व्यक्तित्व
आशय व परिभाषाएं / Meaning and Definitions –
व्यक्तित्व शब्द पुरातन काल खण्ड का एक महत्त्वपूर्ण विषयवस्तु है अथर्ववेद में सतोगुणी, रजोगुणी,और तमोगुणी व्यक्तित्वों के बारे में बताया है यह त्रिगुणी अवधारणा मानव चेतना की यात्रा के अंश हैं सत्व,स्थिरता का रज सक्रियता का तथा तम जड़त्व से सम्बद्ध है। इन्हें आगे चलकर सांख्य दर्शन ने अपनाया। श्रीमद्भगवद्गीता में व्यक्तित्व पर सारगर्भित दिशा निर्देश है। सामान्य अर्थों में व्यक्तित्व को बाहरी सौन्दर्य व सद्गुणों के समाविष्ट स्वरुप के रूप में देखा जाता है।
पाश्चात्य दृष्टिकोण में व्यक्तित्व आंग्ल भाषा के Personality शब्द का समानार्थी है।यह शब्द लेटिन के परसोना (Persona) से विकसित हुआ जिससे आशय है नकली चेहरा या मुखौटा अर्थात उस काल में शरीर रचना, पोशाक, रंगरूप आदि वाह्यगुण व्यक्तित्व में समाहित स्वीकार किये गए।
विभिन्न दृष्टिकोणों व मतों के कारण अलग अलग विद्वतजनों ने इसे अलग अलग तरह से पारिभाषित किया उनमें से कुछ यहां द्रष्टव्य हैं यथा –
Allport / आलपोर्ट महोदय के अनुसार
“Personality is the dynamic organisation within the individual of those psychophysical systems that determine his unique adjustment to his environment.”
“व्यक्तित्व, व्यक्ति में उन मनोदैहिक व्यवस्थाओं का संगठन है जो वातावरण के साथ उसका सुसमायोजन स्थापित करता है। ”
munn,N.L के अनुसार
“Personality may be defined as the most characteristic integration of an individual’s structures, modes of behaviour, interests attitudes, capacities, abilities, and aptitudes.”
“व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है।”
May and Hartshorn महोदय का मानना है कि –
“Personality is that which makes one effective and gives influence over others.”
“व्यक्तित्व, व्यक्ति का वह स्वरुप है जो उसे प्रभावशाली बनाता है और दूसरों को प्रभावित करता है। ”
Drever महोदय इस सम्बन्ध में कहते हैं –
“Personality is a term used for the integrated and dynamic organization of the physical, mental, moral, and social qualities of the individual, as that manifests itself to other people, in the give and take social life.”
“व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग, व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, और सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है, जिसे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान प्रदान में व्यक्त करता है।”
व्यक्तित्व के प्रकार / Types of Personality –
व्यक्तित्व के कोई निश्चित प्रकार नहीं बताये जा सकते इसीलिये विविध विद्वानों द्वारा इन्हें अलग अलग तरह से वर्गीकृत किया गया है।सामान्यतः इन्हें निम्न तीन भागों में बाँटकर अध्ययन करेंगे –
1 – शरीर बनावट के आधार पर (Based on body composition)
2 – समाजशास्त्रीय प्रकार (Sociological type)
3 – मनोवैज्ञानिक प्रकार (Psychological type)
1 – शरीर बनावट के आधार पर (Based on body composition)–
क्रेचमर (Kretschmer) महोदय इन्हें चार भागों में बाँटा है जो इस प्रकार है –
A – मिलनसार (Pyknic) – सामान्य कद काठी के मृदुभाषी व्यक्ति मित्रता, अच्छे स्वभाव और मिलनसारिता के गुण से युक्त होते हैं ये समाज से मिलकर चलते हैं।
B – एकान्तप्रिय (Leptosome) – ये कमजोर, शर्मीले, चुप रहने वाले, अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के होते हैं।इन्हें एकान्त पसन्द होता है।
C – चुस्त (Athletic) – इस प्रकार के व्यक्ति का सीना चौड़ा व उभरा, कन्धे चौड़े, मजबूत माँसपेशियाँ, ताक़तवर भुजाएं, हृस्टपुष्ट स्वस्थ शरीर होता है। इन्हे चुस्त(Athletic) व्यक्तित्व वाला कहते हैं।
D – मिश्रित (Dysplastic) -इस तरह के व्यक्ति लम्बे, चौड़े, मोटे होते हैं और इनमें ऊपर वर्णित प्रकारों का आंशिक सम्मिश्रण होता है।
2 – समाजशास्त्रीय प्रकार (Sociological type)-
स्प्रेंगर / Spranger महोदय ने अपनी पुस्तक “Types of Men” में 6 प्रकार के व्यक्तित्व बताए हैं –
1 – वैचारिक (Theoretical) – दार्शनिक, आविष्कारक, वैज्ञानिक आदि को इसमें स्थान दिया जाता है।
2 – आर्थिक (Economic) – ऐसे व्यक्ति धन को अधिक महत्ता प्रदान करते हैं। व्यवसायी, दुकानदार, उद्योगी आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।
3 – सौन्दर्यात्मक (Esthetic) – सौन्दर्य व कला को महत्ता प्रदान करने वाले इस श्रेणी में आते हैं। यथा चित्रकार, साहित्यकार, कलाकार आदि।
4 – धार्मिक (Religious) – ईश्वर में आस्था रखने वाले,सशक्त आध्यात्मिक पक्ष वाले लोग इसमें आते हैं जैसे संत, पुजारी, पादरी, भक्त, मुल्ला मौलवी इसके तहत आते हैं।
5 – सामाजिक (Social) – सामाजिक हितों व सामाजिक समस्याओं से जूझने वाले लोग इसमें गिने जाते हैं जैसे विनोबाजी, गाँधीजी, नेल्सन मंडेला,दयानन्द सरस्वती आदि।
6 – राजनैतिक (Political) – सत्ता, नियन्त्रण, प्रभुसत्ता, राज व्यवस्था के दावपेचों से उलझने वाला इस क्षेत्र में आता है जैसे नेता, मन्त्री, आदि।
3 – मनोवैज्ञानिक प्रकार (Psychological type)-
मनोवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर जिन विद्वानों ने व्यक्तित्व का वर्ग विभाजन किया है उनमें C.G.JUNG को सर्वाधिक स्वीकार किया जाता है इनका पुस्तक “Psychological Types” दिया गया विवरण आज भी महत्ता रखता है इन्होने व्यक्तित्त्व वर्गीकरण इस प्रकार किया है –
1 – बहिर्मुखी (Extrovert) – ऐसा व्यक्तित्व बहुत सामाजिक बाहरी दुनिया से मेलजोल बढ़ाने वाला व्यक्तिगत धन या स्वास्थ्य की कम परवाह कर नई परिस्थितियों से सुसमायोजन कर लेता है। इनका आत्मविश्वास बहुत अच्छा होता है, ये विज्ञापन, भाषण कला, प्रकाशन आदि के द्वारा दूसरों को अपने अनुकूल बना लेते हैं यथा शास्त्रीजी, श्रीमति इन्दिरा गाँधी, नरेन्द्र मोदी जी, विवेकानन्द जी आदि को समझा जा सकता है।
2 – अन्तर्मुखी (Introvert) – ये बहुधा अपनेआप में खोये रहते हैं किताबें पढ़ना, निर्धनता में खुश रहना, सामाजिक व्यवहार निर्वाहन में संकोची, स्वयं के प्रगटन से परे, शीघ्र दुःखी होने वाला, कम लोचपूर्ण दृष्टिकोण, संसार की परवाह न कर स्वपथ पर अग्रसर, कम बोलने वाला, बहिर्मुखी से अधिक कार्य क्षमता वाला होता है।
3 – उभयमुखी (Ambivert) – ऐसे व्यक्ति किन्ही परिस्थितियों में अन्तर्मुखी व भिन्न परिस्थिति में बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं आपने भी देखा होगा एक अच्छा लिखने वाला और बोलने वाला एकान्त में कार्य करना पसन्द करता है।
जुंग महोदय ने इस सिद्धान्त की आगे और व्याख्या की है जिससे यह बहुत बड़ा हो जाता है उसने अंतर्मुखी व बहिर्मुखी को चार चार भागों में बांटा है –
1 – विचार प्रधान (Ideological)
2 – तर्क बुद्धि प्रधान (Logic minded)
3 – भाव प्रधान (Sentimental)
4 – दिव्य दृष्टि प्रधान (Celestial vision)
इस प्रकार हम देखते हैं कि व्यक्तित्व को कई प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। क्रो व क्रो ने विभिन्न दृष्टिकोणों की आलोचना हुए कहा –
“A general criticism of such classifications is the tendency to place emphasis upon one or another phase of development and to deal with extremes rather than with the mediocrity of human nature.”
“इस प्रकार के वर्गीकरणों की एक सामान्य आलोचना यह है कि यह विकास के किसी न किसी पहलू पर बल देते हैं और सामान्य मानव स्वभाव की अपेक्षा उसके उग्र रूपों की व्याख्या करते हैं।”
व्यक्तित्व विशेषक / Traits of Personality –
व्यक्तित्व का निर्धारण उसकी विशेषता या गुणों के आधार पर होता है। गैरट महोदय कहते हैं –
“Personality traits are distinctive ways of behaving more or less permanent for a given individual. Personality traits are neat short ways of describing the multifold aspects of behaviour.”
“व्यक्तित्व के गुण व्यवहार करने की निश्चित विधियाँ हैं जो प्रत्येक व्यक्ति में बहुत कुछ स्थाई होती हैं। व्यक्तित्व के गुण, व्यवहार के बहुसंख्यक स्वरूपों का वर्णन करने की स्पष्ट और संक्षिप्त विधियां हैं।”
व्यक्तित्व के अंगों को हम दो भागों में विभक्त कर विशेषता बता सकते हैं –
1 – प्रत्यक्ष – शारीरिक विशेषक
2 – अप्रत्यक्ष (क्रिया आधारित) – बौद्धिक, सामाजिक, संवेगात्मक,चारित्रिक व अन्य विशेषक।
उक्त विशेषक भी अपने आप में बहुत से गुण रखते हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।
A – शारीरिक विशेषक (Physical Traits) B – बौद्धिक विशेषक (Intellectual Traits)
सामाजिक विशेषक (Social Traits)
संवेगात्मक विशेषक (Emotional Traits)
चारित्रिक विशेषक (Character Traits)
अन्य विशेषक (Other Traits)
व्यक्तित्व के सिद्धान्त / Theories of Personality –
मनोवैज्ञानिकों हेतु यह परमावश्यक हो गया कि व्यक्तित्व का अध्ययन किया जाए लेकिन सच्चाई यह है कि एक नहीं बहुत से कारक हैं जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं विविध वैयक्तिक धारणाओं के आधार पर विविध सिद्धांतों का उदय हुआ है उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धांत देने का यहां प्रयास है –
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त – यह मत सिग्मण्ड फ्रायड की देन है फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व का निर्माण इड (Id), इगो (Ego), सुपर इगो (Supar Ego) से हुआ है।
इड (Id) अचेतन मन है इसमें मूल प्रवृत्तियों व प्राकृतिक इच्छाओं का निवास है ये शीघ्र संतुष्ट होना चाहती हैं तृप्ति चाहती हैं।
इगो (Ego) चेतना बुद्धि, तर्क तथा इच्छा शक्ति है।
सुपर इगो (Supar Ego) इसका निर्माण आदर्शों से होता है।
Sigmund Freud ने ईगो के बारे में कहा –
“Ego is the part of Id which has been modified by its proximity to the external world and the influence the later has on it and which serves the purpose of receiving stimuli and projecting the organism from them ,like the cortical layer with which a particle of living subustance surrounds itself.”
“इगो, इड का वह भाग है जो वाह्य संसार के अनुमान और संभावना से परिष्कृत होता है और उसका कालान्तर में प्रभाव भी पड़ता है, जो प्राणी को उद्दीपन करने एवं उसके इर्द गिर्द जमी परत के अंश के रूप में व्याप्त रहता है।”
Sigmund Freud ने सुपर ईगो के बारे में कहा –
“Super Ego that expect of the ego which makes possible the processes of self observation and what is commonly called conscience.”
“सुपर ईगो, ईगो का वह पक्ष है जो आत्म निरीक्षण की प्रक्रिया को सम्भव बनाता है जिसे सामान्य रूप से चेतना कहते हैं। ”
Sigmund Freud महोदय का मानना है कि मानव के व्यक्तित्व का निर्माण इन्हीं तत्वों से मिलकर होता है जो विभिन्न रूप में परिलक्षित होते हैं।
रचना (Constitution) सिद्धान्त –
इस विचार धारा के प्रतिपादक शैलडॉन / SHELDON महोदय हैं इन्होने व्यक्तित्व के प्राथमिक आधारों की संख्या तीन बताई है –
1 – गोलाकृति (Endomorphy) – इस तरह के लोगों का व्यक्तित्व अलग तरह से परिलक्षित होता है इस व्यक्तित्व के मनुष्य गोल गर्दन, माँस पेशियों का पूर्ण विकसित न होना, चर्बी की वृद्धि आदि गुणों से युक्त होते हैं।
2 – आयताकृति (Mesomorphy) – इस तरह के व्यक्तित्व में मुख्यतः माँस पेशियों व हड्डियों का विकास परिलक्षित होता है।
3 – लम्बाकृति (Ectomorphy) – इस तरह के व्यक्तित्वों में केंद्रीय स्नायु संस्थान के माँस पेशी तन्तु विकसित होते हैं।
इस मत के अनुसार मूलतः यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है कि इसमें शरीर के विभिन्न अंगों को व्यक्तित्व निर्माण का आधार माना जाता है।
प्रतिकारक (Factorial) प्रणाली सिद्धान्त –
इस मत का प्रतिपादन आर ० बी ० कैटल (R. B. Cattell) महोदय द्वारा किया गया। इन्होने बताया मानव चरित्र अनेक कारकों से युक्त होता है इनके अनुसार निम्न तथ्य प्रतिकारक चरित्र का निर्माण करते हैं –
चरित्र की सुन्दरता (Fitness of Character)
सामाजिकता (Sociability)
भावात्मक एकता (Emotional Integration)
कल्पनाशीलता (Imagination)
अभिप्रेरक (Motivator)
उत्सुकता (curiosity)
लापरवाही (Negligence)
उक्त आधारों पर कैटल महोदय ने कहा –
“Personality is, that permits a prediction of what a person will do in a given situation.”
“व्यक्तित्व वह है जो किसी विशेष परिस्थिति में जो कार्य करता है उसका प्रतिरूप ही व्यक्तित्व है। ”
ऑलपोर्ट (Allport) का सिद्धान्त –
व्यक्तित्व के सम्बन्ध में गोर्डन डब्ल्यू ऑलपोर्ट (Gordon W. Allport) का सिद्धान्त वंशक्रम वातावरण वैयक्तिक भेद पर अवलम्बित है इन्होने वंशक्रम के द्वारा निर्धारित व्यक्तित्व के जटिल मिश्रण के प्रति न्याय करने ,सामाजिक,स्वाभाविक तथा मनोवैज्ञानिक कारणों के प्रति न्याय करने को कहा है। तथा साथ में विभिन्न सम्प्रदायों तथा व्यक्तित्वों की नवीनता को भी मान्यता देनी चाही है। इन्होने स्पष्टतः स्वीकार किया की प्रवृत्तियों,विशेषताओं तथा वातावरण के प्रति समायोजन से व्यक्तित्व का गठन होता है।
उक्त सिद्धांतों के अतिरिक्त भी विविध सिद्धांत भी अपनी धमक रखते हैं। व्यक्तित्व के सिद्धान्तों में विविध दृष्टिकोणों का समावेशन करने पर इसका विशेष वृहत प्रखण्ड प्रस्तुत किया जा सकता है लेकिन इसे यहीं विराम दिया गया है।