Meaning and Definition of National Integration

राष्ट्रीय एकता का अर्थ तथा परिभाषा

राष्ट्रीय एकता वह विचारधारा है जो देश के सभी नागरिकों को सामन्जस्य पूर्ण तथा सहयोग पूर्ण जीवन यापन हेतु प्रेरित करती है, यही वह भाव है जो सारी विभिन्नताओं का परित्याग कर राष्ट्रीय हिट में परित्याग हेतु विवश करता है राष्ट्र के लोगों में भ्रातृत्व, एकीकरण, देश-भक्ति,देश प्रेम का उद्भव ही राष्ट्रीय एकता का परिचायक है। 1961 में राष्ट्रीय एकता को ‘राष्ट्रीय एकता सम्मलेन’ में इस प्रकार पारिभाषित किया गया –

“National Integration is a psychological and educational process involving the development of a feeling of unity, solidarity, and cohesion in the heart of people, a sense of common citizenship and a feeling of loyality to the nation.”- Report of ‘National Integration conference 1961’

” राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा लोगों के दिलों में एकता, संगठन एवं सन्निकटता के भावना,सामान नागरिकता की अनुभूति तथा राष्ट्र के प्रति भक्ति की भावना का विकास किया जाता है।”

राष्ट्रीय एकता के अर्थ को समझाते हुए डॉ 0 जे 0 एस 0 बेदी कहते हैं –

”National Integration means bringing about economic, social, cultural and linguistic differences among the people of various states in the country within  tolerable range and imparting to the people a feeling of the oneness of India.”

”राष्ट्रीय एकता का अर्थ है -देश के विभिन्न राज्यों के व्यक्तियों की आर्थिक, सामजिक, सांस्कृतिक एवं भाषा विषयक विभिन्नताओं को वांछनीय सीमा के अन्तर्गत रखना और उसमें भारत की एकता का समावेश करना।”

Need of National Integration

राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता –

देश की समृद्धि एवं विकास हेतु संकीर्ण मनोवृत्तियों व स्वार्थपरता का परित्याग कर राष्ट्रीय एकता का समावेशन परमावश्यक है इसीलिये  के0 एल 0 श्रीमाली  महोदय ने कहा-

“The process of national integration must continue and be strengthened, if we are to preserve and enrich our hard one freedom.”    – K.L. Shrimali

“यदि हम मुश्किल से प्राप्त अपनी स्वतन्त्रता की सुरक्षा एवं समृद्धि चाहते हैं, तो हमें राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया को जारी रखना और शक्तिशाली बनाना पड़ेगा।”

राष्ट्रीय एकता राष्ट्र के अस्तित्व के लिए परमावश्यक है राष्ट्रीय एकता की समस्या प्रत्येक राष्ट्रवादी को व्यथित करती है इसीलिये डॉ 0 राधाकृष्णन जी ने कहा –

“National Intrregation is a problem with which our survival as a civilized nation as a bound up.”-             Dr. Radha Krishanan

”राष्ट्रीय एकता एक ऐसी समस्या है, जिससे सभ्य राष्ट्र के रूप में हमारे अस्तित्व का घनिष्ठ सम्बन्ध है।”

Factors Against National Integration-

राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व –

राष्ट्र को समुन्नत बनाने और विकास की ओर अग्रसर करने हेतु राष्ट्रीय एकता की परम आवश्यकता है किन्तु भारत में राष्ट्र्रीय एकता के मार्ग में कई बाधाएं हैं जिन्हे हम इस प्रकार क्रम दे सकते हैं –

Casteism  (जातिवाद ) – लोगों का संकीर्ण दृष्टिकोण तथा राजनीतिक दलों का जातीयता भड़काने वाला भाव लोगों को भ्रमित कर देता है इससे राष्ट्रीयता की भावना को ठेस लगती है,इस सम्बन्ध में G.S.Ghuriye (जी0 एस0 घुरिये) का विचार है –

“The feeling of casteism creates the feeling of hatred for other casts and prepares unhealthy atmosphere for the development of national consciousness.”

“यह जाति प्रेम की भावना है जो अन्य जातियों में कटुता उत्पन्न करती है तथा राष्ट्रीय चेतना के विकास के लिए अनुपयुक्त वातावरण तैयार करती है।”

Noncivilized  thinking-

असभ्य सोच –

कुछ लोगों की सोच संकीर्णता में इतनी जकड़ी है की वे सभ्य समाज और देश के भविष्य का चिन्तन न कर केवल खुद का क्षणिक लाभ देखते हैं और भविष्य के सार्थक क्रिया कलापों की बाधा बन जाते हैं जैसा कि जवाहर लाल नेहरू ने स्पष्ट कहा –

“National Integration and cohesion is a matter of vital importance today. It is the basic of all other activities which we try to further.”

“राष्ट्रीय एकता एवं सामंजस्य आज एक महत्वपूर्ण विषय है। यह उन सभी क्रिया कलापों का आधार है जिन्हे हम भविष्य में करना चाहते हैं।”

Provincialism (प्रान्तीयता) –

भारत के प्रान्तों में स्वस्थ विकासात्मक प्रतिस्पर्धा का अभाव देखने को मिलता है यह प्रान्तीयता की भावना हिन्सात्मक आन्दोलन व आतंक वाद में परिणित हो जाती है और राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ जाती है।

Communalism (साम्प्रदायिकता)-

इस देश की एकता के समक्ष साम्प्रदायिकता बहुत विकराल समस्या के रूप में उभरी है जो सम्प्रदाय हमारी भारतीय सनातन सभ्यता की उदारता से पनपे वही अलगाववादी दुष्प्रभाव से युक्त हो विषवमन कर रहे हैं आए दिन साम्प्रदायिक दंगे  की सूचना सम्प्रेषित होती रहती है यह खूनी होली निर्दोषों की बलि लेती रहती है। राष्ट्रीय एकता के समक्ष यह बहुत बड़ा खतरा है।

Political Parties (राजनीतिक दल)-

भारतीय परिदृश्य में निहित स्वार्थ वाले, संकीर्ण मानसिकता से युक्त राजनीतिक दल अस्तित्व में आ गए हैं जो उत्तेजना,भावनात्मक उन्माद फैलाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं लेश मात्र भी राष्ट्रवादी भावना से युक्त नहीं हैं। जाति, सम्प्रदाय, धर्म, भाषा के आधार पर राष्ट्र को विघटित करने वाले राजनीतिक दलों ने एकता को विघटित करने का  कार्य किया है। गैर राष्ट्रवादी दलों से देश की एकता को बड़ा खतरा है।

Communication System (संचार व्यवस्था )-

संचार के बहुत से साधन अस्तित्व में आये हैं लेकिन गलत तथ्य सम्प्रेषण पर रोक की कोइ प्रभावी व्यवस्था नहीं है इसीलिये इन साधनों से अनर्गल तथ्य दुष्प्रचार कर राष्ट्रीय एकता के समक्ष बाधा उपस्थिति की जा रही है।

Lack of Effective Leadership (प्रभावशाली नेतृत्व का अभाव)

परिवार वाद, भाई भतीजा वाद, धन ,आपराधिक मनोवृत्ति आदि नेतृत्व शक्ति पर हावी होकर उन्हें पथ भ्रमित कर देता है,चारित्रिक दृढ़ता के अभाव में प्रभावशीलता खो जाती है और  देश राजनीतिक अपवंचना का शिकार हो जाता है, घोटाले बाज हावी हो जाते हैं।  कुशल नेतृत्व के अभाव में राष्ट्रवादी चेतना जाग्रत नहीं हो पाती और राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ जाती है।

Social, Economic Status (सामाजिक, आर्थिक स्तर)-

सामाजिक हीन दृष्टिकोण और वास्तविक आर्थिक कमजोरी का दुष्प्रभाव वही समझ पाता है जिसने इसे भोगा है अस्तित्व रक्षा में लगे मानव से उच्च मूल्य निष्पादन की आशा कैसे की जा सकती है मूलभूत सुविधाओं से वंचित व समाज की अपवंचना का शिकार राष्ट्रीय एकता जैसे बिन्दु पर सोच भी नहीं पाता। शोषक धन लिप्सा में और शोषित अस्तित्व रक्षा को प्रधान मान एकता को तिलाञ्जलि दे देते हैं।

Language Controversy (भाषा विवाद) –

प्रत्येक विकसित राष्ट्र का राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र गीत, राष्ट्र गान, राष्ट्र भाषा निर्विवादित है, सनातन संस्कृति के उदारवादी दृष्टिकोण के चलते ही हिन्दी आज भी राष्ट्र भाषा के रूप में गरिमामयी स्थान नहीं पा सकी।जबकि सुशीला नायर ने 21 नवम्बर 1967 को लोक सभा डिबेट में कहा –

“Hindi should be accepted as the common medium of instruction in all the universities of India.”

“भारत के सभी विश्व विद्यालयों में शिक्षण के सामान्य माध्यम के रूप में हिन्दी स्वीकृत की जानी चाहिए।”        

 भाषा के नाम पर पंजाब,असम, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु में अपमान जनक घटनाएं घटीं। यह विवाद एकता के समक्ष बाधा उपस्थित करता है। 

उक्त के अतिरिक्त सांस्कृतिक विविधता, संवैधानिक भूल, रोजगार नीति व शिक्षा की विफलता भी राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्वों में शुमार हैं।

Suggestions to remove the obstacles of National Integration (राष्ट्रीय एकता की बाधाओं को दूर करने के उपाय) –

सन 1961 में शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार ने डॉ सम्पूर्णा नन्द की अध्यक्षता में समिति ने राष्ट्रीय एकता हेतु निम्न सुझाव दिए –

(1 )- सभी स्तरों के पाठ्यक्रम में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के अनुरूप परिवर्तन व सुधार किया जाए।

(2 )- पाठ्य सहगामी क्रिया जैसे राष्ट्रीय महत्त्व की घटनाओं, पर्वों, खेलकूद ,शैक्षिक भ्रमण, एन ० सी ० सी ०, स्काउट व गाइड, नाटक,युवा समारोह आदि का प्रचुर मात्रा में आयोजन किया जाए।

(3)- विश्व व राष्ट्र की सामजिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का बोध कराया जाए। देशभक्तों व महान व्यक्तित्वों की कहानियाँ व जीवन वृत्त पढ़ाया जाना चाहिए।

(4)- पाठ्य क्रम में सुधार कर भावात्मक व राष्ट्रीय एकता में वृद्धि की जा सकती है ,

(5)- राष्ट्र गान, राष्ट्रध्वज, तथा राष्ट्रीय दिवसों के प्रति सम्मान दिखाया जाना चाहिए।

(6)- प्रतिदिन राष्ट्रीय एकता की प्रतिज्ञा के साथ शुरू होना चाहिए।

Suggestion of Kothaari Commission (कोठारी आयोग के सुझाव)-

राष्ट्रीय एकता सम्मलेन के पश्चात जो आयोग अस्तित्व में आया वह कोठारी आयोग था जो शिक्षा को राष्ट्रीय एकता हेतु परमावश्यक मानते हैं उन्होंने राष्ट्रीय एकता हेतु सुझाव इस प्रकार दिए। –

(1 )- सामान विद्यालय व समान अवसर प्रणाली सिद्धान्त प्रयुक्त करना।

(2 )  -सामान्य राष्ट्रीय विकास व सामजिक राष्ट्रीय एकीकरण को शिक्षा के सभी स्टारों पर अभिन्न अंग बनाना।

(3 )- राष्ट्रीय एकता का सम्यक विकास।

(4 )- सभी आधुनिक भाषाओं का विकास करते हुए हिन्दी का तीव्र गति से विकास जिससे इसे केंद्र की सरकारी भाषा का दर्जा मिल       सके।

Contribution of Education (शिक्षा का योगदान) –

संसार की किसी भी समस्या का समाधान करने की महती शक्ति शिक्षा धारण करती है राष्ट्रीय एकता हेतु भी शिक्षा का आश्रय लिया जा सकता है भारतीय परिप्रेक्ष्य में निम्न बिंदुओं पर ध्यान देकर राष्ट्रीय एकता की भावना पुष्ट की जा सकती है –

a -राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था

b -पाठ्य क्रम

c -धार्मिक एवम् नैतिक शिक्षा

d -पाठ्य सहगामी क्रियाएं

e -प्रौढ़ शिक्षा

f – अध्यापक

g – संचार के साधनों का सम्यक उपयोग 

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