किसी भी तत्व, वस्तु, तथ्य, विचार के मूल रूपों की एक दीर्घ श्रृंखला है इनसे बुद्धि का रिक्ताकाश भरता है इन मूल रूपों से सङ्गति ज्ञान है। ज्ञान का प्रामाणिक व अप्रमाणिक होना इन मूल रूपों से सङ्गति व असङ्गति पर निर्भर करता है इन मूल रूपों को आदि प्रत्यय भी कहा जाता है उक्त तथ्य के उदाहरण रूपेण कहा जा सकता है कि आयताकार त्रिभुज का विचार अप्रमाणिक या अयथार्थ है क्योंकि तीन भुजा वाला त्रिभुज ही हमारे बौद्धिक रिक्ताकाश में है।
DEFINITIONS
OF KNOWLEDGE-
ज्ञान की परिभाषाएं –
स्थान,
काल ,
दिशा के प्रभाव में विभिन्न विद्वतजनों ने ज्ञान को इस प्रकार
पारिभाषित किया है-
प्लेटो के विचार में – “विचारों की दैवीय व्यवस्था और आत्मा
परमात्मा के स्वरुप को जानना ही सच्चा ज्ञान है। ”
शङ्कर के अनुसार – “ब्रह्म को सत्य जानना ज्ञान है और वास्तु
जगत को सत्य जानना अज्ञान है। “
हॉब्स के मत से – “ज्ञान ही शक्ति है। “
बौद्ध दर्शन स्वीकार करता है
-“ज्ञान वह है जो मनुष्य को सांसारिक दुखों से छुटकारा दिलाए। “
आदर्श वाद के अनुसार – “ज्ञान आदर्श का ज्ञान है। “(” Knowledge is the
knowledge of ideas.”)
यथार्थ वाद के अनुसार -“ज्ञान वास्तु का ज्ञान है। “
प्रो0 जोड के अनुसार- “ज्ञान हमारी उपस्थिति ,जानकारी और
अनुभवों के भण्डार में वृद्धि का नाम है। “
” Knowledge is an addition to our existing, information
and experience.”
सुकरात के अनुसार – “ज्ञान सर्वोच्च सद्गुण है। “(“knowledge is the highest
virtue.”)
विलियम जेम्स के अनुसार – “ज्ञान व्यावहारिक प्राप्ति और सफलता
का दूसरा नाम है। “
” Knowledge is an other name for practical achievement
and success.”
स्पेन्सर के अनुसार
“केवल वास्तु जगत का ज्ञान ही सत्य ज्ञान है, आत्मा परमात्मा
सम्बन्धी ज्ञान कोरी कल्पना है। ”
वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार
-“ज्ञान वह है जो ज्ञात है और जो ज्ञात होने के बाद संचित रहता है या वह
जानकारी है जो वास्तविक अनुभव द्वारा प्राप्त होती है। “
डीवी के अनुसार – “केवल वही ज्ञान वास्तविक है जो हमारी प्रकृति
में संगठित हो गया है,जिससे हम पर्यावरण को अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल बनाने में समर्थ हो
सकें और अपने आदर्शों तथा इच्छाओं को उस स्थिति के अनुकूल बना लें जिसमें की हम रहते
हैं। “
रसेल के अनुसार
” ज्ञान वह है जो मनुष्य के मन को प्रकाशित करता है।”
” Knowledge is that which enlightens the human
mind.”
उक्त परिभाषाओं के तथ्यात्मक विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि
ज्ञान में सत्यता,विश्वासऔर सत्य की प्रमाणिकता सिद्ध करने का गुण समाविष्ट रहता है
इससे अनुशासन व चारित्रिक सुगठन की भावना सुदृढ़ होती है।
Various facets of knowledge
ज्ञान के विभिन्न पहलू –
विद्वानों के ज्ञान सम्बन्धी दृष्टिकोणों के आधार पर इसके विभिन्न
पहलू दृष्टिगत होते हैं और उस आधार पर यह द्रव्य ,गुण, क्रिया,शून्यता
आदि के रूप में विवेचित किया जाता है इसे बोधगम्य बनाने हेतु इस प्रकार वर्गीकृत
किया जा सकता है –
द्रव्य के रूप में ज्ञान – सांख्य दर्शन व वेदान्त दर्शन
गुण के रूप में ज्ञान – कुछ विचार धाराएं मानती हैं की इसमें आगन्तुक
गुण है जिसे भौतिकवादी दृष्टिकोण युक्त चार्वाक दर्शन व चैतन्यवादी न्याय ,वैशेषिक
और प्रभाकर मीमांसा का समर्थन प्राप्त है जब कि जैन एवं रामानुज सम्प्रदाय
मानते हैं कि ज्ञान लक्षण स्वरुप है।
क्रिया रूप में ज्ञान – भाट्ट मीमांसक ज्ञान को क्रिया मानते हैं।
शून्यतावादी दृष्टिकोण – ज्ञान के सम्बन्ध में बौद्धों का मत सर्वथा
अलग है वे इसे द्रव्य ,गुण ,क्रिया न मानकर इसे शून्यता अर्थात वाणी से परे मानते हैं।
तृणं
न खादन्नदि, जीवमानस्तद्भागधेयम परमं पशुनामम।।
उक्त
विषय वस्तु अशिक्षित मानव को पशु के रूप में स्वीकार करने के भाव दर्शाता है,केन्द्रीय प्रवृत्ति भाव यह है कि ज्ञान का
प्रादुर्भाव हर मनुष्य के मस्तिष्क में हो और इसके लिएनिर्विवाद रूप से गुरु की
स्वीकार्यता है।
विश्व का दृष्टिकोण (world Outlook) –
भारत सहित समस्त विश्व का प्रबुद्ध वर्ग शिक्षक के प्रति आदर का भाव रखता है और इस कृतज्ञता को ज्ञापित भी करना चाहता है इसीलिये विविध देशों में विविध तारीखों को शिक्षक दिवस मनाया जाता है भारत अपने कृतज्ञता भाव का उद्घोष करते हुए स्वीकारता है –
अपने
अपने देश के शिक्षक के प्रति मान सम्मान कृतज्ञता राष्ट्र की सशक्तता में शिक्षक
की भूमिका के लिए विशिष्ठ दिवसों का आयोजन विश्व संस्कृति का हिस्सा है।
अन्तर्राष्ट्रीय
शिक्षक दिवस व विविध शिक्षक दिवसI(International Teachers Day And
Other Various Teachers Day ) – अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर
विश्व को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए विश्व शिक्षक दिवस मनाते हैं
यूनेस्को ने अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस
5 अक्टूबर को मनाने की घोषणा की और इसे 1994 से मनाया जा रहा है विश्व के एक सौ से
अधिक देश इस दिवस को मना रहे हैं।
विविध
देशों में राष्ट्रीय स्तर पर इसे मनाने हेतु अलग अलग दिवस देश कालानुसार विकसित
हुए हैं यथा –
नेपाल
में गुरु पूर्णिमा के दिन शिक्षक दिवस श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है।
भारत
में सर्वपल्ली राधा कृष्णन जो भारत के द्वित्तीय राष्ट्रपति भी रहे, उनके जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस उनकी
इच्छा का सम्मान करते हुए मनाया जाता है।
थाईलैण्ड
में 16 जनवरी को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस
मनाया जाता है यहाँ 21 नवम्बर 1956 में यह प्रस्ताव लाया गया जिसको स्वीकृति
प्राप्त हुई और पहला शिक्षक दिवस 1957 में
मनाया गया इस दिन यहाँ विद्यालयों में अवकाश घोषित किया गया है।
मलेशिया
में गुरुओं के प्रति असीम प्रेम दर्शाने वाला यह पर्व 16 मई को मनाया जाता है जिसे
‘हरि गुरु’ कहा
जाता है।
तुर्की
में वहाँ के प्रथम राष्ट्रपति कमाल अतातुर्क ने गुरुओं के सम्मान में इस पर्व को
मनाने की घोषणा की जिसे 24 नवम्बर को मनाया जाता है।
ईरान
में बहुत से लोगों के चहेते प्रोफेसर अयातुल्लाह मोर्तेजा की दो मई 1980 को हत्या
कर दी गयी। समस्त शिक्षकों के प्रति आदर भाव दर्शाने वाला यह दिवस उनकी स्मृति से जोड़कर दो मई को ही मनाया जाता है।
चीन
में वहाँ की नेशनल सेण्टर यूनिवर्सिटी ने 1931 में इसकी शुरुआत की चीन सरकार से
1932 में स्वीकृति भी मिली।चीन ने अपने देश के महान विद्वान कन्फूशियस के जन्म
दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए जाने की 1939 में घोषणा की जिसे 1951 में
वापस ले लिया गया अन्ततः सन 1985 में 10 सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया
लेकिन आज भी वहाँ का एक बड़ा वर्ग कन्फूशियस के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस घोषित
करने के पक्षधर हैं।
रूस
में अक्टूबर के प्रथम रविवार को शिक्षक दिवस के रूप में 1965 से 1994 तक मनाया गया
इसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के
रूप में स्वीकार कर 5 अक्तूबर को इसे मनाते हैं।
अमेरिका
में यह दिवस मई के प्रथम सप्ताह के मंगलवार को मनाने की घोषणा की गयी है
तत्सम्बन्धी कार्यक्रम पूरे सप्ताह आयोजित किये जाते हैं।
शिक्षक
दिवस के प्रमुख उद्देश्य(Main Objects Of Teachers’ day) :-
(1
)- गुरुओं के प्रति सम्मान आदर भाव दर्शाना।
(2
)- समाज के प्रति जिम्मेदारी निर्वहन की प्रेरणा प्रदान करना।
(3
)- समस्त विश्व की प्रबुद्ध दिशा निर्धारक मानवता का कृतज्ञता ज्ञापन।
(4)-विश्व
की समस्त समस्याओं के निराकरण हेतु शिक्षक
भूमिका के प्रति सचेष्ठ करना।
(5)-शिक्षकों
को धन्यवाद व आभार जताने का दिवस मनाना।
वस्तुतः
विश्व शिक्षक दिवस मनाकर UN वैश्विक स्तर पर अपने लक्ष्य 2030 तक प्राप्त
करना चाहता है जिसमें सतत विकास ,शिक्षण पेशे को बढ़ावा देना शैक्षणिक क्षेत्र की
उपलब्धियाँ जानना,शोध स्तर उच्चीकृत करना युवा प्रतिभा को इस
पेशे की ओर आकर्षित करना शामिल है यह 1966 की संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक
और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को )की सिफारशों की भावना के अनुरूप है।
वर्ष
2019 की विश्व शिक्षक दिवस की थीम(The Theme Of World
Teachers’ Day-2019):-इस वर्ष की विषयवस्तु का निर्धारक शीर्षक है –
“युवा शिक्षक -भविष्य का भविष्य”।
उक्त
समस्त विवेचन कबीर दास का समर्थन करता प्रतीत होता है विचारणीय हैं उनके शब्द –
सूक्ष्मशिक्षण का अर्थ( Meaning of Micro Teaching):
शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया बहुत सारी कुशलताओं का सम्मलित ताना बाना है। इन कुशलताओं में से एक एक कौशल को सुधारने हेतु प्रत्येक शिक्षण कौशल पर पृथकतः ध्यान देने की आवश्यकता को शिद्दत से महसूस किया गया इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु वर्तमान में प्रयुक्त सम्प्रत्यय है –सूक्ष्मशिक्षण
सूक्ष्म शिक्षण ,शिक्षण प्रशिक्षण की प्रयोगात्मक विधि है सूक्ष्म शिक्षण कम समय में अधिक लाभान्वित करने का तरीका है इसमें अध्ययन की एक इकाई और एक कौशल का प्रयोग कर अल्पअवधि तक विद्यार्थियों के एक छोटे समूह को पढ़ाता है जब प्रशिक्षाणार्थी पढ़ा लेता है तब प्रतिपुष्टि, पर्यवेक्षक द्वारा प्रदान की जाती है इस आधार पर पाठ में संशोधन कर पुनः पाठ योजना तैयार की जाती है उसी विषय वास्तु को पुनः पढ़ाया जाता है और पहली बार पढ़ाने में जो कमियां रह गयी थीं उनका निराकरण होता है और अगर दूसरी बार भी कमी रहती है तो पढ़ाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद पर्यवेक्षक पुनः प्रतिपुष्टि देता है यही चक्र इस सूक्ष्म शिक्षण का आधार है।
उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि :-
“सूक्ष्म शिक्षण अध्यापनके एक एक कौशल को कृत्रिम वातावरण में अल्पावधि में सीखने की सोद्देश्यपूर्ण क्रिया है।”
सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा (Definitions of Micro Teaching) :
सूक्ष्म शिक्षण विभिन्न परिभाषाओं को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है :-
एलन(Allen) व रायन( Ryan)के अनुसार -“सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण सम्प्रत्यय है ,जो सेवापूर्व और सेवारत शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में प्रयोग किया जा सकता है। सूक्ष्म शिक्षण शिक्षकों को शिक्षण अभ्यास के लिए एक ऐसी स्थिति प्रदान करता है ,जिसमें कक्षा कक्ष की सामान्य जटिलताएँ कम हो जाती हैं और जिसमें शिक्षक अपने निष्पादन( शिक्षण व्यवहार) पर वृहत मात्रा में प्रतिपुष्टि प्राप्त करता है। “
“Micro teaching is a training concept that can be applied to various preservice and inservice stages in professional development of teachers. Micro teaching provides teachers with a practical setting for instruction in which the normal complexities of the class room are reduced and in which the teacher receives a great deal of feedback on his performance.”
शिक्षा – विश्वकोष(The Encyclopedia of Education) के अनुसार -” सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक निर्मित तथा अध्यापन अभ्यास का न्यूनीकृत अनुमाप है जो शिक्षण प्रशिक्अनुसन्धान में प्रयुक्त्त किया जाता है।”
“Micro-teaching is a real constructed,Scaled down,Teaching encounter which is used for teacher training curriculum development and research”
बी 0 के 0 पासी (B.K.Passi) के अनुसार – “सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण तकनीक है जो छात्र अध्यापक से यह अपेक्षा रखती है की वे किसी तथ्य को थोड़े से छात्रों को कम समय में किसी विशिष्ठ शिक्षण कौशल के माध्यम से शिक्षा दें।”
“Micro-Teaching is a training technique which requires student teacher to teach a single concept to a small number of pupils using specified teaching skills in a short duration of time.”
उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि सूक्ष्मशिक्षण एक ऐसी तकनीक है जिससे अल्पावधि में नियत पाठ इकाई के आधार पर एक कौशल पर सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित कर कृत्रिम कक्षा स्थितियों में अल्पावधि में सिद्धहस्त हुआ जा सकता है और पर्यवेक्षक के निर्देशन में त्रुटि निवारण भी सम्भव है।
सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Micro Teaching Cycle)-
पाठ योजना (Lesson Planning)-शिक्षण (Teaching)- प्रतिपुष्टि (Feedback)-पुनः पाठ योजना (Re-Lesson Planning)- पुनः शिक्षण (Re-Teaching)- पुनः प्रतिपुष्टि (Re-Feedback)
कौशल में सुधार हेतु यह क्रम जारी रहता है। इस चक्र से वांछित परिणाम प्राप्त किये जाते हैं।
सूक्ष्म शिक्षण का विकास ( Development of Micro Teaching)-या सूक्ष्म शिक्षण का इतिहास ( History of Micro Teaching )-
आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है इस क्रम में साधन क्रिया को सरल बना देते हैं जब शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सशक्त व प्रभावी बनाने हेतु कीथ ऐचीसन चिन्तन कर रहे थे उसी समय 1961 में एक जर्मन वैज्ञानिक द्वारा छोटे टेप रिकॉर्डर के आविष्कार के बारे में खबर छपी इस खबर को पढ़कर उन्होंने शिक्षण अभ्यास के समय सुपरविसेर के स्थान पर ध्वनि दृश्य टेप रिकॉर्डर का प्रयोग किया इससे पाठ को पढ़ाने वाले ,प्रशिणार्थी अपने व्यवहारों में परिमार्जन करने करने लगे। एचिसन ने इस विचार को स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के इनके सहयोगी बुश और एलन का समर्थन प्राप्त हुआ और 1964 से प्रतिपुष्टि प्रदान करने हेतु साधन का व्यावहारिक प्रयोग प्रारम्भ हुआऔर व्यवहार में वांछित परिवर्तन पारिलक्षित होने लगा, दी गयी प्रतिपुष्टि की प्रभावात्माकता सिद्ध होने लगी। स्टेनफोर्ड विश्व विश्वविद्यालय आसपास के प्रशिक्षण विद्यालयों के वीडिओ टेप विवेचना कर उन्हें वापस कर देता था इससे अपेक्षित सुधार सुगम व निर्विवाद हो गया।
इसकी सफलता देख सेन जॉन्स स्टेट यूनिवर्सिटी ने इस सूक्ष्म शिक्षण को प्रभावशाली उपागम सिद्ध किया स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय ने शोधार्थी हेरीे गेमिसन के शोधाधार पर स्टेनफोर्ड शिक्षक सामर्थ्य मूल्यांकन गाइड सृजित की इस प्रकार एचीसन,एलन ,क्लेनवेश सेनजोश ,टकमैन आदि ने सूक्ष्म शिक्षण विकास यात्रा में अभूतपूर्व योगदान दिया सन 1969 तक संयुक्त राष्ट्र के 141 विश्वविद्यालय सूक्ष्म शिक्षण से शिक्षण कौशल दक्षता बढ़ाने का कार्य करने लगे।
भारत में सूक्ष्म शिक्षण की विकास [DEVELOPMENT OF MICRO-TEACHING IN BHARAT]-
भारत में इलाहाबाद विश्व विद्यालय के डी 0 डी 0 तिवारी (1967 )के द्वारा शिक्षण प्राकिशन के क्षेत्र में सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग किया गया जो की आज के सूक्षम शिक्षण भिन्नता लिए हुए था इसके बाद राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवम प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली [N.C.E.R,T.,NEW DELHI],एम0 एस0 विश्वविद्यालय बड़ौदा [M.S.UNIVERSITY ,BARODA] चण्डीगढ़,वाराणसी ,देहरादून आदि भी इस परिक्षेत्र से जुड़े ,१९७०से इसके प्रसार ने गति पकड़ी मद्रास में जी 0 बी 0 शाह ने इसे शिक्षक प्रशिक्षण में प्रयुक्त किया सी दोसाज 1970, कलकत्ता में भट्टाचार्य 1974 का भी विशेष योगदान रहा ,पासी एवं शाह 1974 ने सूक्ष्म शिक्षण परिक्षेत्र में प्रथम प्रकाशन किया।पासी,ललिता व जोशी 1976 में व बड़ौदा में सिंह एवं ग्रेवाल,गुप्ता 1978 ने इस क्षेत्र में विशेष कार्य किया। सन 1978 में ही इन्दौर विश्व विद्यालय ने ही National proposal for the Project की रचना की, इसके तहत विभिन्न विश्व-विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षकों का सहयोग लिया गया व राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवम प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली के सहयोग से इसे पूरा किया गया एवं इस क्षेत्र में सतत प्रयास व शोध कार्य को गति मिली। तत्पश्चात जिन विश्वविद्यालयों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रस्तावित शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वीकारा वहां सूक्ष्मशिक्षण कार्य क्रियान्वित हुआ व निरन्तर इसका प्रयोग विकास के नूतन आयाम पा रहा है।
सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं (Characteristics of Micro-Teaching):
परम्परागत शिक्षण से भिन्न सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण में प्रभावी भूमिका अपनी निम्न विशेषताओं के आधार पर निर्वाहित कर पा रही है। :-
01 – इसमें अधिगमार्थियों की संख्या 5 से 10 के बीच होती है।
02 – शिक्षण अवधि 5 से 10 मिनट के बीच रखी जाती है।
03 – वास्तविक छात्रों की जगह अधिकांशतः सहपाठी ही छात्र की भूमिका अभिनीत करते हैं।
04 – एक कालांश एक कौशल के प्रशिक्षण हेतु होता है।
05 – विषय वस्तु एक सूक्ष्म इकाई होता है।
06 – पुनः सुधार का अवसर उपलब्ध होता है।
07 – यह छात्राध्यापक केन्द्रित रहती है।
08 – यह व्यावसायिक प्रवीणता देने में सक्षम विधि है।
09 – यह लघु अवधि में अधिक दक्ष बनाती है।
10 – प्रतिपुष्टि तुरन्त प्राप्त हो जाती है।
11 -समय बद्ध होने से गति विधियां नियन्त्रित रहती हैं।
12-शिक्षण कौशल विकास की अत्याधिक प्रभावी व व्यावहारिक व्यवस्था है।
भारतीय मॉडल (Bhartiy model):
पाठ योजना(Lesson Planning)———— –
शिक्षण (Teaching)————————— 06 मिनट
प्रतिपुष्टि(Feed back)————————- 06 मिनट
पुनःपाठ योजना (Re-lesson Planning)——– 12 मिनट
पुनःशिक्षण (Re-Teaching)——————- 06 मिनट
पुनःप्रतिपुष्टि (Re-Feed back)————— 06 मिनट
———————————————————-
कुल कालावधि ( Total Time Period)——– 36 मिनट
उक्त मॉडल राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली ,एम 0 एस 0 विश्वविद्यालय,बड़ौदा,व इन्दौर विश्वविद्यालय के समेकित प्रयासों से विकसित हुआ।
कौशल (Skill) :
वर्तमान में अधिकांश अध्यापक प्रशिक्षण महाविद्यालय मुख्यतः प्रस्तावना कौशल(Introductory Skill ),प्रश्नीकरण कौशल (Questioning Skill ), व्याख्या कौशल (Explanation Skill), व्याख्यान कौशल (Lecture Skill), दृष्टान्त कौशल (Illustration Skill ), उद्दीपन परिवर्तनकौशल (Stimulus Variation Skill), पुनर्बलनकौशल( Reinforcement Skill), श्याम पट्टकौशल (Blackboard Skill), पाठ समापनकौशल (Lesson closure Skill) आदि का अभ्यास कराते हैं।
सूक्ष्मशिक्षण का अर्थ( Meaning of Micro Teaching):
शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया बहुत सारी कुशलताओं का सम्मलित ताना बाना है। इन कुशलताओं में से एक एक कौशल को सुधारने हेतु प्रत्येक शिक्षण कौशल पर पृथकतः ध्यान देने की आवश्यकता को शिद्दत से महसूस किया गया इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु वर्तमान में प्रयुक्त सम्प्रत्यय है –सूक्ष्मशिक्षण
सूक्ष्म शिक्षण ,शिक्षण प्रशिक्षण की प्रयोगात्मक विधि है सूक्ष्म शिक्षण कम समय में अधिक लाभान्वित करने का तरीका है इसमें अध्ययन की एक इकाई और एक कौशल का प्रयोग कर अल्पअवधि तक विद्यार्थियों के एक छोटे समूह कोपढ़ाया जाता है जब प्रशिक्षाणार्थी पढ़ा लेता है तब प्रतिपुष्टि, पर्यवेक्षक द्वारा प्रदान की जाती है इस आधार पर पाठ में संशोधन कर पुनः पाठ योजना तैयार की जाती है उसी विषय वस्तु को पुनः पढ़ाया जाता है और पहली बार पढ़ाने में जो कमियां रह गयी थीं उनका निराकरण होता है और अगर दूसरी बार भी कमी रहती है तो पढ़ाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद पर्यवेक्षक पुनः प्रतिपुष्टि देता है यही चक्र इस सूक्ष्म शिक्षण का आधार है।
उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि :-
“सूक्ष्म शिक्षण अध्यापनके एक एक कौशल को कृत्रिम वातावरण में अल्पावधि में सीखने की सोद्देश्यपूर्ण क्रिया है।”
सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा (Definitions of Micro Teaching) :
सूक्ष्म शिक्षण विभिन्न परिभाषाओं को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है :-
एलन(Allen) व रायन( Ryan)के अनुसार -“सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण सम्प्रत्यय है ,जो सेवापूर्व और सेवारत शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में प्रयोग किया जा सकता है। सूक्ष्म शिक्षण शिक्षकों को शिक्षण अभ्यास के लिए एक ऐसी स्थिति प्रदान करता है ,जिसमें कक्षा कक्ष की सामान्य जटिलताएँ कम हो जाती हैं और जिसमें शिक्षक अपने निष्पादन( शिक्षण व्यवहार) पर वृहत मात्रा में प्रतिपुष्टि प्राप्त करता है। ”
“Micro teaching is a training concept that can be applied to various pre service and in service stages in professional development of teachers. Micro teaching provides teachers with a practical setting for instruction in which the normal complexities of the class room are reduced and in which the teacher receives a great deal of feedback on his performance.”
शिक्षा – विश्वकोष(The Encyclopedia of Education) के अनुसार -” सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक निर्मित तथा अध्यापन अभ्यास का न्यूनीकृत अनुमाप है जो शिक्षण प्रशिक्अनुसन्धान में प्रयुक्त्त किया जाता है।”
“Micro-teaching is a real constructed,Scaled down,Teaching encounter which is used for teacher training curriculum development and research”
बी 0 के 0 पासी (B.K.Passi) के अनुसार – “सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण तकनीक है जो छात्र अध्यापक से यह अपेक्षा रखती है की वे किसी तथ्य को थोड़े से छात्रों को कम समय में किसी विशिष्ठ शिक्षण कौशल के माध्यम से शिक्षा दें।”
“Micro-Teaching is a training technique which requires student teacher to teach a single concept to a small number of pupils using specified teaching skills in a short duration of time.”
उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि सूक्ष्मशिक्षण एक ऐसी तकनीक है जिससे अल्पावधि में नियत पाठ इकाई के आधार पर एक कौशल पर सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित कर कृत्रिम कक्षा स्थितियों में अल्पावधि में सिद्धहस्त हुआ जा सकता है और पर्यवेक्षक के निर्देशन में त्रुटि निवारण भी सम्भव है।
सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Micro Teaching Cycle)-
पाठ योजना (Lesson Planning)-शिक्षण (Teaching)- प्रतिपुष्टि (Feedback)-पुनः पाठ योजना (Re-Lesson Planning)- पुनः शिक्षण (Re-Teaching)- पुनः प्रतिपुष्टि (Re-Feedback)
कौशल में सुधार हेतु यह क्रम जारी रहता है। इस चक्र से वांछित परिणाम प्राप्त किये जाते हैं।
सूक्ष्म शिक्षण का विकास ( Development of Micro Teaching)-या सूक्ष्म शिक्षण का इतिहास ( History of Micro Teaching )-
आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है इस क्रम में साधन क्रिया को सरल बना देते हैं जब शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सशक्त व प्रभावी बनाने हेतु कीथ ऐचीसन चिन्तन कर रहे थे उसी समय 1961 में एक जर्मन वैज्ञानिक द्वारा छोटे टेप रिकॉर्डर के आविष्कार के बारे में खबर छपी इस खबर को पढ़कर उन्होंने शिक्षण अभ्यास के समय सुपरविसेर के स्थान पर ध्वनि दृश्य टेप रिकॉर्डर का प्रयोग किया इससे पाठ को पढ़ाने वाले ,प्रशिणार्थी अपने व्यवहारों में परिमार्जन करने करने लगे। एचिसन ने इस विचार को स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के इनके सहयोगी बुश और एलन का समर्थन प्राप्त हुआ और 1964 से प्रतिपुष्टि प्रदान करने हेतु साधन का व्यावहारिक प्रयोग प्रारम्भ हुआऔर व्यवहार में वांछित परिवर्तन पारिलक्षित होने लगा, दी गयी प्रतिपुष्टि की प्रभावात्माकता सिद्ध होने लगी। स्टेनफोर्ड विश्व विश्वविद्यालय आसपास के प्रशिक्षण विद्यालयों के वीडिओ टेप विवेचना कर उन्हें वापस कर देता था इससे अपेक्षित सुधार सुगम व निर्विवाद हो गया।
इसकी सफलता देख सेन जॉन्स स्टेट यूनिवर्सिटी ने इस सूक्ष्म शिक्षण को प्रभावशाली उपागम सिद्ध किया स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय ने शोधार्थी हेरीे गेमिसन के शोधाधार पर स्टेनफोर्ड शिक्षक सामर्थ्य मूल्यांकन गाइड सृजित की इस प्रकार एचीसन,एलन ,क्लेनवेश सेनजोश ,टकमैन आदि ने सूक्ष्म शिक्षण विकास यात्रा में अभूतपूर्व योगदान दिया सन 1969 तक संयुक्त राष्ट्र के 141 विश्वविद्यालय सूक्ष्म शिक्षण से शिक्षण कौशल दक्षता बढ़ाने का कार्य करने लगे।
भारत में सूक्ष्म शिक्षण की विकास [DEVELOPMENT OF MICRO-TEACHING IN BHARAT]-
भारत में इलाहाबाद विश्व विद्यालय के डी 0 डी 0 तिवारी (1967 )के द्वारा शिक्षण प्राकिशन के क्षेत्र में सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग किया गया जो की आज के सूक्षम शिक्षण भिन्नता लिए हुए था इसके बाद राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवम प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली [N.C.E.R,T.,NEW DELHI],एम0 एस0 विश्वविद्यालय बड़ौदा [M.S.UNIVERSITY ,BARODA] चण्डीगढ़,वाराणसी ,देहरादून आदि भी इस परिक्षेत्र से जुड़े ,१९७०से इसके प्रसार ने गति पकड़ी मद्रास में जी 0 बी 0 शाह ने इसे शिक्षक प्रशिक्षण में प्रयुक्त किया सी दोसाज 1970, कलकत्ता में भट्टाचार्य 1974 का भी विशेष योगदान रहा ,पासी एवं शाह 1974 ने सूक्ष्म शिक्षण परिक्षेत्र में प्रथम प्रकाशन किया।पासी,ललिता व जोशी 1976 में व बड़ौदा में सिंह एवं ग्रेवाल,गुप्ता 1978 ने इस क्षेत्र में विशेष कार्य किया। सन 1978 में ही इन्दौर विश्व विद्यालय ने ही National proposal for the Project की रचना की, इसके तहत विभिन्न विश्व-विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षकों का सहयोग लिया गया व राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवम प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली के सहयोग से इसे पूरा किया गया एवं इस क्षेत्र में सतत प्रयास व शोध कार्य को गति मिली। तत्पश्चात जिन विश्वविद्यालयों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रस्तावित शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वीकारा वहां सूक्ष्मशिक्षण कार्य क्रियान्वित हुआ व निरन्तर इसका प्रयोग विकास के नूतन आयाम पा रहा है।
सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं (Characteristics of Micro-Teaching)-
परम्परागत शिक्षण से भिन्न सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण में प्रभावी भूमिका अपनी निम्न विशेषताओं के आधार पर निर्वाहित कर पा रही है। :-
01 – इसमें अधिगमार्थियों की संख्या 5 से 10 के बीच होती है।
02 – शिक्षण अवधि 5 से 10 मिनट के बीच रखी जाती है।
03 – वास्तविक छात्रों की जगह अधिकांशतः सहपाठी ही छात्र की भूमिका अभिनीत करते हैं।
04 – एक कालांश एक कौशल के प्रशिक्षण हेतु होता है।
05 – विषय वस्तु एक सूक्ष्म इकाई होता है।
06 – पुनः सुधार का अवसर उपलब्ध होता है।
07 – यह छात्राध्यापक केन्द्रित रहती है।
08 – यह व्यावसायिक प्रवीणता देने में सक्षम विधि है।
09 – यह लघु अवधि में अधिक दक्ष बनाती है।
10 – प्रतिपुष्टि तुरन्त प्राप्त हो जाती है।
11 -समय बद्ध होने से गति विधियां नियन्त्रित रहती हैं।
12-शिक्षण कौशल विकास की अत्याधिक प्रभावी व व्यावहारिक व्यवस्था है।
भारतीय मॉडल (Bhartiy model):
पाठ योजना(Lesson Planning)———— –
शिक्षण (Teaching)————————— 06 मिनट
प्रतिपुष्टि(Feed back)————————- 06 मिनट
पुनःपाठ योजना (Re-lesson Planning)——– 12 मिनट
पुनःशिक्षण (Re-Teaching)——————- 06 मिनट
पुनःप्रतिपुष्टि (Re-Feed back)————— 06 मिनट
———————————————————-
कुल कालावधि ( Total Time Period)——– 36 मिनट
उक्त मॉडल राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद ,नई दिल्ली ,एम 0 एस 0 विश्वविद्यालय,बड़ौदा,व इन्दौर विश्वविद्यालय के समेकित प्रयासों से विकसित हुआ।
कौशल (Skill) :
वर्तमान में अधिकांश अध्यापक प्रशिक्षण महाविद्यालय मुख्यतः प्रस्तावना कौशल(Introductory Skill ),प्रश्नीकरण कौशल (Questioning Skill ), व्याख्या कौशल (Explanation Skill), व्याख्यान कौशल (Lecture Skill), दृष्टान्त कौशल (Illustration Skill ), उद्दीपन परिवर्तनकौशल (Stimulus Variation Skill), पुनर्बलनकौशल( Reinforcement Skill), श्याम पट्टकौशल (Blackboard Skill), पाठ समापनकौशल (Lesson closure Skill) आदि का अभ्यास कराते हैं।
पर्यावरण में दो शब्द निहित हैं परि +आवरण अर्थात जो हमें हर ओर से ढके हो। इसमें किसी प्रकार का असन्तुलन ही प्रदूषण का परिचायक है जहाँ वस्तुएं ,जल ,वायु ,आकाश हमें प्रभावित करता है वहीं विचार भी पथ भ्रष्ट हो नैतिक प्रदूषण का कारक बनाते हैं। कोई विचार या वाद किस तरह से प्रदूषण का कारक बन सकता है यह इस लेख में स्पष्ट नजर आता है :-