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शिक्षा

Education as a tool of Modernization in the Indian context.

August 6, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


भारतीय सन्दर्भ में आधुनिकीकरण के एक उपकरण के रूप में शिक्षा

भारत में शिक्षा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से अब तक एक बहुत बड़ा सफर तय कर चुका है। बदलते परिवेश के साथ और तत्कालीन परिस्थितियों के साथ जन सामान्य पर पड़ने वाले प्रभाव का इतिहास गवाह रहा है इसने बोलने, आचार, व्यवहार, संस्कृति,  वेश भूषा, रहन सहन में होने वाले परिवर्तनों को बहुत अच्छी तरह से निरीक्षित किया है। इन तमाम परिवर्तनों के आधार पर यह  पूर्वक कहा जा सकता है कि शिक्षा ही वह महत्त्वपूर्ण साधन है जो हमारे पूरे परिवेश, सम्पूर्ण समाज को वक्त के साथ चलना सिखा सकता है।शिक्षा ही वह महत्त्वपूर्ण उपकरण है जो हमें आधुनिकता से जोड़ सकता है।

आधुनिकी करण क्या है?

What is modernization?

आधुनिकीकरण  वह  प्रत्यय है जो हमें समय के साथ कदमताल करना सिखाता है हर काल की अपनी परम्पराएं, मर्यादाएं, मूल्य होते हैं जो भारत में निरन्तर  परिवर्द्धित व परिवर्तित होते रहे हैं और भारतीयों ने इन्हे आवश्यकतानुसार अङ्गीकार किया है। डॉ ० सत्यदेव सिंह ने आधुनिकीकरण के सन्दर्भ में कहा –

“आधुनिकीकरण एक ऐसी गत्यात्मक प्रक्रिया है जिसमें कोई समाज नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकियों का लाभ लेते हुए परम्परागत अथवा अर्ध परम्परागत स्थिति से हटकर अपने संगठन संरचना, मूल्य, अभिप्रेरणा, उद्देश्य तथा आकांक्षाओं में आवश्यक परिवर्तन कर लेता है।”

“Modernization is such a dynamic process in which a society moves from a traditional or semi-traditional position, taking advantage of the latest scientific techniques, to make necessary changes in its organizational structure, values, motivation, objectives and aspirations.”

आधुनिकीकरण की परिभाषा में व्यक्ति व उसकी ज्ञानात्मक स्थिति के अनुसार यद्यपि परिवर्तन परिलक्षित होते हैं लेकिन कोठारी कमीशन  ने भारतीय समाज के आधुनिकता से जुड़ने के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट रूप से कहा –

“The most distinct feature of modern society, in contrast with a traditional one, is its adoption of a science-based technology.”

“आधुनिक समाज की सबसे विशिष्ट विशेषता, पारंपरिक समाज के विपरीत, विज्ञान आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाना है।”

अर्थात भारतीय परिप्रेक्ष्य में आधुनिकी करण से आशय बदलते समय के साथ बदलते प्रतिमानों, संसाधनों, वैज्ञानिक प्रगति और आवश्यक प्रगतिशील बदलाव के साथ अनुकूलन करने से है।

Education as a tool of Modernization

आधुनिकीकरण के एक उपकरण के रूप में शिक्षा-

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब हम भारत का आकलन करते हैं तो यह प्रत्यक्षतः अनुभूति होती है कि शिक्षा केवल समस्या समाधान का ही उपकरण नहीं है बल्कि यह वह विशिष्ट उपागम है जो हमें समय के साथ चलना सिखाता है वास्तविक आधुनिकता का सच्चा उपकरण शिक्षा है इसे नकारा नहीं जा सकता। निम्न आधारों पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है –

1 – सामाजिक सकारात्मक परिवर्तन/ Positive Social Change

2 – सांस्कृतिक परिवर्तन / Cultural change

3 – आर्थिक परिवर्तन / Economic change

4 – बौद्धिक परिवर्तन / Intellectual change

5 – मूल्यों व उद्देश्यों में परिवर्तन / Change in values ​​and objectives

6 – विज्ञान व तकनीकी की सहज स्वीकृति / Easy acceptance of science and technology

7 – समन्वय व सामञ्जस्य की बदलती अवधारणा / Concept of coordination and harmony

 8 – कुरीति निवारण में सञ्चारी साधनों का प्रयोग / Use of communicative means in the prevention of      evil.

उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा वह साधन है जो हमें आधुनिकता से जोड़ता है व अन्धानुकरण से बचाता है जो परम आवश्यक है। डॉ सत्य देव सिंह का विचार दृष्टव्य है –

“यदि कोई समाज अन्य समाजों का अन्धानुकरण करता है तो कालान्तर में अन्धानुकरण करने वाला समाज अपना आस्तित्व समाप्त कर सकता है।”

“If a society blindly imitates other societies, then over a period of time the society which blindly imitates its existence.”. 

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शिक्षा

कॉमर्स के विद्यार्थी इण्टर के बाद क्या करें ? What should commerce students do after inter?

July 10, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कॉमर्स वर्तमान समय का एक बहुत व्याहारिक विषय है। बहुधा इन विद्यार्थियों में अधिक व्याहारिक गुण होने की वजह से परिणाम पाने की शीघ्र इच्छा होती है।बाजार वाद व उत्तरोत्तर बढ़ती उपभोक्ता संस्कृति ने इसे आज के परिप्रेक्ष्य में गढ़ने हेतु नए आयाम उपलब्ध कराये हैं। इनमें से कुछ बच्चों के पुश्तैनी प्रतिष्ठान होते हैं तो कई विद्यार्थी अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं। इण्टरमीडिएट परीक्षा परिणाम प्राप्त करने के बाद इनको भी यही समस्या घेरती है की अब क्या करें ?

कालान्तर में व्यवस्थाएं परिवर्तित होती रहती हैं शीघ्र ही वह समय आएगा जब विभिन्न धाराओं कला, वाणिज्य, विज्ञान की जगह विद्यार्थी पसन्दीदा विषय किसी भी  ले सकेंगे। लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में वाणिज्य के कुछ विद्यार्थी गणित विषय बारहवीं में रखते हैं और कुछ नहीं। इससे भी अवसरों में कुछ अन्तर दिखाई देता है।

बारहवीं में गणित के साथ कॉमर्स रखने वाले विद्यार्थी हेतु कोर्स–

Course for students having commerce with mathematics in class XII-

1 – C.A. (Charted Accountancy)

2 – B.C.A. (Bachelor of Computer Applications) or IT and Software

3 – B.F.A. (Bachelor of Finance and Accounting)

4 – B.Com. Honours

5 – B.E. (Bachelor of Economics)

6 – B.I.B.S. (Bachelor of International Business and Finance)

7 – B.J.M.S. (Bachelor of Journalism and mass Communication)

8 – B.Sc. Hons (Mathematics)

9 – B.Sc. Hons (Applied Mathematics)

10- B.Sc. (Statistics)

बारहवीं में गणित के बिना कॉमर्स रखने वाले विद्यार्थी हेतु कोर्स–

Course for students having commerce without mathematics in class XII-

1 – B.Com (Bachelor of Commerce)

2 – C.S. (Company Secretary)

3 – B.B.A. (Bachelor of Business Administration)

4 – Bachelors in Hospitality

5 – Bachelors in Event Management

6 – Bachelors of Management Studies

7 – Bachelors in Travel and Tourism

8 – Bachelors in Hotel Management

9 – Bachelor of Vocational Studies

10 – Bachelor of Journalism

11 – Bachelor of Foreign Trade

12 – Bachelor of Business Studies

13 – Bachelor of Social Work

14 – Bachelor of Vocational Studies

15 – Bachelor of Interior Designing

16 – BA LL.B

17 – BBA LL.B

18 – B.A

19 – B.A (Hons)

20 – B.Sc. Animation and media

बारहवीं कॉमर्स के पश्चात डिप्लोमा कोर्स

Diploma course after 12th commerce –

1 – Diploma in Education

2 – Import Export Diploma

3 – Digital Marketing Diploma

4 – Diploma in Industrial Safety

5 – Diploma In Advance Accounting

6 – Diploma in Computer Application

7 – Diploma in Financial Accounting

8 – Diploma in Business Management

9 – Hospitality Diploma

10 – Diploma in Banking and Finance

11 – Diploma in Retail Management

12 – Diploma in Hotel Management

13 – Diploma in Fashion Designing

बारहवीं कॉमर्स के पश्चात प्रोफेशनल कोर्स

Professional course after 12th commerce –

यदि हम आज के हिसाब से कुछ महत्त्वपूर्ण कोर्स देखना चाहें तो इन्हें इस प्रकार भी क्रमित किया जा सकता है –

1 – GST Course

2 – Income Tax Course

3 – Content Marketing

4 – Digital Marketing

5 – Accounting and Taxation

6 – Air Hostess Training

7 – B.A., B. Com., BBA. etc

8 – BA LL.B

9 – Bachlor of Business Management

        कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रास्ते बहुत सारे हैं बस हमें बहुत सोच समझ कर फैसला करना है। फैसला हो जाने के बाद दृढ़ता से अपनी मंजिल को हासिल करना है। भारत के उत्पादन क्षेत्र को बहुत विस्तृत करने की आवश्यकता है। बाजारवाद का परिदृश्य बदलने हेतु व अपनी मौलिकता को बनाये रखने हेतु वाणिज्य के विद्यार्थियों से देश को बहुत आशा है।

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शिक्षा

इण्टर पास विज्ञानविद्यार्थी क्या करें ? (What should an Intermediate science student do?)

July 3, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जब हम हाई स्कूल उत्तीर्ण कर इण्टरमीडिएट विज्ञान वर्ग में प्रवेश लेते हैं तो तरह तरह के सपने हमारे मनोमष्तिष्क में पल रहे होते हैं यह उम्र ही ऐसी है जो तनाव ,तूफ़ान, सांवेगिक संघर्ष और कल्पना लोकसे हमारा प्रत्यक्षीकरण कराती है लेकिन इण्टर मीडिएट करते करते जागरूक विद्यार्थी के चरण यथार्थ के धरातल को स्पर्श करने लगते हैं। यह काफी कुछ हमारे घर की आर्थिक स्थिति और हमारे मानसिक स्तर से निर्धारित होता है।विविध निरीक्षण बताते हैं कि विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों के साथ उनके मातापिता अन्य वर्ग के विद्यार्थियों की तुलना में अधिक चिन्तित रहते हैं कि अब क्या करें क्या न करें। बच्चे के भविष्य का सवाल है।

आप सभी की समस्या समाधान की ओर यह एक प्रयास है विश्वास है कि यह दिशा बोधक सिद्ध होगा। इण्टर मीडिएट विज्ञान अपने में जीवविज्ञान और गणित के दो दिशामूलक तत्त्व साथ लेकर चलता है। विज्ञान वर्ग से  इण्टरमीडिएट करने के बाद डिप्लोमा कोर्स, कम्प्यूटर कोर्स,फार्मेसी, इन्जीनियरिंग, व चिकित्सा परिक्षेत्र के कई मार्ग खुलते हैं साथ ही मिलते हैं विविध सेवाओं में अवसर। जिन्हे इस प्रकार समझा जा सकता है। –

इण्टर मीडिएट विज्ञान के बाद डिग्री कोर्स (Degree Course after Intermediate Science)-

विज्ञान वर्ग से इण्टर मीडिएट करने के बाद एक वृहद पटल खुलता है जिन्हे यहाँ पर एक एक करके बताने का प्रयास करेंगे निम्नवत डिग्री कोर्स अपनी रूचि, क्षमता, स्थिति के अनुसार किये जा सकते हैं –

बैचलर ऑफ़ साइंस (B. Sc)

बैचलर ऑफ़ एग्रीकल्चर

बैचलर ऑफ़ फार्मेसी

बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी (B. Tech), बैचलर ऑफ़ इन्जीनियरिंग (B.E)

बैचलर ऑफ़ मेडिसिन एन्ड बैचलर ऑफ़ सर्जरी (MBBS)

बैचलर ऑफ़ डेण्टल सर्जरी (BDS)

बैचलर ऑफ़ फीज़ीओथेरेपी (BPT)

बैचलर ऑफ़ होम्योपैथिक मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BHMS)

बैचलर ऑफ़ आयुर्वैदिक मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BAMS)

बैचलर ऑफ़ यूनानी मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BUMS)

माइक्रो बायोलोजी             

बायो टेक्नोलॉजी

बायोइन्फॉर्मेटिक्स / Bioinformatics

जैनेटिक्स

सामान्यतः लम्बे अन्तराल तक यह माना जाता रहा की इण्टर PCM  के बाद बालक इन्जीनियरिंग के क्षेत्र में जायेगा उसे JEE Main की तैयारी करनी चाहिए और IIT की चाह रखने वालों को JEE Main के साथ JEE एडवान्स भी निकालना का प्रयास करने का प्रयास करना होगा। डिप्लोमा कोर्स से जुड़ने हेतु इलेक्ट्रिकल, सिविल, मेकेनिकल, केमिकल इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों से जुड़ा डिप्लोमा कोर्स किया जा सकता है।

दूसरी और चिकित्सा के क्षेत्र में स्थान बनाने हेतु NEET परीक्षा पास करनी होगी और इसके स्कोर के आधार पर MBBS, BDS, BHMS, या BUMS आदि का स्थान मिलेगा।

लेकिन आज पैरा मेडिकल का एक आकाश भी शीघ्र अर्थोपार्जन का जरिया बन सकता है।

12th PCB के बाद पैरामैडिकल कोर्स –

पैरामेडिकल  का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है जो कक्षा 12 वीं के छात्रों के लिए सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री कोर्स प्रदान करता है। पैरामेडिकल  का यह क्षेत्र पैरामेडिकल डिग्री वालों हेतु करियर का बहुत बड़ा आयाम प्रदान करता है  है। इस कोर्स के लिए न्यूनतम योग्यता 50% अंकों के साथ PCB में 12 वीं पास है। 12th PCB के बाद प्रमुख पैरामैडिकल कोर्स बताने हेतु इस प्रकार क्रमित किये जा सकते हैं यथा –

बी एस सी  इन मेडिकल इमेजिंग टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इन एक्स-रे टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इनडायलिसिस टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इन मैडिकल रिकॉर्ड

बी एस सी  इन रेडिओग्राफी

बी एस सी  इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इन एनेस्थिया टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इन ऑप्टोमेट्री

बी एस सी  इन ऑडियोलॉजी एण्ड स्पीच

बी एस सी  इन थिएटर टेक्नोलॉजी

 इसके अलावा बहुत से परिक्षेत्र अपनी जगह बनाते जा रहे हैं।

कम्प्यूटर कोर्स की अपनी एक बहुत बड़ी श्रृंखला  है जिन्हे इण्टर मीडिएट के बाद किया जा  सकता है ।

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शिक्षा

इण्टर पास करने के बाद क्या करें कला वर्ग के विद्यार्थी ?(What should the students of Arts do after passing Inter?)

June 26, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सर्व प्रथम आपको बधाई की आपने जीवन का महत्त्वपूर्ण पड़ाव पार किया है विश्व का बहुत बड़ा पटल आपका स्वागत करने को उत्सुक है। बहुत खुशी होती है की भटकाव की उम्र को धता बता आप जब म्हणत और लगन से इस पड़ाव को पार करते हैं और ऐसे ऐसे प्रश्न पूछते हैं की तबियत खुश हो जाती है लेकिन एक प्रश्न आप सबको चिन्तन के लिए विवश करता है कि अब क्या करें ?

इस प्रश्न का उत्तर सबके लिए अलग अलग होता है क्योंकि सबकी आर्थिक स्थिति, परिस्थितियां, अधिगम स्तर, ऊर्जा स्तर और सपने अलग अलग होते हैं।

इस प्रश्न को सही व सार्थक उत्तर तक ले जाने के प्रयास में ही हुआ है आज का यह सृजन। आपके लिए बहुत से मार्ग खुलते हैं जो आपको आपकी परिस्थिति के अनुसार आगे की पढ़ाई, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम या सेवाकार्य से जोड़ते हैं। विविध कार्यक्रम इस प्रकार हैं –

इण्टर आर्ट्स के बाद डिप्लोमा(Diploma after Inter Arts)-

अध्यापन में डिप्लोमा,विदेशी भाषा में डिप्लोमा,चिकित्स्कीय परिक्षेत्र में डिप्लोमा डिज़ाइनिंग के परिक्षेत्र में डिप्लोमा जैसे फैशन, ज्वैलरी, इंटीरियर, वेब या ग्राफिक्स इनके अलावा भी आज बहुत से नए डिप्लोमा परिक्षेत्र विकसित हो रहे हैं जो आपको शीघ्र कमाने योग्य बना सकते हैं। यथा डिप्लोमा इन 3D एनिमेशन,डिप्लोमा इन मल्टीमीडिया, डिप्लोमा इन एडवरटाइजिंग एंड मार्केटिंग, डिप्लोमा इन ट्रैवल एंड टूरिज्म, डिप्लोमा इन इवेंट मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन साउंड रिकार्डिंग आदि ।

इण्टर आर्ट्स के बाद डिग्री कोर्स (Degree course after inter arts)-
1- बैचलर ऑफ आर्ट्स(बीए)
2-बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए)
3-बैचेलर इन सोशल साइंस
4-बैचेलर इन ह्यूमेनिटी 
5-बैचलर इन जर्नलिज्म 
6-बैचलर ऑफ साइंस (होस्पिटेलिटी एंड ट्रैवल)
7-बीए एलएलबी 
8-बैचलर ऑफ एलीमेन्ट्री एजूकेशन
9-बैचलर ऑफ डिजाइन (एनीमेशन) 
10- विविध कला परिक्षेत्र के ऑनर्स डिग्री कोर्स आदि ।
इण्टर आर्ट्स के बाद सेवाएं (Services after Inter Arts)
शिक्षक /Teacher
वकील /Advocate
फैशन या टेक्सटाइल डिजाइनर/Fashion या textile designer 
होटल मैनेजमेंट / Hotel Management
पत्रकार / Reporter
सरकारी नौकरी /Government job यथा एसएससी मल्टी टास्किंग स्टाफ, एसएससी ग्रेड C और ग्रेड D आशुलिपिक, रेलवे ग्रुप डी (आरआरबी / आरआरसी ग्रुप डी),एसएससी जनरल ड्यूटी कांस्टेबल, आरआरबी सहायक लोको पायलट, इंडियन आर्मी एग्जाम फॉर द पोस्ट ऑफ टेक्निकल एंट्री स्कीम, महिला कांस्टेबलों, सोल्जर्स, कैटरिंग के लिए जूनियर कमीशन अधिकारी।
स्वरोजगार के विविध अवसर (Various self employment opportunities) -
यदि आप नौकर बनने की जगह मालिक बनाना चाहते हैं तो अपने घर के पुश्तैनी कार्य या आपके लिए सम्भव किसी भी स्वरोजगार से स्वयं को जोड़ सकते हैं कोइ कार्य छोटा बड़ा नहीं होता हमारी सोच उसे छोटा बड़ा बनाती है। आप शीघ्र ही कई अन्य को रोजगार देने की स्थिति में आ जाएंगे।
        आज सूचनाएं बिजली की गति से उड़ रही हैं जिन्हे कोई होम सिकनेस नहीं है वे इन अवसरों का लाभ उठा सकते हैं याद रखें एक चूका हुआ अवसर खोई हुई उपलब्धि है कभी हताश निराश  नहीं होना है नित्य बदलता बहुत बड़ा आकाश हमारे सामने है।  परम श्रद्धेय मैथिली शरण जी की पंक्तियों में सन्देश छिपा है आपके लिए -
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।
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मनोविज्ञान

Creativity / सर्जनात्मकता 

June 16, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


सर्जनात्मकता से आशय (Meaning of creativity) :-

इससे आशय आंग्ल भाषा के Creativity से है सर्जनात्मकता शब्द कुछ ऐसे शब्दों द्वारा भी लोगों द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है जो अर्थ में इससे अन्तर रखते हैं जैसे विधायकता, उत्पादकता, खोज आदि जबकि विधायकता से एकत्रीकरण का,उत्पादकता(Productivity) से उत्पादन का और खोज से Search या  Discovery का बोध होता है। सृजनात्मकता को इसका पर्याय या सबसे करीबी माना जा सकता है जब कि सृजन में शून्य का भाव निहित है और सर्जन में वर्तमान या विद्यमान में नवीनता या मौलिकता की सृष्टि करनी पड़ती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सर्जनात्मकता के समानान्तर सृजनात्मकता, रचनात्मक, सर्जक,उत्पन्न करना, बनाना आदि को आवश्यकता नुसार लिया जा सकता है।

सर्जनात्मकता की परिभाषाएं  (Definitions of creativity) :- 

विविध विद्वानों द्वारा इसे विविध रूप से पारिभाषित किया गया है स्टेन महोदय का मानना है –

“When it results in a novel work that is accept as tenable or useful or satisfying by a group at some point in time.” 

“जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी मान्य हो, वह कार्य सृजनात्मकता कहलाता है। ”

एक अन्य विद्वान् मेडनिक महोदय का मानना है कि –

“Creative thinking consists of forming new combinations of associative elements. Which combinations either meet specified requirements or are in some way useful.The more mutually remote the elements of new combinations. The more creative is the process of solution.”

“सर्जनात्मक चिन्तन में साहचर्य के तत्वों का मिश्रण रहता है जो विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संयोगशील होते हैं या किसी अन्य रूप में लाभ दायक होते हैं। नवीन संयोग के विचार जितने कम होंगे,सृजनात्मकता की सम्भावना उतनी ही अधिक होगी।”

क्रो एण्ड क्रो महोदय का विचार है :-

“Creativity is a mental process to express the original outcomes.”

“सृजनात्मकता मौलिक  परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।”

एक अन्य महत्त्वपूर्ण विचारक सी० वी ० गुड  महोदय का मानना है :-

“A quality of thought to be composed of broad continue upon which all members of the population may be placed in different degrees, the factors of creativity are tentatively described as associate and ideational fluency, originality adaptive and spontaneously flexibility and ability to make logical evaluation 

“सर्जनात्मकता वह विचार है जो किसी समूह में विस्तृत सातत्य का निर्माण करता है सर्जनात्मकता के कारक हैं -साहचर्य, आदर्शात्मक मौलिकता, अनुकूलता,सातत्यता,लोच एवम तार्किक विकास की योग्यता।”

उक्त विचारों के आलोक में कहा जा सकता है कि सर्जनात्मकता में मौलिकता, नवीनता, उपयोगिता, संयोग से सृजन, आवश्यकतानुसार सृजन के गुण विद्यमान रहते हैं। जिनका आधार चिन्तन होता है।

  विद्यार्थियों में सृजनात्मकता की वृद्धि के उपाय (Ways to increase creativity in students) –

1- विद्यार्थियों की प्रतिक्रियाओं को उचित सम्मान (Due respect to the responses of the students)

2 – कल्पना आधारित प्रस्तुतीकरण (Imagination Based Presentation)

3 – पाठ्यक्रम में क्रिया आधारित अधिगम को बढ़ावा (Promotion of action based learning in the curriculum)

4 – सूचना संग्रहण, आकलन विश्लेषण का उपयोग (Information collection, use of assessment analysis)

5 – पाठ्य सहगामी क्रियाओं से सृजनशीलता का विकास (Development of creativity through co-curricular activities)

6 – उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग (Use of appropriate teaching methods)

7 – तार्किकता का उन्नयन (Upgrading Logic)

8 – अभिव्यक्ति के समुचित अवसर (Reasonable opportunities for expression)

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शिक्षा

पाठ्यक्रम – आशय, परिभाषा, इसकी प्रकृति व घटक

June 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पाठ्य क्रम से आशय /Meaning of Curriculum

सर्व प्रथम यहाँ शब्द पाठ्यक्रम की  विवेचना कर आशय समझने का प्रयास करते हैं। शब्द पाठ्यक्रम लैटिन भाषा के शब्द  ‘Currere’  शब्द से निकला है जिसका आशय है दौड़ का मैदान (Race Course ) अर्थात पाठ्यक्रम (Curriculum) से आशय उस साधन से  है जिसके द्वारा शिक्षा के मन्तव्य प्राप्त किये जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है की यह वह साधन है जिसके माध्यम से शिक्षा लक्ष्यों की प्राप्ति एक तर्कपूर्ण क्रम का अनुसरण कर प्राप्त की जा सकती है।

शिक्षा की तरह पाठ्यक्रम के आशय के सम्बन्ध में भी दो धारणाएं प्रचलित हैं जिसे संकुचित अर्थ व व्यापक अर्थ के नाम से जाना जाता है। संकुचित अर्थ में पाठ्यक्रम भी केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित है लेकिन व्यापक अर्थ में वे सभी ज्ञान व अनुभव आ जाते हैं जिसे नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से प्राप्त करती है साथ ही विद्यालय में अध्यापकीय संरक्षण में विद्यार्थी द्वारा जो भी क्रियाएं सम्पादित होती हैं सारी की सारी पाठ्यक्रम के तहत स्वीकार की जाती हैं इसके अतिरिक्त पाठ्य सहगामी क्रियाएं भी पाठ्यक्रम का ही भाग होती हैं अर्थात वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पाठ्यक्रम से आशय उसके इसी व्यापक स्वरूप से ही है। 

पाठ्यक्रम की परिभाषाएं / Definition of Curriculum  –

 पाठ्यक्रम की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं। जॉनसन महोदय के अनुसार –

“A curriculum is a structured series of intended learning outcomes.” 

“पाठ्यक्रम भावी सीखने के परिणामों की एक संरचित श्रृंखला है।”

एक अन्य विचारक मोनरो महोदय का मानना है –

“Curriculum embodies all the experiences which are utilized by the school to atain the aims of education.”

“पाठ्यचर्या उन सभी अनुभवों को समाहित करती है जो स्कूल द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।”

भारतीय शिक्षाविद डॉ ० एन ० एल ० शर्मा जी कहते हैं –

“Curriculum is the statement of cource content to be learnt and tought during the course of a specific study within a stipulated time period.”

“पाठ्यचर्या एक निश्चित समय अवधि के भीतर एक विशिष्ट अध्ययन के दौरान सीखी और पढ़ी जाने वाली पाठ्यक्रम सामग्री का विवरण है।”

एक सुप्रसिद्ध चिन्तक Cunningham ने अपने भावों को इस प्रकार शब्दों में ढाला है –

“The curriculum is a tool in the hands of into artist (teacher) is mauld his material (the pupil) according to his ideals (objectives) in the studio (the school).

“पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथों में एक उपकरण है जो स्टूडियो (स्कूल) में अपने आदर्शों (उद्देश्यों) के अनुसार अपनी सामग्री (छात्र) को ढालता है।”

वेण्ट और क्रोनबर्ग के अनुसार

“Curriculum is the systematic from the subject matter which is prepared to fulfil the needs of pupils.”

“पाठ्यचर्या उस विषय वस्तु से व्यवस्थित है जो बालकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार की जाती है।”

इस प्रकार पाठ्यक्रम वह साधन मात्र है जो समय की मॉंग के आधार पर कालानुरूप विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है।

पाठ्यक्रम की प्रकृति (Nature of Curriculum)  –

पाठ्यक्रम की प्रकृति के सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता कि यह स्थाई रहेगी। इसकी प्रकृति में स्थान, काल, दिशा, व्यवस्था,दर्शन  आदि के अनुसार परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं। पाठ्यक्रम हर काल की आवश्यकता के अनुसार स्वयम् को व्यवस्थित कर मानवता का कल्याण करता है।पाठ्यक्रम की मूल प्रकृति मानव कल्याण की है डॉ० सोती शिवेन्द्र सिंह व अन्य द्वारा इसकी विशेषता जिसमें इसकी प्रकृति के दर्शन होते हैं भली भाँति विवेचित किया गया है। जो इसके नाम में ही छिपा है यथा –

C – Central point of Education / शिक्षा का केन्द्रीय बिन्दु

U – Utilization of resources / संसाधनों का उपयोग

R – Reform in Education / शिक्षा में सुधार

R – Remedial actions / उपचारात्मक क्रियाऐं

I – Innovation / Infrastructure management. / नवाचार / बुनियादी ढांचा प्रबन्धन

C – Co-curricular and curricular activities / सह-पाठयक्रम और पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियाँ

U – Understanding of Educational objectives /शैक्षिक उद्देश्यों की समझ

L – List of subjects and activities / विषयों और गतिविधियों की सूची

    (Lectures, Laboratory, Library, Learning Material)

U – Understanding of educational demand./ शैक्षिक माँग की स्थिति की समझ

M – Management of educational process / शैक्षिक प्रक्रिया का प्रबंधन।

पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाले घटक  /  Curriculum Affecting Factors –

शिक्षा व्यवस्था का गहन अध्ययन यह स्पष्ट संकेत देता है कि शिक्षा और पाठ्यक्रम का एक दूसरे से गहन सम्बन्ध रहा है इसी आलोक में पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाले घटकों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।

1 – सामाजिक परिवर्तन

2 – शासन व्यवस्था

3 – अध्ययन समितियाँ 

4 – राष्ट्रीय आयोग व विविध समितियाँ

5 – परीक्षा प्रणाली

6 – उद्देश्यों का प्रभाव 

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शिक्षा

शिक्षार्थी स्वायत्तता / LEARNER AUTONOMY

May 30, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सुविधा की दृष्टि से हमने शिक्षार्थी स्वायत्तता को कुछ भागों में बाँट लिया है।

शिक्षार्थी स्वायत्तता से आशय/ Meaning of learner autonomy

शिक्षार्थी स्वायत्तता का उद्देश्य /Objective of learner autonomy

शिक्षार्थी स्वायत्तता व शिक्षा के अंग /Learner autonomy and part of education

1 – पाठ्यक्रम व शिक्षार्थी स्वायत्तता /Curriculum and learner autonomy

2 – शिक्षक व शिक्षार्थी स्वायत्तता /Teacher and learner autonomy

3 – शिक्षार्थी व शिक्षार्थी स्वायत्तता /learner and learner autonomy

4 – शिक्षण विधि व शिक्षार्थी स्वायत्तता /Method of teaching and learner autonomy

5 – विद्यालय व शिक्षार्थी स्वायत्तता /School and learner autonomy

निष्कर्ष /conclusion

शिक्षार्थी स्वायत्तता से आशय/ Meaning of learner autonomy

शिक्षार्थी की स्वायत्तता को अधिगम कर्त्ता के मनन, चिन्तन, निर्णयन, कार्य इच्छा और और स्वशक्ति पर विश्वास के रूप में परिकल्पित किया जा सकता है। इसे अधिगम कर्त्ता की जिम्मेदारी लेने की क्षमता के रूप में देखा जा सकता है। अधिगम करने वाले को अधिगम हेतु स्वायत्त स्थिति प्रदान करना मानवीय दृष्टिकोण से एक वहनीय जिम्मेदारी है।

शिक्षार्थी की स्वायत्तता के बारे में Henri Holec महोदय का विचार है –

“Autonomy is the ability to take charge of one’s own learning.”

“स्वायत्तता अपने स्वयं के सीखने का प्रभार लेने की क्षमता है।”

Leslie Dickinsion महोदय का विचार है कि 

“Autonomy is a situation in which the learner is totally responsible for all the decisions concerned with his learning and the implementation of those decisions.”

“स्वायत्तता एक ऐसी स्थिति है जिसमें शिक्षार्थी अपने सीखने और उन निर्णयों के कार्यान्वयन से संबंधित सभी निर्णयों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है।”

उक्त विवेचना के आधार पर कहा जा सकता है कि अधिगम कर्त्ता की स्वायत्तता से आशय अधिगम के परिक्षेत्र में उसके सीखने व निर्णयन हेतु स्वयं जिम्मेदारी लेने से है।

शिक्षार्थी स्वायत्तता का उद्देश्य /Objective of learner autonomy

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अपनी जवाबदेही हेतु खुद जिम्मेदारी लेने की प्रवृत्ति को बल मिला है और सभी अपने अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं शिक्षार्थी को गुण  सिखाना ही शिक्षार्थी स्वायत्तता का उद्देश्य है। आज की पीढ़ी निःसन्देह पूर्व पीढ़ी से अधिक जागरूक है और विभिन्न संसाधनों का प्रयोग कर ज्ञान परिक्षेत्र बढ़ा रही है। शिक्षार्थी स्वायत्तता उसे उसके अधिकारों के प्रति सचेष्ट करना एक उद्देश्य मानती है। Phill Bension महोदय लिखते हैं –

“Autonomy is a recognition of the rights of learner within educational system.” 

“स्वायत्तता शैक्षिक प्रणाली के भीतर शिक्षार्थी के अधिकारों की मान्यता है।”

शिक्षार्थी स्वायत्तता का उद्देश्य शिक्षार्थी को प्रभावी निर्णयन क्षमता की दक्षता प्रदान कर उसके परिणामों की जिम्मेदारी स्वीकार करने योग्य बनाती है।

संक्षेप में उद्देश्यों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –

1 – स्वायत्त निर्णय लेने की क्षमता का विकास/Develop the ability to make autonomous decisions

 2 – सहयोग की भावना का विकास / Develop a spirit of cooperation

3 – स्वमूल्यांकन व स्वप्रबन्धन /Self-evaluation and self-management

4 – शिक्षार्थी की सम्प्रभुता को महत्त्व /Importance of learner’s sovereignty

5 – व्यक्तिगत भिन्नता की स्वीकारोक्ति /Acknowledgment of individual difference

6 – आत्मविश्वास वृद्धि /Confidence Increase

7 – सृजनात्मकता का विकास /Development of creativity

8 – शैक्षणिक दवाब में कमी / Reduction of academic pressure

शिक्षार्थी स्वायत्तता व शिक्षा के अंग /Learner autonomy and part of education

परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है शिक्षा जगत को क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिए स्वयं को तैयार करना होगा और शिक्षा के समस्त अंगों को बदलते परिदृश्य के अनुसार शिक्षार्थी स्वायत्तता के अनुरूप स्वयं  ढालना होगा। David Little महोदय ने कहा –

“Autonomy is essentially a matter of the learner’s psychological relation to the process and content of learning.”

 “स्वायत्तता अनिवार्य रूप से सीखने की प्रक्रिया और सामग्री के लिए शिक्षार्थी के मनोवैज्ञानिक संबंध का मामला है।”

1 – पाठ्यक्रम व शिक्षार्थी स्वायत्तता /Curriculum and learner autonomy

2 – शिक्षक व शिक्षार्थी स्वायत्तता /Teacher and learner autonomy

3 – शिक्षार्थी व शिक्षार्थी स्वायत्तता /learner and learner autonomy

4 – शिक्षण विधि व शिक्षार्थी स्वायत्तता /Method of teaching and learner autonomy

5 – विद्यालय व शिक्षार्थी स्वायत्तता /School and learner autonomy

निष्कर्ष /conclusion

आज के परिप्रेक्ष्य में जब हम शिक्षार्थी स्वायत्तता की बात करते हैं समस्त शिक्षा जगत को शिक्षार्थी स्वायत्तता के हिसाब से स्वयं को परिवर्तित करना होगा। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा –

“The boys were encouraged to manage their own affairs, and to elect their own judge, if any punishment was to be given. I never punished them myself.”

“लड़कों को अपने मामलों का प्रबंधन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था, और यदि कोई सजा दी जानी थी, तो अपने स्वयं के न्यायाधीश का चुनाव करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। मैंने उन्हें स्वयं कभी दंडित नहीं किया।”

निष्कर्षतः कहा  सकता है कि इस अवधारणा द्वारा शिक्षार्थी सशक्तीकरण  का नया अध्याय  हेतु शिक्षा जगत को तैयार रहना होगा। शिक्षार्थी को मानसिक सशक्त बनाने में ही शिक्षक व शिक्षा जगत की खुशी छिपी है।

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शिक्षा

योग अवधारणा व अष्टांग योग 

May 21, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


योग –

योग के सम्बन्ध में महर्षि पतञ्जलि से लेकर आजतक के मनीषियों का क्रमिक योग दान रहा है निश्चित रूप से महर्षि पतञ्जलि के व्यवस्थित क्रम देने से पूर्व यह विद्यमान रहा होगा और बहुत से अनुभवों से व लम्बी साधना से इसका  प्रागट्य सम्भव हुआ होगा। यह मानव मात्र को ऋषि मुनि परम्परा की अद्भुत भेंट है। श्रीमद्भगवद्गीता में ज्ञान योग ,भक्ति योग व कर्म योग के बारे में विस्तार से समझाया गया है योग को स्पष्ट रूप से समझने हेतु इन तीन मार्गों ज्ञान योग ,भक्ति योग व कर्म योग को समझना होगा। मानव मात्र में विविध वृत्तियों के दर्शन होते हैं अपनी वृत्ति प्रधानता के आधार पर हमें योग मार्ग का चयन करना चाहिए। जो लोग ज्ञान की और झुकाव रखते हों उन्हें ज्ञान मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।जिन मानवों का झुकाव कर्म की और हो उन्हें कर्म योग के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और भावना प्रधान लोगों को भक्ति मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।  

अष्टाँग योग –

अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि का संयोग है।   

यम –

इससे आशय संयम से है हमें कायिक,वाचिक व मानसिक संयम का परिचय देना होगा। यम को पाँच भागों में विभक्त किया गया है।

a – अहिंसा – विचार को इस कोटि का बनाना है कि हमारे चिन्तन व व्यवहार से प्राणिमात्र के प्रति किसी प्रकार का हिंसात्मक आचरण न हो।

b – सत्य – व्यवहार व सिद्धान्त में समान होना अर्थात मन व वचन द्वारा समान व्यवहार, अनुगमन या अनुसरण किया जाना।  

c – अस्तेय – किसी दूसरे के द्रव्य के प्रति अनासक्त भाव।

d – अपरिग्रह – विषयों के विभिन्न दोषों से विमुख रहना यानी विषयों के अर्जन, रक्षण से विमुक्त भाव रहना।  

e – ब्रह्मचर्य – संयम का परिचय अर्थात गुप्तेन्द्रिय उपस्थ का संयम में रहना।

नियम –

 नियम प्रवृत्तिमूलक होते हैं और शुभ या मंगल कार्यों केप्रति हमारी प्रवृत्ति के परिचायक होते हैं।ये ही शुभ कार्यो हेतु हमें प्रवृत्त कराते हैं  इन्हें पाँच भागों में विभक्त किया गया है –

a – शौच – शौच से आशय आंतरिक व वाह्य शुद्धि से है आन्तरिक से आशय मानस के मलों से निवृत्ति व वाह्य से आशय बाहरी शुद्धि जिसके लिए पहले मिट्टी व जल का प्रयोग होता था और आज साबुन व विविध उपादानों का प्रयोग किया जाता है।

b – सन्तोष – यह शान्ति प्राप्ति का सर्वथा सशक्त उपागम है। जो है जैसा है उसी में सन्तुष्ट रहना। यह गुण ही सन्तोष है। 

c – तप – इससे आशय है सुख दुःख को समान समझने की शक्ति का जागरण जो शरीर को तपाने, दुःख सहने योग्य बनाने, और इस हेतु गर्मी ,सर्दी,बरसात की त्रासदई स्थिति में रहने व कठिन व्रतों के अनुपालन के अभ्यास से है।   

d – स्वाध्याय – नियम, विधि विधान को ध्यान में रखकर धर्म ग्रंथों की स्वयम द्वारा की गई अनवरत साधना। 

e – ईश्वर प्राणिधान – भक्तिपूर्वक ईष्ट के प्रति सम्पूर्ण समर्पण।

आसन –

हमें साधना हेतु शरीर को एक ऐसी स्थिति में रखना होता है जिसमें दीर्घ अवधि तक सुख पूर्वक रहा जा सके.इसी स्थिति को आसन नाम से जाना जाता है। जगत में विविध प्रकार की जीव जातियां हैं उतने ही प्रकार के आसन हैं सिद्धासन,गरुण आसन,भुजङ्गासन, शीर्षासन आदि विविध प्रकार के आसान हैं हाथ प्रदीपिका में इसका सुन्दर वर्णन द्रष्टव्य है आजकल बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण की तत्सम्बन्धी पुस्तक में इसे देखा जा सकता है।

प्राणायाम –

प्राण शक्ति अर्थात श्वांस प्रश्वांस के विविध आयामों को ही प्राणायाम कहा जाता है। प्राणायाम वस्तुतः श्वांस प्रश्वांस का गति विच्छेद ही है। इसमें मुख्यतः पूरक, कुम्भक व रेचक का आधार रहता है पूरक अर्थात श्वांस को पूरा अन्दर की ओर खींचना, कुम्भक से आशय इसके रोके जाने से एवं रेचक से आशय इसके छोड़े जाने से है। इनसे शारीरिक,मानसिक दृढ़ता व चित्त की एकाग्रता में अद्भुत प्रगति देखी जाती है।

प्रत्याहार –

मानव में विविध इन्द्रियों का समागम रहता है जो विविध क्रियाओं का आधार है जब इन्द्रियाँ वाह्य प्रपंचों से मुक्त होकर अर्थात वाह्य विषयों से हटकर चित्त के समान निरुद्ध हो जाती हैं तो यह स्थिति प्रत्याहार है। जब वाह्य जगत में मन विचरण की यात्रा अन्तर्मुखी  अन्दर की यात्रा सुनिश्चित करती है तब प्रत्याहार निष्पन्न होता है इस स्थिति में संसार में रहते हुए सांसारिक वस्तुएं साधक को बाँध नहीं पातीं।

धारणा –

चित्त को किसी एक स्थान पर स्थिर कर देना धारणा कहलाता है जैसे हृदय कमल में ,नाभि चक्र में या किसी भी बाहर की वस्तु में  स्थिर कर देना धारणा कहलायेगा।

ध्यान –

ध्यान की अवस्था में ध्येय का निरन्तर मनन किया जाता है और विषय का ज्ञान स्पष्ट रूप से प्राप्त हो जाता है एवम् इस तरह से योगी के मन में ध्येय वस्तु का यथार्थ स्वरुप प्रगट हो जाता है। अतः जब ध्येय वस्तु का ज्ञान एकाकार रूप लेनेलगता है तो उसे ध्यान कहते हैं।

समाधि –

योग का अन्तिम लक्ष्य व्यक्ति को पूरी तरह से अन्तर्मुखी बनाना है समाधि, चित्त की वह अवस्था है जिसमें प्रतीति केवल ध्येय की ही होती है और चित्त का अपना स्वरुप शून्य सा हो जाता है।

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शिक्षा

शिक्षक की जवाबदेही/TEACHER’S ACCOUNTABILITY

May 19, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षक अपने दायित्वबोध को समझ कर कई कार्यों को अंजाम देता है वे कार्य व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जन आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम बनते हैं। एक शिक्षक की जवाब देही को भौतिक जगत बांधने की कोशिश कर सकता है लेकिन वह प्रकृति, पशु पक्षियों और सम्पूर्ण मानवता के प्रति जवाब देह है।आज बदलती हुई परिस्थितियों में शिक्षक के प्रति समय की अवधारणाओं ने करवट ली है जिससे जनमानस की सोच और आज के शिक्षक के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है।

बदलते हुए काल ने बाजारवाद का प्रभाव हर परिक्षेत्र पर छोड़ा है और अध्यापकीय परिवेश भी इससे अछूता नहीं है।श्रीवास्तव एवं पण्डा ने अपने 2006 के शोध में दर्शाया –

“शिक्षकों की जवाबदेही से तात्पर्य है कि शिक्षक दिए गए उत्तरदायित्वों को किस मात्रा व् किस सीमा तक निभाता है। ऐसा न करने पर वह कारण बताने पर बाध्य होता है। जवाबदेही अथवा प्रतिबद्धता किसी अधिकारी द्वारा सॉंप गए कार्य को गुणात्मक एवं सर्वोत्तम रूप से अधिकारी के निर्देशन अनुरूप करने का बंधन एवं कार्य है।” 

हुमायूं कबीर के वे शब्द याद आते हैं –

“शिक्षक ही राष्ट्र के भविष्य निर्माता हैं।”

इस तरह के विचार जवाबदेही हेतु और विवश करते हैं। जिसे हम इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।

शिक्षक की जवाबदेही का वर्गीकरण  [Classification of teacher accountability]-

A – व्यक्तिगत जवाब देही (Personal accountability)

(1) – स्वयं के प्रति

                        (2) – स्वयं के छात्र के प्रति

B – सामाजिक जवाब देही (Social accountability)

1 – सामाजिक आदर्श स्थापन हेतु

2 – भविष्य की दिशा निर्धारण हेतु

3 – सामाजिक कुरीति उन्मूलन हेतु

4 – सामाजिक सुदृढ़ीकरण हेतु जवाब देही

 C - राष्ट्र के प्रति जवाबदेही (Accountability to the nation)

                        (1) – एकता हेतु 

                        (2) – अधिकारियों के प्रति जवाबदेही

(3) – राष्ट्रोत्थान हेतु जवाबदेही

(4) – विश्वबन्धुत्व हेतु जवाबदेही

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शिक्षा

TEACHER AUTONOMY/शिक्षक स्वायत्तता

May 18, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षक स्वायत्तता से आशय उस शक्ति से है जिससे एक अध्यापक को अपना स्वयं पर फैसला करने का अधिकार मिलता है यहाँ स्वयं पर फैसला से तात्पर्य स्वयं के दायित्वबोध के निर्वहन हेतु उपयुक्त विधि के प्रयोग से लिया जा सकता है वह अपने कार्यों के सम्पादन हेतु सम्प्रभु है। वास्तव में स्वायत्तता एक प्रकार की सम्प्रभुता ही है जिससे निर्णय लेने में उत्तमता आती है।

उक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि स्वायत्तता से आशय है किसी अन्य के हस्तक्षेप के बिना व्यक्ति विशेष , राज्य, संस्था,का देश के अधिकार क्षेत्र में विषयों और मामलों में स्वतन्त्र निर्णय लेना।

कॉलिन्स (Collins) महोदय कहते हैं कि   –

“स्वायत्तता का अर्थ उस योग्यता से लगाया जा सकता है जो व्यक्ति को दूसरों के कथनों या विचारों से प्रभावित होने के बजाय स्वयं निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है।”

शिक्षक स्वायत्तता का कार्य क्षेत्र (Scope of teacher autonomy)

[A] – विद्यालय परिक्षेत्र में (In school premises)

[B] – विद्यालय परिक्षेत्र के बाहर (Outside school premises)

[A] – विद्यालय परिक्षेत्र में (In school premises)

        1 – पाठ्य क्रम सम्प्रेषण

        2 – शिक्षण विधियों के प्रयोग में

        3 – विद्यालय का वातावरण

        4 – पाठ्य सहगामी क्रियाओं में

        5 – समाज उत्पादक कार्यों से सम्बद्धता

        6 – अनुशासन

        7 – शिक्षक छात्र सम्बन्ध

[B] – विद्यालय परिक्षेत्र के बाहर (Outside school premises)

         1 – पाठ्य क्रम निर्माण में सहभागिता

         2 – शिक्षा सम्बन्धी नीति निर्णयन

         3 – प्रश्न पत्र निर्माण।

         4 – मूल्याङ्कन व सुधार

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