने में असमर्थता प्रकट करते हैं। शिक्षा प्रक्रिया दर्शन की
सहायता के अभाव में उचित मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकती।”
Butler (बटलर ) महोदय ने कहा –
“Philosophy is a guide to educational practice,
education as a field of investigation yields certain data for philosophical
judgement.”
“दर्शन शिक्षा के प्रयोगों के लिए पथ प्रदर्शक है। शिक्षा, अनुसन्धान
के क्षेत्र के रूप में दार्शनिक निर्णय के लिए निश्चित सामग्री को आधार के रूप में
प्रदान करती है। ”
वस्तुतः दर्शन व शिक्षा एक विशिष्ट सम्मिश्रण है इसीलिए जितने दार्शनिक हुए सभी शिक्षा शास्त्री भी
रहे। बुद्ध, अरस्तु, शंकराचार्य, गाँधी, विवेकानन्द सभी दार्शनिक, शिक्षाशास्त्री
भी रहे।
Impact of philosophy on Education (दर्शन का शिक्षा
पर प्रभाव )–
दर्शन और शिक्षा के उद्देश्य(Philosophy and Aims of education) –
दर्शन का तत्वमीमांसीय आधार मानव जीवन के उद्देश्य अर्थात शैक्षिक
उद्देश्य निर्धारित करता है दर्शन के पथ प्रदर्शन के आलोक में इन्हें प्राप्त किया
जाता है जॉन डीवी कहते हैं –
“Philosophy is concerned with determining the ends of
education.”
“दर्शन का सम्बन्ध शिक्षा के लक्ष्यों को निर्धारित करने से है।”
दर्शन और शिक्षा की पाठ्यचर्या(Philosophy and Curriculum) –
दर्शन के आधार पर ही यह निर्धारित होता है की किस काल में क्या विषय
वस्तु पढ़ानी आवश्यक है और क्या त्याज्य है पाठ्यक्रम स्थाई नहीं है यह काल ,दशा
,आवश्यकता के अनुसार दर्शन निर्धारित करता है इसीलिए रस्क महोदय ने
कहा –
“Nowhere there is dependence of education on philosophy more
marked than in the question of curriculum.”
“शिक्षा, दर्शन पर पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में जितनी निर्भर है, उतनी
अन्य किसी शैक्षिक समस्या के सम्बन्ध में नहीं।”
दर्शन व शिक्षण विधियाँ (Philosophy and
Methods of teaching) –
ये किसी एक शिक्षण विधि के भक्त नहीं थे बल्कि दार्शनिक की
अंतर्दृष्टि द्वारा स्वीकारा साधन मात्र था इसी लिए R. W. Sellers ने
कहा –
“Philosophy is a persistent attempt to gain insight
into the nature of the world and of ourselves by means of systematic
reflection.”
“दर्शन एक ऐसा अनवरत प्रयत्न है जिसके द्वारा हम संसार और अपनी
प्रकृति के विषय में क्रमबद्ध अनुभवों द्वारा अन्तर्दृष्टि प्राप्त करते हैं।”
इसी लिए विभिन्न दार्शनिकों ने
अलग शिक्षण विधियों का समर्थन किया।
सुकरात – वार्तालाप व प्रश्नोत्तर विधि।
रूसो – स्वानुभव व स्वक्रिया द्वारा सीखना।
बेकन – प्रयोग व निरीक्षण
विधि।
हर्बर्ट – पञ्चपदी।
मॉन्टेसरी – इन्द्रिय प्रशिक्षण।
फ्रोबेल – किण्डर गार्टन पद्धति।
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं की आदर्शवादियों ने प्रश्नोत्तर व वाद
विवाद पद्धति ,प्रकृतिवादियों ने इंद्रियों द्वारा सीखने, प्रयोजनवादियों
ने इकाई व प्रोजेक्ट विधि तथा यथार्थ वादियों ने निरीक्षण व स्वानुभव पद्धति को
समर्थन दिया।
दर्शन व अनुशासन (Philosophy and Discipline)–
अनुशासन प्रत्यक्षतः दर्शन से प्रभावित होता है जैसे प्रकृतिवादी
प्राकृतिक परिणामों द्वारा स्वतन्त्रता को स्वीकारते हैं आदर्शवादी अध्यापक के
व्यक्तित्व की प्रभावशीलता से अनुशासन स्थापन चाहते हैं प्रयोजनवादी सामजिक और
सहयोगी क्रिया द्वारा अनुशासन स्थापित करना चाहते हैं Rusk (रस्क ) महोदय ने
कहा –
“Discipline reflects the philosophical prepossessions
of an individual or an age more directly than any other aspect of school
work.”
“विद्यालय कार्य के अन्य किसी पक्ष की अपेक्षा अनुशासन किसी व्यक्ति
या युग की पूर्वधारणाओं को अधिक प्रत्यक्ष रूप से प्रतिबिम्बित करता है।”
दर्शन और पाठ्य पुस्तकें (Philosophy and Textbooks)-
पाठ्यपुस्तकें दर्शन से प्रभावित होकर मानदण्डों के प्रतिनिधि के रूप
में कार्य करती हैं वे बताती हैं की शिक्षक क्या जाने और विद्यार्थी क्या सीखे।
वेस्ले महोदय के शब्दों में -“पाठ्य पुस्तक, मानदण्डों
को प्रतिबिम्बित एवं स्थापित करती हैं यह अधिकतर इस बात का संकेत देती हैं की
शिक्षक को क्या जानना चाहिए और बालकों को क्या सीखना चाहिए। यह शिक्षण विधियों को
प्रभावित करती हैं। तथा विद्वता के बढ़ते हुए मानदण्डों को प्रकट करती हैं।”`
दर्शन और शिक्षक (Philosophy and Teacher )-
क्षेत्र ,समाज,राष्ट्र के अनुरूप शिक्षक का जीवन दर्शन उसके व्यक्तित्व को गढ़ता है
और विद्यार्थियों को दिशा देता है डॉ के 0 एल 0 श्रीमाली के शब्दों में –
“Thus, not merely must the teacher have a philosophy of
education. He must come prepared to develop among his students a philosophy of
life.”
“इस प्रकार शिक्षक का कोई शिक्षा दर्शन अवश्यमेव होना चाहिए केवल यही
नहीं, शिक्षक को छात्रों में जीवन दर्शन का विकास करने के लिए तैयार होकर
इस व्यवसाय में प्रवेश करना चाहिए।”
Influence of Education on Philosophy (शिक्षा
का दर्शन पर प्रभाव) –
शिक्षा, दर्शन के निर्माण का आधार –
शिक्षा के आधार पर ही हमारी भाषा पर पकड़ होती है इसी के द्वारा हम
विचार, मन्थन, अवलोकन, मनन सीखते हैं इसी से अन्तर्दृष्टि विकसित होती है अतः शिक्षा को
दर्शन के निर्माण का आधार कहना युक्ति संगत है इसीलिए G. E. Patrtidge (जी 0
ई 0
पैट्रिज
) ने कहा –
“In a very deep sense, it is quite as reasonable to say
that philosophy is based upon education as education is based upon
philosophy.”
“अत्यंत गंभीर अर्थ में यह कहना बिल्कुल उचित है की जिस प्रकार शिक्षा
दर्शन पर आधारित है उसी प्रकार दर्शन शिक्षा पर आधारित है।”
शिक्षा, दर्शन
को प्राणवायु देने वाला कारक –
बिना शिक्षा के दार्शनिक सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा
सकता, शिक्षा सृष्टि -सृष्टा, जड़- चेतन, जन्म -मरण की दार्शनिक
व्याख्या के अधिगम का आधार बनती है इसीलिए जॉन डीवी ने कहा –
“It is ultimately the most significant phase of
philosophy, for it is through the process of education that knowledge is
obtained.”
“यह दर्शन का महत्त्वपूर्ण पक्ष है, क्योंकि शिक्षा
प्रक्रिया द्वारा ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।”
शिक्षा द्वारा दर्शन के निर्धारित मार्ग अनुसरण –
शिक्षा ही वह कारक है जो दर्शन कोप्रवाह में बनाये रखता है शिक्षा
प्रक्रिया द्वारा दार्शनिक उद्देश्यों की प्राप्ति होती है यही गतिशील पक्ष है इसी
लिए डीवी कहते हैं -“Education is the dynamic side of philosophy. It
is the active aspect of philosophical belief, the practical means of realising
the ideals of life.”
“शिक्षा दर्शन का गतिशील पहलू है यह दार्शनिक विकास का सक्रिय पक्ष है
और जीवन के आदर्शों को प्राप्त करने का वास्तविक साधन है।”
नवीन समस्याओं का परिचायक शिक्षा –
समस्या मानव की विकास यात्रा का महत्त्वपूर्ण पहलू है और शिक्षा ही
दर्शन को इसका साक्षात्कार कराती है इसीलिए के 0 एल 0
श्रीमाली ने कहा –
“The task of educationist is to reconstruct the
country’s philosophy and redefine values so that they may interpret our
changing life and thought.”
“शिक्षाशास्त्री
का कार्य देश के दर्शन की पुनः रचना करना और मूल्यों को पुनः परिभाषित करना है
जिससे कि वे मूल्य हमारे परिवर्तनशील जीवन एवम् विचार का स्पष्टीकरण कर सकें।”
उक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है की शिक्षा और दर्शन में
घनिष्ठ सम्बन्ध है इसीलिये उच्चकोटि के शिक्षाशास्त्री चाहे भारतीय हों या
पाश्चात्य, शिक्षा दर्शन की समस्याओं पर मन्थन करते दृष्टिगोचर होते हैं इसीलिए
डीवी ने कहा –
“Philosophy is the theory of education in its most
general phases.”
“दर्शन शिक्षा का अत्यन्त सामान्य सिद्धान्त ही है। ”
कोई किसी को काम ज्यादा नहीं आंक सकता इसी लिए जॉन डीवी ने स्पष्टतः
कहा –
“The philosophy of education is not a poor relation of
general philosophy though it is so treated even by philosophers. It is
ultimately the most significant phase of philosophy, for it is through the
process of education that knowledge is obtained.”
“शिक्षा-दर्शन सामान्य दर्शन का दीन सम्बन्धी नहीं है यद्यपि दार्शनिकों
ने भी अभी तक यही माना है। अन्ततः यह दर्शन का महत्त्वपूर्ण पक्ष है, क्योंकि
शिक्षा प्रक्रिया द्वारा ही ज्ञान प्राप्त होता है।”
जे 0 एस 0 रॉस महोदय ने अपने तत्सम्बन्धी विचार का प्रगटन सुन्दर ढंग से इस
प्रकार किया –
“Philosophy and
education like the two sides of the same coin, present different views
of same thing.”
-J.S.Ross
“दर्शन और शिक्षा एक सिक्के के दो पहलुओं के समान एक वस्तु के भिन्न
पक्षों का बोध कराते हैं। ”
शिक्षा
शब्द का अंग्रेजी पर्याय एजुकेशन (Education )है Education
शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन (Latin) भाषा के निम्न शब्दों से हुई है
Educatum (एडुकेटम )
Educere (एडुसीयर)
Educare (एडुकेयर)
Educatum
(एडुकेटम
) – शिक्षित करना
E – अन्दर से
Duco – आगे बढ़ाना
इस
प्रकार एजूकेशन का अर्थ है — बालक की आन्तरिक शक्तियों को बाहर की ओर प्रगट करने
की क्रिया
Educere (एडुसीयर) – विकसित करना अथवा निकालना ( To lead out )
Educare (एडुकेयर) – बाहर निकालना अथवा विकसित करना (To Educate, To bring up or To raise )
उक्त
सभी आशयों से स्पष्ट है कि शिक्षा बालकों की आन्तरिक शक्तियों के पूर्ण विकास से
सम्बन्धित है।
शिक्षा
शब्द को भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो संस्कृत शिक्षा शब्द शिक्ष धातु में अ
प्रत्यय लगाने से बना है शिक्ष का अर्थ है सीखना और सिखाना। इस प्रकार श्क़्श का
शाब्दिक अर्थ हुआ –
सीखने
सिखाने की क्रिया
Narrower Meaning of Education –
शिक्षा
का संकुचित अर्थ –
J.S.
Mackenzi के
अनुसार –
“Education may be taken to mean any consciously direct effort to develop and cultivate our powers.”
अर्थात
संकुचित अर्थ में शिक्षा का अभिप्राय – हमारी शक्तियों के विकास और उन्नति के लिए
चेतना पूर्वक किये गए किसी भी प्रयास से हो सकता है।
जब
कि Drever महोदय का विचार है –
”Education is a process in which and by which, the knowledge, character and behaviour of the young are shaped and moulded . ”
(” शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसमें तथा जिसके
द्वारा बालक के ज्ञान, चरित्र और व्यवहार को एक विशेष सांचे में ढाला
जाता है। “)
Wider meaning of education
शिक्षा
का व्यापक अर्थ –
J.S. Mackenzi के अनुसार
“In wider sense, It is a process that goes on throughout life and is promoted by almost every experience in life.”
(जे
० एस ० मैकेन्जी – व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती
है और जीवन के प्रायः प्रत्येक अनुभव से उसके भण्डार में वृद्धि होती है। “)
जबकि
Dumville महोदय कहते हैं –
“Education in its wider sense includes all the influences which act upon an individual during his passage from the cradle to the grave.”
(”
शिक्षा के व्यापक अर्थ में वे सभी प्रभाव
आते हैं जो व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रभावित करते हैं।”- प्रो ०
डम्विल )
Analytical
meaning of Education
शिक्षा
का विश्लेष्णात्मक अर्थ –
A-शिक्षा एक आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।
-शिक्षा एक द्विध्रुवीय प्रक्रिया है।
Teacher
– Student
B-शिक्षा
एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।
Teacher – Student
–
Curriculum
C-शिक्षा
एक सामाजिक प्रक्रिया है।
D-शिक्षा
एक गतिशील प्रक्रिया है। –
टी
० रेमण्ट – ” शिक्षा विकास का वह क्रम है जिसमें व्यक्ति के शैशव से
प्रौढ़ता तक की वह क्रिया निहित है जिसके द्वारा वह अपने को धीरे धीरे विभिन्न
विधियों से अपने भौतिक सामाजिक, आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बनाता है। ”
E-शिक्षा
विकास की प्रक्रिया है-
हॉर्न
के अनुसार –
“शारीरिक और मानसिक दृष्टि से विकसित, स्वतन्त्र और सचेतन मानव, मानव की ईश्वर के प्रति उत्कृष्ट अनुकूलन की
निरन्तर प्रक्रिया ही शिक्षा है जो मनुष्य के बौद्धिक भावात्मक एवम् इच्छा शक्ति
से जुड़े वातावरण में अभिव्यक्त होती है
।”
F-जन्मजात
शक्तियों के विकास का प्रमुख कारक शिक्षा है। –
एडिसन
महोदय के अनुसार –
“शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य
में निहित उन शक्तियों और गुणों का दिग्दर्शन होता है जिनका ऐसा होना शिक्षा के
बिना असम्भव है।”
G-शिक्षा
का अर्थ केवल विद्यालयों में प्रदत्त ज्ञान तक सीमित नहीं है।
शिक्षा का वास्तविक अर्थ (True meaning of Education)-
शिक्षा
वह गतिशील एवम् सामाजिक प्रक्रिया है जो मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का सर्वांगीण
विकास करने में सहायता देती है उसे विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों से सामंजस्य
करने में योग देती है उसे जीवन एवं नागरिकता के कर्त्तव्यों एवम् दायित्वों को
पूर्ण करने के लिए तैयार करती है तथा उसमें ऐसा विवेक जाग्रत करती है जिससे वह
अपने समाज राष्ट्र विश्व और सम्पूर्ण मानवता के हित में चिन्तन संकल्प और कार्य कर
सके।
Different
concepts of Education
शिक्षा
की विभिन्न धारणाएं –
1-शिक्षा मानव का विकास है (Education is the development of man)-
डीवी
के अनुसार –
“शिक्षा उन सब शक्तियों का विकास है जिनसे वह
अपने वातावरण पर अधिकार प्राप्त कर सके और अपनी भावी आशाओं को पूर्ण कर सके।”
“Education is the development of all those capacities in an individual which will enable him to control his environment and fulfill his possibilities.” -John Dewey
दूसरे
शब्दों में शिक्षा अभिवृद्धि (Growth) है।
प्रशिक्षण
व वातावरण के अनुसार – क्रिया प्रतिक्रिया
2 –शिक्षा वातावरण से अनुकूलन की प्रक्रिया है (Education is a process of adjustment
to environment.)-
बटलर
के अनुसार -“शिक्षा प्रजाति की आध्यात्मिक सम्पत्ति के साथ व्यक्ति का क्रमिक
सामञ्जस्य है। ”
“Education is a gradual adjustment of the individual to the spiritual possession of the race.” –Butler
3 – शिक्षा समूह में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है
(Education
is the process of producing a change in the group)-
“शिक्षा चैतन्य रूप में एक नियन्त्रित प्रक्रिया
है जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किये जाते हैं तथा व्यक्ति के
द्वारा समाज में। “
“Education is the consciously controlled process whereby changes in behaviour are produced in the person and through the person within the group.” – Brown
शिक्षा
के अंग या घटक ( Data or factors of Education)-
अंग्रेज
विद्वान जॉन एडम – (1 ) –
प्रभावित होने वाला ( शिक्षार्थी )
(2 )-
प्रभावित करने वाला ( शिक्षक )
अमेरिकन
विद्वान् जॉन डीवी के अनुसार -1 – मनोवैज्ञानिक
(सीखने वाले की मानसिक स्थिति)
2- सामाजिक
(सीखने वाले का सामाजिक पर्यावरण )
अंग्रेज
विद्वान रायबर्न –
1 -शिक्षार्थी
2 – शिक्षक
3 -पाठ्यचर्या
उक्त
विवेचन और समकालीन साहित्य के विश्लेषणोपरान्त सामान्यतः निम्न घटक स्वीकार किए जा
सकते हैं –
1 -शिक्षार्थी
2 – शिक्षक
3 -पाठ्यचर्या
4 -शिक्षण विधियाँ और शिक्षोपकरण
5 – प्राकृतिक पर्यावरण
6- सामाजिक पर्यावरण
7- मापन तथा मूल्याँकन
शिक्षा
की कुछ विशिष्ट परिभाषाएं –
Some specific definition of Education-
“Education is a natural harmonious and progressive development of man’s innate powers.” -Pestalozi
पेस्टालॉजी
– ” शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक समरूप तथा प्रगतिशील
विकास है। ”
“Education means to enable the child to find out the ultimate truth …….. making truth its own and giving expression to it.”- R. N. Tagore
रवीन्द्र
नाथ टैगोर –
“शिक्षा का अर्थ मनुष्य को इस योग्य बनाना है कि
वह सत्य की खोज कर सके … तथा अपना बनाते हुए उसको व्यक्त कर सके।”
“Education should be man-making and society making.”-Dr.Radha Krishan
डॉ
राधा कृष्णन-
“शिक्षा को मनुष्य और समाज का निर्माण करना
चाहिए। “
“Education is a process by which a child makes its internal-external.” Frobel
फ्रोबेल
महोदय के अनुसार –
“शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक अपनी
आन्तरिक शक्तियों को बाहर की ओर प्रकट करता है।”
“Education is that process whereby he adopts himself gradually in various ways to his physical, social, and spiritual environment. – T. Remant
टी ० रेमांट के अनुसार –
“शिक्षा वह क्रम है जिससे मानव अपने को
आवश्यकतानुसार भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना
लेता है।”
Swami Viveka
Nand-
“Education
is the manifestation of perfection already reached in man.”
प्रसिद्ध सन्त विवेकानन्द के मत में –
“शिक्षा मनुष्य के अन्दर सन्निहित पूर्णता का प्रदर्शन है।”
Kant – “Education is the development in the individual of all the perfections of which he is capable.”
काण्ट – “शिक्षा व्यक्ति की उस पूर्णता का विकास है जिसकी उसमें क्षमता है। “
John Dewey -“Education is a process of living and not a preparation for future living.”
डीवी
के अनुसार -“शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है वरन जीवन यापन की
प्रक्रिया है। “
Krishna
Murti –
“To
understand life is to understand ourselves and that is both the beginning and
the end of education.”
“जीवन को समझना अपने आप को समझना है और वह दोनों शिक्षा का प्रारम्भ तथा अन्त है।”-कृष्ण मूर्ति
Herbert Spencer- “Education means the establishment of coordination between the inherent powers and the outer life.”
हर्बर्ट
स्पेन्सर –
“शिक्षा का अर्थ अन्तः शक्तियों का वाह्य जीवन
से समन्वय स्थापित करना है। “
Nature
of Education
शिक्षा
की प्रकृति –
(1 )- शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके तीन
प्रमुख अंग हैं सीखने वाला,
सिखाने वाला और सीखने सिखाने की विषय सामग्री
अथवा क्रिया।
(2 )-संकुचित अर्थ में माना जाता है की शिक्षा की
प्रक्रिया विद्यालय में ही चलती है जबकि व्यापक अर्थ में यह प्रक्रिया समाज में
निरन्तर चलती रहती है।
(3 )-शिक्षा के उद्देश्य समाज द्वारा निश्चित होते
हैं और विकासोन्मुख होते हैं शिक्षा इस उद्देश्य की प्राप्ति की क्रमक व्यवस्था है
यह सोद्देश्य प्रक्रिया है।
(4 )- व्यापक अर्थ में शिक्षा की विधियां अति व्यापक
होती हैं परन्तु संकुचित अर्थ में निश्चित प्राय होती हैं।
(5 )-व्यापक अर्थ में शिक्षा की विषय सामग्री अति व्यापक होती हैं जिसका
सीमांकन सम्भव नहीं परन्तु संकुचित अर्थ में इसकी विषय सामग्री निश्चित पाठ्यचर्या
तक सीमित होती हैं।लेकिन दोनों ही अर्थों में यह सामाजिक वकास में योग देती है।
(6 )-शिक्षा का स्वरुप समाज के स्वरुप शासन तन्त्र,
अर्थतन्त्र,और वैज्ञानिक प्रगति आदि पर निर्भर करता है।
(7 )- शिक्षाकी प्रकृति गतिशील होती है क्योंकि समाज के स्वरुप,
शासन तन्त्र, अर्थतन्त्र,और वैज्ञानिक परिवर्तनों के साथ साथ उसकी
शिक्षा के स्वरुप में भी परिवर्तन होता रहता है।