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शिक्षा

CURRICULUM EVALUATION

April 28, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन

काल चक्र के परिभ्रमण के साथ जो पाठ्यक्रम बनाया जाता है उसके मूल्यांकन द्वारा ही यह औचित्य सिद्ध होता है कि यह प्रासंगिक है अथवा नहीं। पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन में यह जानने का प्रयास निहित है कि जिन व्यवहार गत परिवर्तनों, उद्देश्यों, निर्देशनों, दिशाओं और मार्ग दर्शन की अपेक्षा पाठ्यक्रम से की गयी थी वह कहाँ तक प्राप्त हुए हैं विविध स्तरों पर विविध विद्यालयी पाठ्यक्रम समाज, राष्ट्र, व्यक्ति, नैतिकता, मूल्य आदि को ध्यान में रखने के साथ ज्ञान के बोधात्मक स्तर के  विकास  को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं और अन्त में पाठ्यक्रम मूल्यांकन में इन्हे ही जानने का प्रयास किया जाता है कि उक्त उद्देश्य किस स्तर तक प्राप्त हुए हैं। इसी आधार पाए उत्तीर्ण और अनुत्तीर्ण की अवधारणा का विकास हुआ।

आशय व परिभाषा (Meaning and definition) –

पाठ्यचर्या विकास का एक महत्त्वपूर्ण नितान्त आवश्यक चरण है पाठ्यचर्या मूल्याङ्कन। इसके माध्यम से ही यह ज्ञात किया जाता है कि पाठ्यक्रम अपना उद्देश्य प्राप्त कर पा रहा है या नहीं। साथ ही यह अधिगम में कितना सहयोगी सिद्ध हो रहा है यह भी मूल्याङ्कन से ही ज्ञात होता है। डेविस 1980 ने बताया –

“It is the process of delineating obtaining, and providing information useful for making decisions and judgement about curricula.”

“यह पाठ्यक्रम के बारे में निर्णय लेने और निर्णय लेने के लिए उपयोगी जानकारी प्राप्त करने और प्रदान करने की प्रक्रिया है।“

एक अन्य विचारक मार्श (2004) ने बताया –

“It is the process of examining the goals, rationale and structure.”

“यह लक्ष्यों, तर्क और संरचना की जांच करने की प्रक्रिया है।“

Criteria and process of Good Curriculum Evaluation / अच्छे पाठ्यचर्या मूल्यांकन के मानदण्ड और प्रक्रिया-

यद्यपि पाठ्यचर्या मूल्यांकन के परिक्षेत्र में बहुत कार्य होना शेष है फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि पाठ्यचर्या मूल्यांकन में निम्न मानदण्डों को ध्यान में रखना चाहिए तथा मूल्याङ्कन प्रक्रिया हेतु इन्हीं बिन्दुओं को तरजीह दी जानी चाहिए।

01 – निर्धारित उद्देश्य प्राप्यता / Attainment of set objective

02- वस्तुनिष्ठता / Objectivity

03- क्रम बद्धता / Sequentiality

04- विश्वसनीयता / Reliability

05- वैधता /Validity

06- व्यापक दृष्टिकोण / Broad perspective

07- दूरदर्शिता / Foresight

08- व्यावहारिकता / Practicality

09 – सहभागिता / Participation

पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन के प्रकार / Types of curriculum evaluation

पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन मुख्य रूप से तीन प्रकार का कहा जा सकता है जो इस प्रकार हैं –

1 – निर्माणात्मक मूल्यांकन / Formative evaluation –

यह पाठ्यक्रम विकास के दौरान होता है। इसका उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रम के सुधार में योगदान देना है। किसी कार्यक्रम की खूबियों का मूल्यांकन उसके विकास की प्रक्रिया के दौरान किया जाता है। मूल्यांकन परिणाम प्रोग्राम डेवलपर्स को गति प्रदान करते हैं और उन्हें प्रोग्राम में पाई गई खामियों को ठीक करने में सक्षम बनाते हैं।

2- योगात्मक मूल्यांकन / Summative evaluation –

योगात्मक मूल्यांकन में किसी पाठ्यक्रम के अंतिम प्रभावों का मूल्यांकन उसके बताए गए उद्देश्यों के आधार पर किया जाता है। यह पाठ्यक्रम के पूरी तरह से विकसित होने और संचालन में आने के बाद होता है।

3- नैदानिक ​​मूल्यांकन / Diagnostic evaluation –

नैदानिक ​​​​मूल्यांकन दो उद्देश्यों की ओर निर्देशित होता है या तो छात्रों को निर्देशात्मक स्तर (जैसे माध्यमिक विद्यालय) की शुरुआत में उचित स्थान पर रखना या अध्ययन के किसी भी क्षेत्र में छात्रों के सीखने में विचलन के अंतर्निहित कारण की खोज करना।

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शिक्षा

INDIAN FESTIVALS AND THEIR ARTISTIC SIGNIFICANCE IN EDUCATION

April 22, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

भारतीय पर्वों का शिक्षा में कलात्मक महत्त्व

किसी भी देश की पहचान उसकी संस्कृति पर अवलम्बित होती है और इस संस्कृति का विकास दीर्घकालिक सभ्यता और उस क्षेत्र के व्यक्तित्वों के कठिन प्रयासों से गढ़ा जाता है।जब किसी राष्ट्र की पीढ़ियाँ दीर्घकाल तक मर्यादाओं और परम्पराओं का अनुपालन करती हैं तब रीति रिवाज और धरती से जुडी व्यवस्थाओं का उद्भव होता है। वे सर्वस्वीकार्य तब हो पाती हैं जब उनसे आस्था और विश्वास जुड़ता है। इन आस्था, विश्वास, परम्पराओं का सहज जुड़ाव पर्वों से इस प्रकार हो जाता है कि पर्व और कला आपस में इतने गुत्थमगुत्था हो जाते हैं कि समरस हो जाते हैं।

भारत पर्वों का देश है इससे लोक कलाएं स्वाभाविक रूप से ऐसी जुड़ गई हैं जिससे अलगाव की सोच भी मानस को  व्यथित करती है। भारत में जहां विविधताओं के दर्शन होते हैं वहीं देवी देवताओं के प्रति अगाध श्रद्धा भाव परिलक्षित होता है यहाँ भूमि पूजन किया जाता है और पृथ्वी को माँ कहा जाता है। यहाँ का सहज उद्घोष है –

 ‘जननी  जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’‘

धरती माँ के प्रति श्रद्धा की अभिव्यञ्जना अलग अलग परिक्षेत्र में विविध रूपों में होती है और इन सब का आधार बनती है कला।कला से माँ का श्रृंगार कर मानस को आध्यात्मिक आलम्बन मिलता है। विविध त्यौहारों पर धार्मिक भावना का प्रगटन विविध कलात्मक स्वरूपों  से दृष्टिगत होता है।

कलात्मक महत्ता स्थापित करती रीतियाँ व पर्व (Rituals and festivals establishing artistic importance) –

माँ भारती का श्रृंगार भूमि व भित्ति के विविध श्रंगारों में विविध पर्वों पर स्वाभाविक रूप से दिखाई पड़ता है। कुछ को यहाँ उल्लिखित करने का प्रयास है यथा

1 – रंगोली – भारत के विभिन्न प्रान्तों में रंगोली के विविध स्वरुप दृष्टिगत होते हैं वर्तमान में रंगोली बनाने हेतु गेहूँ या चावल का आटा, हल्दी, विभिन्न रंगों के लकड़ी व पत्थर के बुरादे, अबीर, गुलाल, खड़िया, विविध भूसी, विविध रंगीन चूर्ण आदि प्रयुक्त होता है। इस माध्यम से भूमि को विविध रूप अलंकृत करते हैं इनमें पत्तियों, फूलों, बेलबूटों, मङ्गलमय प्रतीकों  का प्रयोग दीख पड़ता है लेकिन इस माध्यम से ईश्वर का स्वागत (Welcome to God) अभिव्यंजित होता है। विकीपीडिया के अनुसार –

“रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा और लोक कला है अलग अलग प्रदेशों में रंगोली के नाम और उसकी शैली में भिन्नता हो सकती है लेकिन इसके पीछे निहित भावना और संस्कृति में पर्याप्त समानता है। इसकी यही विशेषता इसे विविधता देती है और इसके विभिन्न आयामों को भी प्रदर्शित करती है।”

2 – माण्डना  – यह राजस्थानी लोक कला का बेहतरीन उदाहरण है वहाँ मेहँदी माण्डने की प्रथा भी पुरातन काल से प्रचलित है विवाहित, कुँवारियाँ विविध त्योहारों पर हाथ, पैरों पर मेहँदी माण्डने का कार्य उत्साह पूर्वक करती रही हैं आज यह शरीर के विविध अंगो तक विस्तार प् चूका है और पुरुष भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। राजस्थान में विविध पर्वों, विवाह समारोहों,और उत्सवों में आज भी इसकी धूम देखी जा  सकती है। यह आलेखन केवल भूमि तक सीमित नहीं है बल्कि दीवारों,खम्भों,वाहनों आदि पर भी इन्हें बनाया जाता है। दीवाली पर चमकदार रंगों से और होली पर विविध अबीर ,गुलाल व् अन्य रंगों तक से यह चित्रण किया जाता है।

3 – अल्पना – इसमें ज्यामितीय चित्रण की प्रधानता रहती है बंगाल में इसका अधिक प्रचलन है गीली खड़िया, पत्र रस, हल्दी, चावल का अहपन आदि से विभिन्न त्यौहारों पर दीवारों पर देवी देवताओं का चित्रण किया जाता है। विधिवत पूजा भी की जाती है।

4 – गोदना – शरीर की खाल पर गुदना गुदाने की प्रथा बहुत प्राचीन है इसमें कुछ भी चित्रित करवाया जा सकता है अपने ईष्ट का चित्र, नाम, गहना, पुष्प, बेल बूटे, कुल देवता, विविध वंशों से जुड़े चित्र, विविध पर्वों के आराध्य आदि।

5 – साँझी – यह कला उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में अधिक प्रचलित है इसमें सम्पूर्ण चित्रण गोबर की पतली पतली बत्तियों के माध्यम से किया जाता है इससे सम्पूर्ण आकृति को पूर्ण कर लिया जाता है और पत्तियों व गहनों का प्रयोग कर उसे और प्रभावी बनाया जाता है विविध फिल्मों में आपने ये आकृतियाँ देखि होंगी। नवरात्रि के देवी स्वरुप की परम्परागत रूप से साँझी के माध्यम से आज भी बनाया और पूजा जाता है।

6 – विविध पर्वों पर विशिष्ट कलात्मक चित्रण –

भारत में यूँ तो विविध पर्वों की लम्बी श्रृंखला कला से युक्त रही है यहाँ कुछ को देने भर का प्रयास है।

i – अहोई

ii – करवा चौथ

iii – गोवर्धन पूजा

iv – चित्र गुप्त पूजा

v  – जन्माष्टमी

vi – दुर्गा पूजा

            अन्ततः कहा जा सकता है कि भारत में पर्वों और कलाओं का अटूट सम्बन्ध है सामाजिक अभिव्यक्त का कलाएं प्रबलतम साधन हैं और भारत में उत्तरोत्तर आनन्द प्राप्ति का कला पवित्र साधन है। कला और पर्व का यह सम्मिलन हमें सत्यम्, शिवम्,सुन्दरम्,से जोड़ता है।

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शिक्षा

नींद / SLEEP

March 12, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कभी कभी हम किसी को देखकर अनायास ही कह उठते आज आप बहुत तरोताज़ा दिख रहे हैं जवाब मिलता है आज वास्तव में पूरी गहरी नींद लेने को मिली है। सचमुच नींद किसी वरदान से कम नहीं कही जा सकती। एक अच्छी नींद शरीर के सभी अंगों हेतु टॉनिक का काम करती है जब हम सोते हैं तो हमारे शरीर के कई अंग विषाक्त पदार्थों को साफ़ करते हैं नींद शरीर के अन्दर के भागों के साथ त्वचा हेतु भी बहुत आवश्यक है। हमारे आँख बन्द करने से शरीर के दूसरे अंग आम करना बन्द नहीं करते। नाइट शिफ्ट में काम करने वाले मेहनतकश विविध स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहते हैं।

नींद से आशय / Meaning of sleep –

विकिपीडिया के अनुसार –

“निद्रा एक उन्नत निर्माण क्रिया विषयक (एनाबोलिक) स्थिति है, जो विकास पर जोर देती है और रोगक्षम तन्त्र (इम्यून), तंत्रिका तंत्र, कंकालीय और मांसपेशी प्रणाली में नई जान दाल देती है सभी स्तनपायियों में, सभी पक्षियों और अनेक सरीसृपों, उभयचरों और मछलियों में इसका अनुपालन होता है।”

एक अन्य परिभाषा के अनुसार –

“निद्रा अपेक्षाकृत निलंबित संवेदी और संचालक गतिविधि की चेतना की एक प्राकृतिक बार बार आने वाली रूपांतरित स्थिति है जो लगभग सभी स्वैछिक मांसपेशियों की निष्क्रियता की विशेषता लिए होता है।“

इतिहास वेत्ता डॉ ० निर्मल कुमार के अनुसार –

“निद्रा प्राकृतिक रूप से शरीर को तरोताज़ा रखने का उपाय है।”

जबकि डॉ ० कविता का मानना है -“निद्रा एक ऊर्जावान शक्ति के रूप में नई सुबह का आभास कराती है व अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु दृढ़ बनाती है।”

इसी क्रम में डॉ०  शालिनी ने बताया -“शारीरिक व मानसिक टूटफूट को व्यवस्थित कर निद्रा अग्रिम कार्यों हेतु स्वस्थ उपादान है।”

उक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से यह तो स्पष्ट है कि पूरी नींद शरीर हेतु आवश्यक है।

अनिद्रा के कारण –

अनिद्रा के बहुत से कारण हैं उनमें से कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं –

01 – भूख से अधिक भोजन

02 – मानसिक तनाव

03 – परिश्रम की कमी

04 – प्रमाद

05 – गृह क्लेश

06 – अनियमित श्रम

07 – अंग्रेजी औषधि व कैफीन युक्त पदार्थों का अधिक सेवन

08 – चिन्ता

09 – उच्च आकांक्षा स्तर

10 –  डर

11 – सन्तोष का अभाव

इस सम्बन्ध में एक कवि ने तो यहां तक कहा कि –

सरस्वती भूखी कविता है, लक्ष्मी को सन्तोष नहीं है।

और और की चाह और है मरघट आया होश नहीं है।

नींद पूरी न होने के नुकसान –

01 – व्यवहार दुष्प्रभावित

02 – शारीरिक स्वास्थ्य ह्रास

03 – मानसिक स्वास्थय दुष्प्रभावित

गम्भीर चिन्तक डॉ ० जे ० पी ० गौतम का विचार है –

निद्रा वह दशा है जो व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक थकान को दूर कर नवऊर्जा के संचरण का कारण बनती है। “

04 – कार्य क्षमता ह्रास

05 – क्रोध वृद्धि

06 – अवसाद

07 – मानसिक तनाव

08 – निर्णयन दुष्प्रभावित

09 – स्मृति ह्रास

10 – दुर्घटना वृद्धि

11 – मोटापा

12 – व्याधि निमन्त्रण

13 – रोग प्रतिरोधी क्षमता में ह्रास

14 – सृजनात्मक चिन्तन ह्रास

भूगोल वेत्ता डॉ ० टी ० पी ० सिंह का विचार है –

“निद्रा मानव जीवन हेतु ऊर्जा का वह प्राकृतिक स्रोत है जो किसी भी जीव या मानव में पुनः ऊर्जा व्यवस्थापन करता है। “

15 –  जैविक घड़ी दुष्प्रभावित

16 – थकान व निराशा

अच्छी नींद हेतु उपाय  –

01 – शारीरिक श्रम

एक प्रमुख शिक्षाविद डॉ ० राज कुमार गोयल ने कहा –

“चेतन मन की क्रियाओं को निरन्तर सुव्यवस्थित रूप से करने हेतु महत्त्वपूर्ण साधन है निद्रा।”

02 – नियमित व्यायाम व भ्रमण

आँग्ल भाषा के विद्वान् डॉ ० एस ० डी ० शर्मा  का विचार है –

“नींद शरीर की ऊर्जा को पुनर्जीवित करने का प्रमुख नैसर्गिक साधन है।”

03 – प्राणायाम व ध्यान

04 – तेल मालिश

05 – अँगुलियों के अग्र भाग पर दवाब

06 – गर्दन के पीछे अँगूठे से दबाना

07 – आराम दायक बिस्तर

08 – सोने जागने का समय निर्धारण

मेरे अनुसार –

जल्दी सोऊँगा जल्दी उठ जाऊँगा,

तेल मालिश करूँ, जोर अजमाऊँगा

है अखाड़े की मिट्टी बुलाती मुझे,

मैं वहाँ जाऊँगा हाँ वहाँ जाऊँगा।

09 – नशे से परहेज

10 – अंग्रेजी दवा व कैफीन का न्यूनतम प्रयोग

बचपन की याद मेरे शब्दों में –

बिन कहानी के दादी सुलाती न थीं

बिना पौ फटे वो जगाती न थीं

रात भर नींद तुमको क्यों आती नहीं

नींद की गोलियाँ तो जरूरी न थीं।  

11 – स्वस्थ व सकारात्मक चिन्तन

12 – गरिष्ठ भोजन से बचाव

13 – सन्तुलित आहार

14 – स्वस्थ आदत निर्माण

मेरे विचार में –

रात भर जागने से क्या फ़ायदा, भोर का वक़्त निद्रा में खो जाएगा,

रात में नींद लेने का है क़ायदा, गर भूलोगे  इसे भाग्य  सो जाएगा।

15 – स्वास्थ्य मूल्य निर्धारण

कुछ आदतें ऐसी होती हैं जो जीवन बदलने की क्षमता रखती हैं और यदि आप इसे सम्पूर्ण देखते व पढ़ते हैं तो निश्चित रूप से आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होगा। पूर्ण नींद न लेने के क्या नुकसान हैं। नींद न आने के क्या कारण हैं ?अच्छी नींद लाने के क्या उपाय हैं यह सब जानकर अपने जीवन में सार्थक परिवर्तन किया जा सकता है।

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शिक्षा

ELECTIC TENDENCIES IN EDUCATION / शिक्षा में उदार प्रवृत्तियाँ

March 10, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

याद रहे यहाँ उदारवाद (Liberalism) और उपयोगितावाद(Utilitarianism) की बात करने नहीं जा रहे हैं उदारवाद व  उपयोगितावाद आपके शिक्षा शास्त्र के इस पाठ्यक्रम का हिस्सा न होकर यहाँ केवल उदार प्रवृत्तियों की बात है।

शिक्षा में उदार प्रवृत्तियों से आशय  (Meaning of liberal tendencies in education) –

प्रवृति का अर्थ आदत और स्वभाव होता है। शिक्षा के परिक्षेत्र में क्या उदार दृष्टिकोण उद्भवित हुआ है ? इसी का अध्ययन यहाँ किया जाना है। ज्ञान की विकास यात्रा में शिक्षा विविध काल में विविध विचारों से प्रभावित होती रही है यदि हम यूरोप के प्राचीन काल  वर्णन करें तो हमें देखने को मिलता है कि उस समय स्वामी और सेवक की शिक्षा में अन्तर दृष्टिगत होता है। राजा, स्वामी, जमींदार आदि को उदार शिक्षा प्रदान की जाती थी जबकि जनसाधारण को शिल्प या व्यवसाय सिखाया जाता था। उदार शिक्षा में धर्म शास्त्र, नीति शास्त्र, राजनीति, साहित्य, कला, इतिहास, संगीत आदि प्रधान रूप से सिखाया जाता था। शिक्षा में उदार दृष्टिकोण का सम्यक विकास हेतु हर सम्भव प्रयास होते थे। जो शिक्षा स्वभाव और आदतों में उदार भाव को प्रश्रय प्रदान करे वही उदार शिक्षा की श्रेणी में आती थी।

               उदार प्रवृत्ति की शिक्षा सामान्य शिक्षा है जिसमें साहित्य, कला, संगीत, इतिहास, नीति शास्त्र, राजनीति शास्त्र आदि की शिक्षा की प्रधानता होती है। जिनका सम्बन्ध उदार मन, विशाल मनस से होता है। उपयोगिता वादी शिक्षा में आर्थिक प्रश्न जुड़े रहते हैं यह व्यावहारिक, व्यावसायिक, कार्योन्मुख, क्रिया केन्द्रित, अर्थोपार्जन व जीविकोपार्जन मात्र के उद्देश्यों को लेकर चलती है।

उदार प्रवृत्ति शिक्षा के उद्देश्य / Objectives of Liberal Education –

उदार प्रवृत्ति शिक्षा सम्पूर्ण व्योम के उत्थान जैसे महती उद्देश्य को लेकर चलती है और भारत के इस उद्देश्य का ही उद्घोष करती है –

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

उदार प्रवृत्ति के आलोक में शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार निर्धारित किये जा सकते हैं।

1 – उदार मूल्य स्थापन

2 – चारित्रिक विकास

3 – उत्तम स्वास्थय 

4 – शिवम्  प्रवृत्ति

5 – सत्य आलम्बन

6 – सुन्दरम् स्थापन 

7 – आध्यात्मिक उत्थान

8 – आत्मोत्सर्ग की भावना

शिक्षा के विविध अंगों पर उदार प्रवृत्तियों का प्रभाव / Impact of liberal tendencies on various parts of education –

समस्त ज्ञानालोक ही उदार प्रवृत्ति शिक्षा के परिक्षेत्र में आता है लेकिन यहॉं हम प्रमुख अंगों पर उदार प्रवृत्ति शिक्षा के प्रभावों का अध्ययन करेंगे।

1 – शिक्षक (Teacher) –

शिक्षा में उदार प्रवृत्ति के अवतरण का प्रभाव आचार्य पर साफ़ परिलक्षित हो रहा है वह वर्तमान की शिक्षण सहायक सामग्री को अधिगम प्रभावी बनाने हेतु सम्यक प्रयोग कर रहा है। आज के अध्यापक ने विविध पुरानी सड़ी गली मान्यताओं का परित्याग कर उदारता को स्वयं में प्रश्रय दिया है और समस्त विद्यार्थियों के उत्थान हेतु यथा सम्भव प्रयासरत है यद्यपि शासन अध्यापकों के साथ न्याय में असफल रहा है लेकिन अध्यापक ने कर्त्तव्य की बलिवेदी पर यथा सम्भव स्वयं की आहुति दी है घर और समाज का कलुषित वातावरण, प्रतिकूल वातावरण उदात्त भावना का बाधक नहीं बन सका है। बालक का उदार दृष्टिकोण युक्त सर्वाङ्गीण विकास विद्यालय और सच्चे अध्यापक का ध्येय है। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डॉ राम शकल पाण्डेय ने लिखा। –

“आओ हम अपने समस्त विवादों एवं आपसी कलह को समाप्त कर स्नेह की इस भव्य धारा को सर्वत्र प्रवाहित कर दें।”

“Let us end all our disputes and mutual discord and let this grand stream of love flow everywhere.”

2 – विद्यार्थी (Student) –

शिक्षा के उदार दृष्टिकोण से प्रभावित शिक्षा में विद्यार्थी मानवीय उदार दृष्टिकोण से युक्त होना चाहिए। हर तरह के कट्टर दृष्टिकोण से विरत होकर मानवता का उत्थान और सम्यक दृष्टिकोण का विकास उदार शिक्षा का ध्येय है। शिक्षा की उदार प्रवृत्ति विद्यार्थी में विश्वबन्धुत्व और आवश्यक गुण  ग्राह्यता पर जोर देती है इसी लिए कहा गया कि –

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्!!

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् !!

3 – पाठ्यक्रम (Syllabus) –

समय के साथ कदमताल करते हुए शिक्षा ने अपने स्वरुप में विविध परिवर्तन किये हैं पहले इसमें साहित्य, कला, सङ्गीत, इतिहास, नीति शास्त्र, राजनीति विज्ञान आदि को ही प्रश्रय मिला था लेकिन आज की आवश्यकता के अनुरूप विविध विज्ञानों व व्यावहारिक तकनीकी ज्ञान को भी अब इसमें समाहित किया गया है।

विकिपीडिया का दृष्टिकोण है –

उदार शिक्षा (Liberal education) मध्ययुग के ‘उदार कलाओं’ की संकल्पना (कांसेप्ट) पर आधारित शिक्षा को कहते है। वर्तमान समय में ‘ज्ञान युग’ (Age of Enlightenment) के उदारतावाद पर आधारित शिक्षा को उदार शिक्षा कहते हैं। वस्तुतः उदार शिक्षा’ शिक्षा का दर्शन है जो व्यक्ति को विस्तृत ज्ञान, प्रदान करती है तथा इसके साथ मूल्य, आचरण, नागरिक दायित्वों का निर्वहन आदि सिखाती है। उदार शिक्षा प्रायः वैश्विक एवं बहुलतावादी दृष्टिकोण देती है।

अतः उक्त से सम्बन्धित सभी विषय पाठ्यक्रम में समाहित होंगे।

4 – शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) –

अधिगम को प्रभावी बनाने हेतु पारम्परिक शिक्षण विधियों के साथ नवाचार से जन्मी शिक्षण विधियों का इस परिक्षेत्र में स्वागत है सामान्यतः प्रवचन विधि, व्याख्या विधि, प्रदर्शन विधि, तार्किक विधि, उदाहरण विधि, व्याख्यान विधि, शास्त्रार्थ, सेमीनार और विविध नव सञ्चार विधियों को इसमें सम्यक स्थान प्राप्त है। मनोवैज्ञानिक विधियों के साथ जो भी नवीन शिक्षण विधियाँ उदार शैक्षिक दृष्टिकोण विकास में सहयोग प्रदान कर सकती हैं उपयोग में लाई जा सकती हैं।

5 – अनुशासन (Discipline) –

उदार दृष्टि कोण ध्येय समर्पित है अतः इसमें ऐसी उच्छृंखलता को कोई स्थान नहीं है जो ध्येय प्राप्ति में बाधा बने। स्वतः अनुशासन ही इसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। विविध स्वतन्त्रता यथा समय, स्थान, दृष्टिकोण, विषय चयन के साथ यह अनुशासन दिखावा नहीं चाहता। बिना स्वयं को अनुशासित किये और बिना गम्भीर प्रयासों के उदात्त दृष्टिकोण के विकास की सोच भी भ्रामक रहेगी। इसीलिये पूर्ण मनोयोग से स्वानुशासन पर विवेक सम्मत जोर देना होगा।

नई शिक्षा नीति 2020 और उदार शिक्षा प्रवृत्ति  (New education policy 2020 and liberal education trend) –

NEP 2020 ने भी प्रत्येक शैक्षिक स्तर पर उदार शिक्षा प्रवृत्ति को पारिलक्षित किया है।  स्नातक स्तर पर एक वर्ष पढ़ने पर सर्टिफिकेट ,दो वर्ष अध्ययन पर डिप्लोमा, तीन वर्ष अध्ययन पर डिग्री प्राप्त होना उदार शिक्षा का ही लक्षण है इसके अलावा विविध विषयों के चयन की स्वतन्त्रता, व्यावहारिक विषय से जुड़ने के अवसर प्रदान कर नई शिक्षा नीति 2020 ने  उदार शिक्षा प्रवृत्ति का ही परिचय दिया है।

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शिक्षा

बाधा ( Barrier )

February 21, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है

मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।

साथियों जीवन में उतार – चढ़ाव, ऊँच – नीच, उठना – गिरना, खुशी – ग़म, विश्वास – धोखा, दिन -रात, उजाला – अँधेरा आता ही रहता है इन समस्त सामयिक प्रक्रियाओं में परेशानियाँ, बाधाएँ हमें विचलित कर सकती हैं हमारा जीवट, हमारा आत्म बल ही हमें निजात दिला सकता है। हमें समय रहते बाधा निवारण के उपाय करने होते हैं अन्यथा हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं बचता।

यहाँ बाधा से मेरा अभिप्राय किसी भूत बाधा, प्रेत बाधा,तन्त्र बाधा आदि से नहीं है। मेरा बाधा से आशय कार्य की सफलता में बाधक व्यावहारिक तत्वों और मनोभावों से है।

हमें अपने आप में जूझने का माद्दा पैदा करना है किसी विद्वान् ने बहुत सही कहा कि –

हारा वही जो लड़ा नहीं।

ये परेशानियाँ, ये बाधाएं हमें सशक्त बनाती हैं जीवन के कैनवास में रंग भरती हैं रास भरती हैं  श्री राम नरेश त्रिपाठी जी ने तो मृत्यु का भी स्वागत करने की प्रेरणा दी है उन्होंने कहा –

निर्भय स्वागत करो मृत्यु का

मृत्यु एक है, विश्राम स्थल।

जीव जहाँ से फिर चलता है

धारण कर नव जीवन सम्बल।

हमारी परम्पराएँ, हमारी मान्यताएं, हमारे सशक्त पूर्वज सभी हमें बाधाओं से टकराने का निर्देश देते हैं। किसी से धोखा मिलने पर, किसी के छल से, कोई आपत्ति आने पर, अचानक विषम स्थिति पैदा होने पर, हमें अपना मानसिक संतुलन नहीं खोना चाहिए बल्कि और दृढ़ता युक्त होकर अन्य के लिए भी प्रेरणावाहक की भूमिका का निर्वहन करना चाहिए। याद रखें पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की उन पंक्तियों को जिसमें उन्होंने हुंकार भरी –

बाधाएं आती हैं आएं,

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अँगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालायें,

निज हाथों से हँसते हँसते,        

आग लगा कर जलना होगा।

कदम मिलाकर चलना होगा।

वक्त साथ कदमताल करते हुए आइए चलते हैं उस पक्ष की ओर जहाँ लोग आपके हतोत्साह का कारण बनेंगे। वे आपको डराते हुए कहेंगे – कहना सरल है करना कठिन। वास्तव में ये वही लोग हैं जो न कुछ खुद कुछ कर सकते हैं और न ही किसी की प्रगति में मील का पत्थर बन सकते हैं इन गति अवरोधकों से बहुत सचेत रहने की जरूरत है। ये किसी भी कार्य के प्रति आपके मन में भय जगा सकते हैं और किसी भी रूप में आ सकते हैं यथा साथी, रिश्तेदार, सम्बन्धी, चिकित्सक, माता, पिता, गुरु या तथाकथित शुभ चिन्तक। कोई भी इस भूमिका को निर्वाहित कर सकता है। आपको अपने आपको आत्मविश्वास से युक्त कर यथार्थ के धरातल पर खड़ा करना है और व्यावहारिक विश्लेषण, संश्लेषण के आधार पर यथोचित निर्णय लेना है याद रखें –

रास्ता किस जगह नहीं होता

सिर्फ हमको पता नहीं होता

छोड़ दें डर कर रास्ता ही हम

ये कोई रास्ता नहीं होता।

इसीलिये शान्त चित्त रहकर हमें स्वयम मार्ग तलाश करना चाहिए। लोग क्या कहेंगे इसकी कत्तई चिन्ता नहीं करनी चाहिए और उन लोगों की बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए  कोरे भाग्यवादी होते हैं और कहते फिरते हैं जो भाग्य में लिखा है वही होगा। हमें अपना भाग्य खुद ही गढ़ना है। हम आज जो हैं अपने पूर्व विचार और कर्मों की वजह से हैं। भाग्य पर भरोसे की जगह सम्यक रणनीति बनाकर क्रियान्वयन करें। अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘ जी ने कितना सुन्दर भाव अभिव्यक्त किये हैं –

देख कर बाधा विविध, बहुविघ्न घबराते नहीं।

रह भरोसे भाग्य के, दुःख भोग पछताते नहीं।

काम कितना भी कठिन हो किन्तु उकताते नहीं।

भीड़ में चञ्चल बने, जो वीर दिखलाते नहीं।

हो गए एक आन में, उनके बुरे दिन भी भले।

सब जगह सब काल में, वे ही मिले फूले फले।

एक बार हाँ सिर्फ एक बार दृढ़ सङ्कल्प लें, निर्विकल्प होकर सङ्कल्प लें। दृढ़ होकर अपने सपने पूरे करने के लिए चलें। सफलता आपके कदम चूमेगी। अरे हमारा सौभाग्य है हम उस देश में जन्मे हैं जिसमें शरीर के मरने की बात होती है आत्मा की नहीं। भगवान् कृष्ण ने स्वयम् अपने मुख़ार बिन्दु से कहा।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः

न चैनं क्लेदयन्त्यपो न शोषयति मारुतः ॥ 2.23॥

आइए अब आपको उस ओर ले चलता हूँ जहाँ आपके बहुत सारे प्रश्न, उत्तर पा सकते हैं समाधान प्राप्त कर सकते हैं। आखिर आज का सामान्य मानव चाहता क्या है ? धन, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक उन्नति, अच्छे पैसे वाली नौकरी, आजीवन आर्थिक सुरक्षा।  कुछ मानव आध्यात्मिक प्रगति, शोध, अच्छा स्वास्थ्य आदि की भी कामना करते होंगे।

उक्त की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा क्या है ? अगर हम आत्म मंथन करेंगे तो पाएंगे कि सबसे बड़ी बाधा हम स्वयं हैं हम आलस्य, प्रमाद से युक्त हैं हमारे कार्यों में निरन्तरता नहीं है  अपने उद्देश्य की प्राप्ति का जुनून हम अपने आप में जगा नहीं पाए हैं। आधे अधूरे मन से किये गए प्रयास मंजिल तक नहीं पहुँचते यह हम सब जानते हैं फिर भी अपनी असफलता का ठीकरा दूसरे के पर फोड़ने की  आदत बन गयी है। कभी कभी अपनी मेहनत के फल की सहज चोरी देखते हुए भी हम जाग्रत नहीं होते। जिस दिन इन विकारों को हम अपने से दूर कर पाएंगे इस दुनियाँ के विविध आकांक्षित फल हमारे पहलू में होंगे। सफलता, अच्छा स्वास्थ्य, ऊँची प्रतिष्ठा, अच्छा पद, मान सम्मान  इन सबके पीछे  कड़ी मेहनत छिपी है याद रखें सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता।

यदि आप सचमुच सफल होना चाहते हैं तो अपने आप से उक्त प्रश्न करें, समाधान आपके संयत मन में छिपा है। सही दिशा में अनवरत प्रयास  सफलता की कुञ्जी है। बाधा निवारण का उपाय है।

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शिक्षा

TEACHER AS AN AGENT OF CHANGE AND LIFE SKILLS TRAINER.

July 2, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


परिवर्तन के एजेंट और जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक

जीवन की यात्रा शैशव से शुरू होकर बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था के पायदान पर पैर रखते हुए बढ़ती है लेकिन जीवन पर्यन्त माँ – बाप के अतिरिक्त एक और जो हमारी खुशी में आनन्दित होने वाला व्यक्तित्व होता है वह जिसे दुनियाँ शिक्षक के रूप में जानती है। शिक्षक यूँ तो बहुत सी भूमिकाओं का निर्वहन करता है लेकिन यहाँ शीर्षक के अनुरूप हम उसके दो रूपों की चर्चा करेंगे।

परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of teacher as an agent of change –

परिवर्तन के एजेंट के रूप में परिवर्तन का प्रमुख अभिकर्त्ता शिक्षक इस लिए है क्योंकि मान बाप जिन गुणों को अपने बच्चे में अधूरा छोड़ देते हैं उसकी पूर्णता का गुरुत्तर दायित्व शिक्षक द्वारा निर्वाहित होता है। टूटे फूटे अक्षरों से धारा प्रवाहित सम्प्रेषण के साथ बालक विश्लेषण और संश्लेषण की शक्ति से युक्त होता है। जीवन पर्यन्त विविध परिवर्तनों के मूल में कहीं नींव  ईंट के मानिन्द शिक्षक को नकारा नहीं जा सकता। इसीलिये अरस्तु(Aristotle ) ने कहा –

“जन्म देने वालों से अच्छी शिक्षा देने वालों को अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए; क्योंकि उन्होंने तो बस जन्म दिया है ,पर उन्होंने जीना सिखाया है।”

“Those who give good education should be given more respect than those who give birth; Because they have just given birth, but they have taught how to live.”

जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of Teacher as Life Skills Trainer-

जीवन में बहुत कुछ अधिगमित किया जाता है और व्यवहार में परिवर्तन, आदत का बनना, कार्य कुशलता की वृद्धि परिणाम होता है प्रशिक्षण का। इस प्रशिक्षण क्रिया  को सम्पन्न करने का गुरुत्तर दायित्व है गुरुवर का। यहॉं जीवन कौशल प्रशिक्षक आशय जीवन काल में उपयोगी कौशलों के प्रशिक्षण प्रदाता से है . स्कूल, समाज और जेण्डर सुग्राह्यता में यह प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करता है। इसीलिये श्रद्धेय  अब्दुल कलाम (Abdul Kalam) जी ने कहा –

 “If a country is to be corruption free and become a nation of beautiful minds, I strongly feel there are three key societal members who can make a difference. They are the father, the mother and the teacher.”

“अगर किसी देश को भ्रष्टाचार – मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो, मेरा दृढ़तापूर्वक  मानना  है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं. पिता, माता और गुरु.”

परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक / Teachers as an Agent of Change –

शिक्षक मार्ग दर्शक, परामर्श दाता, नेतृत्व कर्त्ता और सुविधा प्रदाता के रूप में तो परिवर्तन का वाहक बनता ही है इसके अलावा भी निम्न कारक उसे परिवर्तन के अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करते हैं। –

1 – भाषा बोध / Language Comprehension

2 – अधिगम स्तर समायोजन / Learning Level Adjustment

3 – व्यवहार परिवर्तन / Behavior Change

4 – समय के साथ ताल मेल / Rhythm matching with time

5 – लिंग भेद के प्रति सम्यक दृष्टिकोण विकास / Development of proper attitude towards gender discrimination

6 – सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास / Development of positive attitude

7 – समस्या समाधान योग्यता / Problem solving ability

8 – व्यक्तित्व परिवर्तक / Personality changer

9 – मानसिक, बौद्धिक उत्थान / Mental, Intellectual development

10 – सर्वांगीण विकास / All round development

11 – प्रेरणा प्रदाता / Inspiration provider

विलियम आर्थर वार्ड (William Arthur Ward) ने कितने सुन्दर ढंग से समझाया

‘’The mediocre teacher tells. The good teacher explains. The superior teacher demonstrates. The great teacher inspires.”

‘‘एक औसत दर्जे का शिक्षक बताता है. एक अच्छा शिक्षक समझाता है. एक बेहतर शिक्षक कर के दिखाता है.एक महान शिक्षक प्रेरित करता है.”

जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक / Teacher as Life Skills Trainer –

जीवन में उत्तरोत्तर विकास के सोपानों से अपने विद्यार्थी को जोड़ने हेतु शिक्षक विविध कौशलों में पारंगत कर स्थिति से समायोजन करना चाहता है। कुछ कौशलों को इस प्रकार क्रम दया जा सकता है –

01 – व्यावसायिक दक्षता कौशल / Professional competence skills

02 – सृजनात्मक कौशल / Creative skill

03 – जागरूकता कौशल / Awareness skill

04 – प्रभावी सम्प्रेषण कौशल / Effective communication skill

05 – समस्या समाधान कौशल / Problem solving skill

06 – निर्णयन कौशल / Decision making skills

07 – संवेग नियन्त्रण कौशल / Emotion control skills

08 – तनाव नियन्त्रण कौशल / Stress management skills

09 – समायोजन कौशल / Adjustment skills

10 – परानुभूति कौशल /Empathic skill

इनके अतिरिक्त विविध कौशलों की आवश्यकता समय सापेक्ष होती है अध्यापक चेतना से युक्त प्राणी है और आवश्यकतानुसार निर्णय लेने में सक्षम है।

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शिक्षा

ADVANCEMENT OF KNOWLEDGE AND SEA CHANGES IN DISCIPLINARY AREAS.

June 30, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


ज्ञान की उन्नति और विषयात्मक परिक्षेत्र में विस्तृत परिवर्तन

ज्ञान की उन्नति से आशय / Advancement of Knowledge

भारतीय ज्ञानकाश में ज्ञान से प्रदीप्त विद्वानों की एक विस्तृत श्रृंखला है। निरन्तर बदलते काल खण्डों ने वैश्विक परिक्षेत्र को बहुत से ज्ञानियों के आलोक से प्रदीप्त किया है ज्ञान एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया अपने साथ विविध सकारात्मक परिवर्तन करती चलती है जो ज्ञान की उन्नति का पथ प्रशस्त करते हैं यद्यपि ज्ञान प्राप्ति का पथ दुरूह व कण्टकाकीर्ण होता है पर इसपर चलने वाले विज्ञजन लगातार होते आये हैं। इस प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में होने वाली, मानव उत्थान में सहयोगी क्रियात्मक तलाश ही ज्ञान की उन्नति को परिलक्षित करती है।

            ज्ञान की उन्नति की यह बयार अपने साथ परिवर्तनों की आँधी लेकर चलती है जो विविध विषयात्मक परिक्षेत्र में होते हैं।

DISCIPLINARY AREAS / विषयात्मक परिक्षेत्र –

जब ऋषियों, मनीषियों, वैज्ञानिकों, ज्ञानियों की ज्ञान पिपासा नित नए परिक्षेत्र तलाशती है तो विविध क्षेत्र ज्ञान आप्लावित हो जाते हैं और उनमे व्यापक परिवर्तन होते हैं यहां जिस डिसिप्लिनरी एरिया की बात की जा रही है वह मुख्यतः बी०एड ० पाठ्यक्रम से सम्बन्धित हैं उन  DISCIPLINARY AREAS / विषयात्मक परिक्षेत्र को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है  –

(i) – सामाजिक विज्ञान / Social Science

(ii) – विज्ञान / Science

(iii) – गणित / Mathematic

(iv) – भाषाएँ / Languages

ज्ञान की उन्नति के प्रभाव / Effects of the Advancement of Knowledge –

Or  ज्ञान की उन्नति से विस्तृत परिवर्तन / Sea change due to advancement of knowledge

जिस तरह से सूर्य की धूप मुठ्ठी में बन्द नहीं की जा सकती, पुष्प की खुशबू विस्तार पाती ही है उसी प्रकार ज्ञान की उन्नति का प्रभाव समग्र क्षेत्रों पर पड़ता है निश्चित रूप से बी ० एड ० पाठ्यक्रम में प्रदत्त विषयात्मक परिक्षेत्र पर भी उनका प्रभाव परिलक्षित होता है यहां सुविधा की दृष्टि से एक -एक का अध्ययन करेंगे –

1 – सामाजिक विज्ञान पर ज्ञान की उन्नति का प्रभाव / Impact of the Advancement of Knowledge on the Social Sciences

A -विविध विषयों का अद्वित्तीय संयोजन / Unique Combination of Various Subjects
B – मानवीय सम्बन्धों के अध्ययन में अमूल्य योगदान / Invaluable contribution to the study of human relations

C – समृद्ध सामाजिक जीवन का आधार / Base of a prosperous social life

D – स्वस्थ सामाजिक परिवेश / Healthy social environment

E - प्राचीन और अद्यतन का अद्भुत समावेश / wonderful mix of ancient and modern
F - भावी जीवन की तैय्यारी/ Preparation for future life

G – जागरूकता विकास समस्या समाधान में सहायक/Awareness Development Helpful in Problem Solving

H – सत्य व ज्ञान की खोज की प्रेरक / Motivator of search for truth and knowledge

2 – विज्ञान पर ज्ञान की उन्नति का प्रभाव / Impact of the Advancement of Knowledge on the Science

आज का युग विज्ञान का युग है और विज्ञान के आधार पर भौतिक युग में हम अपने को यथार्थ के अधिक निकट पाते हैं ज्ञान के प्रस्फुटन से विज्ञान को भी दिशा मिली और इसने मानव की जिंदगी आसान करने में अहम् भूमिका अभिनीत की। कुछ परिवर्तन के क्षेत्र इस प्रकार हैं –

01 – स्वास्थ्य व चिकित्सा / Health and Medicine

02 – कृषि / Agriculture

03 – उद्योग / Industry

04 - सञ्चार / Communication

05 – परिवहन / Transport

06 – मनोरञ्जन/ Entertainment

07 – खाद्यान्न उत्पादन व संरक्षण / Food production and preservation

08 – अन्तरिक्ष / Space

09 – युद्ध / War

10 - घरेलू साधन / Household appliances
      उक्त के अतिरिक्त भी बहुत से परिक्षेत्र गिनाये जा सकते हैं उनमें मुख्य है मूल्य सम्वर्धन - बौद्धिक मूल्य (Intellectual Values), नैतिक मूल्य (Moral Values), व्यावहारिक मूल्य (Practical Values), मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological Values), साँस्कृतिक मूल्य (Cultural Values), सौन्दर्यात्मक मूल्य (Aesthetic value),, व्यावसायिक मूल्य  (commercial value) आदि।
 

गणित के क्षेत्र में ज्ञान की उन्नति से होने वाले परिवर्तन/Changes due to advancement of knowledge in the field of mathematics –

दुनियाँ में ज्ञान का सागर हिलोरें मार रहा है बहुत सा ज्ञान कल्पना से यथार्थ की और चलता है तो बहुत सा यथार्थ की मज़बूत नीव पर समस्या समाधान की योग्यता रखता है गणितीय आधार ऐसा ही है जिसमें एक सिद्धान्त एक दिशा का बारम्बार सत्य यथार्थ बोध कराता है। ज्ञान की उन्नति ने इसे नीरसता से सरस यथार्थ की और अग्रसारित किया है कुछ परिवर्तन इस प्रकार हैं –

0 1 – बौद्धिक मूल्य/ Intellectual Value

0 2 - नैतिक मूल्य / Moral Values

 0 3 – सामाजिक मूल्य / Social Value

0 4 – प्रयोगात्मक मूल्य / Experimental value

0 5 – अनुशासनात्मक मूल्य / Disciplinary Values

0 6 – सांस्कृतिक मूल्य / Cultural Values

0 7 – जीविको पार्जन मूल्य/ Livelihood Earning Value

0 8 – मनोवैज्ञानिक मूल्य/ Psychological Value

0 9 – कलात्मक मूल्य/ Artistic value

1 0 – अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य/ International value

   वास्तव में मानव मानस को सत्य का महत्त्वपूर्ण बोध गणित ने कराया और दिशा दी इसीलिये प्लेटो महोदय को कहना पड़ा –

 “Mathematics is a subject which provides opportunities for training the mental powers.”

”गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने के अवसर प्रदान करता है।”

भाषा के क्षेत्र में ज्ञान की उन्नति से होने वाले परिवर्तन/Changes brought about by the advancement of knowledge in the field of language –

भाषा ही वह माध्यम है जिसने दूरियों को मिटा निकटता स्थापित करने का काम किया है ज्ञान की प्रगति ने हमें विविध भाषाओं को समझने में मदद की है और सभी क्षेत्रों में उच्च प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं परिवर्तनों को इस प्रकार इंगित किया जा सकता है –

1- ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन / Main source of knowledge

2 – राष्ट्रीय एकता की दिशाबोधक /Guide of National Integration

3 – विचार विनियम में सरलता / Ease of exchange of thoughts

4 – व्यक्तित्व निर्माणक/ Personality builder

5 – अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को बढ़ावा /Promotion of international relations

6 – सामाजिक जीवन का प्रगति आधार / Progress Basis of Social Life

7 – चिन्तन, मनन का आधार / Thinking, the basis of meditation

8 – प्रगति का आधार /The basis of progress

9 – कला,सभ्यता,संस्कृति,साहित्य का आधार /The basis of art, civilization, culture, literature    

अब तक का प्रस्तुतीकरण यह भी बोध कराता है कि और भी बहुत सारे परिवर्तन इसमें शामिल होने से रह गए हैं छोटे से काल खंड में विवेचना दुष्कर है जैसे शोध परिक्षेत्र  क्रान्ति इसी ज्ञान प्रस्फुटन का परिणाम है अन्यथा यह तीव्रता संभव ही नहीं थी। ज्ञान की उन्नति मानव को सर्वोत्कृष्ट प्रदान करने में सभी परिक्षेत्रों में मदद करेगी और सभी क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन निरंतर होते रहेंगे।

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शिक्षा

Education and Economic Development

May 5, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षा और आर्थिक विकास

भारत वह देश है जो सनातन ज्ञान के अविरल प्रवाह का हामी रहा है ऋषि मुनि परम्परा से आज तक शिक्षा ने विविध आयाम तय किये हैं और आज यह आर्थिक विकास के प्रमुख सम्बल के रूप में जानी जाती है। बदलते सामाजिक परिवेश में जन जन की आकांक्षा के अनुरूप उद्देश्य की प्राप्ति में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आज जब कि यह कहा जाने लगा है की ज्ञान, ज्ञान के लिए नहीं। तो नई भूमिका अपने आप ही बन जाती है और शिक्षा नए परिवेश में सामाजिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बन जाती है। शिक्षा की विविध शाखाएं अर्थोपार्जन हेतु जनमानस की आवश्यकता बन जाती हैं। आर्थिक विकास भी नए आयाम की उपलब्धता हेतु शिक्षा की भूमिका को नकार नहीं सकता।

आर्थिक विकास से आशय / Meaning of Economic Development

आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है जो जन जन की आय में उत्तरोत्तर वृद्धि का सूचक है प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि उस राष्ट्र की आर्टिक प्रगति का सूचक है लेकिन सकल राष्ट्रीय आय सामान्यतः सकल राष्ट्रीय उत्पाद द्वारा तय होती है। भारतीय परिवेश में आर्थिक विकास वह अवधारणा है जो आर्थिक,सामाजिक,व सांस्कृतिक विकास में सकारात्मक योग देती है। परिवर्तन अवश्यम्भावी है लेकिन जब परिवर्तन राष्ट्र के आर्थिक उत्थान का कारण बने तो शैक्षिक उपादानों का महत्त्व स्वयं सिद्ध हो जाता है।

            जब देश के समस्त साधनों का कुशलतापूर्ण दोहन देशी साधनों द्वारा इस प्रकार किया जाता है कि उससे प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय सकारात्मक रूप से दीर्घ काल के लिए प्रभावित हो व मानव विकास सूचकांक व मानवीय जीवन स्तर प्रगति के उत्तरोत्तर सोपान तय करने लगे तब यह आर्थिक विकास का द्योतक होगा।

            आर्थिक विकास की परिभाषा / Definition of Economic Development

कुछ विद्वानों के आर्थिक विकास सम्बन्धी विचारों को कृतज्ञता पूर्वक हम इसे अधिगमित करने हेतु प्रयुक्त कर सकते हैं।

 मेयर व बाल्डविन महोदय के अनुसार-

“आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थ व्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय दीर्घकाल में बढ़ती है।”

 “Economic development is the process by which the real national income of an economy increases in the long run.”

 विलियमसन तथा बर्टिक ने कहा कि

 “आर्थिक विकास उस प्रक्रिया को सूचित करता है जिसके द्वारा किसी देश अथवा प्रदेश के निवासी उपलब्ध संसाधनों का अयोग प्रति व्यक्ति वस्तु व सेवाओं के उत्पादन में नियमित वृद्धि के लिए करते हैं।” 

“Economic development refers to the process by which the residents of a country or region utilize the available resources for a steady increase in per capita production of goods and services.”

जैकब वाइनर ने आर्थिक विकास को  पारिभाषित करते हुए कहा कि-

 ”आर्थिक विकास प्रति व्यक्ति आय के स्तरों में वृद्धि अथवा आय के विद्यमान उच्च स्तरों के अनुरक्षण से संबन्धित है।”

“Economic development is related to increase in the levels of per capita income or maintenance of existing high levels of income.”

आर्थिक विकास के घटक / Components of Economic Development

मानव समाज की इकाई है सामाजिक आर्थिक स्तर का उन्नयन मानव की आर्थिक प्रगति से सीधे सम्बन्ध रखती है आर्थिक विकास के सुनिश्चयन हेतु निम्न घटक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं।

1 – मानवीय घटक

i – अनुकूल वातावरण / friendly environment

ii – सक्षम प्रबन्धन / Efficient Management

iii – कुशल श्रमिक / Skilled workers

iv – उत्तम विकास योजना /Good development plan

v – आत्म प्रेरणा / self motivation

vi – उच्च स्तरीय तकनीकी प्रशिक्षण /high level technical training

vii – मानवीय शक्ति / human power

2 – आर्थिक घटक

i – सुदृढ़ परिवहन व्यवस्था / Strong Transport System

ii – प्राकृतिक संसाधन / Natural Resources 

iii – पूँजी /Capital

iv – जनसँख्या / Population

v – तकनीकी प्रगति /Technological Progress

vi – पूँजी उत्पादन अनुपात / Capital Output Ratio

vii – शासकीय नीतियाँ / Government Policies

आर्थिक विकास के उद्देश्य / Aims of Economic Development –

भारत में विविध पञ्च वर्षीय योजनाओं द्वारा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के प्रयास हुए लेकिन गलत आर्थिक नियोजन व स्वार्थपरता के कारण वे सम्यक गति न पकड़ सके। सैद्धान्तिक रूप से इनमें निम्न उद्देश्य पारिलक्षित हुए –

01 – आर्थिक विकास को गति /Speed ​​up economic development

02 – आत्मनिर्भरता / Self reliance

03 – रोजगार की उपलब्धता / Availability of employment

04 – गरीबी उन्मूलन / Poverty Alleviation

05 – निवेश वृद्धि / Investment Growth

06 – कुशल श्रम में वृद्धि / Increase in skilled labor

07 – गरीबी अमीरी की खाई कम करना / Reducing the gap between poverty and wealth

08 – स्वदेशी को बढ़ावा / Promotion of indigenous

आर्थिक विकास  शिक्षा का योगदान /Contribution of Education to Economic Development

1 – कुशल श्रम की उपलब्धता / Availability of skilled labor

2 – विविध परिक्षेत्र हेतु विशेषज्ञ /Specialist for various fields

3 – तकनीकी क्रान्ति /Technological revolution

4 – ग्रामीण उद्योगों हेतु प्रशिक्षण / Training for Rural Industries

5 – कार्य कुशलता में वृद्धि / Increase work efficiency

6 – उच्च शिक्षा को प्रश्रय / Patronage of higher education

7 – प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग /Use of natural resources

8 – सम्यक प्रबन्धन /Proper management

उक्त विवेचन यह स्पष्ट करता है कि बिना शिक्षा के प्रगति को पंख नहीं लग सकते यदि बदलती दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलना है तो आर्थिक प्रगति का सुनिश्चयन करना ही होगा जो बिना गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के सम्भव नहीं।

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शिक्षा

Liberalization / उदारीकरण

May 4, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

उदारीकरण से आशय / Meaning of Liberalization

आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद कुछ सङ्कीर्ण नेतृत्व शक्तियों की स्वार्थपरता के कारण घाटे का सौदा रहा है और हमारी उदारता हमें बहुत भारी पड़ी है एक रुपया बराबर एक डॉलर से प्रारम्भ सफर आज रुपए के भारी अवमूल्यन तक जा पहुँचा है। उदारीकरण विश्व बन्धुत्व या वैश्विक परिवार के विचार तले पनपने वाली सह अस्तित्व वाली विचार धारा है।

यहाँ जिस उदारीकरण की बात की जा रही है वह शैक्षिक परिक्षेत्र से सम्बन्धित है। पहले राजा, जमींदार, प्रजा, कारिन्दे  आदि शब्द आम थे और शासक वर्ग व कार्य करने वाले वर्ग हेतु अलग अलग तरह की शिक्षा का प्रावधान था और यह अन्तर कार्य की प्रकृति के कारण था धीरे धीरे राजा राजवाड़ा वाली व्यवस्था बदल गई और शिक्षा का भेद भी पुरानी बात हो गई। आज अधिकाँश जगह लोकतान्त्रिक व्यवस्था है और शिक्षा की एक उदार व्यवस्था है जो किसी से कोई भेद नहीं करती।

उदारवादी शिक्षा से आशय  / Meaning of liberal education –

            वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य यह परिलक्षित करता है कि आज सभी को सभी विषय पढ़ने का अधिकार है। योग्यता, रूचि और आर्थिक क्षमता के आधार पर किसी भी शैक्षिक विषय का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है इसी को उदारवादी शिक्षा के नाम से जाना जाता है।

प्रसिद्द शिक्षाविद सुरेश भटनागर व मुनेन्द्र कुमार अपनी पुस्तक ‘समकालीन भारत और शिक्षा’ में लिखते हैं –

“उदार शिक्षा सामान्य शिक्षा है, जिसमें साहित्य, कला, सङ्गीत, इतिहास,नीति शास्त्र,राजनीति आदि की शिक्षा की प्रधानता होती है।”   

 “Liberal education is general education, in which education of literature, art, music, history, ethics, politics, etc. has priority.”

इन विद्वानों ने उदारवादी शिक्षा से इतर अर्थों में उपयोगिता वादी शिक्षा को लेते हुए कहा –

“उपयोगितावादी शिक्षा में आर्थिक प्रश्न जुड़े रहते हैं। यह व्यावसायिक, कार्योन्मुख, क्रिया केन्द्रित, अर्थोपार्जन व जीविको पार्जन के उद्देश्यों को लेकर चलती है। इसमें कला, शिल्प, व्यवसाय, रोजगार परक विषयों की प्रधानता होती है।” 

“Economic questions remain attached to utilitarian education. It runs for the purposes of vocational, work-oriented, activity-oriented, earning and earning a living. There is importance of art, craft, business, employment-oriented subjects in this.”

            आज की उदारवादी शिक्षा में उक्त दोनों के दर्शन होते हैं व्यवहार में कोइ भेद नहीं दीखता। कतिपय विद्वान् आज के परिदृश्य में उदारवादी और उपयोगितावादी शिक्षा के विचार की उपादेयता नहीं स्वीकारते।

उदारवादी शिक्षा का महत्त्व / Importance of liberal education :-

वर्तमान परिदृश्य हमें उदार होने हेतु निर्देशित अवश्य करता है लेकिन पूर्ण सावधानी की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। हमें ध्यान रखना होगा की हमारी उदारता हमें और आने वाली पीढ़ी के लिए नुकसान दायक न बन पड़े। निःस्वार्थ भाव से और सचेष्ट रहकर उदारवादी शिक्षा अपनाने के महत्त्व को इस प्रकार बिन्दुवार वर्णित किया जा सकता है –

1 – आत्म अनुशासन स्थापन / Self discipline

2 – उत्तरदायित्व युक्त स्वतन्त्रता / Freedom with responsibility

3 – सकारात्मक व्यक्तिगत उद्देश्य निर्धारण / Positive personal goal setting

4 – संस्थागत उच्च प्रतिमान स्थापन / Institutional high standard setting

5 – सह अस्तित्व धारणा का विकास / Development of coexistence concept

6 – ध्येय उन्मुख / Goal oriented

7 – स्वावलम्बन व उच्च आदर्श स्थापन / Self reliance and high ideal setting

8 – सद्प्रेरणा / motivation

9 – संस्कृति व सभ्यता का संरक्षण व विकास / Protection and development of culture and civilization

उदारीकरण का मूल्याँकन / Evaluation of Liberalization

उदारीकरण के निष्पक्ष मूल्याङ्कन हेतु उसके लाभों और सीमाओं पर दृष्टिपात करना आवश्यक है आइए इस के प्रमुख बिन्दुओं पर विचार करते हैं।

उदारीकरण के लाभ / Benefits of liberalization –

1 – स्वस्थ प्रतिस्पर्धा / healthy competition

2 – विश्व स्तरीय उत्पादन /World class production

3 – उत्पादन क्षमता में वृद्धि / Increased production capacity

4 – तुलनात्मक ज्ञानात्मक वृद्धि / Comparative cognitive growth

5 – शोध स्तर का उच्चीकरण / Upgradation of research level

6 – तुलनात्मक अध्ययन सम्भव / Comparative study possible

उदारीकरण की सीमाएं / Limitations of Liberalization –

उदारीकरण के लाभ अधिकाँश सैद्धान्तिक हैं व्यावहारिक रूप से इसकी कमियाँ जग जाहिर हैं जिन देशों में राष्ट्रवादी ज्वार देखने को नहीं मिलता या काम मिलता है वहाँ इसके नकारात्मक प्रभाव अधिक देखने को मिलते हैं। यथा –

1 – स्वदेशी उद्योगों पर सङ्कट / Crisis on indigenous industries

2 – बहुराष्ट्रीय उद्योगों का बेलगाम प्रभाव / Rampant influence of multinationals

3 – शोध साहित्य की निर्बाध चोरी / Open plagiarism

4 – मूल्यों में अवनमन / Depression in Values

5 – राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा / Promotion of political corruption

6 – मुद्रा अवमूल्यन / Currency devaluation

7 – राष्ट्रीय हितों का ह्रास / Loss of national interest

8 – स्वदेशी तकनीक को नुकसान / Loss of indigenous technology

9 – अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा / Unhealthy competition

            उदारीकरण के सच्चे लाभ आदर्श वैश्विक परिदृश्य में ही सम्भव है सारे राष्ट्र अपने दृष्टिकोण से विचार करते हैं और अभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है सारे राष्ट्र, विश्व को एक परिवार मानने लगे इसीलिये भारत को बहुत सोच समझ कर सीमित उदारीकरण को राष्ट्रोत्थान के दृष्टिकोण से करना होगा। स्वयम पहल करके विश्व स्तरीय नेतृत्व को दिशा दी जा सकती है लेकिन हवन करते हाथ नहीं जलने चाहिए।

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शिक्षा

CONCEPT AND CHARACTERISTICS OF CULTURE

March 18, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

संस्कृति की अवधारणा व विशेषताएं

संस्कृति शब्द का उच्चारण होते ही हमारा अन्तर्मन मर्यादा का बोध करने लगता है साधारणतः संस्कृति में वह सब कुछ संयुक्त होता है जो मानव द्वारा समाज में रहकर जाना जाता है कलाएं, कानून, नैतिकता, धार्मिक परम्पराएँ, शिष्टाचार मर्यादाएं, रीति रिवाज, व्यवहार, सङ्गीत, भाषा, साहित्य आदि सभी कुछ इसमें शामिल है।

CONCEPT OF CULTURE (संस्कृति की अवधारणा)

संस्कृति की अवधारणा को समझने हेतु कुछ विज्ञजनों की संस्कृति के आशय को इंगित करने वाली परिभाषाओं के आलोक में समझने का प्रयास करते हैं। प्रसिद्द समाजशास्त्री मैकाइवर एण्ड पेज के शब्दों में –

“Culture is the expression of our nature in our modes of living and of thinking, in our everyday intercourse in art, in literature, in religion, in recreation and in enjoyment.”- Meciver and page

“हमारे रहने, विचार करने प्रतिदिन के कार्यों, कला, साहित्य, धर्म, मनोरंजन और आनन्द में संस्कृति हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।”

लुण्डवर्ग महोदय संस्कृति की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहते हैं –

“Culture may be defined as a system of socially acquired and transferred standard to judgement, belief and conduct, as well as the symbolic and material products of the resulting conventional patterns of behavior.” –Lundberg

“संस्कृति को उस व्यवस्था के रूप में पारिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम सामाजिक रूप से प्राप्त और आगामी पीढ़ियों को सञ्चरित कर दिए जाने वाले निर्णयों,विश्वासों, आचरणों तथा व्यवहार के परम्परागत प्रतिमानों से उत्पन्न होने वाले प्रतीकात्मक और और भौतिक तत्वों को सम्मिलित करते हैं।”

टायलर महोदय ने संस्कृति की अवधारणा को सुन्दर शब्दों में यूँ संजोया है –

“Culture is that complex whole which includes knowledge, beliefs, art, morals, law, customs and any other capabilities and habits acquired by man as a member of society.” – Tylor

“संस्कृति वह जटिल सम्पूर्णता है जिसमें ज्ञान,विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा तथा इसी प्रकार की ऐसी सभी क्षमताओं और आदतों का समावेश रहता है जिन्हे मनुष्य समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है। ”

यदि हम उक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करें तो एम०  एल० मित्तल के तत्सम्बन्धी ये विचार सत्य प्रतीत होते हैं। –

“किसी समुदाय या समाज के रहने सहने के समग्र तरीकों या जीवन विधि को संस्कृति कहते हैं। इसमें धर्म, कला, दर्शन, विज्ञान, आचार विचार, रीति रिवाज, रहन सहन, भाषा, वेशभूषा, खानपान, मशीनें, उपकरण, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था आदि सभी तत्व सम्मिलित होते हैं। ”

“The overall way of life or way of life of a community or society is called culture. It includes religion, art, philosophy, science, ethics, customs, living, language, costumes, food, machines, equipment, political and economic All the elements of system etc. are included.’’

CHARACTERISTICS OF CULTURE

संस्कृति की विशेषताएं

1 – संस्कृति अनुभव आधारित (Culture based on experience)

लुण्डवर्ग महोदय के अनुसार

“Culture is not related to a person’s innate tendencies or biological heritage, but it is based on social learning and experiences.”

 -Lundberg

“संस्कृति व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियों अथवा जैवकीय विरासत से सम्बन्धित नहीं होती, बल्कि यह सामाजिक सीख व अनुभवों पर आधारित होती है।”

2 – संस्कृति में स्थानान्तरण की शक्ति (The power of transference in culture)

3 – हर समाज में सांस्कृतिक विविधता (Cultural diversity in every society)

4 – संस्कृति में सामाजिकता का गुण (Sociability in culture)

ए ० डब्ल्यू० ग्रीन महोदय के अनुसार –

“Culture is the socially transmitted system of idealized ways in knowledge, practice and belief along with the artifacts that knowledge and practice maintain as they change in type.” – Green A.W.

“संस्कृति ज्ञान, व्यवहार, विकास की उन आदर्श पद्धतियों को तथा ज्ञान और व्यवहार से उत्पन्न हुए साधनों की व्यवस्था को कहते हैं, जो सामाजिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती हैं।”

5 – संस्कृति में अनुकूलन निहित (Adaptation inherent in culture)

6 – समाज का आदर्श संस्कृति है (Culture is the ideal of society)

इसीलिये व्हाइट महोदय को कहना पड़ा –

“Culture is a symbolic, continuous, cumulative and progressive process.”

“संस्कृति एक प्रतीकात्मक, निरन्तर, संचई और प्रगतिशील प्रक्रिया है।”

7 – संस्कृति, आवश्यकता पूर्ति में सक्षम (Culture, capable of meeting the need)

8 – मानवीय समाज की धरोहर (Heritage of human society)

रेडफील्ड महोदय के अनुसार –

“संस्कृति कला और उपकरणों से अभिव्यक्त परम्परागत ज्ञान का वह संगठित रूप है, जो परम्परा द्वारा संगठित होकर मानव समूह की विशेषता बन जाता है। ”

“Culture is the organised body of conventional understanding, manifest in art and artifact, which persisting through traditions, characterizes human group. – Redfield

उक्त अवधारणाओं व विशेषताओं के अध्ययन से यह पूर्णतः स्पष्ट भान होता है कि संस्कृति जन्मजात न होकर स्वीकार्य गुणों,  विचारों व व्यवहारों का समूह है जैसा वेरको व अन्य के इन विचारों से भी स्पष्ट  होता है – 

“Although the investigations of Social Scientists have shown that culture is not innate but learned, nevertheless the pressure to acquire this learning is so strong that is inescapable.” –Verco and others

“यद्यपि समाज शास्त्रियों की खोजों ने सिद्ध कर दिया है कि संस्कृति जन्मजात न होकर सीखी जाती है, फिर भी इनके सीखने को इतना अधिक महत्त्व दिया जाता है कि इनकी अवहेलना नहीं की जा सकती।”

                                                        

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